अर्थशास्त्र की भाषा में "मुद्रा की मांग, मुद्रा की वह राशि है जिसे लोग अपने पास तरल रूप में रखना चाहते हैं।" मुद्रा की मांग का प्रयोग विनिमय कार्यो हेतु किया जाता है अतः मुद्रा की मांग (mudra ki mang) को व्युत्पन्न मांग भी कहा जाता है। मुद्रा की मांग किसे कहते हैं (mudra ki mang kise kahate hain?) आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
दरअसल मुद्रा द्वारा हम विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं इसलिए मुद्रा की मांग करते हैं। आप सभी जानते हैं कि मुद्रा की मांग, सौदों के संचालन के लिए अत्यंत आवश्यक है। साधारण तौर पर देखें तो सौदों या वस्तुओं का मूल्य ही तय करता है कि मुद्रा की मांग कितनी होगी। अर्थात लोग अपने पास कितना द्रव्य रखेंगे यह होने वाले सौदों की मात्रा पर निर्भर करेगा। और सौदे तभी अधिक होंगे जब लोगों की आय में वृद्धि होगी।
अर्थात अन्य शब्दों में कहें तो मुद्रा की मांग आय पर निर्भर करती है। आय बढ़ने पर सौदे बढ़ेंगे जिस कारण मुद्रा की मांग में वृद्धि होगी और बचत में भी वृद्धि होगी। इसके विपरीत आय घटने पर सौदे घटेंगे, जिससे मुद्रा की मांग (mudra ki mang) घटेगी तथा बचत में भी कमी होगी।
मुद्रा की मांग, ब्याज़ की दर पर भी निर्भर करती है। अर्थात बैंकों की ब्याज़ दर का प्रभाव मुद्रा की मांग पर पड़ता है। जब लोगों की आय में वृद्धि होती है तब लोग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा नकद रूप में रखने के बजाय बैंकों में रखना पसंद करते हैं। जिस पर उन्हें ब्याज़ प्राप्त होता है। अर्थात नकद रूप में मुद्रा की मांग, ब्याज़ की दर पर निर्भर करती है। जब ब्याज़ की दर बढ़ती है तब मुद्रा की मांग गिर जाती है। इसके विपरीत जब ब्याज़ की दर घटती है तब मुद्रा की मांग (mudra ki mang) बढ़ जाती है।
फिशर के विनिमय समीकरण में मुद्रा की मांग में व्यापारिक सौदे तथा क़ीमत स्तर को शामिल किया जाता है। जहां व्यापारिक सौदों से अभिप्राय एक वर्ष में बाज़ार में ब्रिकी के लिए आने वाली सभी सेवाओं एवं वस्तुओं की कुल मात्रा से है।
केम्ब्रिज अर्थशास्त्री के अनुसार, मुद्रा की मांग का अर्थ (mudra ki mang ka arth) नगद शेष मांग से लगाया जाता है। इनके अनुसार मुद्रा की मांग लोगो की तरलता पसन्दगी पर निर्भर करती है। नगद शेष के रूप में मुद्रा की मांग बढ़ने पर मुद्रा का प्रचलन वेग कम हो जाता है इनमें विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। सौदा उद्देश्य के लिए की जाने वाली मुद्रा की मांग, आय पर निर्भर करती है। कुल मांग के अंतर्गत सौदा, दूरदर्शिता, सट्टा उद्देश्य को शामिल किया जाता है।
मुद्रा की मांग का सिद्धात प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री व केम्ब्रिज अर्थशास्त्री ने दिया। कींस ने अपने सिद्धांत के अन्तर्गत मुद्रा की मांग के उद्देश्य को स्पष्ट किया है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे. एम. कीन्स (J. M. Keynes) ने 1936 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘General Theory of Employment, Interest and Money’ में किया।
किन्स ने मुद्रा की मांग को तरलता पसन्दगी कहा है। कीन्स के अनुसार, मुद्रा की माँग का अभिप्राय मुद्रा की उस राशि से है जो लोग अपने पास तरल (अर्थात् नकद) रूप में रखना चाहते हैं। कीन्स के अनुसार, लोग मुद्रा को नकद या तरल रूप में रखने की माँग तीन उद्देश्यों से करते हैं
मुद्रा की मांग का उद्देश्य (Mudra ki mang ka uddeshya)
मुद्रा की मांग होने के कुछ विशिष्ट कारण होते हैं। मुद्रा की मांग के उद्देश्य निम्नलिखित हैं -
1. सौदा उद्देश्य -
