सकारात्मक और आदर्शात्मक अर्थशास्त्र (sakaratmak aur adarshatmak arthshastra) को समझने के पहले आइये हम समष्टि अर्थशास्त्र के मुख्य तीन उद्देश्यों को समझने का प्रयास करते हैं। क्योंकि इन्हीं उद्देश्यों को समझने के बाद आप सकारात्मक तथा आदर्शात्मक अर्थशास्त्र का अर्थ (sakaratmak tatha adarshatmak arthshastra ka arth) समझ पायेंगे।
सकारात्मक और आदर्शात्मक अर्थशास्त्र |
दूसरा है देश के अंदर रोज़गार के अवसरों का अधिक से अधिक सृजन करके उच्च रोज़गार का स्तर क़ायम किया जाना ताकि अनैच्छिक बेरोज़गारी को कम किया जा सके।
तीसरा यह कि क़ीमत स्तर को तेज़ी से परिवर्तित होने से बचाये रखना। यानि कि कीमत स्तर को जितना संभव हो सके, स्थिर रखने की कोशिश करना।
सकारात्मक अर्थशास्त्र एवं आदर्शात्मक अर्थशास्त्र (Positive economics and Normative economics in hindi)
हम आपको बता दें कि इन उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अर्थव्यवस्था को कुछ केंद्रीय समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं को हल करने के लिए अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्रियाविधि और विभिन्न तकनीकी अपनायी जाती हैं।
अब सवाल यह उठता है कि इन विभिन्न क्रियाविधियों में कौन सी श्रेष्ठ होगी जिससे देश के नागरिकों का कल्याण हो। इस बात का विश्लेषण करने के लिए सकारात्मक व आदर्शात्मक अर्थशास्त्र (sakaratmak v adarshatmak arthshastra) की आवश्यकता होती है। जिसे सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण व आदर्शात्मक विश्लेषण भी कहा जाता है।
सकारात्मक अर्थशास्त्र (Positive economics in hindi)
सकारात्मक अर्थशास्त्र (sakaratmak arthshastra) किसी आर्थिक समस्या की वास्तविक स्थिति अर्थात क्रियाविधियां किस प्रकार काम करती हैं, को व्यक्त करता है। यह समस्या का हल कैसे निकाला जाए, नहीं बताता है। इसमें केवल यह बताता जाता है कि what is "क्या है?" अर्थात यह केवल वस्तुस्थिति के बारे में बताता है। इसका सरोकार इस बात से कतई नहीं होता कि "क्या होना चाहिए?" यानि कि अर्थशास्त्र के किसी भी क्रियाविधि की अच्छाई या बुराई अथवा अनुकूल या प्रतिकूल होने से सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण का कोई भी संबंध नहीं होता।
आदर्शात्मक अर्थशास्त्र (Normative economics in hindi)
आदर्शात्मक आर्थिक विश्लेषण (adarshatmak arthik vishleshan) अथवा आदर्शात्मक अर्थशास्त्र (adarshatmak arthshastra) में हम इस बात का अध्ययन करते हैं कि ये क्रियाएँ हमारे लिए उपयुक्त हैं भी या नहीं अथवा यह किस प्रकार की होनी चाहिए।
सीधे शब्दों में कहें तो आदर्शात्मक (वास्तविक) अर्थशास्त्र का संबंध "क्या होना चाहिए?" अर्थात कोई समस्या अथवा उद्देश्य प्राप्त करने केे लिए क्रियाविधि "क्या होनी चाहिए?" से होता है। इस प्रकार आदर्शात्मक अर्थशास्त्र में आर्थिक क्रियाओं की अनुकूलता अथवा प्रतिकूलता से संबंधित विश्लेषण किया जाता है।
सकारात्मक अर्थशास्त्र पर आधारित कथन मानता है कि अर्थव्यवस्था में वास्तव में क्या हो रहा है।अर्थशास्त्र सकारात्मक होने के साथ-साथ आदर्शात्मक भी होता है।
अतः हम इस अंक में सकारात्मक व आदर्शात्मक अर्थशास्त्र का अर्थ (sakaratmak v adarshatmak arthshastra ka arth) एवं अर्थशास्त्रियों द्वारा इनके पक्ष व विपक्ष में दिए गए विचारों का अध्ययन करेंगे -
सकारात्मक अर्थशास्त्र के पक्ष में तर्क (Arguments in favor of positive economics in hindi)
सकारात्मक अर्थशास्त्र के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं -
(1) अर्थशास्त्र का तार्किक आधार -
वास्तव में देखा जाए तो अर्थशास्त्र एक विज्ञान है। इसीलिए अन्य विज्ञान विषयों की तरह अर्थशास्त्र का आधार भी तर्कयुक्त (Logically) होना चाहिए। ऐसे में आदर्शात्मक स्वरूप को स्वीकारना यानि भावनाओं को आधार मानना कहलायेगा। अतः अर्थशास्त्र की वैज्ञानिक नींव तभी मज़बूत होगी जब उसे सकारात्मक विज्ञान मानकर अनुकूलता-प्रतिकूलता या आदर्शात्मक विचारों से दूर रखा जाए।
(2) अर्थशास्त्र के विकास हेतु -
आप निश्चित रूप से यह देखते हैं कि जब आप "क्या है?" से संबंधित क्रियाविधि का विश्लेषण करते हैं तो ऐसी स्थिति में मतभेदों की संभावना कम होती है। किन्तु जब आप "क्या होना चाहिए?" पर विश्लेषण करना चाहते हैं तब अनेक मतभेद यानि कि वाद-विवाद की स्थिति बन जाती है। इस तरह के मतभेद किसी भी विषय अथवा विश्लेषण को उलझा कर विकास में बाधा उत्पन करते हैं। अतः यही उपयुक्त होगा कि अर्थशास्त्र के विकास हेतु वाद-विवाद के पक्ष में न जाकर विशुद्ध सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण किया जाए।
