घाटे का बजट क्या है? | घाटे के बजट के उद्देश्य एवं प्रभाव | Deficit Budgeting, Meaning, Objectives and Effects in hindi

घाटे के बजट का अर्थ, उद्देश्य एवं प्रभावों को समझाइये | Budget deficit in hindi

जब सरकार अपने बजट में कुल अनुमानित सार्वजनिक आय पर कुल अनुमानित सार्वजनिक व्यय की अधिकता प्रदर्शित करती है। तो उसे घाटे का बजट कहते हैं। घाटे के बजट को समझने से पहले आप हमारा पिछला अंक 'बजट क्या है? इसके प्रकारों को समझाइये।' पर क्लिक कर सकते हैंं। क्योंकि बजट के प्रकारों में से एक 'घाटे का बजट' होता है।


घाटे के बजट से क्या आशय है?
इसे सामान्य शब्दों में समझना चाहें तो हम यह कह सकते हैं कि घाटे का बजट वह व्यवस्था है। जिसमें सरकार अपनी आय की तुलना में व्यय अधिक करती है। सरकार इस घाटे की पूर्ति ऋण लेकर या रिज़र्व बैंक में जमा किये हुए अपने नकद कोषों में कमी करके करती है। अथवा पुनः नये नोट छापकर करती है। जिसके परिणामस्वरूप मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि संभव हो पाती है। जिसे घाटे की वित्त व्यवस्था कहा जाता है। 



घाटे के बजट के उद्देश्य | Objectives of Deficit Budget in hindi

घाटे के बजट के प्रमुख उद्देश्य ghate ke budget ke pramukh uddeshya निम्नलिखित हैं-

(1) अर्थव्यवस्था में फैली मंदी को दूर करना, घाटे के बजट का मुख्य उद्देश्य होता है।
(2) युद्धकालीन समय में युद्ध के लिए अतिरिक्त संसाधनों की व्यवस्था करना घाटे के बजट के उद्देश्यों में शामिल किया जाता है।
(3) अल्पविकसित देशों में आर्थिक विकास करना।
(4) अर्थव्यवस्था में अतिरेक एवं अप्रयुक्त संसाधनों को गतिशील बनाना।
(5) समग्र माँग में वृद्धि करके बेरोज़गारी को दूर करना।
(6) प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना।



घाटे के बजट के प्रभाव | Impact of deficit budget in hindi

घाटे के बजट ghate ke budget एवं इसकी वित्त व्यवस्था के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित होते हैं-

(1) कीमत स्तर में वृद्धि-
घाटे की वित्त व्यवस्था के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में विद्यमान वस्तुओं व सेवाओं की तुलना में मुद्रा की समग्र माँग में वृद्धि होती है। यानि कि मुद्रा के चलन वेग में वृद्धि हो जाती है। जिससे क़ीमत स्तर में वृद्धि होती है।

(2) मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि- 
घाटे की वित्त-व्यवस्था में समग्र राष्ट्रीय व्यय में प्रत्यक्ष वृद्धि हो जाती है। परिणामस्वरूप मुद्रा की चलन में आपूर्ति बढ़ जाती है। 

(3) रोज़गार में वृद्धि-
घाटे के बजट के परिणामस्वरूप उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति बढ़ती है। जिससे समग्र माँग में वृद्धि होती है। अतः उत्पादक अधिक उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। जिस कारण रोज़गार स्तर में वृद्धि होने लगती है। जो साधन बेरोज़गार थे उनके लिए रोज़गार के नए अवसर उपलब्ध होने लगते हैं।

(4) पूँजी निर्माण में वृद्धि-
घाटे की वित्त व्यवस्था होने से पूँजी के निर्माण में वृद्धि होने लगती है। ये वृद्धि तीन प्रकार से होती है।

1) व्यापारियों, उत्पादकों आदि की आय जैसे ही बढ़ने लगती है। वे अधिक बचत करने में सक्षम हो जाते हैं। जिस कारण पूँजी निर्माण में वृद्धि होती है।
2) वस्तुएँ कीमती हो जाने से लोग कीमती वस्तुओं को खरीदने से बचने लगते हैं। जिस कारण उनके उपभोग में कमी होने लगती है। जिसका प्रभाव यह होता है कि उनकी बचत में वृद्धि होने लगती है।
3) इस तरह की व्यवस्था में ऐसे साधनों का प्रयोग होने लगता है। जो अप्रयुक्त व बेकार पड़े हुए थे। फलस्वरूप उत्पादन में व्रद्धि होती है। जिससे पूँजी निर्माण को भी बढ़ावा मिलता है।

(5) आय का वितरण पर प्रतिकुल -
हम आपको बता दें कि घाटे की वित्त व्यवस्था का आय के वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। घाटे की वित्त व्यवस्था के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में कीमतें बढ़ती हैं। अतः उद्योगपति एवं व्यापारी बड़े लाभ कमाते हैं। इसके दूसरी ओर श्रमिक व वेतनभोगी वर्ग की वास्तविक आय या क्रयशक्ति कम हो जाती है। जिसका परिणाम यह होता है कि अमीर और भी अमीर तथा ग़रीब और भी ग़रीब हो जाते हैं।

अतः स्पष्ट तौर पर कहा जाए तो यह कि घाटे के बजट की नीति अत्यंत सोच समझकर तथा सीमित मात्रा में ही अपनानी चाहिए। घाटे का बजट क्या होता है? अब तो आप भी भली भांति जान चुके होंगे। उम्मीद है हमारा यह लेख "घाटे के बजट के उद्देश्य एवं प्रभाव | Deficit Budgeting, Meaning, Objectives and Effects in hindi" आपके अध्ययन हेतु अवश्य ही सहायक साबित होगा। इसे आप अपने दोस्तों को ज़रूर Share करें।

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