बैंक एक ऐसी संस्था है जो मुद्रा के लेन-देन को सरल बनाती है। लोगों के रुपयों को जमा के रूप में स्वीकार करती है। और जब उन्हीं लोगों को रुपयों की ज़रूरत होती है तब उन्हीं ज़रूरतमंद लोगों को ऋण (उधार) के रूप में देकर आर्थिक मदद करती है। इन्हें वाणिज्यिक बैंक या व्यावसायिक बैंक या व्यापारिक बैंक (Commercial Bank) भी कहा जाता है।
आज के युग में साधारण तौर पर किसी से यह पूछना, कि बैंक क्या होता है? सचमुच हास्यास्पद भी हो सकता है। क्योंकि आज के युग में "बैंक" शब्द इतना अधिक प्रचलित (popular) हो चुका है कि एक आम आदमी भी बैंक का अर्थ भलीभाँति जानता है। विशेष बात यह है कि आज के समय में बैंक को ही कमर्शियल बैंक Commercial Bank के नाम से जाना जाता है।
सामान्य तौर पर "बैंक से आशय एक ऐसी संस्था से होता है जो धन का लेनदेन करती है।" लेकिन आधुनिक युग में बैंक विभिन्न प्रकार के कार्य सम्पन्न करता है। यही कारण है कि इसके लिए कोई एक परिभाषा देना सचमुच एक कठिन कार्य मालूम होता है। वैसे तो बैंक को परिभाषित करने के लिए अनेक अर्थशास्त्रियों (विद्वानों) ने अपनी-अपनी ओर से अनेक परिभाषाएँ दी हैं। आइये हम इस अंक में हम कुछ विशिष्ट विद्वानों द्वारा दी गयी कुछ प्रमुख परिभाषाओं को जानते हैं-
बैंक क्या है? बैंक की परिभाषा | Commercial Bank Definition in hindi
फिण्डले शिराज के अनुसार - "बैंक उस व्यक्ति, फर्म या कंपनी को कहा जाता है जिसके पास एक व्यावसायिक स्थान है, जहाँ पर मुद्रा या चलन के संग्रह या जमा के आधार पर कार्य किया जाता है। जमा का ड्राफ़्ट, चैक या आर्डर द्वारा भुगतान किया जाता है। या फ़िर स्टॉक बॉन्ड, बुलियन व विपत्रों पर मुद्रा उधार दी जाती है।"
किनले के अनुसार - "बैंक एक ऐसी संस्था होती है। जओ ऋण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसे ज़रूरतमंदों को उधार देती है, जिन्हें उसकी आवश्यकता होती है। तथा जिसके पास लोगों द्वारा अपनी अतिरिक्त मुद्रा जमा की जाती है।"
भारतीय बैंकिंग कंपनीज़ एक्ट 1949 के अनुसार - "बैंक से तात्पर्य, ऋण देने अथवा विनियोग हेतु जनता से निक्षेपों को (धन को) जमा करना होता है। जो माँग करने पर लौटाया जा सकता है। साथ ही चेक, ड्राफ़्ट आदेश आदि आज्ञा द्वारा निकाला जा सकता है।"
व्यापारिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण | Nationalisation of Commercial Banks in hindi
1. सेंट्रल बैंक इंडिया,
2. पंजाब नेशनल बैंक,
3. बैंक ऑफ इंडिया,
4. यूनाइटेड कमर्शियल बैंक,
5. सिंडिकेट बैंक,
6. केनरा बैंक,
7. बैंक ऑफ बड़ौदा,
8. यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया,
9. यूनियन बैंक इंडिया,
10. देना बैंक,
11. इलाहाबाद बैंक,
12. इंडियन बैंक,
13. इंडियन ओवरसीज़ बैंक
14. बैंक ऑफ महाराष्ट्र।
इसके बाद पुनः 1980 को सरकार ने 6 बड़े व्यापारिक बैंकों (जिनकी जमाएँ 200 करोड़ से अधिक थीं) का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। ये बैंक थे-
1. आंध्रा बैंक,
2. पंजाब एंड सिंध बैंक
3. न्यू बैंक ऑफ इंडिया,
4. विजय बैंक,
5. ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स
6. कार्पोरेशन बैंक
