व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र क्या हैं (अर्थ, परिभाषाएं, विशेषताएं, महत्व, सीमाएं), Vyashti aur Samashti arthshastra (meaning, definitions, characteristics, importance, limitations in hindi)
व्यक्तिगत अथवा सामूहिक स्तर पर जब भी आर्थिक विश्लेषण हो, इन दो शाखाओं व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र (vyashti arthshastra aur samashti arthshastra) के आधार पर किया जाता है।
(1) व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro economics)
(2) समष्टि अर्थशास्त्र (Macro economics)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Vyashti arthashastra) का संबंध वैयक्तिक इकाईयों, जैसे- एक व्यक्ति, एक परिवार, एक फर्म, एक उद्योग, एक वस्तु व सेवा का मूल्य इत्यादि के अध्ययन से होता है। जबकि समष्टि अर्थशास्त्र (Vyashti arthashastra) का संबंध सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था या सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की बड़ी इकाईयों, जैसे- कुल राष्ट्रीय आय, कुल उपभोग, कुल व्यय, कुल बचत, कुल मांग, कुल पूर्ति, कुल विनियोग और रोज़गार इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।
आर्थिक विश्लेषण की उक्त शाखाएं ही वर्तमान में अत्यधिक प्रचलित हैं। सर्वप्रथम "व्यष्टि एवं समष्टि" vyashti evam samashti arthshastra अर्थशास्त्र का प्रयोग ओस्लो विश्वविद्यालय के सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. रैगनर फ्रिश ने किया था। इस अंक में हम व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र (Vyashti evam Samashti arthashastra) का परिचय, विशेषताएँ, महत्व, एवं सीमाएँ आदि का अध्ययन करेंगे।
Table of Contents :
व्यष्टि अर्थशास्त्र
(Micro Economics in hindi)
व्यष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ (Meaning of micro economics in hindi)-
हिंदी शब्द 'व्यष्टि' अंग्रेज़ी भाषा के शब्द माइक्रो (Micro), ग्रीक भाषा के शब्द 'माइक्रोस' (Micros) का हिंदी रूपांतरण है। व्यष्टि से अभिप्राय है- अत्यंत छोटी इकाई, दस लाखवां भाग, अर्थात हम कह सकते हैं कि व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध अध्ययन की सबसे छोटी इकाई से है। इस प्रकार, व्यष्टि अर्थशास्त्र vyashti arthashastra in hindi के अंतर्गत वैयक्तिक इकाइयों जैसे- व्यक्ति, परिवार, उत्पादक फर्में, उद्योग आदि का अध्ययन किया जाता है।
व्यष्टि अर्थशास्त्र (vyashti arthashastra) आर्थिक विश्लेषण की उस शाखा को कहते हैं। जो वैयक्तिक या विशिष्ट आर्थिक इकाइयों तथा अर्थव्यवस्था के 'छोटे भागों' का, उनके व्यवहारों तथा पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करता है। व्यष्टि अर्थशास्त्र की इस रीति का प्रयोग किसी विशिष्ट वस्तु की कीमत निर्धारण, व्यक्तिगत उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों के व्यवहार एवं आर्थिक नियोजन, व्यक्तिगत फर्म, व्यक्तिगत उद्योग के संगठन आदि तथ्यों के अध्ययन हेतु किया जाता है।
अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गयी कुछ विशिष्ट परिभाषाएँ -
1. प्रो. बोल्डिंग के अनुसार- "व्यष्टि अर्थशास्त्र विशिष्ट फर्मों, विशिष्ट परिवारों, वैयक्तिक कीमतों, मजदूरियों, आयों, विशिष्ट उद्योगों और विशिष्ट वस्तुओं का अध्ययन है।"
2. प्रो. चेम्बरलिन के अनुसार- "व्यष्टि अर्थशास्त्र पूर्णरूप से व्यक्तिगत व्याख्या पर आधारित है और इसका संबंध अंतर-वैयक्तिक संबंधों से भी होता है।"
3. प्रो. मेहता के अनुसार- "व्यष्टि अर्थशास्त्र वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत निर्धारण का अध्ययन करता है।"
