पूर्ण रोज़गार - पूर्ण रोज़गार की अवधारणा, व्याख्या, आवश्यकता, पूर्ण रोज़गार के उपाय | purn rojgar ke upay in hindi
किसी भी अर्थव्यवस्था में रोज़गार की एक ऐसी स्थिति जहां कोई भी बेरोज़गार न हो। सभी को अपनी-अपनी योग्यतानुसार रोज़गार प्राप्त हो। साधारण तौर पर पूर्ण रोज़गार का अर्थ (purn rojgar ka arth) यही होता है। आइए इसे और भी स्पष्ट रूप से समझते हैं।
पूर्ण रोज़गार से आशय एक ऐसी स्थिति से है जिसमें वे सभी व्यक्ति, जो काम करने की इच्छा रखते हैं। उस कार्य को करने की योग्यता व सामर्थ रखते हैं। उन्हें प्रचलित मज़दूरी दर पर मनचाहा रोज़गार प्राप्त हो जाता है।
पूर्ण रोज़गार किसे कहते हैं? | Purn rojgar kise kahte hain?
पूर्ण रोज़गार से तात्पर्य है कि अर्थव्यवस्था में अनैक्छिक बेरोज़गारी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि अर्थव्यवस्था में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें काम करने की इच्छा ही नहीं होती है अथवा वे काम करने लायक नहीं रहते।
अर्थव्यवस्था में ऐसे लोग दो तरह के होते हैं। एक वे लोग जो शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमज़ोर होते हैं। वे किसी भी काम को करने की योग्यता व सामर्थ्य नहीं रखते। जैसे- वृद्ध और बच्चे। इन्हें रोज़गार देने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
दूसरे वे लोग होते हैं जो काम करने की योग्यता व सामर्थ्य तो रखते हैं लेकिन काम करना नहीं चाहते। इस वर्ग में आलसी व धनी व्यक्तियों को रखा जा सकता है। ऐसे व्यक्तियों को भी रोज़गार देने का कोई अर्थ नहीं होता है।
इसलिए हम सीधे शब्दों में यह कह सकते हैं कि पूर्ण रोज़गार वह स्थिति है जिसमें योग्य व सामर्थ्यवान व्यक्तियों को अपनी पसंद का रोज़गार, प्रचलित मज़दूरी दर पर मिलना संभव हो पाता है।
पूर्ण रोज़गार की परिभाषाएं (purn rojgar ki paribhasha)
प्रो. डिलार्ड के अनुसार - "पूर्ण रोज़गार असल में वह संतुलन बिंदु होता है जिस पर आने के बाद प्रभावपूर्ण मांग में वृद्धि होने पर उत्पादन में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। अर्थात उत्पत्ति बेलोचदार होती है।"
प्रो. केंस के अनुसार - "पूर्ण रोज़गार एक ऐसी अवस्था होती है। जहां प्रभावपूर्ण मांग में वृद्धि, उत्पादन एवं रोज़गार में वृद्धि करने के बजाय क़ीमत में वृद्धि करती है।"
उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि पूर्ण रोज़गार में प्रभावपूर्ण मांग में वृद्धि होने के बाद भी उत्पादन व रोज़गार को बढ़ाना संभव नहीं होता है। इससे केवल वस्तुओं व सेवाओं की क़ीमतों में वृद्धि होती है।
पूर्ण रोज़गार की आवश्यकता | पूर्ण रोज़गार का महत्व
पूर्ण रोज़गार का महत्व (purn rojgar ka mahatva) या इसकी आवश्यकता किसलिए है? आइए इसे निम्न बिंदुओं के आधार पर जानते हैं -
1. बेरोज़गारी की समाप्ति - पूर्ण रोज़गार की अवधारणा बेरोज़गारी को दूर करने में मदद करती है। क्योंकि किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए बेरोज़गारी पूर्णतः हानिकारक होती है। इससे व्यक्तियों की आय में कमी के साथ-साथ देश के उत्पादन में भी भारी कमी आती है। बेरोज़गारी की दशा में श्रम शक्ति का ह्रास होता है जो कि किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त नहीं है।
2. आर्थिक विकास - चूंकि बेरोज़गारी की दशा में प्राकृतिक संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग भी संभव नहीं हो पाता है। अतः पूर्ण रोज़गार से देश के संसाधनों का उचित उपयोग कर आर्थिक विकास करना आसान हो जाता है।
