किसी वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति की मात्रा में होने वाले परिवर्तन की दर को पूर्ति की लोच (Elasticity of supply) कहा जाता है। इसे पूर्ति की क़ीमत लोच (purti ki kimat loch) भी कहते हैं।
हमने पिछले अंक में देखा था कि पूर्ति का नियम, किसी वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप उसकी पूर्ति में होने वाले परिवर्तन की दिशा को बताता है। किन्तु पूर्ति का नियम यह बताने में असमर्थ होता है कि वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरुप वस्तु की पूर्ति में कितना परिवर्तन होगा? परिवर्तन की इसी दर को पूर्ति की लोच कहा जाता है।
सही मायने में कहा जाए तो पूर्ति की लोच की धारणा यह बताती है कि किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होने पर उस वस्तु की पूर्ति में होने वाला परिवर्तन किस दर से होगा। अर्थात किसी वस्तु की क़ीमत में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप, उसकी पूर्ति में जिस दर से परिवर्तन होता है, उसे पूर्ति की लोच (purti ki loch) कहा जाता है।
Table of Contents :1.2.1. लोचदार पूर्ति1.2.2. अधिक लोचदार पूर्ति1.2.3. पूर्णतया लोचदार पूर्ति1.2.4. बेलोचदार पूर्ति1.2.5. पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति
पूर्ति की लोच किसे कहते हैं (purti ki loch kise kahte hain?)
किसी वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति की मात्रा में होने वाले परिवर्तन की दर को पूर्ति की लोच (Elasticity of supply) कहा जाता है। इसे पूर्ति की क़ीमत लोच (purti ki kimat loch) भी कहा जाता है।
इसे es से दर्शाया जाता है। गणितीय रूप में पूर्ति की लोच का सूत्र निम्न रूप से दर्शाया जाता है -
पूर्ति की लोच की परिभाषा (purti ki loch ki paribhasha)
पूर्ति की लोच की कुछ परिभाषाएं (purti ki loch ki paribhashayein) निम्न हैं -
मार्शल के अनुसार - 'पूर्ति की लोच से अभिप्राय क़ीमत में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति की मात्रा में होने वाले परिवर्तन से होता है।'
लिप्से के अनुसार - 'पूर्ति की लोच, उस दर के निरपेक्ष मूल्य को दर्शाती है जिसे हम पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन को क़ीमत में हुए प्रतिशत परिवर्तन से भाग देकर प्राप्त करते हैं।'
सेम्यूलसन के अनुसार - 'पूर्ति की लोच, क़ीमत में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति में होने वाले परिवर्तन की प्रतिक्रिया की मात्रा कहलाती है।'
पूर्ति की लोच के प्रकार (Types of elasticity of supply in hindi)
वस्तुओं की क़ीमतों में परिवर्तन से सभी वस्तुओं की पूर्ति में एकसमान दर से परिवर्तन नहीं होता है। कुछ वस्तुओं की क़ीमत में परिवर्तन से उसकी पूर्ति में बहुत अधिक परिवर्तन होता है तो कुछ वस्तुओं में अपेक्षाकृत कम भी होता है। यानि कि हम कह सकते हैं कि कुछ वस्तुओं की पूर्ति की लोच अधिक होती है तो कुछ वस्तुओं की पूर्ति की लोच कम होती है। इस आधार पर पूर्ति की लोच को निम्न पांच प्रकारों में बांटा गया है -
1. लोचदार पूर्ति (Elastic supply)
2. अधिक लोचदार पूर्ति (Highly elastic supply)
3. पूर्णतया लोचदार पूर्ति (Perfectly elastic supply)
4. बेलोचदार पूर्ति (Inelastic supply)
5. पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति (Perfectly inelastic supply)
(1) लोचदार पूर्ति (Perfectly Elastic Supply in hindi)