दैनिक लेन-देन करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने पास कुछ नकदी रखना पड़ता है। ताकि दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति, वह बिना किसी परेशानी के कर सके। दरअसल आय एक निश्चित समयावधि के बाद मिलती है जबकि व्यय दिन प्रतिदिन करना ही पड़ता है। इस प्रकार एक अर्थव्यवस्था में सभी व्यक्ति, परिवार और फर्में दैनिक खर्चे के लिए जो मुद्रा की माँग करते हैं उसे सौदा उद्देश्य वाली माँग कहा जाता है।
2. दूरदर्शिता उद्देश्य -
प्रत्येक व्यक्ति मुद्रा की एक निश्चित मात्रा, नकदी के रूप में रखना चाहता है ताकि वह भविष्य की अनिश्चितताओं जैसे – बेकारी, बीमारी, किसी अप्रत्याशित दुर्घटना आदि से स्वयं का बचाव कर सके। इसके अलावा भविष्य में अनेक सामाजिक रीति-रिवाजों को पूरा करने के लिए भी व्यक्ति नकद मुद्रा की मात्रा अपने पास रखना चाहता है।
ऐसी आपातकालीन परिस्थितियों से बचने के लिए नकद रूप में मुद्रा की मांग को दूरदर्शिता उद्देश्य वाली माँग कहा जाता है। यह माँग मुख्यतः व्यक्तियों के आय स्तर पर निर्भर करती है तथा यह माँग ब्याज की दर से प्रभावित नहीं होती।
3. सट्टा उद्देश्य -
अधिकांशतः व्यक्ति अपने पास नकद रूप में मुद्रा इसलिए भी रखना चाहता है ताकि भविष्य में ब्याज दर, बॉण्ड अथवा प्रतिभूतियों की क़ीमतों में होने वाले परिवर्तन का लाभ उठा सके। सट्टा उद्देश्य के लिए रखी जाने वाली नकद मुद्रा की मात्रा ब्याज़ की दर पर निर्भर करती है।
सौदा उद्देश्य और दूरदर्शिता उद्देश्य दोनों के लिए मुद्रा की मांग, ब्याज़ के प्रति बेलोचदार होती है। किन्तु सत्ता उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग, ब्याज़ के प्रति लोचदार होती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि 'सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग, ब्याज़ की दर का, एक ह्रासमान फलन होती है।'
भविष्य में बॉण्ड की क़ीमतों में वृद्धि (अर्थात् ब्याज़ दर में कमी की सम्भावना) की संभावना हो तो ऐसी दशा में लोग अधिक बॉण्ड ख़रीदेंगे ताकि भविष्य में उनकी क़ीमतों बढ़ने पर उन्हें बेचकर अच्छा लाभ कमाया जा सके। ऐसी स्थिति में सट्टा उद्देश्य के अंन्तर्गत रखी गयी नकद मुद्रा की मात्रा में कमी हो जाती है।
इसके विपरीत, यदि भविष्य में बॉण्ड की क़ीमतों में कमी (अर्थात् ब्याज़ दर में वृद्धि की सम्भावना) की संभावना हो तब ऐसी दशा में सट्टा उद्देश्य के अन्तर्गत नकद रूप में मुद्रा की अधिक मात्रा रखी जायेगी ।
इस प्रकार ब्याज़ की दर जितनी ऊँची होगी सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग उतनी ही कम होगी तथा ब्याज़ की दर जितनी कम होगी सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग (mudra ki mang) उतनी ही अधिक होगी। इस तरह यदि देखा जाए तो सट्टा उद्देश्य के अन्तर्गत रखी गयी मुद्रा निष्क्रिय पड़ी रहती है। इसलिए इस मुद्रा को निष्क्रिय मुद्रा (Idle Money) भी कहा जाता है ।
उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि आय स्थिर होने के कारण सौदा तथा दूरदर्शिता उद्देश्यों के लिए मुद्रा की माँग (अर्थात् सक्रिय मुद्रा) पर ब्याज़ की दर का प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग व्यक्ति की प्रत्याशा तथा मनोवैज्ञानिक स्थिति पर निर्भर करती है। अतः कहा जा सकता है कि ब्याज़ की दर में परिवर्तन का सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग (mudra ki mang) पर लोचशील प्रभाव पड़ता है।
उम्मीद है इस अंक के माध्यम से आप मुद्रा की मांग क्या है (mudra ki mang kya hai?) विस्तार पूर्वक जान चुके होंगे। इसके साथ ही मुद्रा की मांग किस उद्देश्य से की जाती है? (mudra ki mang kis uddeshya se ki jati hai?) यह भी भली भांति जान चुके होंगे। इसे आप अपने दोस्तों से ज़रूर शेयर करें। अर्थशास्त्र संबंधी महत्वपूर्ण टॉपिक्स पढ़ने के लिए StudyBoosting के साथ यूं ही जुड़े रहिए।
Related Topics :