आर्थिक गतिविधियों के नियमन के लिए बनाए गए नियम- क़ानून ही जब संवृद्धि और विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन जाते हैं। इन्हीं प्रतिबंधों को दूर कर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को 'मुक्त' करने के लिए जिस नीति को अपनाया जाता है उसे उदारीकरण (liberalization) कहा जाता है।
आर्थिक उदारीकरण से आशय (arthik udarikaran se ashay) व्यापार को अनावश्यक प्रतिबंधों से मुक्त करना है। नियम क़ानूनों को सरल बनाना ताकि स्वतंत्र बाज़ार व्यवस्था का निर्माण किया जा सके। चलिये भारत और उदारीकरण (Bharat aur udarikaran) को हम और भी स्पष्ट भाषा में समझने का प्रयास करते हैं।
किसी भी देश का विकास तभी संभव होता है जब उस देश में होने वाला व्यापार फलता-फूलता है। चाहे फ़िर वह व्यापार देश के भीतर हो या देश के बाहर। किंतु सरकार को किसी भी उद्योग या व्यापार पर कुछ नियम क़ानून या आवश्यक प्रतिबंध भी लगाने होते हैं।
जैसे कि- (1) किसी भी उद्यमी को फर्म लगाने या बंद करने हेतु लाइसेंस या किसी विशिष्ट सरकारी अधिकारी की अनुमति प्राप्त करना, (2) अनेक उद्योगों में निजी उद्यमियों के प्रवेश पर प्रतिबंध होना, (3) कुछ औद्योगिक उत्पादों की क़ीमतों के निर्धारण तथा उनके वितरण पर सरकार का नियंत्रण होना।
आर्थिक गतिविधियों के नियमन के लिए बनाए गए नियम- क़ानून ही जब संवृद्धि और विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन जाते हैं। इन्हीं प्रतिबंधों को दूर कर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को 'मुक्त' करने के लिए जिस नीति को अपनाया जाता है उसे उदारीकरण (liberalization) कहा जाता है।
आर्थिक उदारीकरण क्या है? | उदारीकरण का अर्थ (Liberalization meaning in hindi)
उदारीकरण का तात्पर्य (Udarikaran ka tatparya) देश में प्रतिस्पर्धात्मक माहौल तैयार करने के लिए व्यापार को प्रोत्साहन देना होता है। इसके लिए उद्योगों पर लगे कुछ कठोर प्रतिबंधों को अपने अधिकार क्षेत्र से हटा देना। निजी और विदेशी निवेश का विस्तार करने के लिए नियमों में ढील देना ही उदारीकरण कहलाता है।
जब सरकार, कर नीति, आयात निर्यात नीति, औद्योगिक नीति, श्रम नीति, वाणिज्य नीति आदि के माध्यम से अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश, उत्पादन, विपणन इत्यादि में अपने नियंत्रणों को हटाती है तो उसे उदारवादी नीति कहा जाता है। तथा इस प्रक्रिया को उदारीकरण कहा जाता है। इसे आप उदारीकरण की परिभाषा (Udarikaran ki paribhasha) कह सकते हैं। इस नीति के अंतर्गत बाज़ार शक्तियाँ स्वतंत्र रूप में कार्य करती हैं।
उदारीकरण की आवश्यकता (Need of Liberalization in hindi) | Udarikaran ki avshyakta
उद्योग-व्यापार, आयात-निर्यात, औद्योगिक क्षेत्र, वित्तीय क्षेत्र, कर सुधार, विदेशी विनिमय बाज़ार आदि क्षेत्रों में बनाए गए नियमों और क़ानूनों के चलते देश की आर्थिक गतिविधियों में अनेक बढ़ाएँ उत्पन्न हो रही थीं। आर्थिक विकास के रास्ते में आने वाली बाधाओं को हटाने के लिए 1991 में आरम्भ की गई सुधारवादी नीतियों के तहत सरकार को आर्थिक उदारीकरण की नीति (Arthik udarikaran ki niti) अपनानी पड़ी।
आइये विस्तार से जानते हैं उदारीकरण की आवश्यकता क्यों पड़ी? (Udarikaran ki avshyakta kyon padi?) हम उन विशिष्ट कारणों का अध्ययन करते हैं जिनके फलस्वरूप सरकार को अपने ही बनाये गये नियमों और क़ानूनों में सुधार करना पड़ा।
1) रोज़गार का सृजन -
