किसी भी अर्थव्यवस्था में बाज़ार का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। बाज़ार के बिना किसी भी अर्थव्यवस्था की कल्पना ही नहीं कि जा सकती। इसलिए अर्थव्यवस्था के विकास के लिए यह भी आवश्यक होता है कि उस देश के बाज़ार का विस्तार जितना संभव हो सके अवश्य हो। ऐसे अनेक कारक होते हैं जो बाज़ार को विशेष रूप से प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। इन्हीं तत्वों से बाज़ार के विस्तार को ताक़त मिलती है और बाज़ार पहले से और भी सुदृढ़ होता चला जाता है।
हम आज इस अंक में बाजार को प्रभाबित करने वाले तत्व क्या हैं? जानेंगे। किसी भी बस्तु का बाज़ार या तो संकुचित हो सकता है अथवा विस्तृत हो सकता है। बात करें संकुचित बाज़ार की तो बाज़ार संकुचित तब होने लगता है जब उस बाज़ार में वस्तु विशेष की माँग एक सीमित क्षेत्र में हो रही हो। ठीक इसके विपरीत विस्तृत बाज़ार की बात करें तो कोई भी बाज़ार विस्तृत तब होता है जब उस बाज़ार में किसी वस्तु विशेष की माँग एक बड़े क्षेत्र यानि कि विस्तृत क्षेत्र में होने लगती है।
किसी भी बाज़ार के विस्तार को अनेक तत्व प्रभावित करते हैं। बाज़ार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्वों (bazar ko prabhavit karne vale tatva) को प्रमुख रुप से 2 भागों में विभाजित किया जाता है।
(अ) वस्तु की विशेषताओं से संबंधित तत्व एवं
(ब) देश की आंतरिक दशाओं से संबंधित तत्व।
बाज़ार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्व (Bazar ke vistar kp prabhavit karne wale karak) के अंतर्गत इन दोनों ही भागों को विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं।
(अ) वस्तु की विशेषताओं से संबंधित तत्व
वस्तु की विशेषताओं से संबंधित तत्व जो कि बाज़ार में विस्तार को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। निम्नानुसार होते हैं-
(1) व्यापक माँग- किसी भी बाज़ार के विस्तृत होने के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि उस वस्तु की माँग, व्यापक स्तर पर होनी चाहिए। अर्थात वस्तुओं की माँग जितनी अधिक तथा व्यापक होगी उनका बाज़ार भी उतना ही व्यापक होगा। यानि कि उस वस्तु का बाज़ार उतना ही विस्तृत होगा।
(2) वहनीयता- बाज़ार के विस्तार के लिए वस्तु में वहनीयता का गुण होना आवश्यक है। जिन वस्तुओं का भार कम तथा मूल्य अधिक होता है। उन वस्तुओं का बाज़ार अधिक विस्तृत होता है। अन्य शब्दों में कहें तो जिन वस्तुओं एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से ले जाया जा सके। ऐसी वस्तुओं का बाज़ार विस्तृत होता है। उदाहरण के लिए, सोना, चाँदी, हीरे जवाहरात आदि। वहीं दूसरी ओर अधिक भार वाली वस्तुओं को देखें तो भार अधिक होने के कारण उनका बाज़ार संकीर्ण होता है। साथ ही क़ीमत भी अपेक्षाकृत कम होती है। उदाहरण के लिए, ईंट, पत्थर, रेत आदि।
(3) टिकाऊपन- ऐसी वस्तुएँ जो टिकाऊ होती हैं यानि कि ज़्यादा से ज़्यादा चलने वाली होती हैं ऐसी वस्तुओं का बाज़ार विस्तृत होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसी वस्तुएँ जिन्हें अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। ऐसी वस्तुओं का बाज़ार विस्तृत होता है। जैसे- कपड़ा, यंत्र, सोना-चाँदी, आदि। इसके विपरीत यदि वस्तुएँ शीघ्र नष्ट होने वाली हों तो इन वस्तुओं का बाज़ार विस्तृत न होकर संकीर्ण होता है। जैसे- दूध, मछली, सब्ज़ी, अंडे आदि।
(4) पूर्ति की मात्रा- वस्तुओं की पूर्ति उनकी माँग के अनुरूप कर ली जाती है। ऐसी वस्तु का बाज़ार व्यापक स्तर पर होता है। किंतु जिन वस्तुओं की पूर्ति को अधिक मात्रा में बढ़ाना संभव नहीं होता। उनका बाज़ार संकुचित हो जाता है।