व्यष्टि अर्थशास्त्र की एक महत्वपूर्ण मान्यता है कि इसके अंतर्गत पूर्ण रोज़गार की स्थिति को मान लिया जाता है। इस मान्यता के होने पर प्रमुख समस्या साधनों के बंटवारे की होती है क्योंकि साधनों का बंटवारा कीमतों के आधार पर ही किया जाता है। इसलिए क़ीमत सिद्धांत का विश्लेषण व्यष्टि अर्थशास्त्र का प्रमुख विषय बन जाता है। इसी कारण व्यष्टि अर्थशास्त्र को "कीमत सिद्धांत" (Price Theory) भी कहा जाता है। प्रो. शुल्ज़ के अनुसार- "व्यष्टि अर्थशास्त्र का मुख्य यंत्र कीमत सिद्धांत है।"
व्यष्टि अर्थशास्त्र की विशेषताएँ
(Characteristics of Micro Economics in hindi)
(Characteristics of Micro Economics in hindi)
व्यष्टि अर्थशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ (vashti arthashastra ki visheshtaye) निम्नलिखित हैं -
- वैयक्तिक इकाइयों का अध्ययन - व्यष्टि अर्थशास्त्र में वैयक्तिक या विशिष्ट इकाइयों के अध्ययन किया जाता है। समूहों अथवा योगों के अध्ययन से इसका कोई संबंध नहीं होता।
- सूक्ष्म चरों का अध्ययन - इसमें सूक्ष्म (Micro) चरों अर्थात छोटे छोटे भागों का अध्ययन किया जाता है। इन चरों के परिवर्तन का प्रभाव अत्यंत ही कम होता है जैसे- एक उपभोक्ता अपने उपभोग या एक उत्पादक अपने उत्पादन सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की माँग एवं पूर्ति को बिल्कुल भी प्रभावित नहीं कर सकता।
- पूर्ण रोज़गार की मान्यता - व्यष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन करते समय पूर्ण रोज़गार की मान्यता को लेकर चला जाता है।
- क़ीमत सिद्धांत - व्यष्टि अर्थशास्त्र को क़ीमत अथवा मूल्य सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत वस्तु की माँग एवं पूर्ति की घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। जहाँ विभिन्न वस्तुओं के व्यक्तिगत मूल्य निर्धारण भी किये जाते हैं।
व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्व (Importance of Micro Economics in hindi)
चलिये हम व्यष्टि अर्थशास्त्र के महत्व (vyashti arthashastra ka mahatva) को समझने का प्रयास करते हैं -
1. सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक- चूंकि वैयक्तिक आर्थिक इकाइयां ही मिलकर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का निर्माण करती हैं। व्यक्तिगत माँग, व्यक्तिगत उत्पादन आदि के संयोग से ही सामूहिक माँग एवं सामूहिक पूर्ति का रूप सामने आता है।
जैसे- यदि आप जानना चाहते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में सूती वस्त्र उद्योग की क्या स्थिति है, तब तो सर्वप्रथम आपको सूति वस्त्र उद्योग की फर्मों या देश के छोटे छोटे उद्योगों की जानकारी हासिल करनी होगी। तभी आप सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में सूती वस्त्र उद्योग की स्थिति का पता लगा सकते हैं। अर्थात सीधे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि व्यष्टि अर्थशास्त्र की सहायता से ही समष्टि अर्थशास्त्र यानि कि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
2. व्यक्तिगत इकाइयों को अपने क्षेत्र में आर्थिक निर्णय लेने में सहायक- एक उपभोक्ता अपनी बचत, आय, व्यय आदि की समस्याओं का निराकरण कैसे करे, एक फर्म उत्पादन तथा क़ीमत को किस प्रकार समायोजित करे। क्योंकि प्रत्येक उपभोक्ता यही चाहता है कि वह अपने सीमित साधनों से अधिक संतुष्टि प्राप्त कर सके। और इसी प्रकार प्रत्येक उत्पादक भी यही चाहता है कि वह कम से कम उत्पादन लागत पर अधिकतम उत्पादन कर सके और साथ ही अधिकतम लाभ प्राप्त कर सके। इन सभी तरह की समस्याओं का समाधान व्यष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।
3. आर्थिक नीति के निर्धारण में सहायक- व्यष्टि अर्थशास्त्र का आर्थिक नीतियों के निर्धारण में महत्वपूर्ण स्थान है। सरकार की आर्थिक नीतियों का निर्धारण इस आधार पर किया जाता है कि व्यक्तिगत इकाइयों के कार्यकरण पर कैसा प्रभाव पड़ता है। जैसे- हम इस बात का अध्ययन कर सकते हैं कि सरकार की नीतियों का विशिष्ट वस्तुओं की कीमतों, श्रमिकों की मज़दूरियों तथा साधनों के वितरण पर क्या प्रभाव पड़ता है। अतः सरकार के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह किसी भी नीति का निर्माण करते समय वैयक्तिक इकाइयों पर पड़ने वाले प्रभाव को सदैव ही ध्यान में रखे।