उदारीकरण केवल बहुराष्ट्रीय कंपनी तक सीमित नहीं होता बल्कि इससे स्वदेशी उद्योग तथा फर्में भी संचालन तथा स्पर्धा में सामने आती हैं। इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर अंकुश के साथ-साथ स्वदेशी उद्योगों और फ़र्मों पर भी उदारीकरण आवश्यक है। इससे रोज़गार में सृजनात्मक वृद्धि होती है। जो कि हमारी देश की मूल आवश्यकता है।
2) बजट घाटे में निरंतर वृद्धि -
उस समय देश के बजट घाटे में निरंतर वृद्धि देखी जा रही थी। इसलिए निरंतर बढ़ते बजट घाटे को कम करने के लिए उदारीकरण की नीति (Udarikaran ki niti) अपनाई गई।
3) मुद्रा स्फीति में लगातार वृद्धि -
घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाने के कारण मुद्रा स्फीति अपने विकराल रूप को धारण कर चुकी थी। जिसका परिणाम यह हुआ कि सम्पूर्ण देश मँहगाई की मार से हलाकान हो रहा था। जिस पर नियंत्रण पाने के लिए उदारीकरण की आवश्यकता (Udarikaran ki avashyakta) पड़ी।
4) प्रतिकूल भुगतान संतुलन -
घरेलू क़ीमत स्तर में वृध्दि के फलस्वरूप आयातों को भरपूर प्रोत्साहन मिला। जबकि निर्यात बेहद हतोत्साहित हुए। जिस कारण देश का भुगतान तेज़ी से प्रतिकूल होने लगा। जिस पर नियंत्रण पाने के लिए उदारीकरण की आवश्यकता पड़ी।
5) विनियोग ढाँचे पर प्रतिकूल प्रभाव -
मुद्रा स्फीति बढ़ने के कारण लोगों के पास अनावश्यक रूप से मुद्रा की मात्रा बढ़ने लगी। जिस कारण विलासितापूर्ण वस्तुओं की माँग बढ़ने लगी जिसके फलस्वरूप विलासितापूर्ण वस्तुओं का उत्पादन बढ़ने लगा और आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन घटने लगा।
6) विदेशी ऋणों का बढ़ता बोझ -
चूँकि सार्वजनिक क्षेत्र को विकसित करने की प्राथमिकता, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं एवं विदेशी सरकार से बड़ी मात्रा में ऋण एवं आर्थिक सहायता में वृद्धि का कारण बनने लगी थीं। जिस कारण देश पर विदेशी ऋण एवं इनके ब्याज़ का बोझ लगातार बढ़ने लगा। इन सब समस्याओं पर नियंत्रण पाने का एक मात्र था उदारीकरण नीति (Udarikaran neeti) को अपनाना।
7) रहन सहन के स्तर में कमी -
देश में बढ़ती मँहगाई के कारण उपभोक्ताओं की औसत क्रयशक्ति में कमी आ गयी। तथा उपभोग व्यय में वृद्धि होने लगी। जिसका परिणाम यह हुआ कि उपभोक्ता के औसत जीवन स्तर में लगातार गिरावट आने लगी थी। ऐसी स्थिति में औसत जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए उदारीकरण की आवश्यकता पड़ी।
आर्थिक उदारीकरण के उद्देश्य या विशेषताएँ (Objectives or Characteristics of economic liberalization in hindi)
भारतीय उदारीकरण नीति की बात करें तो इस आर्थिक उदारीकरण ने कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आर्थिक उदारीकरण की विशेषता (Arthik udarikaran ki visheshta) क्या है? आइये आर्थिक उदारीकरण के प्रमुख कार्यों या उद्देश्यों को जानते हैं-
(1) कुछ विशिष्ट क्षेत्रों को छोड़कर शेष सभी क्षेत्रों के लिए लाइसेंस और परमिट पर लगे विभिन्न नियंत्रणों को समाप्त करना।
(2) आर्थिक विकास प्रक्रिया में आयी रुकावट को दूर करना। इसके लिए, कर की दरों को कम करना और अनावश्यक नियंत्रणों को हटाना
(3) उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उत्पादन संबंधी क्षेत्रों पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाना।
(4) व्यापार को व्यापक स्तर तक पहुँचाने के लिए विदेशी विनियोग को बढ़ावा देना।
