मुद्रा पूर्ति/मुद्रा आपूर्ति क्या है? भारत में मुद्रा की आपूर्ति का मापन क्या है?

मुद्रा पूर्ति की अवधारणा | Mudra purti ki avdharna | Concept of Money Supply in hindi


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mudra ki purti ki map kya hai?

किसी देश की मुद्रा आपूर्ति अथवा मुद्रा पूर्ति का अभिप्राय (mudra purti ka abhipray) होता है, किसी समय विशेष पर चलन की कुल मुद्रा का स्टॉक। मुद्रा आपूर्ति, मुद्रा स्टॉक के केवल उस भाग को सम्मिलित करती है जो जनता द्वारा नकद के रूप में रखी जाती है। 

केंद्र सरकार, केंद्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंकों को इसमें शामिल नहीं किया जाता। क्योंकि ये स्वतः मुद्रा सृजित करने वाली एजेंसियां होती है। केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा केंद्रीय बैंक कोषाग्रह में रखे गए नकद कोष को भी मुद्रा पूर्ति (mudra purti) में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि यह चलन में नहीं होती है। अर्थात हम कह सकते हैं कि,

"किसी समय विशेष पर मुद्रा की पूर्ति (supply of money) कुल मुद्रा की वह मात्रा होती है जो उस समय विशेष पर चलन में होती है। यह लोगों के पास नकद मुद्रा (नोट व सिक्के) के रूप में होती है। इसमें व्यापारिक बैंकों के पास चालू खातों में मांग जमा राशि भी सम्मिलित की जाती है। 


भारत में मुद्रा पूर्ति की इस माप को साधारणतया M1 द्वारा व्यक्त किया जाता है।

            M1    =   करेंसी + मांग जमाएं


मुद्रा की पूर्ति की परिभाषा सरल शब्दों में- "एक निश्चित समय में लोगों में संचरण करने वाली कुल मुद्रा को मुद्रा की पूर्ति (mudra ki purti) कहते हैं।" 

अर्थात सरल शब्दों में कहें तो मुद्रा की पूर्ति, सरकार द्वारा बैंकों के माध्यम से नगदी एवं बैंक जमाएं के रूप में की जाती है। मुद्रा की पूर्ति पर केंद्रीय बैंक के द्वारा पूर्ण नियंत्रण किया जाता है। केंद्रीय बैंक की साख नियंत्रण रीतियों द्वारा मुद्रा की पूर्ति पर नियंत्रण किया जाता है। केंद्रीय बैंक, आवश्यकतानुसार ही साख का सृजन तथा नियंत्रण कर मुद्रा की पूर्ति करता है।


मुद्रा पूर्ति की माप | मुद्रा आपूर्ति का मापन | भारत के मुद्रा स्टॉक की माप

मुद्रा पूर्ति पर 'रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया गणित द्वितीय कार्यदल' की सिफ़ारिशों के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रा की पूर्ति के वैकल्पिक मापों को 4 रूपों में स्वीकार किया गया है। भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा अप्रैल 1977 से मुद्रा आपूर्ति के घटक (मुद्रा पूर्ति के घटक) निम्नलिखित हैं -

M   =  CU + DD
M2   =  M1 + डाकघर बचत बैंक में जमा राशि
M3   =  M1 + व्यावसायिक बैंकों में की गई सावधि जमाएं
M4  =  M3 + डाकघरों में रखी गई कुल जमाएं

{जहां CU = जनता द्वारा रखी गई करेंसी (नोट व सिक्के) तथा DD = व्यावसायिक बैंकों द्वारा रखी गई निवल मांग जमाएं }

मुद्रा पूर्ति के उपरोक्त घटकों को उनकी तरलता के रूप में देखें तो ये तरलता के घटते क्रम में होते हैं। M1 में तरलता सबसे अधिक होती है। और M4 में तरलता सबसे कम होती है।

M1 और M2 संकुचित (संकीर्ण) मुद्रा कहलाती हैं। M3 और M4 व्यापक मुद्रा कहलाती हैं। M3 मुद्रा की पूर्ति की माप सबसे साधारण है। इसे समस्त मौद्रिक संसाधन के नाम से भी जाना जाता है।


भारत में रिज़र्व बैंक द्वारा जो आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं उनमें M3 का विशेष महत्व है। M1 एक संकुचित मुद्रा है। जबकि M3 विस्तृत मुद्रा कहलाती है। अतः M3 को हो समष्टि आर्थिक उद्देश्यों का निर्माण करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

इस प्रकार मौद्रिक एवं साख नियंत्रण की नीति की दृष्टि से 
M1 जहां एक प्रवाह को प्रदर्शित करता है, वहीं M3 एक स्टॉक को प्रदर्शित करता है। इन्हें इसी दृष्टि से क्रियान्वित किया जाना चाहिए।


