प्रशासकीय क़ीमत (prashaskiya kimat) - क़ीमत सीमा क्या है? | क़ीमत तल क्या है? | प्रशासकीय क़ीमतों के निर्धारण के उद्देश्य क्या हैं?
स्वतन्त्र बाज़ार में वस्तुओं एवं सेवाओं की क़ीमतों का निर्धारण माँग व पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है। ऐसी दशाओं में कुछ वस्तुओं व सेवाओं की क़ीमतें वांछित स्तर से अत्यधिक ऊँची या अत्यधिक नीची भी हो सकती है। जिससे अर्थव्यवस्था को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अतः सरकार के लिए इन क़ीमतों पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
इस उद्देश्य से सरकार कुछ वस्तुओं की क़ीमतें, उच्चतम या निम्नतम स्तर पर निर्धारित कर देती है। जो बाज़ार उन्मुख क़ीमतों से भिन्न होती हैं। इसलिए इन्हें प्रशासकीय क़ीमतें (administrative price in hindi) भी कहा जाता है। ये प्रशासकीय क़ीमतें 2 प्रकार की होती हैं-
(अ) क़ीमत सीमा (Price Ceiling)
(ब) क़ीमत तल (Price floor)
आइये इन क़ीमतों को स्पष्ट शब्दों में पृथक रूप से समझते हैं और जानते हैं कि क़ीमत सीमा क्या है? (Kimat seema kya hai?) और क़ीमत तल क्या है? (Kimat tal kya hai?)
(अ) क़ीमत सीमा | Price Ceiling in hindi
किसी वस्तु या सेवा की, सरकार द्वारा निर्धारित की हुई ऊपरी सीमा या अधिकतम क़ीमत को क़ीमत सीमा (kimat seema) या उच्चतम निर्धारित क़ीमत (uchchatam nirdharit kimat) कहते हैं। उदाहरण के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत गेहूँ, चावल, चीनी, मिट्टी का तेल, आदि के लिए एक उच्चतम क़ीमत तय कर दी जाती है। जो कि स्वतन्त्र बाज़ार में माँग व पूर्ति कि शक्तियों द्वारा निर्धारित की गयी क़ीमत से नीचे होती है।
इस प्रकार आवश्यक वस्तुओं को, निर्धन वर्ग के बीच उपलब्ध कराने के लिए क़ीमत सीमा (kimat seema) का निर्धारण किया जाता है। आपने देखा होगा कि उपभोक्ताओं को कम क़ीमत पर आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराने हेतु सरकार द्वारा राशन कार्ड भी जारी किये जाते हैं। ताकि प्रत्येक व्यक्ति को एक निश्चित मात्रा में तथा एक निश्चित क़ीमत में उनकी दैनिक वस्तुएं (आवश्यक वस्तुएं) उपलब्ध करायी जा सके।
निर्धन वर्ग के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों को बाहरी बाज़ार में अनाब-शनाब क़ीमतों पर ख़रीदने के लिए विवश न होना पड़े। इसलिए विशेष तौर पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन कि दुकानों पर इन आवश्यक वस्तुओं को बेचा जाता है।
क़ीमत सीमा के परिणाम (kimat seema ke parinam)
वैसे तो सरकार का यह प्रयास अत्यंत ही सराहनीय है। किन्तु इसके कुछ मिले-जुले परिणाम भी देखने मिलते हैं। सरकार द्वारा उच्चतम क़ीमत निर्धारित करने के परिणाम निम्न होते हैं -
1. लम्बा इंतज़ार - उपभोक्ताओं को अपने लिए उचित क़ीमतों पर आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए राशन कि दुकानों पर, लम्बी-लम्बी कतारों में खड़े होकर इंतज़ार करना पड़ता है। जिससे समय कि बर्बादी बहुत होती है।
2. बजट का भार - उच्चतम क़ीमतों यानि कि बाज़ार की क़ीमतों से कम क़ीमत पर, इन आवश्यक वस्तुओं को उपलब्ध कराने के लिए सरकार को खाद्य अनुदान की व्यवस्था अनिवार्य रूप से करनी पड़ती है। जिससे बजट पर अनावश्यक बोझ पड़ता है।
3. कालाबाज़ारी की सम्भावना - राशन की दुकानों से मिलने वाली निर्धारित मात्रा, उपभोक्ताओं के लिए पर्याप्त नहीं होती। जिस कारण अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए उपभोक्ता, ऊँची क़ीमत देकर, अधिक मात्रा ख़रीदने को तैयार हो जाते हैं। इस कारण कालाबाज़ारी को प्रोत्साहन मिलता है।
4. मिलावटखोरी - राशन की दुकानों पर इन आवश्यक वस्तुओं की कम क़ीमत पर उपलब्धता के कारण, बाहरी बाज़ार के दुकानदार कम क़ीमत पर, इन्हीं वस्तुओं को उसी क्वालिटी में बेचने में असमर्थ होते हैं। इसलिए ये दुकानदार इन वस्तुओं में मिलावट करके अपने मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए प्रयत्न शील रहते हैं।
(ब) क़ीमत तल | price floor in hindi