(3) भ्रम की स्थिति से बचने के लिए -
यदि अर्थशास्त्र के आदर्शात्मक स्वरूप को साथ-साथ स्वीकार कर लिया जाए तो अर्थशास्त्रियों को यह भी बताना होगा कि वह क्रियाविधि अनुकूल है या नहीं। अथवा यह विधि "किस प्रकार सम्पन होनी चाहिए?" आदि के संबंध में अपने विचार देना होगा। जिस कारण उसका कार्य क्षेत्र बढ़ जाएगा। और यदि मौन रहा तो भ्रामक स्थिति उत्पन हो जाएगी। इसीलिये भ्रम की स्थिति से बचने के लिए सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण यानि कि सकारात्मक अर्थशास्त्र की अवधारणा (sakaratmak arthshastra ki avdharna) ज़्यादा उपयुक्त है।
(4) श्रम विभाजन लागू होने का तर्क -
किसी भी अर्थशास्त्री को अपना कार्य क्षेत्र, केवल कारण एवं परिणाम के संबंधों में आर्थिक विश्लेषण तक ही सीमित रखना चाहिए। कार्यविधि अनुकूल होगी या नहीं? यह प्रश्न राजनीतिज्ञों या अन्य लोगों पर छोड़ देना चाहिए। क्योंकि यदि अर्थशास्त्री सभी पक्षों पर कार्य करने लगेगा तो अपना कार्य कुशलतापूर्वक नहीं कर पायेगा।
आदर्शवादी अर्थशास्त्र के पक्ष में तर्क (Arguments in favor of normative economics in hindi)
आदर्श आर्थिक विश्लेषण या आदर्शवादी अर्थशास्त्र के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये गए-
(1) मनुष्य तार्किक व भावुक होता है -
अर्थशास्त्र की विषय वस्तु जड़ पदार्थ नहीं होती है बल्कि प्रमुख रूप से मानवीय व्यवहार के आस पास घूमती है। और मनुष्य की आदत होती है कि वह तार्किक होने के साथ भावुक भी होता है। अतः यदि मानव व्यवहार का आर्थिक विश्लेषण करना हो तो केवल सकारात्मक ही नहीं बल्कि आदर्शात्मक विश्लेषण यानि कि दोनों ही पहलुओं से करना चाहिए।
(2) श्रम विभाजन का तर्क ग़लत -
चूँकि सकारात्मक दृष्टिकोण के अंतर्गत यह कहा जाता है कि अर्थशास्त्री को विश्लेषण के कारण व परिणाम तक ही सीमित रहना चाहिए। विश्लेषण में प्रयुक्त कार्यविधि अनुकूल होगी अथवा प्रतिकूल होगी। यह प्रश्न राजनीतिज्ञों या अन्य लोगों पर छोड़ देना चाहिए। लेकिन हम बता दें कि ऐसा करने पर श्रम व पूँजी की बचत नहीं बल्कि दोनों का ही अपव्यय होगा। अन्य व्यक्तियों को यह जानने के लिये कि कार्यविधि अनुकूल है या नहीं। पुनः उस विश्लेषण से संबंधित कार्यविधि को नये सिरे से समझना होगा। जो कि एक अर्थशास्त्री ही इस परिस्थिति को समझने के लिए ज़्यादा सक्षम साबित होगा।
(3) सामाजिक कल्याण का उद्देश्य -
यदि किसी भी अर्थशास्त्री को सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से कार्य करना है तो उसे निश्चित तौर पर उन आदर्शात्मक पहुलओं को ध्यान में रखना होगा जो समाज के हित में हों। चूँकि अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान भी है। अतः यह ज़रूरी हो जाता है कि सामाजिक कल्याण में वृद्धि के दृष्टिकोण से उस क्रियाविधि की अनुकूलता अथवा प्रतिकूलता बतायी जाए। सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए उसी तरह नीति या सुझाव दिए जाएं। वरन अर्थशास्त्र एक नीरस विषय बनकर रह जायेगा।
(4) सकारात्मक अर्थशास्त्र पूर्णतः वस्तुगत नहीं -
देखा जाए तो किसी भी आर्थिक विश्लेषण में उस सीमा तक वस्तुगत नहीं रह सकता जितना कि एक वैज्ञानिक विशुद्ध विज्ञानों में रहता है। दरअसल अर्थशास्त्र में मानव व मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है ना कि निर्जीव वस्तुओं का। उदाहरणार्थः समाजवादी विचारधारा वाला अर्थशास्त्री, अर्थशास्त्र की क्रियाविधि करते समय श्रम के विचार में पक्ष रखता है। जबकि पूँजीवादी विचारधारा रखने वाला अर्थशास्त्री साहसी व निवेशकों के पक्ष में अपने विचार रखता है।
(5) आर्थिक नियोजन का प्रयोग -
आधुनिक समय मे आर्थिक नियोजन का प्रयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। जो आर्थिक विश्लेषण के आदर्शात्मक पहलू की महत्ता को सिद्ध करता है।
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन के आधार पर निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि किसी भी अर्थव्यवस्था के केंद्रीय समस्या के आर्थिक विश्लेषण में अनेक सकारात्मक एवं आदर्शात्मक पहलू होते हैं जिनका निकट संबंध होता है। अर्थशास्त्री द्वारा किसी एक पहलू की पूर्णतः उपेक्षा करके दूसरों को समझ पाना संभव नहीं होता है। अतः अर्थशास्त्र सकारात्मक होने के साथ-साथ आदर्शात्मक भी होता है।
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