सांख्यिकी का शाब्दिक अर्थ क्या है? सांख्यिकी से क्या अभिप्राय है? सांख्यिकी का अर्थ क्या है (sankhyiki ka arth kya hai?) इन प्रश्नों के जवाब हम इस अंक में जानेंगे। आर्थिक तथ्यों को संख्याओं के रूप में एकत्रित कर उनका विश्लेषण करना और उन उपायों का पता लगाना जिससे आर्थिक समस्या को सुलझाया जा सके। अर्थशास्त्र में ऐसे उपायों को नीतियों के रूप में जाना जाता है। किसी भी आर्थिक समस्या के विभिन्न कारकों से संबंधित आँकड़ों के बिना उस समस्या का विश्लेषण संभव ही नहीं।
अर्थात हम कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र में सांख्यिकी (arthshastra me sankhyiki) का प्रयोग विशेष रूप से प्रभावशील होता है। सांख्यिकी का अभिप्राय (sankhyiki ka abhipray) आँकड़ों के एकत्रीकरण, प्रस्तुतीकरण तथा विश्लेषण से है। जहाँ ये आँकड़े भौतिक शास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान या किसी भी क्षेत्र से हो सकते हैं।
Table of Contents :3.1.1. सांख्यिकी एक विज्ञान है3.1.2. सांख्यिकी एक कला है3.2.1 विवरणात्मक सांख्यिकी3.2.2. निष्कर्षात्मक सांख्यिकी3.3. सांख्यिकी का महत्व3.4. सांख्यिकी की सीमाएं
सांख्यिकी का अर्थ | Sankhyiki ka arth | सांख्यिकी का अर्थ क्या है?
सांख्यिकी यानि कि 'Statistic' शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'Status' शब्द, इटेलियन भाषा के 'Statista' और जर्मन भाषा के 'Statistik' शब्द से हुई है। हम आपको बता दें कि इन तीनों ही शब्दों का अर्थ होता है राज्य (state)।
अब आप आसानी से यह अनुमान लगा सकते हैं। कि सांख्यिकी शब्द के पीछे की कहानी क्या है? चलिये हम ही बता देते हैं। दरअसल राज्यों को सही तरीक़े से चलाने के लिए विभिन्न प्रकार के समंकों (आंकड़ों) की ज़रूरत पड़ती थी जैसे कि उन राज्यों की जनसंख्या, भूमि से संबंधित आँकड़े आदि राजाओं के लिए एकत्रित किये जाते थे। ताकि यह पता लगाया जा सके कि उनकी कितनी आय है और उनसे कर के रूप में कितनी धनराशि एकत्रित की जा सकती हैं।
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चूंकि यहाँ हमारा संबंध अर्थशास्त्र के क्षेत्र के आंकड़ों से है। यानि कि अर्थशास्त्र में सांख्यिकी। जहां अर्थशास्त्र के अधिकतर आंकड़े मात्रात्मक यानि कि गणितीय होते हैं। अतः प्राचीनकाल में सांख्यिकी को राज्य का विज्ञान (science of status) या राजाओं का विज्ञान science of kings नाम से भी पुकारा जाता था।
"Statistics" शब्द सर्वप्रथम प्रयोग जर्मनी के गणिताचार्य गॉटफ्राइड ऑकेनवाल (Gottfried Achenwall) ने सन 1749 में किया था।
सांख्यिकी की परिभाषा | Sankhyiki ki paribhasha
सांख्यिकी का संबंध आंकड़ों के एकत्रीकरण, प्रस्तुतिकरण तथा उसके विश्लेषण से होता है। जहां ये आंकड़े आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक या किसी भी क्षेत्र से हो सकते हैं।
सांख्यिकी शब्द का प्रयोग मुख्यतया से 2 रूपों में किया जाता है। (1) बहुवचन के रूप में तथा (2) एक वचन के रूप में।
बहुवचन के रूप में सांख्यिकी का अर्थ (Sankhyiki ka arth) संख्यात्मक सूचना या तथ्यों के संबंध में मात्रात्मक सूचना से होता है। तो वहीं एकवचन के रूप में सांख्यिकी का संबंध सांख्यिकीय विधियों से होता है। चूँकि आँकड़ों के संकलन और संकलित आंकड़ों के संकलन से निष्कर्ष निकालने हेतु अनेक सांख्यिकीय विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं। उदाहरण के लिए- आँकड़ों का संकलन, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा आँकड़ों का निर्वचन।