किसी वस्तु या सेवा की, सरकार द्वारा निर्धारित की गयी निचली सीमा या निम्नतम क़ीमत को क़ीमत तल (kimat tal) या निम्नतम निर्धारित क़ीमत (nimnatam nirdharit kimat) कहते हैं। कुछ विशिष्ट वस्तुओं व सेवाओं की क़ीमतों में एक निश्चित स्तर से भी नीचे गिरावट होना सही नहीं होता है। इसलिए ऐसी वस्तुओं व सेवाओं के लिए सरकार, तल क़ीमत (kimat tal) का सहारा लेती है जिसके अंतर्गत सरकार इन विशिष्ट वस्तुओं की एक निम्नतम क़ीमत निर्धारित कर देती है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो बाज़ार में मज़दूरों (श्रमिकों) का शोषण न हो इसलिए सरकार द्वारा, श्रमिकों को दी जाने वाली मज़दूरी की एक न्यूनतम सीमा निर्धारित कर दी जाती है। जिसके चलते श्रमिकों को इस क़ीमत तल (kimat tal) से नीचे की मज़दूरी देकर उनका कोई शोषण नहीं कर पाता। और श्रमिकों को अपने काम के बदले कम से कम एक न्यूनतम निर्धारित क़ीमत (kimat tal) से ऊपर की ही मज़दूरी प्राप्त होती है। जो कि इनके लिए एक सम्मानजनक मज़दूरी कहलाती है। जिससे इनके जीवन स्तर में सुधार होना संभव हो पाता है।
दूसरा उदाहरण कृषकों कि फ़सलों के लिए सरकार द्वारा निर्धारित किये गये क़ीमत तल (kimat tal) के रूप में देखा जा सकता है। जिसके अंतर्गत सरकार कृषि फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (minimum support price) की घोषणा करती है। ताकि यदि बाज़ार मूल्य इस क़ीमत से भी नीचे गिर जाये। तो ऐसी परिस्थिति में सरकार स्वयं अपने द्वारा निर्धारित इस न्यूनतम क़ीमत (निर्धारित न्यूनतम क़ीमत) पर ख़रीदने की गारंटी देती है। परिणाम स्वरूप प्रत्येक कृषक मन लगाकर कृषि करने हेतु स्वतः ही प्रोत्साहित होता है।
अब तो आप समझ ही चुके होंगे कि क़ीमत सीमा और क़ीमत तल (kimat seema aur kimat tal) रूपी इन प्रशासकीय क़ीमतों का निर्धारण किया जाना क्यों आवश्यक हैं? आइए इन प्रशासकीय क़ीमतों के उद्देश्य क्या हैं? जानते हैं -
प्रशासकीय क़ीमत निर्धारण के मुख्य उद्देश्य-
इन क़ीमतों के निर्धारण के मुख्य उद्देश्य (prashaskiya kimat ke nirdharan ke uddeshya) निम्न हैं -
1) आर्थिक स्थायित्व - न्यूनतम व उच्चतम क़ीमतों का निर्धारण इसलिए किया जाता है ताकि अर्थव्यवस्था में आयी आर्थिक मंदी या मुद्रास्फीति की दशाओं को रोका जा सके।
2) उपभोक्ताओं को संरक्षण - इन क़ीमतों के निर्धारण का उद्देश्य उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करना, जैसे - गेंहूँ, चावल, चीनी, कपड़ा, तेल आदि का उपयोग जो ग़रीब वर्ग करता है। उनकी क़ीमतें बाज़ार शक्तियों पर पूर्णतः नहीं छोडी जा सकती हैं। अतः ग़रीब वर्ग के हित में इन आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतों का निर्धारण करना सरकार का दायित्व हो जाता है।
3) कार्यकुशलता एवं लागतों में कमी - निम्नतम व उच्चतम क़ीमतों का निर्धारण करने का अर्थ केवल लाभ प्राप्त करना ही नहीं होता है अपितु इसका उद्देश्य सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करना भी होता है। इन क़ीमतों के निर्धारण के फलस्वरूप संसाधनों का प्रयोग मितव्ययिता व कुशलतापूर्वक करने ले लिए प्रोत्साहन भी मिलता है।
4) उत्पादकों के हितों की रक्षा - न्यूनतम व उच्ततम क़ीमतों के निर्धारण का उद्देश्, उत्पादकों के हितों की रक्षा करना होता है। जैसे- सरकार गेहूँ, कपास, गन्ना इत्यादि कुछ फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थित क़ीमतें सुनिश्चित करती हैं। इसका अर्थ यह होता है कि यदि क़ीमतें इन समर्थित क़ीमतों से भी नीचे जाती हैं तो सरकार स्वयं उन उत्पादित फ़सलों को ख़रीद लेगी।
5) आर्थिक विकास - न्यूनतम व उच्चतम क़ीमतों के निर्धारण के फलस्वरूप आर्थिक विकास को मदद मिलती है। इसके लिए क़ीमतें इस प्रकार निर्धारित कि जाती हैं कि इनसे आतंरिक संसाधनों का सृजन हो सके और योजनाओं के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
6) सामाजिक न्याय - निम्नतम या उच्चतम क़ीमतों के निर्धारण का उद्देश्य यह भी होता है कि ताकि आर्थिक शक्ति के संकेद्रण पर रोक लगाकर सामाजिक न्याय दिलाया जा सके। जैसे- न्यूनतम मज़दूरी का निर्धारण करके मज़दूरों पर होने वाले शोषण पर रोक लगायी जा सकती है।
7) उपभोग पर नियंत्रण - उच्चतम क़ीमतों का निर्धारण कर सरकार, दुर्लभ, आयातित या हानिकारक वस्तुओं के उपभोग पर नियंत्रण कर सकती है।
उम्मीद है इस अंक "प्राइज़ फ़्लोर और प्राइज़ सीलिंग से आप क्या समझते हैं? कीमत तल तथा क़ीमत सीमा को समझाइए।" के माध्यम से आप माँग और पूर्ति के अनुप्रयोग को भलीभांति समझ चुके होंगे। जहाँ क़ीमत सीमा तथा क़ीमत तल किसे कहते हैं? (Kimat seema tatha kimat tal kise kahte hain?) जान चुके होंगे। आप अपनी प्रतिक्रिया comments के माध्यम से दे सकते हैं।
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