पूर्ण प्रतियोगिता क्या है (अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं), पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार क्या है, पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषता क्या है, (Purn pratiyogita bazar kya hai, purn pratiyogita kya hai, purn pratiyogita ka arth, Purn pratiyogita ki vidheshtaen)
आप सभी बाज़ार (Bazar) की व्यवहारिक जानकारी तो अवश्य ही रखते होंगे। आप यह भी भली भाँति जानते हैं कि क्रेताओं-विक्रेताओं से ही बाज़ार का अस्तित्व है। सच मानो तो क्रेता व विक्रेता के बग़ैर बाज़ार की कल्पना ही असंभव है। आज इस अंक में हम बाज़ार के ही एक प्रकार "पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार (purn pratiyogita bazar)" के बारे में अध्ययन करेंगे।
अर्थशास्त्र के अंतर्गत पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु विशेष के अनेक क्रेता-विक्रेता उस वस्तु का क्रय-विक्रय स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं तथा कोई एक क्रेता अथवा विक्रेता वस्तु के मूल्य को प्रभावित करने में असमर्थ रहता है।
पूर्ण प्रतियोगिता की कुछ परिभाषाएं (purn pratiyogita ki paribhasha)
बोल्डिंग के अनुसार- "पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की ऐसी स्थिति, जिसमें अत्यधिक संख्या में क्रेता और विक्रेता एक ही प्रकार की वस्तु के क्रय-विक्रय में लगे रहते हैं तथा एक-दूसरे के अत्यधिक निकट संपर्क में रहकर आपस में स्वतन्त्रतापूर्वक वस्तु का क्रय-विक्रय करते हैं।"
श्रीमती जॉन राबिंसन के अनुसार- "पूर्ण प्रतियोगिता तब पायी जाती है, जब प्रत्येक उत्पादक के उत्पादन के लिए माँग पूर्णतया लोचदार होती है। यानि कि विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है। जिससे किसी एक विक्रेता को उत्पादक का उत्पादन उस वस्तु के कुल उत्पादन का एक बहुत ही थोड़ा सा भाग प्राप्त होता है। तथा सभी क्रेता भी इन प्रतियोगी विक्रेताओं के बीच चुनाव कराने की दृष्टि से समान होते हैं अर्थात बराबर संख्या में होते हैं। जिससे कि बाजार पूर्ण हो जाता है।"
पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ (Characteristics of Perfect Competition in hindi)
बाज़ार में पूर्ण प्रतियोगिता (bazar me purn pratiyogita) होने के लिए निम्नलिखित दशाओं या विशेषताओं का पाया जाना आवश्यक है-
(1) क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या -
किसी भी वस्तु विशेष का बाज़ार पूर्ण प्रतियोगी तभी माना जाता है जब उसमें क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक हो। यानि कि पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की स्थिति में क्रेताओं और विक्रेताओं की भारी संख्या होना आवश्यक है।
(2) वस्तुओं का एकरुप होना -
विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं में समरूपता का गुण होता है। पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में सभी विक्रेता समरूप यानि कि एकरूप वस्तुएँ बेचते हैं। इसका आशय यह है कि इन विक्रेताओं की वस्तुएँ क़िस्म, आकार, गुण, पैकिंग इत्यादि में समान होती हैं।
अगर इन विक्रेताओं की वस्तुओं में किसी प्रकार का विशेष अंतर हो तो यह बाज़ार पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार के अंतर्गत नहीं कहलायेगा। वस्तुओं के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि विक्रेता का व्यवहार, स्थान आदि की दृष्टि से भी समान होने चाहिए।
(3) फर्मों का स्वतंत्र प्रवेश तथा बहिर्गमन -
पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में फ़र्मों का प्रवेश तथा बहिर्गमन स्वतंत्र होना चाहिए अर्थात उसमें किसी प्रकार की बाधा नहीं होनी चाहिए। कोई भी फर्म अपने विवेक के अनुसार कोई भी निर्णय ले सके इतनी आज़ादी होनी चाहिए। अक्सर कई फर्में, दूसरी फर्मों के लाभ से आकर्षित होकर उद्योग में प्रवेश करना चाहती हैं। और यदि दीर्घकाल में उस फर्म को हानि हो तो वह उस उद्योग से बाहर निकलना चाहती है।
(4) बाज़ार की पूर्ण जानकारी -
पूर्ण बाज़ार में क्रेताओं व विक्रेताओं को बाज़ार की पूर्ण जानकारी होना चाहिए। सीधे शब्दों में कहें तो प्रत्येक क्रेता विक्रेता को इस बात की जानकारी होना चाहिए कि बाज़ार में वस्तुओं का सौदा किस तरह हो रहा है। किस क्वालिटी की वस्तु कितनी क़ीमत पर बेची-ख़रीदी जा रही है। ईन सभी बातों की जानकारी होने से बाज़ार में वस्तुओं की एक विशेष क़ीमत ही प्रचलित होती है।
