विदेशी विनिमय दर | विदेशी विनिमय दर का निर्धारण | विदेशी विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक)
सामान्य भाषा में विनिमय दर (vinimay dar) को जानने का प्रयास करें तो विनिमय दर (Exchange Rate) वह दर है जिस पर एक करेंसी को दूसरी करेंसी से विनिमय किया जाता है। यह दर एक करेंसी में दूसरी करेंसी की क़ीमत कही जाती है। चलिये इसे थोड़ा विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं।
विदेशी विनिमय दर क्या है? | Foreign exchange rate definition in hindi
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं के अंतिम भुगतान के रूप में विनिमय दर की आवश्यकता पड़ती है। आज जबकि विभिन्न देशों में स्वतंत्र एवं अपरिवर्तनीय कागज़ी मुद्रा प्रचलन में है। ऐसे में एक देश की मुद्रा दूसरे देश की वस्तुएँ एवं सेवाएँ ख़रीदने के प्रयोग में नहीं लायी जा सकती। अतः एक देश की मुद्रा के मूल्य का दूसरे देश की मुद्रा के मूल्य में जानकारी होना अति आवश्यक है। इसी को विनिमय दर (Exchange Rate) कहते हैं जो कि एक देश की मुद्रा का मूल्य दूसरे देश की मुद्रा के मूल्य में प्रदर्शित करती है।
"दो देशों की विदेशी विनिमय दर जो कि दो देशों की मुद्रा इकाइयों के बीच हो। एक देश की मुद्रा की वह मात्रा है जिसके द्वारा दूसरे देश की मुद्रा की एक इकाई को क्रय किया जा सकता है।"
दूसरे शब्दों में हम विदेशी विनिमय दर का अर्थ जानना चाहें तो हम यह कह सकते हैं कि दो राष्ट्रों की मुद्रा इकाइयों के मध्य विनिमय दर से हमारा आशय एक राष्ट्र की मुद्रा की उन इकाइयों से होता है जो दूसरे राष्ट्र की मुद्रा की इकाई को ख़रीदने के लिए आवश्यक होती है। दोनों ही मुद्राओं में से किसी भी एक मुद्रा की इकाई का दूसरी मुद्रा की इकाई का मूल्य व्यक्त करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
सेयर्स के अनुसार- "चलन मुद्राओं की एक-दूसरे में बतायी गयी कीमतों को विदेशी विनिमय दर कहा जाता है।"
प्रो. क्राउथर के शब्दों में- "विनिमय दर यह माप करती है कि विदेशी विनिमय बाज़ार में चलन मुद्रा की एक इकाई के बदले में किसी दूसरे देश की चलन मुद्रा की कितनी इकाइयाँ प्राप्त होती है।"
एल्सवर्थ के अनुसार- "विदेश मुद्रा की एक इकाई का देशी मुद्रा में व्यक्त मूल्य विनिमय की दर कहलाता है। दूसरे शब्दों में, देशी मुद्रा की एक इकाई का विदेशी मुद्रा में व्यक्त मूल्य विनिमय दर कहलाता है।"
विदेशी विनिमय दर का निर्धारण | How is a foreign exchange rate determined in hindi
विदेशी विनिमय दर का निर्धारण (videshi vinimay dar ka nirdharan) दो परिस्थितियों में किया जाता है। एक परिस्थिति वह होती है जिसमें दोनों राष्ट्रों की मुद्रा अपने राष्ट्रों में तो मान्य है ही। साथ ही दूसरे राष्ट्र में भी मान्य है। उदाहरण के लिए, A राष्ट्र की मुद्रा न केवल A राष्ट्र में मान्य है बल्कि B राष्ट्र में भी स्वीकार की जाती है।
इसी प्रकार Y राष्ट्र की मुद्रा को X राष्ट्र के नागरिक भी स्वीकार करते हैं। ऐसा प्रायः तभी होता है जब ये मुद्राएँ किसी बहुमूल्य धातु, जैसे सोने की बनी हो। सोना चूँकि सर्वमान्य धातु है, उसकी मुद्रा का अपना मूल्य भी होता है और वह अपने असली मूल्य पर किसी भी राष्ट्र में बेची या विनिमय की जा सकती है।