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व्यापारिक बैंकों का वर्गीकरण | व्यापारिक बैंकों के प्रकार | Types of Commercial Banks in hindi
देश के व्यापारिक बैंकों को निम्नलिखित 2 वर्गों में विभाजित किया गया है- (1) अनुसूचित बैंक और (2) ग़ैर अनुसूचित बैंक। आइये हम types of commercial bank in hindi को जानने का प्रयास करते हैं-
1. अनुसूचित बैंक- अनुसूचित बैंक वे बैंक है जिनका नाम रिज़र्व बैंक अधिनियम की द्वितीय अनुसूची में सम्मिलित किया जाता है। रिज़र्व बैंक ने अपनी द्वितीय अनुसूची यानि कि दूसरी सारणी में उन्हीं बैंकों को रखा है जो निम्नलिखित शर्तों को पूरा करते हैं-
(1) इन बैंकों की अधिकृत एवं रिज़र्व कोष मिलाकर कम से कम 5 लाख रुपए या उससे अधिक होना चाहिए।
(2) इन बैंकों को अपनी माँग एवं समय देयताओं का 15% भाग रिज़र्व बैंक के पास रखना होता है।
(3) इन बैंकों को प्रति सप्ताह अपनी स्थिति का विवरण रिज़र्व बैंक को भेजना अनिवार्य होता है।
(4) संबंधित बैंक किसी भी ऐसे कार्य में संलग्न नहीं हो सकते जो जमाकर्ताओं के हित में न हो।
इन बैंकों को रिज़र्व बैंक अलग से कुछ विशिष्ट सुविधाएँ भी देता है जैसे - ऋण, बिलों को पुनः भुनाना, सस्ती धन हस्तांतरण सेवाएँ, समाशोधन ग्रह की सुविधाएँ इत्यादि।
2. गैर-अनुसूचित बैंक - ग़ैर-अनुसूचित बैंक वे बैंक होते हैं जिनका नाम रिज़र्व बैंक की दूसरी अनुसूची अर्थात दूसरी सारणी में नहीं सम्मिलित नहीं किया जाता है। इन बैंकों की चुकता पूँजी व प्रारक्षित निधि (अधिकृत पूँजी व रिज़र्व कोष) मिलाकर 5 लाख रुपए से कम होती है। इन बैंकों को अपनी जमाओं (निक्षेपों) का एक निश्चित प्रतिशत रिज़र्व बैंक के पास रखना होता है। इन बैंकों पर रिज़र्व बैंक का कोई विशेष नियंत्रण नहीं होता है।
व्यापारिक बैंकों के कार्य | बैंक के क्या कार्य हैं?
बैंक का क्या कार्य है? commercial bank ke karya जानने के लिए हम इसके कार्यों को निम्न भागों में बाँटते हैं-
1. जमा राशि स्वीकार करना,
2. ऋण प्रदान करना,
3. अभिकर्ता संबंधी कार्य,
4. विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय
5. आंतरिक व विदेशी व्यापार का अर्थ-प्रबंधन,
6. साख का निर्माण करना,
7. अन्य कार्य
आइये उपरोक्त बिंदुओं के रूप में दिए गए इन सभी कार्यों की हम विवेचना करते हैं-
1. जमा स्वीकार करना (Receiving Deposits)
व्यापारिक बैंकों का एक मुख्य कार्य होता है जनता की बचतों को जमा के रूप में स्वीकार करना। जिन व्यक्तियों के पास अतिरिक्त मुद्रा होती है। वे व्यक्ति अपनी अतिरिक्त मुद्राओं को विभिन्न खातों के माध्यम से, बैंकों में जमा करते हैं। बैंकों के ये खाते 5 प्रकार के होते हैं। (1) चालू खाता (2) बचत खाता (3) स्थायी जमा खाता (4) घरेलू बचत खाता (5) अनिश्चितकालीन जमा खाता। आइये इन खातों को समझते हैं।
• चालू खाता (Current Account) - जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है। चालू खाते में जमाकर्ता अपनी इच्छानुसार जमा कर सकता है और निकाल भी सकता है। सामान्यतः इस खाते में जमा राशि पर नाममात्र का ब्याज़ यानि कि ना के बराबर दिया जाता है। इसका कारण यह है कि इस तरह के खातों के जमाकर्ताओं के लिए बिनक को अपने पास सदैव ही नकद कोष रखना होता है। यह खाता व्यापारियों, उद्योगपतियों और पूंजीपतियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी साबित होता है। क्योंकि इन्हें दिन में कई बार लेनदेन करना होता है।