3. न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति - आज के समय में मनुष्य को अपना जीवन यापन करने के लिए रोज़गार की अत्यंत आवश्यकता होती है। ताकि वह अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से कर सके। और ऐसा पूर्ण रोज़गार की स्थिति से ही संभव है।
4. बेहतर सामाजिक वातावरण - पूर्ण रोज़गार होने से देश व समाज में चल रहा वर्ग संघर्ष, भ्रष्टाचार, हिंसा, चोरी, धोखेबाजी आदि में कमी आ जाती है। अतः देश में स्थिरता व शांति का वातावरण निर्मित करने के लिए पूर्ण रोज़गार की अवधारणा फ़ायदेमंद साबित हो सकती है।
अतः देश में आर्थिक विकास और समाज में चारों ओर शांतिपूर्ण व सुखद वातावरण बनाने के लिए पूर्ण रोज़गार (purn rozgar) एक अच्छा माध्यम हो सकता है। ताकि प्रभावपूर्ण मांग में निरंतर वृद्धि संभव हो सके।
पूर्ण रोज़गार के उपाय | Purn Rojgar sthapit karne ke upay
पूर्ण रोज़गार स्थापित करने का तरीक़ा (purn rojgar sthapit karne ka tarika) निम्न बिंदुओं के आधार पर सुझाया का सकता है -
1. उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि -
प्रभावपूर्ण मांग वृद्धि तभी संभव हो पाती है जब उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि हो। इसलिए सरकार को ऐसी नीतियां अपनानी चाहिए जिससे उपभोग प्रवृत्ति बढ़े। इसके लिए सरकार कर कम करे और ऋण भी आसानी से उपलब्ध कराए। जिससे लोगों की क्रयशक्ति में बढ़ोत्तरी होगी और वस्तुओं की मांग भी बढ़ेगी। जिसके परिणास्वरूप उत्पादन और रोज़गार दोनों में वृद्धि होगी।
2. निजी विनियोग में वृद्धि -
निजी विनियोग में वृद्धि होने से उत्पादन को प्रोत्साहन मिलता है जिसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में रोज़गार की संभावनाएं भी बढ़ती है। इसलिए विनियोग में वृद्धि करने हेतु सरकार द्वारा विनियोगकर्ताओं को नीची ब्याज़ दर पर ऋण उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही कर की दरों में कमी कर, अधिक विनियोग के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
3. सरकारी विनियोग में वृद्धि -
प्रभावपूर्ण मांग में वृद्धि होने के कारणों में सबसे बड़ा योगदान सरकारी विनियोग का होता है। इसके लिए सरकार सड़क, भवन, स्कूल, नहरों, तालाबों जैसे सार्वजनिक निर्माण कार्यों में अधिक से अधिक व्यय कर, विनियोग का लक्ष्य तय कर सकती है। इसके अलावा सामाजिक सुरक्षा संबंधी व्यय भी कर सकती है। इसके लिए सरकार द्वारा घाटे की वित्त व्यवस्था (घाटे का बजट) अपनाना चाहिए। जिससे उत्पादन व रोज़गार दोनों में ही वृद्धि संभव हो सके।
4. अन्य उपाय -
बेरोज़गारी को दूर करने अर्थात पूर्ण रोज़गार (purn rozgar) की स्थिति निर्मित करने हेतु किए जाने वाले उपायों में अन्य उपाय हैं - (1) जनसंख्या को नियंत्रित कर मानव शक्ति का उचित नियोजन करना। (2) कुटीर व लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना। (3) कृषि व्यवसाय का विकास करना सुनिश्चित किया जाना। (4) पूंजी निर्माण तथा आर्थिक विकास में वृद्धि के प्रयास। (5) सार्वजनिक क्षेत्रों का विस्तार किया जाना।
उम्मीद है इस अंक में आप पूर्ण रोज़गार का अर्थ क्या है? (Purn rojgar ka arth kya hai?) विस्तार से जान चुके होंगे। आशा है यह आपके अध्ययन में अवश्य ही सहायक साबित होगा। ऐसे ही अन्य टॉपिक्स पढ़ने के लिए जुड़े रहिए studyboosting के साथ।
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