इसलिए एकवचन में सांख्यिकी का अर्थ सांख्यिकी विधियों से ही लिया जाता है। यह परिभाषा सांख्यिकी को एक विज्ञान के रूप में भी स्वीकार करती है।
कुछ परिभाषाएं :
क्राक्सटन और कॉउडन (Croxton & Cowden) के अनुसार- "सांख्यिकी की संख्यात्मक आँकड़ों के संकलन, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण और निर्वचन के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जाता है।"
लॉविट (Lovitt) के अनुसार- "सांख्यिकी ऐसा विज्ञान है जहाँ संख्या सम्बन्धी तथ्यों के संग्रहण, वर्गीकरण और सारणीकरन से संबंध रखा जाता है। ताकि आवश्यकता पड़ने पर घटनाओं की व्याख्या, विवरण और तुलना के लिए आधारस्वरूप प्रयोग किया जा सके।"
सैलिगमैन के अनुसार- "सांख्यिकी वह विज्ञान है जो किसी विषय लार प्रकाश डालने के उद्देश्य से संग्रह किये गए आँकड़ों के संग्रहन, वर्गीकरण, प्रदर्शन, तुलना और व्याख्या करने की विधियों की विवेचना करता है।"
सांख्यिकी का क्षेत्र (Scope of statistics in hindi)
सांख्यिकी के क्षेत्रों (sankhyiki ke kshetra) का अध्ययन 3 भागों में किया जाता है
(1) सांख्यिकी की प्रकृति (Nature of statistics)
(2) सांख्यिकी विषय सामग्री (Subject matter of statistics)
(3) सांख्यिकी की सीमाएँ (Limitations of statistics)
1. सांख्यिकी की प्रकृति (Nature of statistics in hindi)
सांख्यिकी के स्वभाव के अंतर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है। कि सांख्यिकी का स्वभाव कैसा है? इसकी प्रकृति कैसी है। जैसे कि सांख्यिकी का स्वभाव विज्ञान की तरह है या कला की तरह। या फ़िर विज्ञान और कला दोनों की तरह। आइये निम्न बिंदुओं में देखते हैं कि सांख्यिकी किन आधारों पर विज्ञान, कला या दोनों पर खरी उतरती है अथवा नहीं।
(अ) सांख्यिकी एक विज्ञान है (Statistics as a science in hindi)
विज्ञान उस शास्त्र को कहा जाता है जिसमें किसी भी विषय का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। सांख्यिकी को भी विज्ञान की श्रेणी में गिने जाने के निम्न आधार हैं-
1. सांख्यिकी का भी विज्ञान की ही तरह क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। यह बड़ी ही तीव्र गति से, विज्ञान की ही भांति विकास कर रहा है।
2. सांख्यिकी की विभिन्न रीतियों का सभी क्षेत्रों में व्यापक प्रयोग हो रहा है। जैसे संभावना का सिद्धांत, सांख्यिकी नियमितता नियम, महांक जड़ता नियम आदि विज्ञान की तरह ही सार्वभौमिक नियम हैं।
3. जिस तरह विज्ञान में विस्मंलेषण द्वारा कारण व परिणाम प्राप्त किये जाते हैं। ठीक उसी तरह सांख्यिकी में भी समंकों का संकलन, विश्लेषण, कारण व परिणाम का संबंध बताते हुए निर्वचन किया जाता है।
4. सांख्यिकी में भूतकाल तथा वर्तमान के तथ्यों के आधार पर भविष्य की घटनाओं का पूर्वानुमान अनेक विषयों द्वारा लगाया जाता है। जिनमें काल श्रेणियों के विश्लेषण, बह्यगणन, प्रतिपगमन आदि प्रमुख हैं।
(ब) सांख्यिकी एक कला है (statistics is an art in hindi)
इस माना जाता है कि 'यदि विज्ञान ज्ञान है, तो कला क्रिया है।' यानि कि कला से अभिप्राय ज्ञान की उस शाखा से है, जो विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु सर्वोत्तम रीतियों को बदलती है। तथा तथ्यों को प्राप्त करने का उपाय भी सुझाती है। इसलिए सांख्यिकी (sankhyiki) को हम निम्न आधार पर कला कह सकते हैं-
1. सांख्यिकी विभिन्न समस्याओं का समाधान हेतु समंकों के प्रयोग व उनके प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण एवं निष्कर्ष निकालने के लिए उपाय एवं साधन प्रस्तुत करती है।
