उत्पादन फलन क्या है | उत्पादन फलन की संकल्पना, मान्यतायें व विशेषताएँ।

किसी भी फर्म को अपना उत्पादन करने के लिए उत्पत्ति के अनेक साधनों का प्रयोग करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में, "किसी फर्म द्वारा उत्पादन करने के लिए जिन स्रोतों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार उत्पत्ति के साधन (Factors of Production) कहा जाता है।"

उत्पादन फलन क्या है?

आधुनिक वर्गीकरण में उत्पत्ति के साधनों को चार भागों में बाँटा जा सकता है – भूमि (Land), श्रम (Labour), पूँजी (Capital) एवं संगठन (Organization)। जिन्हें उपादान (Inputs) कहा जाता है । उत्पादन प्रक्रिया में इन समस्त साधनों को एक निश्चित अनुपात में दी गयी उत्पादन तकनीक के अनुसार मिलाया जाता है तथा इन उपादानों की पारस्परिक क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप जो परिणाम प्राप्त होता है उसे उत्पादन (Output) कहा जाता है।
"एक दी गई तकनीक के अन्तर्गत साधनों के विभिन्न संयोग एवं उनसे प्राप्त होने वाले उत्पादनों के भौतिक सम्बन्ध को हम उत्पादन फलन (Production Function) कहते हैं।"

चूँकि उत्पादन की मात्रा तकनीकी ज्ञान पर निर्भर करती है।यदि उत्पादन की तकनीक उत्कृष्ट हो जाये तो उत्पादन की मात्रा में भी वृद्धि होने लगती है। उत्पादन के इसी तकनीक को जो कि उत्पादन के साधनों और उत्पादन के मध्य संबंध को स्पष्ट करता है। उसे उत्पादन फलन कहते हैं।

इनपुट्स (Inputs) एवं आउटपुट्स (Outputs) के भौतिक सम्बन्ध को उत्पादन फलन कहा जाता है । उत्पादन फलन हमें यह बतलाता है कि समय की एक निश्चित अवधि में inputs के परिवर्तन से उत्पादन आकार में किस प्रकार और कितनी मात्रा में परिवर्तन होता है।

सेम्युलसन के अनुसार- "उत्पादन फलन उस तकनीकी संबंध को कहते हैं जो यह बताता है कि इनपुट के समूह विशेष द्वारा कितनी मात्रा में उत्पादन किया जा सकता है। यह संबंध किसी दिए हुए तकनीकी ज्ञान के स्तर पर ही किया जा सकता है। "

इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि उपादानों input की मात्रा और उत्पादन output की मात्रा के भौतिक सम्बन्ध को उत्पादन फलन कहा जाता है। उत्पादन फलन केवल भौतिक मात्रात्मक सम्बन्ध पर आधारित है, इसमें मूल्यों का समावेश नहीं होता।

प्रो. लेफ्टविच के शब्दों में- ”उत्पादन फलन का अभिप्राय फर्म के उचित साधनों और प्रति समय इकाई वस्तुओं और सेवाओं के बीच का भौतिक सम्बन्ध है जबकि मूल्यों को छोड़ दिया जाये। "

सरल भाषा में यदि कहें तो उत्पादन फलन उत्पादन संभावनाओं की एक सूची होती है। 

गणितीय रूप में-

 P = f (A, B, C, D)

जहाँ P फर्म के उत्पादन तथा A, B, C तथा D विभिन्न उत्पत्ति के साधन हैं। यह फलन यह प्रदर्शित करता है कि किसी भी वस्तु का उत्पादन (P), उत्पादन के विभिन्न साधनों (A, B, C, D.. आदि) की मात्राओं पर निर्भर करता है।

उत्पादन फलन की मान्यताएँ (Assumptions of Production Function in hindi)-

उत्पादन फलन निम्न मान्यताओं पर आधारित होता है-

(1) किसी दिए हुए समय में तकनीकी ज्ञान का स्तर यथास्थिर रहता है अर्थात दिए हुए समय में उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता।
(2) फर्म समय विशेष में उत्पादन की कुशलता तकनीकी का प्रयोग करेगी, जबकि फर्म के लिए लागत व्यय दिया हुआ हो।
(3) उत्पादन के विभिन्न साधनों को छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है।
(4) उत्पादन फलन की एक मान्यता यह है कि उत्पादन इकाई के लिए लागत व्यय दिया हुआ होता है। अर्थात उत्पादन के साधनों की क़ीमतें स्थिर हैं।
(5) एक उत्पादन फलन केवल एक दिए हुए समय के लिए ही सत्य होता है।


उत्पादन फलन की व्याख्या  (Production function explanation in hindi)

उपर्युक्त सभी मान्यताओं को यदि हम ध्यान में रखेंगे तो किसी फर्म के काल्पनिक उत्पादन फलन को निम्न तालिका की सहायता से समझ सकते हैं-


इस तालिका में OX-अक्ष पर श्रम की इकाइयाँ तथा OY-अक्ष पर पूँजी की इकाइयाँ दी गयी हैं। हम तालिका में दी गयी श्रम और पूँजी की विभिन्न इकाइयों को मिलाकर प्राप्त उत्पादन की मात्राओं का अध्ययन करेंगे। आइये अब इस तालिका को समझने का प्रयास करते हैं। 

यदि श्रम की 3 इकाइयों और पूँजी की 5 इकाइयों के प्रयोग से उत्पादन किया जाए तो उत्पाद (output) की मात्रा 390 प्राप्त होती है। इसी तरह यदि श्रम की 5 इकाइयों और पूँजी की 2 इकाइयों के प्रयोग से उत्पादन किया जाय तो उत्पादन की मात्रा 320 प्राप्त होती है।