4. आर्थिक कल्याण एवं कार्य-कुशलता का निरीक्षण- व्यष्टि अर्थशास्त्र में जहाँ व्यक्तिगत उपभोग, व्यक्तिगत रहन-सहन आदि के स्तर की जानकारी प्राप्त की जा सकती है, वहीं सार्वजनिक आय, सार्वजनिक व्यय के प्रभावों की जानकारी भी प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार वैयक्तिक इकाइयों के विश्लेषणात्मक अध्ययन से उनमें पायी जाने वाली कमियों का पता लगाया जा सकता है तथा उनकी कार्यकुशलता में सुधार किया जा सकता है।
5. क़ीमत सिद्धांत के विश्लेषण में सहायक- व्यष्टि अर्थशास्त्र के द्वारा कीमतों के सापेक्षिक ढांचे (Relative Price Structure) के अध्ययन में मदद मिलती है। अर्थात विशिष्ट वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य निर्धारण तथा विशिष्ट साधनों का वितरण, जो कि अर्थशास्त्र का सबसे महत्वपूर्ण विषय है, का अध्ययन केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र द्वारा ही संभव है।
व्यष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ
(Limitations of Micro Economics in hindi)
यद्यपि व्यष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक विश्लेषण हेतु पर्याप्त, महत्वपूर्ण एवं उपयोगी भी है। किंतु इसकी कुछ सीमाएँ (vyashti arthashastra ki simaye) हैं जिन्हें हम समझने का प्रयत्न करेंगे।
1. केवल व्यक्तिगत इकाइयों के अध्ययन- व्यष्टि अर्थशास्त्र में केवल व्यक्तिगत इकाइयों के ही अध्ययन होता है। यह केवल वैयक्तिक इकाइयों के संचालन एवं विश्लेषण में ही लगा रहता है। जिस कारण इस विश्लेषण में राष्ट्रीय अथवा विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था का सही सही ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
2. अवास्तविक मान्यताएं- व्यष्टि अर्थशास्त्र अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है। इसीलिये इसे काल्पनिक भी कहा जाता है। चूंकि यह केवल पूर्ण रोज़गार वाली अर्थव्यवस्था में ही कार्य कर सकता है, जबकि पूर्ण रोज़गार की धारणा काल्पनिक है। इसी प्रकार व्यवहारिक जीवन में पूर्ण प्रतियोगिता के स्थान पर अपूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है। व्यष्टि अर्थशास्त्र में दीर्घकाल की मान्यता भी व्यावहारिक नहीं लगती। जैसा कि प्रो. कीन्स ने लिखा है "हम सभी अल्पकाल के रहने वाले हैं, दीर्घकाल में हम सब की मृत्यु हो जाती है।"
3. व्यष्टि निष्कर्षों का सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर लागू न होना- यह आवश्यक नही है कि जो निर्णय वैयक्तिक इकाई के लिए उचित हों वह सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए भी उचित हों। व्यवहार में कुछ धारणाएँ ऐसी होती हैं, जिन्हें समूहों पर लागू करने से निष्कर्ष गलत निकलता है। उदाहरण के लिए, बचत करना एक व्यक्ति के दृष्टिकोण से ठीक है, लेकिन यदि समाज के सभी व्यक्ति बचत करने लग जाएं तो इसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगेगा। क्योंकि इस करने से उपभोग वस्तुओं की माँग में कमी हो जाएगी, उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय कम होने लगेगी तथा बेरोज़गारी फैलने लगेगी।
4. संकुचित अध्ययन- कुछ आर्थिक समस्यायें ऐसी होती हैं जिनका अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में संभव ही नहीं है। उदाहरण के लिए, मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति, राष्ट्रीय आय, रोज़गार स्तर, आय व धन का वितरण, विदेशी विनिमय, औद्योगिक नीति इत्यादि। क्योंकि इनका संबंध सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से होता है। यही कारण है कि आजकल समष्टि अर्थशास्त्र का महत्व बढ़ता जा रहा है।