2. सांख्यिकी में विशेष रूप से इस बात का अध्ययन भी किया जाता है कि भिन्न-भिन्न समस्याओं के लिए भिन्न-भिन्न सांख्यिकीय रीतियों एवं नियमों का प्रयोग कैसे किया जाए? अंकगणित माध्य का प्रयोग कहाँ उत्तम है? माध्यिका का प्रयोग किस दिशा में उत्तम होगा? निर्देशांक कैसे बनाएं? किस माध्य का प्रयोग किया जाए? यह सब हमें सांख्यिकी ही बताती है।
3. सांख्यिकी विधियों के व्यवहार के लिए व्यक्तियों में विशेष निपुणता, अनुभव तथा आत्म-संयम होना आवश्यक है। जो कि किसी विषय को कला कहने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
(स) सांख्यिकी विज्ञान और कला दोनों है (statistics is both a science and an art in hindi)
अंततः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सांख्यिकी विज्ञान व कला दोनों ही है। यह इन दोनों जैसा व्यवहार प्रदर्शित करती है। इसकी विधियाँ मौलिक रूप से व्यवस्थित हैं और इनका सर्वत्र प्रयोग भी किया जाता है। तो दूसरी तरफ़ इसकी पद्धतियों का सफल प्रयोग, पर्याप्त सीमा तक इसकी योग्यता, विशेष अनुभव व उनके क्षेत्र के ज्ञान पर आश्रित होता है। जैसे अर्थशास्त्र। अर्थात सांख्यिकी विज्ञान और कला दोनों का ही सम्मिलित रूप प्रदर्शित करती है।
2. सांख्यिकी की विषय सामग्री (subjet matter of statistics in hindi)
सांख्यिकी को विषय सामग्री के रूप में देखें तो इसके 2 संघटक हैं- विवरणात्मक सांख्यिकी एवं निष्कर्षात्मक सांख्यिकी। चलिये हम पहले इन दोनों संघटकों को संमझते हैं-
1. विवरणात्मक सांख्यिकी (Descriptive statistics) -
इसका संबंध उन विधियों से है जिनका प्रयोग आँकड़ों के संकलन, प्रस्तुतीकरण तथा विश्लेषण के लिए किया जाता है। इन विधियों का प्रयोग केंद्रीय प्रवृत्तियों की मापों (औसत, माध्यिका, बहुलक) अपकिरण की मापों (माध्य विचलन, मानक विचलन आदि), सहसम्बन्धों की मापों आदि की गणनाओं के लिए किया जाता है।
उदाहरणार्थ- इस सांख्यिकी का प्रयोग आप तब कर सकते हैं जब आप अपने विद्यालय के विद्यार्थियों की औसत लंबाई की गणना कर रहे होते हैं। इस तरह आप विवरणात्मक सांख्यिकी का प्रयोग तब कर सकते हैं जब आप ये जानते हों कि सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के विज्ञान तथा गणित में अंक एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं।
2. निष्कर्षात्मक सांख्यिकी (Inferential statistics) -
इस सांख्यिकी से अभिप्राय (sankhyiki se abhipray) उन विधियों से है जिनके द्वारा किसी प्रतिदर्श (sample) के आधार पर समग्र या जनसंख्या के संबंध में निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
उदाहरणार्थ- यदि आपकी कक्षा का अध्यापक केवल कक्षा के विद्यार्थियों के प्रतिदर्श के औसत वज़न को ही आधार मानकर, सम्पूर्ण कक्षा के औसत वज़न की गणना करता है तो ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है कि आपके शिक्षक के द्वारा निष्कर्षात्मक सांख्यिकी का प्रयोग किया जा रहा है।
सांख्यिकी का महत्व (Importance of statistics in hindi)
प्राचीन समय में सांख्यिकी का केवल राजाओं के विज्ञान के रूप में महत्व था। सैन्य तथा वित्तीय नीति बनाने के लिए अपराधों, सैन्य शक्ति, जनसंख्या, धन आदि से संबंधित सूचनाएं एकत्रित करना हो तो प्राचीन समय में सांख्यिकी का ही प्रयोग किया जाता था।
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किंतु अब आधुनिक युग में सांख्यिकी का प्रयोग सामाजिक व आर्थिक दोनों ही क्षेत्रों में विस्तृत हो चुका है। सांख्यिकी का इतना विकास हो चुका है कि कि आज यह केवल समंक संकलन तक ही सीमित नहीं अपितु समंकों के विश्लेषण द्वारा निश्चित निष्कर्षों पर पहुँचा जाता है।