• बचत खाता (Savings Account) - यह खाता प्रायः मध्यम तथा निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए खोला जाता है। वेतनभोगी कर्मचारी और अन्य सामान्य आय वर्ग के लोग इस तरह के खाते का लाभ उठाते हैं। इस खाते में छोटी रक़म भी जमा की जा सकती है। इसका उद्देश्य देश में पूँजी संचय को प्रोत्साहित करना होता है। इस प्रकार के खाते में रक़म दिन में कितनी ही बार जमा की सकती है। किंतु रक़म निकालने के लिए जमाकर्ता पर कुछ प्रतिबंध लगाए जाते हैं। जैसे- जमाकर्ता इस खाते में से सप्ताह में केवल एक या दो बार ही रक़म निकाल सकता है। रक़म निकालने के लिए जमाकर्त को पर्ची (withdrawal form) तथा चेक की सुविधा दी जाती है।
• स्थायी जमा खाता (Fixed Deposits Account) - इस खाते में एक निश्चित अवधि (3 माह से 1 वर्ष या उससे अधिक) के लिए रक़म जमा की जाती है। रक़म जमा करते समय जमाकर्ता को एक रसीद दी जाती है जिसमें रक़म जमा होने की तारीख़, निकालने की तारीख़ और रक़म पर दिए जाने वाले ब्याज़ की दर भी लिखी होती है। इस प्रकार के खाते में जमा की गई राशि, निश्चित अवधि पूर्ण होने पर ही निकली जा सकती है।
इस खाते की जमाओं पर अलग-अलग समयावधि में ब्याज़ की दर भी अलग-अलग होती है। लेकिन ख़ास बात यह है कि इसमें मिलने वाला ब्याज़ अन्य खातों की तुलना में अधिक होता है। इसका कारण यह है कि बैंकों को इसके भुगतान की अवधि मालूम होने की वजह से अपने पास अधिक नकदी (तरल कोष) रखने की आवश्यकता नहीं होती। बल्कि बैंक इन खातों में जमा राशि का दीर्घकालीन योजनाओं में विनियोग कर अधिक लाभ प्राप्त करता है।
• घरेलू बचत खाता (Home Savings Account) - इस प्रकार के खाते का उद्देश्य, दैनिक बचत को बैंक में जमा करने की आदत को बढ़ावा देना होता है। इसके अंतर्गत बैंक द्वारा, जमाकर्ता को ताला लगा हुआ एक गुल्लक या तिजोरी दे दी जाती है। जिसमें जमाकर्ता अपनी छोटी-छोटी रक़म को समय-समय पर डालता रहता है। गुल्लक भर जाने के बाद जमाकर्ता उस गुल्लक या तिजोरी को बैंक में ले जाकर उसकी रक़म को अपने खाते में जमा करवा लेता है। इस राशि पर मिलने वाले ब्याज़ की दर बहुत कम होती है।
• अनिश्चितकालीन जमा खाता (Indefinite Period Deposits Account) - इस खाते में जमाकर्ता द्वारा अनिश्चित काल के लिए राशि जमा की जाती है। विशेष परिस्थितियों में ही आज जमा राशि निकाली जा सकती है। यद्यपि बैंक इस प्रकार के खातों पर केवल ब्याज़ का भुगतान ही करता है। अर्थात जमाकर्ता इस खाते से केवल ब्याज़ की राशि निकाल सकता है। इस खाते में जमा रक़म पर ब्याज़ की दर ऊँची होती है। क्योंकि बैंक इन खातों में जमा राशि का उपयोग अपने अधिकतम लाभ के लिए निश्चित रूप से कर सकता है। हालांकि इस प्रकार के खातों का चलन भारत में नहीं है। ये खाते भारत में लोकप्रिय नहीं हैं।
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2. ऋण प्रदान करना (Advancing Loans)