(5) नमूने एवं ग्रेड की सुविधा- ऐसी वस्तुएँ जिनका ग्रेड या वर्ग अथवा उनके नमूने बनाये जाते हों। उन वस्तुओं का बाज़ार विस्तृत होता है। जैसे- गेहूँ, मशीन, कपास, दवाइयाँ, कपड़ा आदि। इसके विपरीत सब्ज़ी, मछली, दूध आदि का ग्रेडिंग नहीं किया जा सकता। इसलिए इन वस्तुओं का बाज़ार अपेक्षाकृत संकुचित होता है।
(6) क़ीमत स्थिरता- जिन वस्तुओं की क़ीमतों में स्थिरता प्रामाणिक तौर पर पायी जाती है। उनका बाज़ार अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत पाया जाता है। जैसे- सोना व चाँदी। लेकिन इसके विपरीत स्थिरता न रखने वाले मूल्य की वस्तुओं का बाज़ार संकुचित ही रह जाता है।
(7) स्थानापन्न वस्तुओं का ना होना- जिन वस्तुओं की स्थानापन्न वस्तुएँ पर्याप्त मात्रा में बाज़ार में उपलब्ध होती हैं। उन वस्तुओं का बाज़ार संकुचित होता है। चूँकि क्रेता इन वस्तुओं के न मिलने पर तुरंत इसकी स्थानापन्न वस्तुओं को ख़रीदकर अपना काम निकाल लेता है। लेकिन यदि वस्तुओं की कोई भी निकट स्थानापन्न वस्तुएँ न हों तो ऐसी वस्तुओं का मार्केट विस्तृत हो जाता है।
(ब) देश की आंतरिक दशाओं से संबंधित तत्व
(1) परिवहन एवं संचार के साधन- अगर देश में परिवहन व संचार के साधन जैसे रेल, सड़क, वायुमार्ग, जलमार्ग आदि पूर्णतः विकसित हैं तो ऐसे देश में वस्तुओं का बाज़ार विस्तृत होता है।
(2) कुशल श्रम विभाजन- किसी देश में जब कुशल श्रम विभाजन होता है। तो वहाँ बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन शुरू हो जाता है। जिससे उत्पादन लागत में कमी आने लगती है। सूक्ष्म से सूक्ष्म और एक से बढ़कर एक आकर्षक वस्तुओं का उत्पादन संभव होने लगता है। जिसका परिणाम यह होता है कि उन वस्तुओं का बाज़ार अधिक विस्तृत हो जाता है।
(3) मज़बूत बैंकिंग व्यवस्था- किसी भी देश में बाज़ार के विस्तार के लिये सुरक्षित व मज़बूत बैंकिग व्यवस्था का होना अत्यंत आवश्यक माना जाता है। क्योंकि यदि बैंकिंग व्यवस्था सुदृढ़ होगी तो देश में वस्तुओं का बाज़ार सामान्य से अधिक विस्तृत होगा।
(4) सरकारी नीतियाँ- सरकारी नीतियाँ भी उस देश के बाज़ार को सीधे-सीधे प्रभावित करती हैं। यदि सरकार ऐसी नीतियाँ लागू करती हैं जिसके अंतर्गत वस्तुओं के निर्यात पर कर न लगाना, निर्यातकर्ताओं को सुविधाएं व प्रोत्साहन देना आदि शामिल हो। तो निश्चित रूप से उस देश मे वस्तुओं का बाज़ार अधिक विस्तृत होगा।
(5) व्यापार की वैज्ञानिक तकनीक- व्यापार करने का वैज्ञानिक तरीका यानि कि नयी व उच्च तकनीक का इस्तेमाल हो जैसे कि आकर्षक विज्ञापनों आदि का प्रयोग हो रहा हो तो ऐसी स्थिति में दूर-दूर तक वस्तुओं का बाज़ार फैलने लगता है। अर्थात व्यापार की नई-नई तकनीकों के इस्तेमाल होने से बाज़ार का अपेक्षाकृत विस्तार होता है।
(6) शांति एवं सुरक्षा- किसी भी बाज़ार के बेहतर विकास व विस्तार के लिए यह आवश्यक है कि उस देश में शांति व सुरक्षा का वातावरण विद्यमान हो। वर्ना शांति व सुरक्षा के अभाव में विस्तार का विस्तार होने के बजाय संकुचन होने लगता है।
(7) व्यापारियों का ईमानदार होना- यदि बाज़ार में व्यापारी ईमानदार व प्रतिष्ठित हैं तो क्रेता उन पर विश्वास करने लगते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि उनसे माल ख़रीदने क्रेता दूर-दूर से आने लगते हैं। यानि कि व्यापारियों की ईमानदारी व अच्छा व्यवहार, दोनों ही बाज़ार में विस्तार के लिए सहायक सिद्ध होते हैं।
इस तरह आपने बाज़ार के विस्तार को प्रभावित करने वाले घटक (Bazar ke vistar ko prabhaavit karne vale ghatak) कौन-कौन से होते हैं? विस्तारपूर्वक जाना। उपरोक्त बिंदुओं से स्पष्ट है कि बाजार के विस्तार के लिए इन तत्वों का होना किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक होता है। हमारा यह अंक "बाज़ार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्व" आपके अध्ययन के लिए सहायक सिद्ध हुआ हो तो इसे अपने दोस्तों को ज़रूर शेयर करें।
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