निष्कर्ष (Conclusion) -

तरलता के क्रम में हमने जाना कि जनता के पास करेंसी सबसे अधिक तरल, बैंकों में मांग जमाएं उससे कम तरल, डाकघरों में बचत जमाएं उससे कम तरल होती है क्योंकि इनमें नोटिस देकर मुद्रा को परिवर्तित किया जा सकता है।  बैंकों में आवधिक (सावधि) जमाएं उससे कम तरल होती है क्योंकि इनमें एक निश्चित अवधि के बिना और बिना मुद्रा की हानि के, मुद्रा को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।इन्हें मुद्रा न कहकर अर्ध मुद्रा या निकर मुद्रा कहा जाता है।
  
मुद्रा की पूर्ति के अन्तर्गत लोगों के पास कुल चलार्थ (currency) तथा लोगो की बैंकों में कुल मांग जमा राशियों (demand deposits) को शामिल किया जाता है। केंद्रीय सरकार अथवा केंद्रीय बैंक द्वारा चलाई गई मुद्रा काग़ज़ी नोट एवं धातु सिक्कों के रूप में होती है। जो कि विधिग्राह (legal tender) मुद्रा होती है। 

जिन देशों में बैंकिंग व्यवस्था पर्याप्त रूप से विकसित है उनमें बैंकों कि मांग जमा, मुद्रा की पूर्ति का एक महत्वपूर्ण घटक होती है। क्योंकि इन्हें बिना कोई सूचना दिए कभी भी निकला जा सकता है। प्रकार या नकद मुद्रा के समान ही तरल होती है। इसलिए इसे कुल मुद्रा पूर्ति का एक अंग समझा जाता है।

इसके विपरीत बैंकों में लोगों की मियादी या समय जमाओं को मुद्रा की पूर्ति (mudra ki purti) में शामिल नही किया जाता क्योंकि इन्हें कुछ विशेष दशाओं को छोड़कर समय पूरा होने पर ही निकाला जा सकता है। इस प्रकार जनता के पास मुद्रा पूर्ति के अन्तर्गत दो तत्व होते हैं - करेंसी (काग़ज़ी नोट व सिक्के) तथा बैंकों की मांग जमाएं, जो जब चाहे तब निकाली जा सकती है।


FAQ : 

1. तरलता किसे कहते हैं?

उत्तर - कोई भी साधन जिसका मूल्य देश में प्रचलित मूल्य मापक इकाई के रूप में व्यक्त किया जाता है। साथ ही आवश्यकतानुसार बिना किसी विलंब, असुविधा अथवा हानि के व्यय करने योग्य (विनिमय करने योग्य) बनाया जा सकता है। तरल साधन कहलाता है। और उसके इस गुण को तरलता (liquidity) कहा जाता है।

2. मुद्रा पूर्ति एवं मुद्रा स्टॉक में क्या अंतर है?

उत्तर - मुद्रा पूर्ति में केवल उस मुद्रा को शामिल किया जाता है जो समय विशेष पर चलन में होती है। जबकि मुद्रा के स्टॉक में मुद्रा की इस पूर्ति के अतिरिक्त मुद्रा सृजित करने वाली एजेंसियों (जैसे- केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंक या कोषागार) की मुद्राओं को भी शामिल किया जाता है।

3. उच्च शक्ति मुद्रा (high powered money) किसे कहते हैं?

उत्तर - उच्च शक्ति मुद्रा वह मुद्रा है जो व्यापारिक बैंकों के पास आरक्षितों और जनता के पास करेंसी (नोट व सिक्कों) के रूप में विद्यमान रहती है।

संक्षेप में,   H = C + RR + ER

जहां - H   = उच्च शक्ति मुद्रा,
        C   = करेंसी (नोट और सिक्के),
       RR  = आवश्यक रिज़र्व (required reserve)
       ER  = अतिरिक्त रिज़र्व (excess reserve)
मांग जमा (DD) के निर्माण की गुणन प्रक्रिया का आधार होने के कारण H को आधार मुद्रा (adhar mudra) भी कहा जाता है।

4. मुद्रा की प्रभावकारी पूर्ति (effective supply) क्या है?

उत्तर - मुद्रा की प्रभावी आपूर्ति से अभिप्राय मुद्रा की उस मात्रा से है जो किसी समय विशेष पर चलन में होती है। मुद्रा की प्रभावकारी पूर्ति ज्ञात करने के लिए मुद्रा की कुल पूर्ति अथवा मात्रा में से धात्विक व पत्र मुद्रा की वह मात्रा निकाल दी जाती है जो सरकार, केंद्रीय बैंक अथवा व्यापारिक बैंकों के कोषों में आधार अथवा आरक्षित मुद्रा के रूप में पड़ी रहती है।

5. मुद्रा का प्रचलन वेग किसे कहते हैं?

उत्तर - मुद्रा की विभिन्न इकाइयां विनिमय की क्रिया में कई हाथों से बार बार गुजरती रहती है। और हर बार मुद्रा का कार्य करती रहती है। एक निश्चित अवधि में मुद्रा की एक इकाई। औसतन जितने बार भुगतान करने के लिए प्रयोग की जाती है, उसे मुद्रा का प्रचलन वेग (velocity of money) कहते हैं।

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