यदि किसी वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन के अनुपात में ही उसकी पूर्ति में परिवर्तन होता है। तब ऐसी वस्तु की पूर्ति, लोचदार पूर्ति (lochdar purti) कहलाती है। उदाहरण के लिए यदि किसी वस्तु की क़ीमत में 10% की वृद्धि हुई जिससे उसकी पूर्ति में भी 10% की ही वृद्धि हो जाती है तब उसे लोचदार पूर्ति कहेंगे।
चित्र में जब वस्तु की क़ीमत OP है तब वस्तु की पूर्ति OQ है। जब वस्तु की क़ीमत OP1 हो जाती है तब वस्तु की पूर्ति बढ़कर OQ1 हो जाती है। चित्र से स्पष्ट है कि वस्तु की बढ़ी हुई क़ीमत तथा वस्तु की बढ़ी हुई पूर्ति एक दूसरे के बराबर हैं। अतः पूर्ति की लोच, इकाई के बराबर है।
(2) अधिक लोचदार पूर्ति (Highly elastic supply in hindi)
जब वस्तु की क़ीमत में थोड़े से परिवर्तन के फलस्वरूप, उसकी पूर्ति में बहुत अधिक परिवर्तन होता है तब उसे अत्यधिक लोचदार पूर्ति (atyadhik lochdar purti) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, वस्तु की पूर्ति में होने वाला आनुपातिक परिवर्तन, वस्तु की क़ीमत होने वाले आनुपातिक परिवर्तन से बहुत अधिक होता है।
चित्र में जब वस्तु की क़ीमत OP है तब वस्तु की पूर्ति OQ है। लेकिन जब वस्तु की क़ीमत बढ़कर OP1 हो जाती है तब उसकी पूर्ति भी बढ़कर OQ1 हो जाती है। चित्र से स्पष्ट है कि वस्तु की क़ीमत में हुई वृद्धि की अपेक्षा उसकी पूर्ति में होने वाली वृद्धि अधिक है। अतः वस्तु की पूर्ति की लोच इकाई से अधिक है।
(3) पूर्णतया लोचदार पूर्ति (Perfectly elastic supply in hindi)
यदि किसी वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन न होने पर भी उसकी पूर्ति में बहुत अधिक मात्रा में परिवर्तन हो तब ऐसी पूर्ति को पूर्णतया लोचदार पूर्ति (purnataya lochdar purti) कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, जब किसी वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन न हो या अत्यंत सूक्ष्म परिवर्तन हो किन्तु उसकी पूर्ति में अपेक्षाकृत अत्यधिक परिवर्तन हो जाए तो ऐसी पूर्ति को पूर्णतया लोचदार पूर्ति (purntaya lochdar purti) कहते हैं।
चित्र में OX अक्ष पर वस्तु की पूर्ति तथा OY अक्ष पर वस्तु की क़ीमत दर्शाती गई है। जहां SS पूर्णतया लोचदार पूर्ति वक्र दिखाया गया है। जो कि आधार रेखा OX के समानांतर है। चित्र से स्पष्ट है कि वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन न होने पर भी उस वस्तु की पूर्ति में लगातार वृद्धि हो रही है। अतः वस्तु की पूर्ति पूर्णतया लोचदार अर्थात अनंत कहीं जाएगी।
(4) बेलोचदार पूर्ति (Inelastic supply in hindi)
जब किसी वस्तु की पूर्ति में होने वाला परिवर्तन, उसकी क़ीमत में होने वाले परिवर्तन से कम हो। अर्थात जब किसी वस्तु की पूर्ति में आनुपातिक परिवर्तन, उसकी क़ीमत में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन से कम हो तब ऐसी पूर्ति को बेलोचदार पूर्ति (belochdar purti) कहा जाता है।
चित्र में जब वस्तु की क़ीमत OP है तब वस्तु की पूर्ति OQ है। लेकिन जब वस्तु की क़ीमत बढ़कर OP1 हो जाती है तब उसकी पूर्ति भी बढ़कर OQ1 हो जाती है। चित्र से स्पष्ट है कि वस्तु की क़ीमत में हुई वृद्धि की अपेक्षा उसकी पूर्ति में होने वाली वृद्धि कम है। अतः वस्तु की पूर्ति की लोच इकाई से कम है।
(5) पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति (Perfectly inelastic supply in hindi)