आज के समय में कोई भी विज्ञान सांख्यिकी से अछूता नहीं है। अर्थात प्रत्येक विज्ञान में सांख्यिकी रीतियों का सहारा लिया जाता है। यहाँ तक कि वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, चिकित्सक, व्यापारी, कृषक आदि सभी सांख्यिकी पर निर्भर होते हैं। यानि कि अर्थशास्त्र में सांख्यिकी का महत्व आज के समय में चहुँओर दिखाई देता हैं। आइये हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से सांख्यिकी के महत्व (sankhyiki ka mahatva) क्या हैं? जानते हैं।
1. आर्थिक सिद्धांतों के निर्माण में सहायक- सांख्यिकी, अर्थशास्त्र के अंतर्गत आर्थिक सिद्धांतों, नियमों के निर्माण में अभूतपूर्व भूमिका निभाती है। सांख्यिकी, आर्थिक नियमों को बनाने के साथ-साथ उन्हें लागू करने व जाँच पड़ताल करने में सहायक होती है।
2. आर्थिक नियोजन में सहायक- आर्थिक नियोजन को अर्थव्यवस्था में उपलब्ध सीमित संसाधनों के कुशल उपयोग के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मन जाता है। अर्थव्यवस्था के अंतर्गत विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों के लिए प्राथमिकताएं सांख्यिकी के बिना निर्धारित नहीं कि जा सकतीं। अनेक योजनाओं के लक्ष्य भी समंकों के आधार पर निर्धारित किये जाते हैं। आर्थिक नियोजन की प्रगति का मुल्यांकन भी समंकों यानि कि संख्याओं के माध्यम से ही किया जाता है। सीधे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि "सांख्यिकी के बिना आर्थिक नियोजन, बग़ैर पतवार और दिशासूचक के जहाज़ के समान माना जा सकता है।"
3. अर्थशास्त्र के अध्ययन में सहायक- सांख्यिकी के बिना अर्थशास्त्र की कल्पना करना असंभव है। राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय के लिए भिन्न-भिन्न वर्षों में संकलित समंकों के आधार पर अर्थव्यवस्था में प्रगति का आंकलन किया जा सकता है। वैसे ही अनेक समग्र जैसे- राष्ट्रीय उत्पाद (GNP), सकल उपभोग , बचत तथा विनियोग, व्ययों तथा मुद्रा के मूल्य परिवर्तनों के मापन भी समंकों के द्वारा ही संभव होता है।
4. अनुसंधान में सहायक- सांख्यिकी अनुसंधान के लिए शोधकर्ताओं की पहली पसंद होती है। क्योंकि सांख्यिकी ही अनुसंधकर्ताओं को मौलिक कच्चे पदार्थ प्रदान करती है। अनुसंधानकर्ता अपने अनुसंधान में विशेष प्रभावों को दर्शाने के लिए सांख्यिकीय सूचना या सांख्यिकी विधियों का प्रयोग कुशलतापूर्वक करते हैं। उदाहरण के लिए- भारत सरकार द्वारा 1991 से प्रारंभ किये गए आर्थिक सुधारों के उत्प्सदन और रोज़गार पसर पड़ने वाले प्रभावों को सांख्यिकी के बिना दर्शाना संभव नहीं है।
5. आर्थिक समस्याओं का अध्ययन- हम आपको बता दें कि संसार का कोई भी देश क्यूँ न हो। उसे किसी न किसी आर्थिक समस्या से उसे भी जूझना पड़ता है। जैसे कि मुद्रा स्फीति की समस्या, जनसंख्या की समस्या, निर्धनता की समस्या, भुगतान शेष की समस्या आदि महत्वपूर्ण समस्याओं में शुमार हैं। सांख्यिकी ही इस सभी समस्याओं का अध्ययन व विश्लेषण कर पाती है।
उदाहरणार्थ- बेरोज़गारी की समस्या को अर्थशास्त्री कुछ इस तरह व्यक्त करते हैं जैसे- भारतीय कार्यशील जनसंख्या का लगभग 30% भाग बेरोज़गारी से जूझ रहा है। अथवा सन 1995-2014 के बीच भारत की बेरोज़गार कार्यशील जनसंख्या 18% से घटकर 9.4% हो चुकी है।
👉 प्रगणकों द्वारा अनुसूची तैयार करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? अनुसूची के गुण व दोष बताइये।
