मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या हैं? मुद्रा ने किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर किया | मुद्रा के प्राथमिक या मुख्य कार्य बताइए | मुद्रा के गौण या सहायक कार्य बताइए | मुद्रा के आकस्मिक कार्य लिखिए | मुद्रा की परिभाषा दीजिए एवं मुद्रा के प्रमुख कार्यों की व्याख्या कीजिए।
ऐसी वस्तु जिसे विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापन, क्रय शक्ति के संचय तथा भावी भुगतानों के मान के रूप में सभी व्यक्तियों द्वारा स्वतंत्र, विस्तृत एवं सामान्य रूप में स्वीकार किया जाता हो, मुद्रा (mudra) कहलाती है। मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषा क्या है?
मुद्रा को किसी परिभाषा में बांधना सचमुच एक दुष्कर कार्य है। किन्तु सामान्य दृष्टि से देखा जाए तो हम मुद्रा को हम निम्न रूप में परिभाषित कर सकते हैं -
प्रो. मार्शल के अनुसार, मुद्रा में उन सभी वस्तुओं को शामिल किया जाता है जो किसी समय स्थान विशेष पर बिना किसी संदेह या विशेष जांच-पड़ताल के, वस्तुओं और सेवाओं के क्रय और ऋण के भुगतान के रूप में साधारणतः प्रचलित होती है।
मुद्रा के मूल्य से अभिप्राय एक देश में वस्तुओं और सेवाओं को ख़रीदने की मुद्रा की शक्ति से है। अर्थात उपर्युक्त सभी परिभाषाओं के अनुसार यदि हम मुद्रा को परिभाषित करें
तो हम कह सकते हैं कि, वह वस्तु जिसमें निम्नलिखित 3 गुण हों, मुद्रा कही जा सकती है -
(1) विनिमय का माध्यम
(2) मूल्य का मापन
(3) संचय का आधार
अर्थात, "ऐसी वस्तु जो सर्वमान्य, सर्व स्वीकृत, सर्व ग्राहाता प्राप्त हो तथा जिसे विनिमय माध्यम, मूल्य के मापन व संचय के कार्य हेतु प्रयोग में लाया जाता हो, मुद्रा कहलाती है।"
मुद्रा के कार्य (Functions of Money in hindi)
आधुनिक समाज में मुद्रा अनेक कार्य करती है। मुद्रा ने ही आर्थिक विकास को संभव बनाया है। वास्तव में मुद्रा का कार्य लेन देन को इतना सरल और सस्ता बनाना है कि जितने भी माल का उत्पादन हो, वह नियमित रूप से उपभोक्ताओं तक आसानी से पहुंच सके और भुगतान क्रम निरंतर चलता रहे।इस प्रकार आधुनिक मुद्रा वाणिज्य के लिए पहिए का कार्य करती है। लेकिन इस कार्य के अलावा उसे अन्य कई कार्य संपन्न करने होते हैं। प्रो. किनले ने मुद्रा के प्रमुख कार्यों (mudra ke pramukh karya) को निम्न प्रकारों में विभाजित किया है -
1. प्राथमिक या मुख्य कार्य (Primary Functions)
2. गौण या सहायक कार्य (Secondary Functions)
3. आकस्मिक कार्य (Contingent Functions)
4. अन्य कार्य (Other Functions)
1. प्राथमिक या मुख्य कार्य (Primary Functions)
मुद्रा के प्राथमिक या मुख्य कार्य (mudra ke prathmik ya mukhya karya) निम्न हैं -(१) विनिमय का माध्यम (medium of exchange)
मुद्रा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य विनिमय का माध्यम है। इस कार्य द्वारा मुद्रा ने वस्तु विनिमय के दोहरे संयोग के अभाव की कठिनाई को दूर करके विनिमय रीति को व्यवस्थित और सरल बना दिया है। अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति अपनी वस्तु के बदले मुद्रा प्राप्त करता है और फ़िर उस मुद्रा से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