(5) उदारीकरण का सीधा लाभ कृषि क्षेत्र को पहुँचाना। यानि कि कृषि का तीव्र विकास करना।
(6) बजट घाटे एवं कुव्यवस्था के जाल से निकलने हेतु निजी क्षेत्र की व्यापक भूमिका बढ़ाना।
(7) बजट घाटे को कम कर मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना।
(8) भुगतान संतुलन को अनुकूल बनाने का भरसक प्रयास करना।
(9) अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रवेश हेतु भारतीय उद्योगों में प्रतिस्पर्धा बढ़ाना।
(10) सार्वजनिक क्षेत्र में गतिशीलता तथा कुशलता लाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के मुक़ाबले आरक्षित क्षेत्रों को कम करना।
(11) नित नए उद्योगों की स्थापना को आसान बनाना। ताकि ये उद्योग बड़े स्तर पर प्रतिस्पर्धा में अपनी भागीदारी निभा सकें।
(12) वाणिज्यिक बैंकों को उनके द्वारा दिये गये ऋणों पर ब्याज़ तय करने की छूट देना।
(13) विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए आयात और निर्यात नीति में छूट देना। ताकि आयात-निर्यात आसान हो सके।
(14) लाल फीताशाही, अक्षमता तथा संसाधनों के अपव्ययों को रोकना।
(15) विस्तार के दौरान निजी क्षेत्र की कंपनियों के सामने आने वाली समस्याओं को ख़त्म करना।
उदारीकरण के लाभ और हानि (Udarikaran ke labh aur hani)
उदारीकरण के फलस्वरूप होने वाले लाभ और हानि (Advantages and Disadvantages of liberalization) की बात करें तो हम यह कह सकते हैं कि उदारीकरण से देश में कुछ क्षेत्रों को भरपूर फ़ायदा मिला तो वहीं कुछ क्षेत्रो को नुक़सान भी झेलना पड़ा। आइये जानते हैं उदारीकरण के फ़ायदे और नुक़सान क्या हुए?
उदारीकरण के लाभ, उपलब्धियाँ | उदारीकरण का आर्थिक विकास में योगदान (Contribution of liberalization in economics development, achievements in hindi
परिणाम देखा जाए तो उदारीकरण के लाभ (udarikaran ke labh) अर्थव्यवस्था में अनेक देखे जा सकते हैं। आइये जानते हैं (advantages of liberalization in hindi) आर्थिक उदारीकरण के फ़ायदे क्या हैं?
1) उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार -
जब सार्वजनिक क्षेत्रों की प्राथमिकता को समाप्त कर निजी क्षेत्रों को बढ़ावा दिया गया तब देश में उत्पादन कि गुणवत्ता में सुधार देखा गया।
2) भारतीय संसाधनों का कुशल विदोहन -
देश में नई आर्थिक नीति के कारण उत्पादन को बढ़ावा मिला। फलस्वरूप ऐसे आर्थिक संसाधन, जो कि सीमित व बहुमूल्य हैं। उनका कुशलतापूर्वक विदोहन सम्भव हो सका।
3) निजी क्षेत्रों को बढ़ावा -
आर्थिक उदारीकरण की नीति के अंतर्गत निजी क्षेत्र के विनिमय व नियंत्रण में छूट दी गयी थी। ताकि विनियोग, उत्पादन, निर्यात आदि के क्षेत्र में निजी क्षेत्र स्वतंत्र रूप से अपना कार्य कर सकें।
4) विदेशी पूँजी निवेश में वृद्धि -
आर्थिक उदारीकरण की नीति को लागू करने के बाद भारत में विदेशी पूँजी निवेश की गति तीव्र हुई है। विदेशी पूँजी निवेश में विश्व के अनेक व्यापारिक देशों जैसे- अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, जापान, फ्रांस, हॉलैंड, सिंगापुर आदि ने अपनी भागीदारी बढ़ाई है। विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भारत को भारी मात्रा में प्रत्यक्ष पूँजी निवेश प्रस्ताव भी प्राप्त हुए।
5) भुगतान संतुलन में स्थिरता -
भारत में विदेशी व्यापार व आयात-निर्यात के संबंध में भुगतान संतुलन की स्थिति जो कि लड़खाने लगी थी। धीरे-धीरे स्थिर होने लगी। यह राष्ट्र के लिए एक शुभ अवसर है।
6) घाटे के बजट पर नियंत्रण-