व्यापारिक बैंकों का दूसरा मुख्य व महत्वपूर्ण कार्य होता है ऋण अथवा उधार देना। बैंक जितनी भी राशि जमा के रूप में प्राप्त करते हैं। उनका एक निश्चित भाग अपने पास नक़द के रूप में रखकर शेष राशि ज़रूरतमंद लोगों, व्यापारिक या औद्योगिक संस्थाओं को ऋण के रूप में दे देते हैं। किंतु ऋण देने से पूर्व बैंक ऐसे व्यक्तियों या संस्थाओं की साख संबंधी पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। ताकि कोई ग़लत नीति बैंक के लिए नुक़सानदायक साबित न हो। इसलिए भारत में बैंक प्रायः उपयुक्त प्रतिभूतियों के आधार पर ही ऋण प्रदान करते हैं।
• नक़द साख (Cash Credit) - व्यापारियों को ऋण की आवश्यकता ज़्यादातर होती है। इन्हें वर्ष भर ऋण की ज़रूरत होती है। इसलिए ये वर्ष के प्रारंभ में वर्ष भर ली जानी वाली ऋण की अधिकतम राशि के लिए बैंकों से समझौता कर लेते हैं। बैंक इस स्वीकृत राशि को ऋण लेने वाले के नाम से एक खाता खोलकर जमा कर देता है। और आवश्यकतानुसार ऋण की राशि बैंकों से नक़द निकालते रहते हैं। निकाले गए ऋण पर ब्याज़ दिया जाता है। ऋण लेने वाला समय-समय पर अपने इस खाते से रक़म निकालता रहता है। वर्ष के अंत में ऋणी को केवल उसी राशि पर ब्याज़ देना पड़ता है जिस राशि को वह वास्तव में खाते से निकालता है।
उद्योगपति, व्यापारी एवं पूँजीपति बैंक के पास अंश, प्रतिभूतियां अथवा व्यापारिक माल धरोहर के रूप में रख देते हैं। ऋण की जितनी राशि चुका दी जाती है। बैंक उतने मूल्य का माल निकालकर ऋणी को दे देता है।
• अधिविकर्ष (Overdraft) - जमा राशि से अधिक राशि निकालने की प्रक्रिया को अधिविकर्ष कहा जाता है। बैंक अधिविकर्ष क्या है? इसके बारे में हम बता दें कि यह सुविधा विश्वसनीय ग्राहकों को ही दी जाती है। दरअसल बैंक द्वारा अधिविकर्ष की अधिकतम सीमा तय कर दी जाती है। जब ऋणी ऋण की सुविधा पूरे वर्ष प्राप्त न करके केवल थोड़े समय के लिए चाहता है। तब वह अधिविकर्ष का सहारा लेता है।
अधिविकर्ष खाते, बिना ज़मानत, आंशिक ज़मानत अथवा पूर्ण ज़मानत पर हो सकते हैं। सामान्यतः अधिविकर्ष पर जो ज़मानत स्वीकार की जाती हैं, उसमें सरकारी प्रतिज्ञा-पत्र, स्थायी जमा-रसीद, अंश, जीवन बीमा पॉलिसी आदि पर होती हैं।
• ऋण (Loans) - इसके अंतर्गत एक बार में ऋण की पूरी राशि बैंक द्वारा, ऋणी को दे दी जाती है। तथा उस पूरी राशि पर ब्याज़ लगाया जाता है। यह अधिविकर्ष व नक़द साख की तरह नही होता जिसमें कि जितनी राशि निकाली जाती है उतने पर ही ब्याज़ देना होता है। बल्कि ऋण में जितनी राशि स्वीकृत की गई हो उस पूरी राशि पर ब्याज़ लिया जाता है चाहे उस राशि का उपयोग किया गया हो या नहीं। ऋण व्यक्तिगत ज़मानत पर भी दिए जा सकते हैं। लेकिन यदि ऋण की राशि बड़ी हो तब ज़मानत के रूप में सरकारी प्रतिभूतियाँ, अंश, ऋण-पत्र, स्थायी जमा-रसीद आदि रकह ली जाती है।
• व्यापारिक बिलों की कटौती (Discounting of Trade Bills) - आधुनिक समय में विनिमय विपत्रों को भुनाकर बैंक से ऋण प्राप्त करने की पद्धति अधिक लोकप्रिय होने लगी है। इसके अंतर्गत यदि व्यापारिक बिल के वाहक को मुद्रा की तुरंत आवश्यकता होती है तो वह बैंक में जाकर उसे भुना (discount) सकता है। इसके अंतर्गत यदि व्यापारिक बिल किसी अच्छी विश्वसनीय पार्टी द्वारा स्वीकृत हो तो बैंक उसे फ़ौरन स्वीकार कर बिल की राशि का नक़द भुगतान या उसके खाते में जमा कर देता है। हालांकि बैंक इस राशि पर अपना कमीशन वसूलता है। जब बिल परिपक्व हो जाता है तब बिल स्वीकार करने वाली पार्टी से बिल का पूर्ण भुगतान प्राप्त कर लेता है।
