सामान्य बोलचाल की भाषा में, बाज़ार का अर्थ (bazar ka arth) उस स्थान विशेष से लगाया जाता है, जहाँ पर किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता एकत्रित होकर वस्तुओं के क्रय-विक्रय का कार्य करते हैं। जैसे- सब्ज़ी मंडी, कपड़ा बाज़ार या अनाज मंडी आदि। यानि कि बाज़ार के लिए निश्चित स्थान तथा ख़रीदने एवं बेचने वाले की उपस्थिति ज़रूरी है। अर्थशास्त्र की भाषा में बाज़ार का आशय इससे भी विस्तृत होता है। अर्थशास्त्र में बाज़ार से क्या अभिप्राय है? (bazar se kya abhipray hai?) विस्तार से जानने के लिए आप इस अंक के अंत तक बने रहिये।
Table of Contents :1.1. बाज़ार की परिभाषा2.1.1. स्थानीय बाज़ार (local market)2.2. समय के आधार पर बाज़ार
बाज़ार किसे कहते हैं? (Market meaning in hindi)
हम आपको बता दें कि अर्थशास्त्र दृष्टि (दृष्टिकोण) से बाज़ार के लिए किसी स्थान विशेष का होना ज़रूरी नहीं। अतः हम कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र में जिस क्षेत्र तक वस्तुओं की माँग और पूर्ति होती है। उस समस्त क्षेत्र को उन वस्तुओं का बाज़ार (market) कहते हैं।
बाज़ार से क्या आशय है? ( bazar se kya aashay hai?) जानने के लिए आइये हम कुछ अन्य शब्दों के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं -
सामान्य शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि- "अर्थशास्त्र में बाज़ार वह सम्पूर्ण क्षेत्र होता है जिसमें क्रेता व विक्रेता किसी वस्तु विशेष के क्रय-विक्रय हेतु निकट संपर्क में होते हैं।"
दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि- "आर्थिक दृष्टि से बाज़ार का अर्थ उस सम्पूर्ण क्षेत्र के अंतर्गत लिया जाता है जिसमें उस वस्तु के क्रेता व विक्रेता फैले हुए हों और उनके बीच आपसी प्रतिस्पर्धात्मक संपर्क हो।"
बाज़ार की परिभाषा (Definition of market in hindi)
बाज़ार से क्या आशय है? हमने उपरोक्त पंक्तियों के माध्यम से भलीभाँति समझ लिया है। किंतु अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अर्थशास्त्रियों ने कुछ विशिष्ट परिभाषाएं भी परिभाषित की हैं। आइये हम इन कुछ विशिष्ट परिभाषाओं को जानते हैं-
कूर्नो के अनुसार- "बाज़ार शब्द का अर्थ किसी स्थान विशेष से नहीं लिया जाता जहाँ सिर्फ़ वस्तुएँ ख़रीदी या बेची जाती हैं। बल्कि बाज़ार का अर्थ उस समस्त क्षेत्र से होता है जिसमें क्रेता व विक्रेता एक दूसरे के साथ इतने निकट संपर्क में होते हैं कि एक वस्तु की क़ीमत में सरलतापूर्वक व शीघ्रता से समान होने की प्रवृत्ति पायी जा सके।"
स्टोनियर तथा हेग के अनुसार- "अर्थशास्त्रियों ने बाज़ार को एक ऐसा संगठन कहा है जिसमें किसी वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता परस्पर निकट संपर्क में होते हैं।"
बेनहम के अनुसार- "कोई भी ऐसा क्षेत्र जिसके अंतर्गत क्रेता एवं विक्रेता प्रत्यक्ष व्यापारियों के द्वारा इस प्रकार एक दूसरे के निकट सम्पर्क में हों, कि बाज़ार के एक हिस्से में पाई जाने वाली क़ीमत दूसरे हिस्सों की क़ीमतों को प्रभावित करे। बाज़ार कहलाता है।"
चैपमैन के अनुसार- "बाज़ार शब्द का अर्थ किसी स्थान विशेष से नहीं होता है। बल्कि वह सदैव वस्तुओं और उनके क्रेताओं तथा विक्रेताओं से संबंधित होता है। जो एक दूसरे के साथ सीधी प्रतियोगिता करते हैं।"
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि "बाज़ार एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ न केवल वस्तु, क्रेता और विक्रेता होते हैं। बल्कि वे एक दूसरे से पूर्णतः निकट संपर्क में होते हैं। जिस कारण वस्तुओं की क़ीमत में समानता होने की परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है।" इन परिभाषाओं के बाद आइये जानते हैं कि बाज़ार की विशेषताएँ क्या हैं? (bazar ki visheshtayen kya hain?)