मुद्रा के कारण अब किसी भी मनुष्य को किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश करने की आवश्यकता नहीं है जिसके पास उसकी आवश्यकता की वस्तु हो और वह अपनी उस वस्तु के बदले दूसरी वस्तु स्वीकार करने के लिए तैयार भी हो। सचमुच मुद्रा ने विनिमय का माध्यम बनकर वस्तु विनिमय की कठिनाईयों को पूरी तरह समाप्त कर दिया है।
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(२) मूल्य का मापक (Measure of value)
मुद्रा का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों को मापने का है। वस्तु विनिमय प्रणाली में यह जान पाना कठिन था कि किसी वस्तु की दी हुई मात्रा के बदले दूसरी वस्तु की कितनी मात्रा ली जानी चाहिए। मुद्रा के प्रचलन में आने से यह कठिनाई पूरी तरह दूर हो चुकी है।अब सभी वस्तुओं व सेवाओं के मूल्यों को मुद्रा में मापा जा सकता है। इसी के आधार पर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में लाभ और हानि का अनुमान लगाया जाता है। आजकल प्रत्येक वस्तु या सेवा का मूल्य मुद्रा की इकाइयों में व्यक्त किया जाता है। मुद्रा का मूल्य मापक के रूप में प्रयोग होने से आर्थिक गणना कार्य सरल हो गया है।
2. गौण या सहायक कार्य (Secondary Functions)
मुद्रा के गौण या सहायक कार्य (mudra ke gaun ya sahayak karya) निम्नलिखित हैं -(१) भावी भुगतानों का आधार -
मुद्रा का प्रथम गौण कार्य भावी भुगतान का आधार है। भावी भुगतान जिन्हें वर्तमान समय में न करके भविष्य के लिए स्थगित कर दिया जाता है। आधुनिक युग में संपूर्ण आधुनिक ढांचा साख पर आधारित है। जिसमें भिन्न भिन्न कार्यों के लिए उधारी लेन देन की आवश्यकता होती है। ऋण का लेन देन मुद्रा माध्यम से ही होता है।आधुनिक युग में औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्र में इसका अधिक महत्व है। अतः सभी साख पत्र जैसे - चेक, बिल, प्रतिज्ञा पत्र, हुण्डी आदि का महत्व बढ़ जाता है। मुद्रा वर्तमान भुगतानों को संपन्न करने के अतिरिक्त भावी भुगतानों का भी आधार है। आजकल व्यापार के क्षेत्र में सभी लेन देन स्थगित भुगतानों के रूप में किए जाते हैं।
(२) मूल्य संचय का आधार -
मुद्रा का दूसरा गौण कार्य मूल्य संचय का आधार है।वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा के अभाव में धन संचय करना अत्यंत कठिन था। मुद्रा के आविष्कार ने वस्तु विनिमय प्रणाली की इस कठिनाई को आसानी से दूर कर दिया है।
मुद्रा के प्रचलन ने ही बचत करने की क्रिया को संभव बनाया है। क्योंकि मुद्रा का मूल्य अन्य वस्तुओं की अपेक्षा स्थिर रहता है। मुद्रा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति, भविष्य में अपनी आवश्यकतानुसार वस्तु प्राप्त कर सकता है।
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(३) क्रय शक्ति का हस्तान्तरण -
मुद्रा का तीसरा महत्वपूर्ण गौण कार्य क्रय शक्ति का हस्तांतरण है। आधुनिक युग में बाज़ार का क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का हो गया है। मुद्रा के द्वारा क्रयशक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान यानि कि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक स्थानांतरित किया जा सकता है। मुद्रा के इस कार्य से वस्तु तथा सेवाओं का क्रय विक्रय अब दूर दूर तक होने लगा है।मुद्रा में वहनीयता तथा गतिशीलता के इसी गुण के पाये जाने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक सुगमता से मुद्रा के द्वारा क्रय-विक्रय किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति दिल्ली के किसी बैंक में सुरक्षापूर्वक धनराशि जमा करके बैंक ड्राफ्ट बनवा कर अथवा चेक द्वारा धन भेज सकता है। अतः क्रय शक्ति के हस्तान्तरण द्वारा धन को लाने ले जाने का जोख़िम अब समाप्त हो गया है।