नई आर्थिक नीति के फलस्वरूप बजटीय घाटे को नियंत्रित करने में सरकार को सहायता मिली है।
7) भ्रष्टाचार में कमी -
अनेक क्षेत्रों को लायसेंस और अन्य प्रतिबंधों से मुक्त कर देने से भ्रष्टाचार एवं लाल फीताशाही का आतंक कम हुआ है। जिस कारण अनेक योजनाओं को कम समय में सफलतापूर्वक पूर्ण करने में आसानी होने लगी है।
8) विदेशी मुद्राकोष में वृद्धि -
आर्थिक सुधार हेतु किये गए प्रयत्नों ने अच्छे परिणाम, बेहतर निर्यात और बेहतर विदेशी निवेश ने भारतीय विदेशी मुद्रा के कोष को सम्मानजनक स्तर तक पहुँचा दिया है।
9) आधुनिकीकरण में बढ़ावा -
उदारीकरण एक ऐसी नीति है जिसके कारण विभिन्न छूटों की वजह से उत्पादन में वृद्धि होती है। फ़िर लोगों की आय में वृद्धि होने लगती है। आर्थिक विकास तेज़ी से होने लगता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो उदारीकरण नीति अर्थव्यवस्था को वैश्वीकरण को ओर उन्मुख करती है। जिसके चलते दो राष्ट्रों के बीच व्यापार और आधुनिक तौर तरीक़ों का भी आदान-प्रदान होने लगता है।
10) मंदी से छुटकारा -
उदारीकरण प्रक्रिया के तहत सरकार व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए तरह-तरह की छूट देती है। जिसके कारण उत्पादको को अपने उत्पादन में वृद्धि करने हेतु प्रोत्साहन मिलता है। उत्पादन ज़्यादा होने से उत्पादों के दाम भी कम होने लगते हैं। दूसरी तरफ़ उदारीकरण प्रक्रिया के कारण बाज़ार में प्रतियोगिता बढ़ने लगती है। जिसके परिणाम यह होते हैं कि उत्पादों के दामों में कमी होना शुरू हो जाती है।
उदारीकरण से हानि | Disadvantages of liberalization in hindi | उदारीकरण के नकारात्मक प्रभाव
आर्थिक उदारीकरण से फ़ायदे (Udarikaran ke fayde) मिले तो हैं लेकिन इसके विपरीत प्रभाव भी कुछ नहीं हैं। ऐसे अनेक क्षेत्र है जिनमें हमें उदारीकरण से अपेक्षिक लाभ के बजाय हानियाँ उठानी पड़ी है। आइये उदारीकरण के दुष्परिणाम (Udarikaran ke dushparinam) क्या हैं? जानते हैं। disadvantages of economic liberalization policy in hindi -
1) निर्यात में अपेक्षित वृद्धि नहीं -
हालांकि निर्यात को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से मुद्रा का अवमूल्यन भी किया गया किंतु निर्यात में संभावित लक्ष्य को पाने में असफलता ही हाथ लगी है।
2) आर्थिक विषमता में वृद्धि -
आर्थिक उदारीकरण कुछ विशिष्ट क्षेत्रों के लिए लाभदायी तो है। लेकिन इससे आर्थिक विषमता का ख़तरा बना रहता है। जो कि एक विनाशक और आत्मघाती स्थिति है।
3) बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा मुद्रा में हेरा फेरी -
चूँकि देश-विदेश में होने वाले व्यापार में लेनदेन अलग-अलग देशों की अलग-अलग मुद्राओं में संभव हो पाता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां इन लेनदेन के माध्यम से दुर्लभ मुद्रा को लाभप्रद स्थान पर एकत्रित कर मुद्रा में हेराफ़ेरी का प्रयास करने लगती हैं।
4) समस्याओं का उचित समाधान नहीं -
हालांकि उदारीकरण और निजीकरण जैसी आर्थिक नितियों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था का, शेष विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ बेहतर तालमेल बन पाया है। लेकिन देश के अंदर फ़ैली बेरोज़गारी, अशिक्षा, आर्थिक विषमता जैसी मूलभूत समस्याओं का अब तक कोई उचित समाधान नहीं मिल सका है।
5) निजीकरण के दुष्परिणाम -