बाज़ार की विशेषताएँ Characteristics of market in hindi) | बाज़ार के प्रमुख तत्व
विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गयी परिभाषाओं के आधार पर Bazar ki pramukh visheshtaen बाज़ार की प्रमुख विशेषताएँ अथवा प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-
(1) एक वस्तु- बाज़ार का संबंध एक ही वस्तु से होना चाहिए। क्योंकि अर्थशास्त्र में जब हम बाज़ार शब्द का प्रयोग करते हैं तो एक ही प्रकार की वस्तु का होना तय माना जाता है। उदाहरणार्थ:- कपड़े का बाज़ार, चूड़ी का बाज़ार, सब्ज़ी का बाज़ार, अनाज का बाज़ार आदि।
(2) एक क्षेत्र- अर्थशास्त्र में बाज़ार शब्द का प्रयोग किसी क्षेत्र विशेष के लिए नहीं किया जाता है। बल्कि इसका प्रयोग एक ऐसे क्षेत्र के लिए किया जाता है जहाँ क्रेता और विक्रेता इस तरह फैले होते हैं कि उनमें आपसी प्रतियोगिता हो रही होती है।
(3) क्रेता और विक्रेता- बाज़ार में क्रेता व विक्रेता दोनों का ही होना आवश्यक है। क्योंकि क्रेता और विक्रेता के बग़ैर बाज़ार की कल्पना ही नहीं कि जा सकती। चाहे उनकी संख्या कितनी ही क्यों न हो। हम आपको बता दें कि यदि किसी क्षेत्र विशेष में एक क्रेता और एक विक्रेता ही मौजूद है। तब भी वह बाज़ार ही कहलायेगा।
(4) स्वतंत्र प्रतियोगिता- बाज़ार के लिए यह एक महत्वपूर्ण शर्त यह होनी चाहिए कि क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच स्वतंत्र प्रतियोगिता का होना आवश्यक हो। यानि कि कोई भी सौदा करते समय किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
(5) बाज़ार का पूर्ण ज्ञान- बाज़ार में वस्तुओं के मूल्यों में अंतर न हो इसलिए यह आवश्यक है कि क्रेताओं व विक्रेताओं को बाज़ार का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। अन्यथा बाज़ार में वस्तुओं को उचित मूल्य पर प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
(6) एक मूल्य- बाज़ार के अंदर क्रेताओं-विक्रेताओं के बीच जब आपसी प्रतियोगिता होती है। उनके बीच निकट संपर्क होता है। तब ऐसी स्थिति में वस्तुओं के मूल्यों में समानता होने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी प्रतियोगिता का होना, एक अच्छे बाज़ार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा सकता है।
इस तरह हमने बाज़ार को सामान्य रूप से जाना और बाज़ार की विशेषताओं को भी भली भांति समझने का प्रयास किया। आइये अब हम बाज़ार का वर्गीकरण (bazar ka vargikaran) किस आधार पर किया जाता है। जानने का प्रयास करते हैं।
बाज़ार के विभिन्न रूप (Diffrent forms of market in hindi)
अर्थशास्त्रियों ने बाज़ार का विभिन्न तत्वों के आधार पर वर्गीकरण किया है। विभिन्न तत्वों के आधार पर बाज़ार का वर्गीकरण (Bazar ka vargikaran) निम्नांकित है-
(1) क्षेत्र के आधार पर
(2) समय के आधार पर
(3) प्रतियोगिता के आधार पर
(1) क्षेत्र के आधार पर बाज़ार | Market classification by region in hindi
बाज़ार को क्षेत्र के आधार पर 4 भागों में विभक्त किया जाता है। आइये क्षेत्र के आधार पर बाज़ार का वर्गीकरण (kshetra ke adhar par bazar ka vargikaran) जानते हैं जो कि निम्नानुसार है-
(1) स्थानीय बाज़ार (local market) -
जब किसी वस्तु का क्रय व विक्रय एक निश्चित स्थान अथवा एक निश्चित क्षेत्र तक ही सीमित होता है। तो उस वस्तु के बाजार को स्थानीय बाजार local market कहा जाता है। इस तरह के बाज़ार में केवल उन्हीं वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है जो प्रायः उसी स्थान विशेष में उत्पादित होती हैं। इसमें 2 प्रकार की वस्तुएँ होती है। पहली, शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तएं जैसे- फल, दूध, दही, सब्ज़ी इत्यादि। और दूसरी, अधिक स्थान घेरने वाली वस्तुएँ जैसे- रेत, ईंट, पत्थर इत्यादि।