3. आकस्मिक कार्य (Contingent Functions)
प्राथमिक एवं गौण कार्यों के अतिरिक्त भी मुद्रा के कुछ कार्य होते हैं जिन्हें मुद्रा के आकस्मिक कार्य (mudra ke akasmik) के अन्तर्गत रखा जाता है। मुद्रा के आकस्मिक कार्य निम्नलिखित हैं -(1) साख का आधार -
आधुनिक युग में देश की बैंकिंग तथा व्यापारिक उन्नति का श्रेय साख व्यापार को जाता है। आजकल सभी देशों में साख पत्रों का प्रयोग व्यापक पैमाने पर किया जाता है। बल्कि विकसित देशों में तो चेकों जब विनिमय पत्र आदि। का प्रयोग बहुतायत में किया जा रहा है। इन साख पत्रों के प्रचलन का आधार मुद्रा ही है।(2) आय के वितरण में सहायक -
वर्तमान में उत्पत्ति के प्रत्येक साधन का उसकी योग्यता और श्रम के आधार पर ही मुद्रा के रूप में मूल्यांकन किया जाता है। अतः भूमि को लगान, पूँजी को ब्याज, श्रमिक को मज़दूरी, संगठनकर्त्ता को वेतन तथा साहसी को लाभ के रूप में बँटवारा किया जाता है। उत्पादन के फलस्वरूप को आय प्राप्त होती है उसका विभिन्न साधनों में वितरण, मुद्रा के रूप में ही किया जाता है।अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि मुद्रा ने ही सहयोगी साधनों के बीच राष्ट्रीय व सामाजिक आय के वितरण को आसान बनाकर बड़े पैमाने की उत्पादन प्रणाली को प्रोत्साहन दिया है।
(3) पूंजी को तरलता प्रदान करने का आधार -
मुद्रा ही धन अथवा पूंजी के अनेक रूपों जैसे - मकान, दुकान, खेत आदि को एक सामान्य मूल्य प्रदान करती है। अब लोग मुद्रा के रूप में बचत करके अपनी भावी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। अर्थात मुद्रा के रूप में ही पूंजी का संचय करके विभिन्न वस्तुएं प्राप्त की जा सकती हैं।जिस तरह पानी को जिस बर्तन में एकाहा जाए वह उसी आकार में बदल जाता है। ठीक उसी प्रकार मुद्रा को भी एक प्रयोग से निकलकर दूसरे प्रयोग में लाया जा सकता है। अर्थात गतिशीलता तथा नकद प्रवृत्ति के कारण मुद्रा को किसी भी पदार्थ में परिवर्तित किया जा सकता है।
(4) सीमांत उपयोगिता में समानता लाने का साधन -
मनुष्य की आवश्यकताएं अनंत होती है तो वहीं उनकी पूर्ति हेतु साधन सीमित होते हैं। अतः व्यक्ति इस प्रयत्न में लगा रहता है कि वह उन सीमित साधनों से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त कर सके। अतः मुद्रा के माध्यम से ही उपभोक्ता अपनी आय को विभिन्न प्रयोगों में इस प्रकार व्यय करता है कि सभी प्रयोगों से उसे एकसमान उपयोगिता प्राप्त हो।उत्पादन के क्षेत्र में भी मुद्रा के प्रयोग से ही सभी साधनों की सीमांत उत्पादकता को बराबर करने की सुविधा प्राप्त होती है। जिससे उत्पादन भी अधिकतम किया जा सकता है। अर्थात हम कह सकते हैं कि मुद्रा ही सीमांत उपयोगिता तथा सीमांत उत्पादकता में समानता का आधार है।
4. अन्य कार्य (Other Functions)
उपर्युक्त सभी कार्यों के अतिरिक्त मुद्रा के कुछ अन्य कार्य (mudra ke anya karya) भी होते हैं जो निम्नलिखित हैं -(१) निर्णय का वाहक -