जब किसी वस्तु की क़ीमत में अत्यधिक परिवर्तन होने पर भी उसकी पूर्ति में कोई भी परिवर्तन न हो तो ऐसी दशा में वस्तु की पूर्ति को, पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति कहा जाता है। इस प्रकार की पूर्ति में लोच का अभाव पाया जाता है। इसमें पूर्ति रेखा, आधार रेखा पर लंब की तरह दिखाई देती है।
चित्र में SQ वस्तु की पूर्ति रेखा है। इसमें पूर्ति रेखा OY अक्ष के समांतर है। चित्र से स्पष्ट है कि वस्तु की क़ीमत चाहे OP हो या OP1 हो, किन्तु वस्तु की पूर्ति OQ ही है। अर्थात उसकी पूर्ति में बिल्कुल भी परिवर्तन नहीं हो रहा है। अतः ऐसी स्थिति में पूर्ति की लोच शून्य होती है।
पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting the elasticity of supply in hindi)
पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले तत्व (purti ki loch ko prabhavit karne vale tatva) निम्नलिखित हैं -
(1) वस्तु का स्वभाव -
वस्तु का स्वभाव (प्रकृति) निश्चित रूप से उस वस्तु की पूर्ति की लोच को प्रभावित करता है। शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तु की पूर्ति बेलोचदार होती है जबकि टिकाऊ वस्तुओं की पूर्ति लोचदार होती है।
(2) उत्पादन लागत -
यदि किसी वस्तु के उत्पादन को बढ़ाने पर उस वस्तु के उत्पादन पर लगने वाली लागत बढ़ती जाती है तो वस्तु की क़ीमत बढ़ने पर भी उत्पादक उस वस्तु का उत्पादन नहीं बढ़ाना चाहेगा अर्थात उस वस्तु की पूर्ति को बढ़ाना नहीं चाहेगा। ऐसी स्थिति में पूर्ति की लोच बेलोचदार होगी। ठीक इसके विपरीत उत्पादन बढ़ाने पर उत्पादन लागत यदि घटती जाती है तो उत्पादक निश्चित रूप से उस वस्तु का उत्पादन यानि कि पूर्ति को बढ़ाना चाहेगा। ऐसी स्थिति में पूर्ति लोचदार होगी।
(3) उत्पादन की तकनीक -
उत्पादन की तकनीक भी पूर्ति की लोच पर प्रभाव डालती है। यदि वस्तु के उत्पादन की तकनीक सरल है तो वस्तु की पूर्ति लोचदार होगी। लेकिन यदि उस वस्तु के उत्पादन की तकनीक जटिल हो। तब उसकी पूर्ति बेलोचदार होगी। क्योंकि तब उस वस्तु की पूर्ति को आसानी से घटाया बढ़ाया नहीं जा सकेगा।
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(4) बाज़ार की उपलब्धता -
किसी वस्तु के लिए जितने अधिक बाज़ार उपलब्ध होंगे, उसकी आपूर्ति की लोच उतनी ही अधिक लोचदार होगी। ऐसी दशा में विक्रेता अपनी वस्तु की पूर्ति को कम-ज़्यादा करके भिन्न-भिन्न क़ीमतों पर बेच सकता है। इसके विपरीत, वस्तु के लिए यदि बाज़ार सीमित हों तब वस्तु की पूर्ति बेलोचदार होगी। क्योंकि ऐसी दशा में वस्तु का मूल्य घटे या बढ़े, उसे तो इसी बाज़ार में अपनी वस्तु बेचनी होगी।
(5) उत्पादन की समयावधि -
किसी वस्तु के उत्पादन में लगने वाला समय, विशेष रूप से उस वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करती है। समयावधि लंबी होने पर वस्तु की पूर्ति को घटाया बढ़ाया जा सकता है। जबकि अल्पकाल में यह संभव नहीं हो सकता है। अतः दीर्घकाल में पूर्ति की लोच, अधिक लोचदार होगी। जबकि अल्पकाल (अल्प समयावधि) में पूर्ति की लोच, अधिक बेलोचदार होगी।
उम्मीद है इस अंक से आपको पूर्ति की लोच क्या है | पूर्ति की लोच कितने प्रकार की होती है | पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले कौन कौन से तत्व हैं? स्पष्ट व सरलतम भाषा में जानने मिला होगा। यह अंक आपके अध्ययन में अवश्य ही सहायक साबित होगा। अर्थशास्त्र में ऐसे ही और भी महत्वपूर्ण टॉपिक्स पढ़ने के लिए बने रहिए हमारी वेबसाइट studyboosting.com के साथ।
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