(2) प्रादेशिक बाज़ार (Regional market) -
जब किसी वस्तु के क्रेता-विक्रेता एक विशेष प्रदेश या बड़े क्षेत्र तक फैले होते हैं। तो इस बाजार को प्रादेशिक बाज़ार Regional market कहा जाता है। प्रादेशिक बाज़ार में वस्तुओं की माँग व पूर्ति किसी प्रदेश विशेष की सीमा तक ही फैली होती है। जैसे- लाख की चूड़ियों का बाजार राजस्थान तक ही सीमित है। पगड़ी और साफे का बाज़ार राजस्थान व पंजाब तक ही सीमित है।
(3) राष्ट्रीय बाज़ार (National market) -
जब किसी वस्तु की माँग सम्पूर्ण देश में होती है। अर्थात जब वस्तुओं के क्रेता-विक्रेता पूरे राष्ट्र में फैले होते हैं। तब उन वस्तुओं के बाज़ार को राष्ट्रीय बाज़ार national market कहा जाता है।
(4) अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार (International market) -
जब किसी वस्तु की माँग पूरे विश्व में होती है अर्थात उस वस्तु के क्रेता-विक्रेता सम्पूर्ण विश्व मे फैले होते हैं। तो ऐसी वस्तु के बाज़ार को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार कहा जाता है। जैसे- सोना, चाँदी, कपास, पटसन, पेट्रोल इत्यादि।
(2) समय के आधार पर बाज़ार | Market classification by time in hindi
समय के आधार पर बाज़ार को 4 भागों में विभक्त किया जाता है। समय के आधार पर बाज़ार का वर्गीकरण (samay ke adhar par bazar ka vargikaran) करते समय इस बात का अध्ययन किया जाता है कि किन्हीं वस्तुओं की माँग के अनुरूप पूर्ति को समायोजित करने में उत्पादक अथवा विक्रेता को कितना समय लगता है। प्रो. मार्शल के द्वारा समय के आधार पर बाज़ार के निम्नलिखित चार प्रकार बताए गए हैं।
(1) अति अल्पकालीन बाज़ार (Very short period market) -
अति अल्पकालीन बाज़ार उन वस्तुओं का होता है जिनकी पूर्ति को उनकी माँग के अनुरूप परिवर्तित नहीं किया जा सकता। अन्य शब्दों में कहें तो इस बाज़ार में समय इतना कम होता है कि वस्तु की पूर्ति को उसकी माँग के अनुसार घटाना-बढ़ाना संभव नहीं होता।
अर्थात जब किसी वस्तु की पूर्ति, उसके उपलब्ध स्टॉक तक ही सीमित होती है तब उस बाज़ार को अति अल्पकालीन बाज़ार कहा जाता है। उदाहरणार्थ- दूध, दही, मछली, मांस, सब्ज़ी आदि का बाज़ार। इस तरह अति अल्पकालीन बाज़ार की अवधि में वस्तुओं के मूल्य को बाज़ार मूल्य कहा जाता है।
(2) अल्पकालीन बाज़ार (short period market) -
जब किसी वस्तु की पूर्ति को एक निश्चित सीमा तक घटाया या बढ़ाया जा सकता है। तो वह अल्पकालीन बाज़ार कहलाता है। यहाँ हम आपको एक विशेष बात बता दें कि वस्तु की पूर्ति को बढ़ाने के लिए उत्पादक के पास इतना समय नहीं होता कि वह अपनी उत्पादन क्षमता में परिवर्तन कर सके। यानि कि इसके लिए यंत्रों को परिवर्तित कर सके।
केवल वर्तमान साधनों का उपयोग कर पूर्ति में थोड़ा-बहुत फ़ेरबदल कर सकता है किंतु माँग के अनुरूप नहीं। इसलिए अल्पकालीन बाज़ार में वस्तुओं की क़ीमत के निर्धारण में पूर्ति की अपेक्षा माँग का प्रभाव अधिक रहता है।
(3) दीर्घकालीन बाज़ार (long period market) -
जब समय इतना पर्याप्त हो कि पूर्ति को उसकी मांग के अनुसार घटाया या बढ़ाया जा सके। तो वह बाज़ार दीर्घ कालीन बाज़ार कहलाता है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो उत्पादक के पास इतना समय अवश्य होता है कि माँग में बढ़ोत्तरी होने पर, उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए यंत्रों में वृद्धि भी कर सकता है। अथवा माँग में कमी होने पर उत्पादन क्षमता में उचित फेरबदल कर सकता है।