मुद्रा मनुष्य को समाज में ऐसी क्षमता प्र1. निर्णय का वाहक -दान करती है। जिसके अन्तर्गत वह भावी परिस्थितियों में, मुद्रा के रूप में संचित क्रय शक्ति का किसी भी उद्देश्य के लिए प्रयोग कर सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि मुद्रा का संचय जिस उद्देश्य के लिए किया गया हो उसी उद्देश्य हेतु व्यय किया जाए। बल्कि मुद्रा में वह गुण है कि उसे किसी भी उद्देश्य हेतु काम में लाया जा सकता है।मुद्रा को भविष्य में किसी भी वस्तु अथवा सेवा पर व्यय किया जा सकता है। अर्थात मुद्रा का किसी भी वस्तु में, किसी भी समय विनिमय किया जा सकता है। अतः मुद्रा, विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य के भावी निर्णय लेने में सहायक होती है।
(२) भुगतान क्षमता की सूचक -
किसी व्यक्ति या फर्म के पास मुद्रा रूपी तरल संपत्ति ही उसकी भुगतान क्षमता की सूचक होती है। मुद्रा की अनुपस्थिति ही किसी व्यक्ति, संस्था या फर्म को दिवालिया घोषित कर देती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति, संस्था या फर्म को अपने ऋण भुगतान करने के लिए अपनी आय अथवा साधनों का कुछ भाग नकद में संचित रखना आवश्यक होता है। प्रकार हम कह सकते हैं कि मुद्रा किसी व्यक्ति, फर्म या संस्था की भुगतान स्थिति की सूचक होती है।(३) तरल संपत्ति का रूप -
मुद्रा तरल संपत्ति के रूप में एक महत्वपूर्ण कार्य संपादित करती है। मनुष्य की संपत्ति में मुद्रा ही सर्वोत्तम संपत्ति कहलाती है। मनुष्य कुछ विशिष्ट कारणों से मुद्रा को तरल या नकद के रूप में रखना पसंद करता है इसे ही तरलता पसंदगी (taralta pasandagi) भी कहा जाता है।केंस के अनुसार, मुद्रा (पूंजी) को निम्नलिखित उद्देश्यों हेतु तरल रूप में रखना पड़ता है -
(अ) आय उद्देश्य - प्रत्येक व्यक्ति को अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपने पास कुछ न कुछ मुद्रा नकद रूप में रखनी होती है। क्योंकि उसे वेतन तो महीने या सप्ताह के अन्त में मिलता है। जबकि उसे विभिन्न आवश्यकताओं पर प्रतिदिन कुछ न कुछ व्यय करना पड़ता है।
(ब) सौदा उद्देश्य - व्यवसायी को अपना कार्य सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रतिदिन कुछ भुगतान ( कच्चा माल , मजदूरी , आदि के लिए ) करने पड़ते हैं । अतः इस उद्देश्य हेतु उसे अपने पास कुछ नकद मुद्रा रखनी पड़ती है ।
(स) सुरक्षा उद्देश्य - मनुष्य अपनी आकस्मिक आवश्यकताओं ( दुर्घटना, बीमारी, आदि ) की पूर्ति हेतु भी अपने पास कुछ मुद्रा नकद रूप में रखता है। केन्स ने उसे सुरक्षा उद्देश्य कहा है।
(द) सट्टा उद्देश्य - अनेक व्यवसायी सट्टा के उद्देश्य से भी अपनी संपत्ति (पूँजी) को मुद्रा के रूप में रखना पसन्द करते हैं। केन्स ने इसे ही सट्टा उद्देश्य कहा है।
मुद्रा के उपर्युक्त कार्यों से स्पष्ट है कि किसी भी समाज अथवा देश के आर्थिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि मनुष्य के जीवन में मुद्रा ना हो तो उसके लिए सभ्य जीवन व्यतीत करना लगभग असम्भव है। मानव सभ्यता के विकास में मुद्रा अनेक रूपों में प्रयुक्त की जाती है। अतः यह कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विकास हेतु मुद्रा का स्थान सर्वोपरि है।
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