दूसरी स्थिति वह है जिसमें दोनों राष्ट्रों की मुद्रा या किस एक राष्ट्र की मुद्रा निकृष्ट धातु या काग़ज़ की बनी होती है। तथा जो राष्ट्र के अंदर तो मान्य होती है लेकिन दूसरे राष्ट्र में मान्य नहीं होती। इसीलिये इन दोनों ही परिस्थितियों में विनिमय दर का निर्धारण (vinimay dar ka nirdharan) भी अलग-अलग विधियों से होता है।
स्वर्णमान का आशय ऐसे मुद्रा मान से है जिसमें दोनों ही राष्ट्रों की मुद्रा बहुमूल्य धातु की होती है तथा अपने राष्ट्र के अलावा दूसरे राष्ट्र में भी स्वीकार की जाती है। पत्र मुद्रा मान को समझने का प्रयास करें तो पत्र मुद्रा मान ऐसे मुद्रा मान को कहते हैं जिसमें दोनों राष्ट्रों की मुद्रा राष्ट्र के बाहर मान्य नहीं होती।
विदेशी विनिमय दर को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors affecting Foreign Exchange Rate in hindi)
विदेशी विनिमय की माँग एवं पूर्ति में परिवर्तन के कारण विनिमय दर में परिवर्तन हो जाते हैं। आइये हम जानने का प्रयास करते हैं कि विनिमय दरों में परिवर्तन के कारण क्या हैं? दूसरे शब्दों में Videshi vinimay dar ko prabhavit karne vale karak विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं? निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे।
(1) क़ीमतों में परिवर्तन-
सामान्यतः यह देखा जाता है कि किसी एक देेेेश की सापेक्षिक दृष्टि से क़ीमत में परिवर्तन हो जाने से विनिमय दर भी परिवर्तित हो जाती है। उदाहरण के लिए माना कि भारत में क़ीमत स्तर में बढ़ोत्तरी हो जाये और इंग्लैंड में कोई परिवर्तन न हो। स्वाभाविक रूप से इंग्लैंडवासियों को भारत की वस्तुएँ महँगी पड़ने लगेंगी। इसीलिये भारत के निर्यात कम हो जाएंगे। परिणामस्वरूप भारत को इंग्लैंड से होने वाली आमदनी कम हो जाएगी। यानि कि पौंड की पूर्ति कम हो जाएगी।
वहीं दुसरी ओर भारतवासियों को इंग्लैंड की वस्तुएँ सस्ती पड़ने लगेंगी। इसीलिये भारतवासी इंग्लैंड से भरी मात्रा में वस्तुएँ आयात करने लगेंगे। अतः पौंड की माँग बढ़ने लगेगी। सामान्य शब्दों में कहें तो भारत में पौंड की पूर्ति कम होगी। यानि कि माँग बढ़ेगी। परिणामस्वरूप पौंड का मूल्य रुपयों में बढ़ जाएगा।
(2) आयात और निर्यात में परिवर्तन-
यदि किसी देश के निर्यात उसके आयातों से अधिक हैं देश की मुद्रा की माँग बढ़ने लगेगी। फलतः विदेशी विनिमय दर (videshi vinimay dar) देश के हित में परिवर्तित होगी। इसके विपरीत यदि किसी देश के आयात, उसके निर्यात से अधिक हैं तो विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ेगी तथा विनिमय दर में परिवर्तन देश के विपक्ष में होगा। अर्थात आयात व निर्यात में परिवर्तन से विदेशी विनिमय की माँग व पूर्ति में परिवर्तन हो जाता है।
(3) पूँजी का आवागमन-
जिस देश में विदेशों से पूँजी आती है उस देश में मुद्रा की माँग बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप विनिमय दर उस देश के पक्ष में होती है। जबकि इसके विपरीत जब पूँजी देश से विदेश में जाती है तो विदेशी विनिमय की माँग बढ़ जाती है और विनिमय दर में परिवर्तन उस देश के विपक्ष में होता है।
(4) बैंकिंग संबंधी प्रभाव-
बैंक अपनी क्रियाओं के द्वारा भी विनिमय दर को प्रभावित करते हैं। यदि व्यापारिक बैंक विदेशी बैंक पर बड़ी मात्रा में बैंकर्स ड्राफ्ट तथा अन्य प्रकार के साख पत्र जारी करता है तो इससे विदेशी विनिमय की माँग बढ़ जाती है और विनिमय दर देश के विपक्ष में हो जाती है।