3. अभिकर्ता संबंधी कार्य (Agency Functions)
व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए अनेक प्रकार की सेवाएँ प्रदान करते हैं। जिनमें से कुछ सेवाएँ निःशुल्क प्रदान की जाती हैं तो कुछ सेवाओं के लिए निश्चित शुल्क प्राप्त की जाती हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो बैंक अपने ग्राहकों के लिए अभिकर्ता या एजेंसी की तरह भी कार्य सम्पन्न करता है। बैंक के अभिकर्ता संबंधी कार्य निम्नलिखित हैं-
• बैंक अपने ग्राहकों को दूसरे बैंकों से रुपया वसूल कर उनके खातों में जमा करता है।
• बैंक अपने ग्राहकों द्वारा जमा कराये गए चेक, बिल, ड्राफ़्ट, हुंडियों आदि के भुगतान प्राप्त कर उनकी रक़म, ग्राहकों के खाते में जमा करता है। बैंक अपने ग्राहकों के लिए यह सुविधा प्रायः निःशुल्क करता है किंतु यदि चेक अन्य स्थानों के हों तो उनके लिए कुछ शुल्क लिया जाता है।
• ग्राहकों की बीमा किश्त, ब्याज़ राशि , कर की राशि, ऋण राही आदि का भुगतान करता है।
• बैंक अपने ग्राहकों द्वारा लिखे गए बिल व चेकों का भुगतान करते हैं। कभी-कभी वे अपने ग्राहकों के लिए बिल स्वीकार कर तिथि पर उसका भुगतान कर लेते हैं। किंतु कभी-कभी ग्राहकों के आदेश पर वह उनके स्वयं के स्वीकार किए हुए बिल का भुगतान भी कर देते हैं। इसके लिए ग्राहकों से कुछ शुल्क लिया जाता है।
• ग्राहकों के लिए बैंक ड्राफ़्ट तथा साख प्रमाण-पत्रों द्वारा धन एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने की व्यवस्था करता है। इसके अंतर्गत एक निश्चित रक़म निशुल्क भेजी जाती है। कुछ बैंक इस प्रक्रिया के लिए निश्चित शुल्क लेते हैं।
• बैंक अपने ग्राहकों के लिए अंशों तथा प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करते हैं। ये अपने ग्राहकों के आदेश पर विभिन्न प्रकार के अंश, ऋणपत्र, सरकारी-अर्धसरकारी प्रतिभूतियां ख़रीदने और बेचने का कार्य करते हैं।
• बैंक अपने ग्राहकों के आदेश पर उसकी सम्पत्ति की व्यवस्था, विभाजन या प्रबंध आदि करने का दायित्व भी उठा लेते हैं। कहा जाए तो बैंक ट्रस्टी, प्रबंधक आदि के रूप में भी कार्य करते हैं।
• बैंक अपने ग्राहकों के लिए ब्याज़, लाभांश तथा किराया आदि वसूल करके उनके खातों में जमा करने का कार्य करते हैं।
• बैंक अपने ग्राहकों की आर्थिक स्थिति की सूचना देश विदेश के अन्य व्यापारियों को देते हैं। तथा देश विदेश के व्यापारियों की आर्थिक प्रगति की सूचना अपने ग्राहकों को देने की व्यवस्था करते हैं।
4. विदेशी मुद्रा का क्रय विक्रय (Purchase and Sale of Foreign Exchange in hindi)
व्यापारिक बैंक के कार्यों में यह कार्य भी विशेष महत्व रखता है। वह यह कि ये विदेशी मुद्रा के क्रय-विक्रय का कार्य भी करते हैं। भारत में विदेशी विनिमय बैंकों द्वारा यह कार्य किया जाता है। किंतु अब व्यापारिक बैंकों द्वारा भी यह कार्य किया जाने लगा है। हालांकि इस कार्य को करने के लिए RBI से अनुमति लेनी पड़ती है।
5. आंतरिक व विदेशी व्यापार का प्रबंधन (Financing of Internal and External Trade)