5. अव्यावहारिक नियम एवं सिद्धांत- व्यष्टि अर्थशास्त्र के अधिकांश नियम एवं सिद्धांत पूर्ण रोज़गार तथा पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता पर आधारित हैं। किन्तु यदि पूर्ण रोज़गार और पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता ही अव्यावहारिक है तो इस पर बने समस्त नियम एवं सिद्धांत भी अव्यावहारिक ही कहलायेंगे।
समष्टि अर्थशास्त्र
(Macro Economics in hindi)
यद्यपि समष्टि अथवा व्यापक अर्थशास्त्र का, व्यष्टि अर्थशास्त्र के साथ मिला जुला प्रयोग प्राचीन समय से ही किया जा रहा है। किन्तु एक पृथक शाखा के रूप में "समष्टि अर्थशास्त्र" का प्रयोग आधुनिक समय में ही आरम्भ हुआ। सन 1930 की भयानक विश्वव्यापी आर्थिक मंदी की स्थिति और प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के पूर्ण रोज़गार के सिद्धांत की असफलता के कारण प्रो. जे. एम. कीन्स ने सबका ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि मंदी में फँसी हुई अर्थव्यवस्था का अध्ययन करने के लिए "व्यापक विश्लेषण" अपनाना चाहिए। इस प्रकार तभी से अर्थव्यवस्था का समग्र रूप से समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत अध्ययन किया जाने लगा।
समष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ (Meaning of Macro economics in hindi)-
समष्टि अर्थशास्त्र, आर्थिक विश्लेषण की उस शाखा को कहते हैं जो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था तथा अर्थव्यवस्था से संबंधित बड़े योगों व औसतों (जैसे- कुल राष्ट्रीय आय एवं उत्पादन, कुल विनियोग, के रोज़गार, कुल उपभोग आदि) का, उनके व्यवहारों और पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि समष्टि अर्थशास्त्र विशिष्ट इकाइयों के अध्ययन न करके, सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के कुल योगों का अध्ययन करता है। अतः इसे "योगात्मक अर्थशास्त्र" (Aggregative Economics) या सामुहिक अर्थशास्त्र भी कहते हैं।
अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गयी कुछ विशिष्ट परिभाषाएँ-
1. प्रो. बोल्डिंग के अनुसार, "समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध व्यक्तिगत मात्राओं के अध्ययन से नहीं, बल्कि इन मात्राओं के योग से होता है। इसका संबंध व्यक्तिगत आय से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आय से होता है, व्यक्तिगत क़ीमतों से नहीं, बल्कि सामान्य क़ीमत स्तर से होता है तथा व्यक्तिगत उत्पादन से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय उत्पादन से होता है।"
2. प्रो. चेम्बरलिन के अनुसार, "समष्टि अर्थशास्त्र कुल संबंधों की व्याख्या करता है।"
3. प्रो. शुल्ज़ के अनुसार, "समष्टि अर्थशास्त्र में मुख्य यंत्र राष्ट्रीय आय विश्लेषण है।"
उक्त परिभाषाओं से हम यह समझ सकते हैं कि समष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक क्रियाओं एवं घटनाओं का सम्पूर्ण रूप में अध्ययन किया जाता है। कुल रोज़गार तथा कुल आय का संबंध समष्टि अर्थशास्त्र का केंद्रीय विषय है। इसी कारण इसे रोज़गार सिद्धांत एवं आय सिद्धांत भी कहा जाता है।
समष्टि अर्थशास्त्र की विशेषताएँ
(Characteristics of Macro Economics in hindi)
समष्टि अर्थशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ (samashti arthashastra ki visheshtaye) निम्नलिखित हैं -
(1) व्यापक दृष्टिकोण- समष्टि अर्थशास्त्र की धारणा विस्तृत है। इसमें छोटी इकाइयों को महत्व नही दिया जाता। अपितु सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था तथा इससे संबंधित बड़े योगों व औसतों का अध्ययन किया जाता है। इसकी सहायता से राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय आर्थिक समस्याओं का हल निकाला जाता है। इस प्रकार समष्टि अर्थशास्त्र प्रावैगिक के महत्व को स्वीकारता है।
(2) व्यापक विश्लेषण- समष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत विश्लेषण न होकर व्यापक (विस्तृत) विश्लेषण होता है। इसमें सरकार के मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों का अध्ययन किया जाता है। यदि सार्वजनिक आय तथा सार्वजनिक व्यय का परस्पर प्रभाव समाज पर अच्छा पड़ रहा है, तो यह निष्कर्ष निकाल लिया जाता है कि समाज में रहने वाले व्यक्ति पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