दीर्घकाल में वस्तु के मूल्य के निर्धारण में माँग की अपेक्षा पूर्ति का ही अधिक प्रभाव देखा जाता है। इस तरह दीर्घकालीन बाज़ार में वस्तुओं के मूल्य को सामान्य मूल्य कहा जाता है।
(4) अति दीर्घकालीन बाज़ार (Very long period market) -
जब बाज़ार में माँग एवं पूर्ति दोनों में अत्यधिक परिवर्तन होते हैं। साथ ही उनके समायोजन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। ऐसे बाज़ार को अति दीर्घकालीन बाज़ार कहा जाता है। जनसंख्या में वृद्धि, उपभोक्ताओं की रुचि, फ़ैशन आदि में परिवर्तन होने के कारण ही, माँग में बड़े परिवर्तन होते हैं। ठीक उसी तरह उत्पादकता में परिवर्तन, नई तकनीक का विकास आदि, पूर्ति में होने वाले बड़े परिवर्तन का कारण बनते हैं। इसमें इतना अधिक समय होता है कि उत्पादक, उत्पत्ति के साधनों में आधारभूत परिवर्तन करने में सक्षम होता है।
(3) प्रतियोगिता के आधार पर बाज़ार | Market on the basis of compitition in hindi)
प्रतियोगिता के आधार पर बाज़ार का वर्गीकरण (pratiyogita ke adhar par bazar ka vargikaran) देखें तो इसे निम्न 3 रूपों में विभाजित किया गया है।
(1) पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार | पूर्ण बाज़ार | Perfect Market
जब बाज़ार में किसी वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है। तो उस बाज़ार को पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार अथवा पूर्ण बाज़ार कहा जाता है। इस तरह के बाज़ार में क्रेताओं-विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है जहाँ इन क्रेताओं और विक्रेताओं को बाज़ार का पूर्ण ज्ञान होता है।
बाज़ार में फ़र्मों के प्रवेश करने या बाहर निकलने पर कोई भी प्रतिबंध नहीं होता। उत्पादन के साधन पूर्ण गतिशील होते हैं तथा विक्रय एवं परिवहन पर लगने वाली लागतें नगण्य होती हैं। पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार क्या है? पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की विशेषताएँ जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
(2) अपूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार | अपूर्ण बाज़ार | Imperfect market
जब किसी बाज़ार में पूर्ण प्रतियोगिता का अभाव पाया जाता है। तब वह बाज़ार अपूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार अथवा अपूर्ण बाज़ार कहलाता है। इस बाज़ार में क्रेताओं व विक्रेताओं की संख्या कम होती है। जिस कारण उन्हें बाज़ार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता। जिसका परिणाम यह होता है कि बाज़ार में प्रमुख रूप से वस्तु-विभेद पाया पाया जाता है। अपूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएँ जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
(3) एकाधिकारी प्रतियोगिता | एकाधिकार | Monopoly
एकाधिकारी बाज़ार, बाज़ार की उस दशा को कहते हैं जिसमें एकाधिकारी किसी वस्तु विशेष का स्वयं अकेला उत्पादक होता है। साथ ही उस वस्तु विशेष की निकटतम स्थानापन्न वस्तु का भी कोई उत्पादक नहीं होता है इस प्रकार वस्तु की पूर्ति पर उसका पूर्ण नियंत्रण होता है।
इसमें प्रतियोगिता का अभाव होता है। अतः एकाधिकारी अपनी वस्तु की क़ीमत अलग-अलग व्यक्तियों से, अलग अलग स्थानों पर अलग अलग वसूल कर सकता है। इस तरह एकाधिकारी का, अपनी वस्तु की पूर्ति तथा क़ीमत पर पूर्ण नियंत्रण होता है।
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