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इसके विपरीत अब विदेशी बैंक देश के बैंकों के ऊपर साख पत्र जारी करते हैं तो देशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है और विनिमय दर देश के पक्ष में हो जाती है। बैंक दर भी विनिमय दर को प्रभावित करती है। यदि केंद्रीय बैंक देश में बैंक दर को बढ़ा देता है तो विदेशी लोग ऊँची ब्याज़ दर प्राप्त करने के लिए देश में अपनी पूँजी भेजना शुरू कर देते हैं। जिससे विदेशी मुद्रा की पूर्ति बढ़ती है और विनिमय दर देश के पक्ष में हो जाती है। इसके विपरीत यदि यदि केंद्रीय बैंक, बैंक दर को घटा देता है तो विदेशी लोग अपनी पूँजी को देश से वापस मंगाना प्रारम्भ कर देते हैं जिससे विदेशी विनिमय की माँग बढ़ जाती है और विनिमय दर देश के विपक्ष में हो जाती है।
(5) सट्टा संबंधी प्रभाव-
सट्टे की बढ़ती क्रियाएँ भी विनिमय दर को प्रभावित करती हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में अनिश्चितता विदेशी विनिमय में सट्टे को प्रोत्साहित करती है। यदि सटोरिये निकट भविष्य में किसी मुद्रा के मूल्य में कमी होने का अनुमान लगते हैं। तो वह तुरन्त उस मुद्रा को बेचकर दूसरी मुद्रा, जिसके मूल्य में वृद्धि की आशा है, को ख़रीदते हैं। जिसके परिणामस्वरूप पहली मुद्रा की पूर्ति बढ़ती है तथा उसकी विनिमय दर गिर जाती है जबकि दूरी की माँग बढ़ती है तथा उसकी विनिमय दर बढ़ जाती है।
(6) स्टॉक एक्सचेंज संबंधी प्रभाव-
स्टॉक एक्सचेंज की क्रियाएँ, जैसे स्टॉक एवं शेयर्स तथा प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय, विनिमय दर पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। यदि देशवासी विदेशों में स्टॉक शेयर्स तथा प्रतिभूतियों का क्रय करते हैं तो विदेशी विनिमय की माँग बढ़ती है और विनिमय दर देश के विपक्ष में हो जाती है। इसके विपरीत यदि देशवासी स्टॉक, शेयर्स तथा प्रतिभूतियों को बेचते हैं तो विदेशियों को इनकी क़ीमतें देश की मुद्रा में चुकानी पड़ती है। जिससे देश की मुद्रा की माँग बढ़ जाती है तथा विनिमय दर देश के पक्ष में हो जाती है।
(7) संरचनात्मक परिवर्तन संबंधी प्रभाव-
संरचनात्मक परिवर्तनों से तात्पर्य उन परिवर्तनों से है जो कि उपभोक्ताओं की वस्तुओं संबंधी माँग में परिवर्तन उत्पन्न करते हैं। इसमें तकनीकी परिवर्तन, नवप्रवर्तन आदि को शामिल किया जाता है। यह वस्तुएँ की माँग के साथ लागत ढाँचे में भी परिवर्तन कर देते हैं। देश में इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप विदेशों में हमारे देश की वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है जिससे देश के निर्यात बढ़ते हैं तथा देश की मुद्रा की माँग बढ़ती है। परिणामस्वरूप विनिमय दर देश के पक्ष में हो जाती है।
(8) राजनैतिक दशाएँ- राजनैतिक परिस्थितियाँ भी विनिमय दर पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। यदि देश में राजनैतिक स्थिरता है तथा सरकार मज़बूत व कार्यकुशल है तो विदेशी अपनी पूँजी देश में विनियोजित करना चाहेंगे। जिससे देश की मुद्रा की माँग बढ़ेगी तथा विनिमय दर देश के पक्ष में हो जाएगी। इसके विपरीत यदि देश में राजनैतिक अस्थिरता है, सरकार अक्षम और भ्रष्ट है तथा लोगों के जान-माल की सुरक्षा करने में असमर्थ है तो पूँजी का देश से बहिर्गमन होगा।
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