6. नीतियों के निर्माण में सहायक- सांख्यिकी अध्ययनों के द्वारा ही वित्त मंत्री सरकारी आय में वृद्धि के स्रोत के रूप में करों में वृद्धि या कमी के संबंध में निर्णय कर पाते हैं। लोगों की कर देने की क्षमता की जानकारी सांख्यिकी अन्वेषणों से ही वित्त मंत्री प्राप्त कर पाते हैं। इसी आधार पर वे करों की दर का निर्धारण कर पाते हैं।
3. सांख्यिकी की सीमाएं (Limitations of statistics in hindi)
सांख्यिकी की लोकप्रियता व व्यापक स्तर पर उपयोग के बावजूद भी इसकी कुछ सीमाएं हैं। सांख्यिकी की सीमाएं (sankhyiki ki simayen) निम्नलिखित हैं -
1. सांख्यिकी केवल संख्यात्मक तथ्यों का अध्ययन करती है, गुणात्मक तथ्यों का नहीं- सांख्यिकी के अंतर्गत केवल ऐसे तथ्यों का अध्ययन किया जाता है जो कि संख्यात्मक रूप में हो। इसके अंतर्गत गुणात्मक तथ्यों जैसे- ईमानदारी, मित्रता, स्वास्थ्य, न्याय आदि का अध्ययन नहीं किया जाता। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो हम यह कह सकते हैं कि इसमें केवल मानवीय क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, ग़ैर-मानवीय क्रियाओं का नहीं।
2. केवल समूहों का अध्ययन करती है, व्यक्तिगत इकाइयों का नहीं- इसके अंतर्गत किसी विशेष इकाई को लेकर उसके व्यक्तिगत गुणों का विवेचन नहीं किया जाता है। बल्कि समूहों का अध्ययन किया जाता है।
3. सांख्यिकीय समंकों का सजातीय होना आवश्यक है- सही निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए यह अत्यंत आवश्यक होता है कि सांख्यिकीय समंक सजातीय हों। उन्हें एक ही तरीके से एकत्रित किया गया हो। उनकी प्रकृति एकसमान हो। यदि ऐसा नहीं हुआ तो निकले गए निष्कर्ष भृमात्मक हो सकते हैं।
4. सांख्यिकीय नियम दीर्घकाल में तथा औसतन रूप में ही सत्य होते हैं- सांख्यिकी नियम दीर्घकाल और औसत रूप में ही सत्य होते हैं। ये प्राकृतिक विज्ञानों की ही तरह सार्वभौमिक, दृढ़ और सर्वमान्य भी नहीं होते। ज़्यादातर ये औसत रूप में दीर्घकाल में ही सत्य पाए जाते हैं।
5. जानकारी के अभाव में सांख्यिकी का दुरुपयोग संभव है- सांख्यिकी का प्रयोग वही व्यक्ति कर सकता है जिसे सांख्यिकी का पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो। इसकी रीतियों से वह पूरी तरह परिचित हो। बिना पूर्ण ज्ञान के निकाले गए निष्कर्ष भृमात्मक व अशुद्ध हो सकते हैं। यह कहा जा सकता है कि "सांख्यिकी अयोग्य हाथों के लिए नहीं है।"
6. सांख्यिकीय निष्कर्ष संदर्भ के अभाव में असत्य व भ्रामक हो सकते हैं- सांख्यिकी निष्कर्षों को अच्छी तरह समझना हो तो उन परिस्थितियों को भी भली भाँति समझना होगा जिन परिस्थितियों में निष्कर्ष निकाले गए हों। अन्यथा ऐसे निष्कर्ष ग़लत व भ्रामक साबित हो सकते हैं।
7. विशेषज्ञ ही सांख्यिकीय रीतियों का सही इस्तेमाल कर सकते हैं- चूँकि सांख्यिकीय तकनीक व रीतियाँ आसान नहीं होतीं। ये तकनीक जटिल होती हैं। इसलिए इसे सामान्य व्यक्ति प्रयोग में नहीं ला सकता। सही जानकार ही सांख्यिकी का उपयोग बेहतर कर सकता है। स्पष्ट है इन रीतियों का इस्तेमाल विशेषज्ञों द्वारा ही उचित होता है।
8. सांख्यिकी एक साधन मात्र है- किसी भी समस्या का समाधान अनेक रीतियों द्वारा किया जा सकता है। और साधारण तौर पर देखा जाए तो सांख्यिकी एक रीति मात्र है। सांख्यिकी रीतियों से निकले गए निष्कर्षों के परीक्षण अन्य रीतियों के प्रयोग से प्राप्त निष्कर्षों से कर लेना आवश्यक होता है। वास्तव में यह कहा जा सकता है कि सांख्यिकी एक साधन मात्र है, लक्ष्य नहीं है।
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