व्यावहारिक जीवन में न तो पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है।। और ना हि विशुद्ध एकाधिकार। वास्तव में बाज़ार के लिए ये दोनों ही काल्पनिक परिस्थितियां हैं। बाज़ार की वास्तविक स्थिति इन दोनों के बीच में ही होती है।
सीधे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जब पूर्ण प्रतियोगिता की एक या एक से अधिक शर्तें पूरी नहीं हो पाती हैं। तब ऐसी स्थिति में वह बाज़ार अपूर्ण प्रतियोगी बाज़ार कहलाता है।
दरअसल व्यवहारिक जगत की समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से अमेरिकी अर्थशास्त्री प्रो. चैम्बरलिन ने एकाधिकृत प्रतियोगिता (Monopolistic competition) तथा श्रीमती जॉन रॉबिंसन ने अपूर्ण प्रतियोगिता (Imperfect competition) की विचारधारा प्रस्तुत की। महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों अर्थशास्त्रियों ने स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए अपनी कृतियों को संयोगवश 1993 में ही प्रकाशित किया। बाज़ार किसे कहते हैं? अर्थ, परिभाषा व विशेषताएँ क्या हैं? जानने के लिए इसे क्लिक करें।
वास्तविक जगत के लिए 'अपूर्ण प्रतियोगिता' तथा प्रो. चैम्बरलीन ने एकाधिकारी प्रतियोगिता' को स्वीकार किया। चूँकि पूर्ण प्रतियोगिता व विशुद्ध एकाधिकार की धारणाएं पूर्णतः काल्पनिक होती हैं इसलिए व्यवहार में अपूर्ण प्रतियोगिता को ही महत्वपूर्ण स्थान दिया गया।
अपूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषाएँ (Apurn pratiyogita ki paribhasha)
लर्नर के अनुसार- 'अपूर्ण प्रतियोगिता तब पायी जाती है जबकि एक विक्रेता अपनी वस्तु के लिए एक गिरती हुई माँग रेखा का सामना करता है।'
प्रो. जे के मेहता के अनुसार- 'विनिमय की प्रत्येक दशा अपूर्ण एकाधिकार की दशा कहलाती है। और अपूर्ण एकाधिकार दूसरे दृष्टिकोण से अपूर्ण प्रतियोगिता ही है। ऐसी प्रत्येक दशा एकाधिकारी प्रतियोगिता के तत्वों का मिश्रण होती है।'
प्रो. फ़ेयर चाइल्ड के अनुसार- 'यदि बाज़ार अच्छे ढंग से आयोजित नहीं है। यदि क्रेताओं और विक्रेताओं को एक दूसरे के संपर्क में आने में कठिनाई है। और यदि वे दूसरों के द्वारा ख़रीदी गयी वस्तुओं की क़ीमतों की तुलना करने में असमर्थ हैं तो हम इसे अपूर्ण प्रतियोगिता की संज्ञा देते हैं।'
आपने ऊपरोक्त परिभाषाओं के माध्यम से Imperfect competition अपूर्ण प्रतियोगिता क्या होती है? Apurn pratiyogita kya hai? जानने का प्रयास किया।
अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ (Characteristics of imperfect compitition in hindi)
आइये हम अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ (apurn pratiyogita ki visheshtaen) अथवा अपूर्ण प्रतियोगिता को जन्म देने वाले कारणों को जानने का प्रयास करते हैं। अपूर्ण प्रतियोगिता के कारण या विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-
(1) क्रेताओं तथा विक्रेताओं की संख्या कम-
इस बाज़ार में क्रेताओं व विक्रेताओं की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की तुलना में कम होती है। क्रेता व विक्रेता की संख्या सीमित होने के कारण कोई भी फर्म क़ीमत को प्रभावित करने में सक्षम हो जाती है। परिणामस्वरूप बाज़ार अपूर्ण प्रतियोगी हो जाता है।
(2) क्रेताओं और विक्रेताओं की अज्ञानता-
क्रेताओं व विक्रेताओं को जब बाज़ार की वस्तु स्थिति का पूर्ण ज्ञान नहीं होता। अर्थात उन्हें बाज़ार की वास्तविक क़ीमतों का ज्ञान नहीं होता। तब अपूर्ण प्रतियोगिता जन्म लेती है।
(3) वस्तु विभेद की स्थिति-
अपूर्ण प्रतियोगिता वस्तुओं के गुणों में अंतर होने के कारण उत्पन्न होती है। अर्थात विक्रेताओं द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं में समरूपता की कमी होती है। यानि कि उनमें सुगंध, पेकिंग आदि में विशेष अंतर होता है।
(4) वस्तुओं की क़ीमतों में अंतर-
अपूर्ण प्रतियोगी बाज़ार में समान गुणों वाली वस्तुओं के मूल्यों में प्रायः अंतर देखा जाता है। ऐसा अक़्सर विज्ञापन व विशेष प्रचार के कारण क्रेताओं के बीच उन वस्तुओं के प्रति आकर्षण पैदा कर मूल्यों में अंतर करने में सफल हो जाते हैं। और क्रेताओं से ऊँची क़ीमत वसूलते हैं।
(5) क्रेताओं का सुस्त या अगितिशील होना-
कभी-कभी क्रेताओं को इस बात का ज्ञान होता है कि विक्रेता उनसे ऊँची क़ीमत वसूल रहे हैं किंतु वे अपनी अगतिशीलता व सुस्ती की वजह से कम क़ीमत पर बेचने वाले विक्रेताओं से ख़रीदने में रुचि नहीं लेते। परिणाम यह होता है कि बाज़ार में एक ही वस्तु की अनेक क़ीमतें प्रचलित हो जाती है। और अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
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(6) ऊँची परिवहन लागत का होना-
बाज़ार में यदि वस्तुओं को विभिन्न स्थानों पर लाने-ले-जाने में ज़्यादा लागत लगती है। तो ऐसी स्थिति में भिन्न-भिन्न स्थानों पर उन वस्तुओं की क़ीमतों में अंतर आने लगता है। फलस्वरूप विक्रेता, क्रेताओं से ऊँची क़ीमत वसूलने लगता है। इस तरह अपूर्ण प्रतियोगी बाज़ार उत्पन होता है।
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