(3) परस्पर निर्भरता- समष्टि अर्थशास्त्र में समूहों व औसतों का अध्ययन होने के कारण ये एक दूसरे से परस्पर इतने संबंधित होते हैं कि एक समूह में परिवर्तन करने पर दूसरे समूहों या औसतों पर या यूँ कहिये कि अन्य मात्राओं के संतुलन स्तर में भी परिवर्तन हो जाता है।
(4) आय व रोज़गार सिद्धांत- समष्टि अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय तथा कुल रोज़गार का अध्ययन केंद्रीय स्थान रखता है, इसीलिए इसे आय व रोज़गार का सिद्धांत भी कहते हैं।
(5) सामूहिक हितों पर बल- समष्टि अर्थशास्त्र की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह सामूहिक हितों पर सर्वाधिक बल देता है, ना कि व्यक्तिगत हितों पर।
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्व (Importance of Macro Economics in hindi)
समष्टि अर्थशास्त्र के महत्व (samashti arthashastra ke mahatva) को निम्न बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है -
(1) जटिल समस्याओं का अध्ययन- चूंकि आधुनिक अर्थव्यवस्था अत्यंत ही जटिल है क्योंकि इसमें अनेक आर्थिक तत्व परस्पर एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। इसीलिये समष्टि अर्थशास्त्र के विश्लेषण की सहायता से पूर्ण रोज़गार, व्यापार चक्र जैसी जटिल समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
(2) आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायक- सरकार का प्रमुख कार्य कुल रोज़गार, कुल आय, सामान्य कीमत स्तर, व्यापार के सामान्य स्तर आदि पर नियंत्रण करना होता है। अतः समष्टि अर्थशास्त्र, सरकार के आर्थिक नीति के निर्माण में सहायक साबित होती है। चूंकि सरकारी नीतियों का निर्माण किसी एक व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज को दृष्टि में रखकर किया जाता है।
(3) व्यष्टि अर्थशास्त्र के विकास में सहायक- व्यष्टि आर्थिक विश्लेषण में समष्टि अर्थशास्त्र बहुत सहायक होता है। जैसे- एक उत्पादक अपने उत्पादन के संबंध में निर्णय लेते समय कुल उत्पादन के व्यवहार से प्रभावित होता है।
(4) आर्थिक विकास का अध्ययन - आर्थिक विकास का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र का महत्वपूर्ण विषय है। समष्टि विष्लेषण के आधार पर ही अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास के संसाधनों एवं क्षमताओं का मुल्यांकन किया जाता है। राष्ट्रीय आय, उत्पादन एवं रोज़गार के स्तर में वृद्धि करने हेतु योजनाएँ बनायी तथा क्रियान्वित की जाती है, ताकि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का चहुँमुखी विकास हो सके।
(5) मौद्रिक समस्याओं का विश्लेषण- समष्टि अर्थशास्त्र की सहायता से ही मौद्रिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। मुद्रा के मूल्य में होने वाले उच्चावचन (मुद्रा प्रसार एवं मुद्रा संकुचन) अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं, जिनका नियंत्रण मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति तथा अन्य साधनों द्वारा भलीभांति किया जाता है।
(6) मुद्रा मूल्य के निर्धारण में सहायक- मुद्रा के मूल्य निर्धारण के सिध्दांत की व्याख्या समष्टि अर्थशास्त्र में ही की जाती है, क्योँकि इसमें मुद्रा मूल्य के परिवर्तनों के सम्पूर्ण समाज पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या की जाती है।
(7) विरोधाभाषों के कारण आवश्यक- समष्टि अर्थशास्त्र के कुछ विरोधाभास हैं। उदाहरण के लिए, "बचत एक व्यक्ति के लिए तो लाभदायक है, लेकिन यदि सम्पूर्ण समाज बचत करने लगे तो इससे अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।" इसीलिये यहाँ सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विश्लेषण के लिए पृथक रूप से समष्टि आर्थिक विश्लेषण की आवश्यकता होती है।