उत्पादन फलन की उपरोक्त तालिका से दो बातें स्पष्ट रूप से पता चलती हैं। पहली, जब श्रम तथा पूँजी की मात्रा एक साथ समान अनुपात में बढ़ाई जाती है। तो उत्पाद की मात्रा में भी इसी मात्रा में वृद्धि होती है। और जब किसी एक साधन की मात्रा को स्थिर रखकर दूसरे साधन की मात्रा को बढ़ाई जाती है तो उत्पादन में घटती हुई दर से वृद्धि होती है।

उत्पादन फलन के प्रकार (Types of Production Function in hindi )

उत्पादन फलन 2 प्रकार के होते हैं। आइये हम उद्देश्य व प्रभावों दोनों प्रकारों को हम जानने का प्रयास करेंगे।

(1) स्थिर अनुपात वाला उत्पादन फलन अथवा अल्पकालीन।
(2) परिवर्तनशील अनुपात वाला उत्पादन फलन अथवा दीर्घकालीन उत्पादन फलन

(1) स्थिर अनुपात वाला उत्पादन फलन (Fixed Proportional Production Funcrion)- 
जब उत्पादन के कुछ साधन की मात्राओं को स्थिर तथा अन्य साधनों की मात्राओं में वृद्धि की जाती है। तब उसे 'स्थिर अनुपात वाला उत्पादन फलन कहा जाता है। चूँकि साधनों को अल्पकाल में ही स्थिर रखा जा सकता है। दीर्घकाल में तो लगभग सभी साधन परिवर्तनशील हो जाते हैं। इसलिये इसे 'अल्पकालीन उत्पादन फलन' भी कहा जाता है। 

इसके अंतर्गत किसी एक साधन श्रम को परिवर्तनशील रखकर बाकी के सभी साधनों को स्थिर मान लिया जाता है। यदि अन्य साधनों को स्थिर रखते हुए कोई फर्म एक साधन (श्रम) की मात्रा को बढ़ाकर अपने उत्पादन में वृद्धि करती है तो स्थिर व परिवर्तनशील साधनों के बीच का अनुपात परिवर्तित हो जाता है।



(2) परिवर्तनशील अनुपात वाला उत्पादन फलन (Variable Proportional Production Function)-
जब उत्पादन के किसी भी साधन को स्थिर नहीं रखा जाता है यानि कि जब उत्पादन के सभी साधनों की मात्रा को परिवर्तनशील रखा जाता है। उसे 'परिवर्तनशील अनुपात वाला उत्पादन फलन' कहा जाता है। 

चूँकि दीर्घकाल में उत्पादन के सभी साधनों को परिवर्तित किया जा सकता है इसीलिये इसे 'दीर्घकालीन उत्पादन फलन' भी कहा जाता है। सभी साधनों के एक साथ परिवर्तित होने के कारण फर्म या प्लांट plant का पैमाना ही परिवर्तित हो जाता है। इसी कारण उत्पादन में होने वाले इस प्रकार के परिवर्तन के लिए 'पैमाने का प्रतिफल (Returns to scale)" वाक्यांश का प्रयोग भी किया जाता है।

 

उत्पादन फलन की विशेषताएं (Characteristics of Production Function in hindi)-

उत्पादन फलन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) उत्पादन फलन एक इंजीनियरिंग समस्या है ना कि आर्थिक समस्या- उत्पादन फलन उत्पत्ति के साधनों एवं उत्पादन के भौतिक मात्रात्मक सम्बन्ध को बताता है । वस्तुतः उत्पादन फलन एक अभियान्त्रिक धारणा (Engineering Concept) है ।

(2) उत्पादन फलन दी हुई टेक्नोलॉजी से सम्बन्धित होता है- उत्पादन फलन सदैव ही दी हुई तकनीकी अथवा तकनीकी ज्ञान की स्थिति के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है। यह तकनीकी ज्ञान को स्थिर मानकर चलता है। चूंकि तकनीकी ज्ञान के परिवर्तित होने से उत्पादन फलन अर्थात उत्पादन की मात्रा भी परिवर्तित हो जाती है।

(3) उत्पादन फलन कीमत निरपेक्ष होता है- उत्पादन फलन में उपादानों एवं उत्पादन की कीमतों का कोई समावेश नहीं होता। यह केवल भौतिक मात्रा से संबंध रखने वाला होता है। यानि कि उत्पादन फलन उपादानों एवं उत्पादन मूल्यों से पूर्ण स्वतन्त्र होता है। किन्तु किस वस्तु का कितनी मात्रा में उत्पादन करे? इस बात का निर्णय लेते समय कीमतों को अवश्य ध्यान में रखना पड़ता है।
(4) उत्पादन फलन समय से संबंधित होता है- उत्पादन फलन का सम्बन्ध किसी दिए हुए समय अर्थात किसी निश्चित समयावधि से होता है। एक समयावधि में एक उत्पादन फलन हो सकता है जो समय की अवधि परिवर्तित होने पर परिवर्तित हो सकता है।

(5) उत्पादन फलन प्रतिस्थापन की संभावनाओं को स्वीकारता है- उत्पादक किसी एक साधन के स्थान पर दूसरे साधन का प्रयोग कर सकता है। उदाहरणार्थः उत्पादक यदि चाहे तो काम पर लगाये गए किसी एक श्रमिक के स्थान पर मशीन को स्थानांतरित कर सकता है। 

(6) उत्पादन फलन स्थैतिक अर्थशास्त्र की विषय वस्तु है- चूँकि उत्पादन फलन में वस्तु और साधनों की कीमतों को स्थिर मान लिया जाता है। तकनीकी ज्ञान की एक दी हुई स्थिति होती है। तथा किसी एक दिए हुए समय में ही संबंध व्यक्त किये जाते हैं।
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