आंतरिक एवं विदेशी व्यापार के लिए बैंकों द्वारा धन की व्यवस्था व्यापारियों के विभिन्न विपत्रों, देशी विपत्रों, हुंडियों आदि को भुनाकर की जाती है। यदि किसी व्यापारी के पास ऐसा बिल है जो कुछ समय बाद परिपक्व होना है, यानि कि कुछ समय बाद उसे उसका भुगतान होना है। किंतु उसे तत्काल धन की आवश्यकता है। तो ऐसी स्थिति में बैंक उसे उस अवधि का ब्याज़ काटकर, शेष रुपया व्यापारी को दे देता है। और बाद में स्वयं उस बिल का भुगतान अवधि समाप्त होने पर वसूल कर लेता है।
(6) साख का निर्माण करना (Creation of Credit)
साख का निर्माण करना, आधुनिक समय में व्यापारिक बैंकों का एक महत्वपूर्ण और प्रमुख कार्य माना जाता है। सही मायने में कहा जाए तो व्यापारिक बैंक ज़रूरतमंदों को केवल ऋण ही प्रदान नहीं करते बल्कि साख का निर्माण भी करते हैं। व्यापारिक बैंक अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से अपनी अंशपूँजी और जमा धन से ज़्यादा ऋण देते है। जिस पर अधिक ब्याज़ कमाकर साख का निर्माण करते हैं। इसी कारण बैंकिंग व्यवसाय आज के समय में इतना अधिक विकसित हो पाया है।
(7) अन्य कार्य (Other Functions)
उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त व्यापारिक बैंकों के कुछ अन्य कार्य भी होते हैं। जिनमें से कुछ कार्य निम्नलिखित हैं-
• व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को लॉकर की सुविधा देते हैं। जिसमें ग्राहक अपनी मूल्यवान वस्तुओं या आभूषणों को सुरक्षित रख सकते हैं। बैंक इस सेवा के लिए प्रति वर्ष ग्राहकों से कमीशन (शुल्क) लेते हैं।
• बैंक प्रायः अपने ग्राहकों के लिए एक विशेष विभाग की व्यवस्था करते हैं। जो ग्राहकों को वित्तीय सलाह यानि कि पूँजी निवेश के संबंध में उचित सलाह देने का कार्य करता है।
• यात्रियों की सुविधा के लिए व्यापारिक बैंक गश्ती साख-पत्र (Circular Letter of Credit) की व्यवस्था करते हैं। जिससे यात्रियों के लिए नक़द राशि ले जाने का जोख़िम समाप्त हो जाता है।
• बैंक अपने ग्राहक की आर्थिक स्थिति की सही-सही जानकारी भी देते हैं। जिससे अन्य व्यापारी उसके साथ व्यापारिक संबंध आसानी से स्थापित कर लेते हैं।
• बैंक समय-समय पर आर्थिक आँकड़े व सूचनाएँ एकत्रित कर उन्हें प्रकाशित भी करते हैं। उनके इस प्रयास से विविध आर्थिक एवं वित्तीय जानकारियां भी प्राप्त होती हैं।
• व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों द्वारा निर्गमित अंश या अन्य प्रतिभूतियों को बेचने का दायित्व अपने हाथों में ले लेते हैं। अर्थात बैंक प्रतिभूतियों का अभिगोपन Underwriting भी करते हैं। इस कार्य के लिए बैंक अभिगोपन शुल्क या कमीशन भी लेते हैं।
उपरोक्त बिंदुओं के माध्यम से व्यापारिक बैंक के क्या कार्य हैं? Commercial Bank Functions in hindi को जानने के बाद हम कह सकते हैं कि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में व्यापारिक बैंक अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्पष्ट शब्दों में कहा जाये तो यह कहना ग़लत नहीं होगा कि "बिना सुव्यवस्थित बैंकिंग प्रणाली के देश का आर्थिक विकास संभव नहीं है।"
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