आर्थिक मंदी के भीषण हालात में निजीकरण को बढ़ावा देना सचमुच एक बेहद नुक़सानदायक फ़ैसला ही साबित हुआ है। ऐसा करने से विकासशील देशों में ग़रीबी और बेरोज़गारी में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
6) क्षेत्रीय आर्थिक विषमता को बढ़ावा -
सरकार द्वारा आर्थिक उदारीकरण के तहत उद्योग-व्यापार के क्षेत्र में लगाये गए प्रतिबंध हटा दिए गए। ऐसे में छोटे उद्योग-धंधे चौपट होने लगते हैं। पिछड़े उद्योगों को विस्तार करने में कठिनाई होती है। परिणामस्वरूप आर्थिक विषमताओं को बढ़ावा मिलता है।
7) कुटीर और लघु उद्योगों को नुक़सान -
उदारीकरण नीति का सबसे ज़्यादा प्रभाव लघु और कुटीर उद्योगों पर होता है। उदारीकरण से बड़े उद्योगों और बहुराष्ट्रीय उद्योगों का समुचित विकास हुआ किन्तु आर्थिक तौर पर पिछड़े छोटे, कुटीर व लघु उद्योगों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। ये पिछड़े ही रह गए।
8) पर्यावरण को नुक़सान -
आर्थिक उदारीकरण के चलते उद्योगों और कारखानों की संख्या मे भारी इज़ाफ़ा हुआ है। कारखानों में काम काज के चलते प्रदुषण भी पहले से अधिक तेजी से बढ़ रहा है। नए उद्योगों के लिए ज़मीन की माँग लगातार बढ़ रही है जिसके कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। आधुनिकीकरण के चलते हानिकारक उर्वकों का उपयोग हो रहा है जिससे ज़मीन प्रदूषित हो रही है।
9) कुटीर और लघु उद्योगों को नुकसान -
उदारीकरण नीति का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव लघु और कुटीर उद्योगों पर होता है। उदारीकरण व्यवस्था से बड़े उद्योग और बहुराष्ट्रीय उद्योगों का विकास हुआ किन्तु आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए छोटे और लघु उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुए।
उदारीकरण नीति का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव लघु और कुटीर उद्योगों पर होता है। उदारीकरण व्यवस्था से बड़े उद्योग और बहुराष्ट्रीय उद्योगों का विकास हुआ किन्तु आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए छोटे और लघु उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुए।
10) कृषि क्षेत्र के अस्तित्व को ख़तरा -
अगर भारत के आर्थिक उदारीकरण नीति की बात करें तो इससे निर्माण और सेवा क्षेत्र का विकास हुआ है। किन्तु आँकड़े बताते है की उदारीकरण प्रक्रिया के बाद कृषि क्षेत्र की स्थिति पहले से भी दयनीय हो गयी है। नई व्यापार नीति के चलते उद्योग व कारखानों की संख्या तेज़ी से बढ़ी। जिस कारण कृषि क्षेत्र से लोग अधिक आमदनी के लिए बड़े शहरों की तरफ चले गए।
आपने उदारीकरण (Liberalization in hindi) के अंतर्गत लाभ एवं हानि के बारे में विस्तार से जाना। उदारीकरण किसे कहते हैं? (Udarikaran kise kahte hain?) उदारीकरण की जानकारी के लिए आप (liberalization meaning in hindi) wikipedia पर जाकर भी पढ़ सकते हैं।
आप सहज ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उदारीकरण की नीति अनेक मामलों में फ़ायदेमंद साबित तो हुई है। लेकिन अनेक मामलों में उदारीकरण के दुष्प्रभाव भी देखने मिले हैं।
निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि उदारीकरण एक तरह से व्यापार का सरलीरण है। व्यापारियों, उद्यमियों को बाज़ार तत्वों के अनुसार अपने उत्पादों की क़ीमत तय करने का अधिकार दिये जाने और कुछ अनावश्यक नीति नियमों से अपना हस्तक्षेप कम कर देने की प्रक्रिया ही उदारीकरण (liberalization) कहलाती है।
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