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ
(Limitations of Macro economics in hindi)
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ (samashti arthashastra ki simaye) निम्नलिखित हैं -
(1) व्यक्तिगत इकाइयों के आधार पर समष्टि अर्थशास्त्र के लिये निष्कर्ष निकालने में ख़तरा-
यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्तिगत इकाइयों के संबंध में जो बात सत्य हो, वो बात सम्पूर्ण समाज के लिए भी सही हो। उदाहरणार्थ, यदि किसी एक व्यक्ति के लिए बैंक से उसकी जमा राशि निकलने में कोई ख़तरा नहीं, किन्तु यदि सभी खातेदार एक साथ बैंक से अपनी जमायें निकालने लगे जायें तो बैंकिंग व्यवसाय ही ठप्प पड़ जायेगा।
(2) समूह की संरचना पर ध्यान न देना-
सामान्यतया, समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत समूह के आकार-प्रकार का ही अध्ययन किया जाता है, न कि समूह की वास्तविक संरचना का। समूह की संरचना के लिए समूह की बनावट और उसके समस्त अंगों की सम्पूर्ण जानकारी आवश्यक है, अन्यथा इसके अभाव में की जाने वाली भविष्यवाणियां अत्यन्त ही भ्रामक स्थिति पैदा कर सकती हैं। उदाहरणार्थ, मान लीजिए कि वर्ष 1990 तथा 1991 दोनों ही वर्षों में उत्पादन का स्तर समान है, इन दोनों ही वर्षों में कोई ख़ास परिवर्तन दिखाई नहीं दे रहा है।
परन्तु यह भी तो हो सकता है कि 1990 में कृषि वस्तुओं का उत्पादन ज़्यादा तथा औद्योगिक वस्तुओं का उत्पादन कम हुआ हो। ठीक इसके विपरीत 1991 में कृषि वस्तुओं का उत्पादन कम तथा औद्योगिक वस्तुओं का उत्पादन ज़्यादा हुआ हो। अतः समूह के आधार पर कोई भी भविष्यवाणी करना या नीति बनाना तब तक उचित नहीं जब तक समूह की बनावट तथा उसके अंगों के स्वभाव तथा परस्पर संबंध की सही सही जानकारी हासिल न कर ली जाये।
(3) विजातीय समूहों की समस्या-
समष्टि विश्लेषण में यह आवश्यक नहीं है कि जिस समूह का अध्ययन किया जा रहा है वह सजातीय इकाइयों का ही बना हो। यदि समूह की रचना ऐसी इकाइयों के आधार पर हुई है जिनका पारस्परिक संबंध ही नहीं है तो ऐसे समूह से निकाले गए निष्कर्ष सही साबित नही होंगे।
(4) निष्कर्षों का व्यावहारिक न होना-
समूह के आर्थिक विश्लेषण के आधार पर निर्मित नीतियाँ अक्सर गलत परिणाम दे देती है। जैसे- यदि सामान्य कीमत निर्देशांक को स्थिर देखकर हम यह कहने लगें कि वस्तुओं की क़ीमत स्थिर है, तो हमारा यह अनुमान ग़लत होगा क्योंकि कुछ वस्तुओं की क़ीमतों में वृद्धि होने तथा कुछ की क़ीमतों में कमी होने से सामान्य क़ीमत तो स्थिर रहेगा, लेकिन व्यक्तिगत वस्तुओं की क़ीमतों में उच्चावचन फिर भी होगा।
(5) समूह की इकाइयाँ, व्यक्तिगत इकाइयों के सही प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती हैं-
समूह की इकाइयाँ, व्यक्तिगत इकाइयों के सही प्रतिनिधित्व करती नहीं दिखाई देतीं। उदाहरण के लिए, कुल माँग में वृद्धि के कारण कुल उत्पादन बढ़ेगा, लेकिन कुछ फर्म ऐसी भी होंगी, जिनका उत्पादन बढ़ाने पर उनकी लागतों में वृद्धि होगी और कुछ की लागतों में कमी होगी। ठीक इसी तरह आय स्तर के बढ़ने से कुछ वस्तुओं का उपभोग बढ़ता है तो कुछ का उपभोग घट भी जाता है। इस प्रकार की अनेक ऐसी असमानताओं के कारण समूह, व्यक्तिगत मात्रा का सही सही निष्कर्ष निकालने में असमर्थ होता है।
"इस तरह, हमने देखा कि व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र दोनों ही अवधारणायें कभी एक दूसरे के विपरीत प्रतीत होती हैं तो कभी एक दूसरे के लिए सहायक। अतः हम यह कह सकते हैं कि ये दोनों ही प्रकार के विश्लेषण, हमारी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। दोनों के बिना देश में आर्थिक विकास संभव ही नहीं।"
उम्मीद है इस अंक में आपने व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र क्या है? Vyashti evam Samashti arthashastra kya hai? अच्छी तरह जान चुके होंगे। इसी तरह और भी महत्वपूर्ण टॉपिक्स पढ़ने के लिए बने रहिये हमारी साइट Studyboosting के साथ।