(5) उत्पत्ति के साधनों की पूर्ण गतिशीलता -
पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में उत्पत्ति के साधनों का पूर्ण गतिशील होना आवश्यक हो जाता है। उत्पत्ति के साधन किसी एक फर्म से दूसरी फर्म में जाने के लिए स्वतंत्र रूप से गतिशील होना चाहिए। उसमें किसी भी प्रकार की बाधा खड़ी नहीं होनी चाहिए। उत्पत्ति के साधनों में निश्चित तौर पर एक ख़ासियत होती है कि वे उन स्थानों या फ़र्मों की तरफ गतिशील होते हैं जहाँ उनको अपेक्षाकृत ज़्यादा पारिश्रमिक मिलता हो।
(6) यातायात लागतों का न होना-
पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार के अंतर्गत क्रेता व विक्रेता समीप ही होना चाहिए। जिस कारण यातायात लागतें भी नगण्य अथवा कम होती हैं। यदि उत्पादक या उपभोक्ता एक दूसरे से अधिक दूरियों पर होंगे तो यह स्वाभाविक है कि इन अलग-अलग दूरियों की वजह से अलग-अलग लागतें आयेंगी जिस कारण वस्तुओं की क़ीमतों में भिन्नता होगी। और ऐसी स्थिति में यह प्रतियोगिता, पूर्ण प्रतियोगिता नहीं कहलाएगी।
क्या पूर्ण प्रतियोगिता काल्पनिक है? (Is the full competition imaginary in hindi)
वास्तविक रूप से देखा जाए तो पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की अवधारणा काल्पनिक है। पूर्ण प्रतियोगिता की यह विशेषताएँ वास्तविक जीवन में देखने नहीं मिलती हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की दशा एक काल्पनिक दशा है। आइये इसे निम्न बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट रूप से समझते हैं-
(1) क्रेताओं व विक्रेताओं की बड़ी संख्या काल्पनिक
पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की दशा एक ऐसी दशा है जिसमें क्रेताओं व विक्रेताओं की संख्या बहुत ज़्यादा होती है। लेकिन सच में देखा जाए तो वास्तविक जीवन में ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं है। प्रायः यही होता है कि बाज़ार में वस्तुओं के उत्पादक सीमित होते हैं जबकि उपभोक्ताओं की संख्या उत्पादकों की तुलना में बहुत अधिक होती है।
(2) वस्तुओं का एकरूप होना काल्पनिक
आपने जाना कि पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तुओं का एकरूप यानि कि समरूप होना आवश्यक है। किंतु वास्तविक जीवन मे देखा जाए तो बाज़ार की स्थिति बिल्कुल अलग होती है। दरअसल बाज़ार में वस्तुएँ, आकार, गुणों आदि में भिन्न ही होती हैं। प्रत्येक उत्पादक वस्तुओं में विभेद करके अपनी-अपनी वस्तुओं को दूसरी से श्रेष्ठतम बनाने की कोशिश करते रहते हैं और इसी के बल पर अपनी वस्तु को अधिक दामों में बेचने का प्रयास करते हैं।
(3) फ़र्मों का स्वतंत्र प्रवेश व बहिर्गमन काल्पनिक
यह माना जाता है कि पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में फ़र्मों के प्रवेश व बहिर्गमन में स्वतंत्रता होती है। किंतु वास्तव में इस होना कठिन है। क्योंकि सरकारी हस्तक्षेप के कारण फ़र्मों का स्वतंत्र रूप से किसी भी उद्योग में प्रवेश अथवा उद्योग को छोड़ना (बहिर्गमन) बहुत कठिन होता है।
(4) बाज़ार का पूर्ण ज्ञान होना काल्पनिक
पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में यह शर्त दी गयी है कि क्रेताओं-विक्रेताओं के बीच निकट संपर्क और उन्हें बाज़ार की पूर्ण जानकारी होती है। किन्तु व्यवहारिक जीवन में इस तरह की स्थिति नहीं पायी जाती। दरअसल क्रेताओं-विक्रेताओं को इस बात की ज़्यादा जानकारी नहीं होती कि कौन सी वस्तु कहां, किस क़ीमत पर बेची या ख़रीदी जा रही है। जिस वजह से बाज़ार में क़ीमत विभेद की स्थिति पायी जाती है।
(5) उत्पत्ति के साधनों का पूर्ण गतिशील होना काल्पनिक
ऐसा माना जाता है कि पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में उत्पत्ति के साधनों का पूर्ण गतिशील होना आवश्यक है। किन्तु इस तरह की धारणा भी ग़लत है। देखा जाए तो पूर्ण गतिशील साधन तो पूँजी भी नहीं है। इसके अलावा उत्पत्ति के अन्य साधनों के गतिशील होने के लिए अनेक शर्ते बाधक बन जाती हैं। इसलिए वास्तविक जीवन में यह संभव नहीं है।
आपने देखा कि "पूर्ण प्रतियोगिता काल्पनिक क्यों कहलाती है?" दरअसल पूर्ण प्रतियोगिता की ये उपरोक्त विशेषताएँ वास्तविक जीवन में देखने नहीं मिलतीं। इसीलिये कुछ अर्थशास्त्री पूर्ण प्रतियोगिता की जगह पर विशुद्ध प्रतियोगिता शब्द का इस्तेमाल करना बेहतर समझते हैं। क्योंकि विशुद्ध प्रतियोगिता के लिए पूर्ण प्रतियोगिता की सभी शर्तें आवश्यक नहीं होतीं। विशुद्ध प्रतियोगिता को "परमाणुवादी प्रतियोगिता" भी कहा जाता है।
विशुद्ध प्रतियोगिता में क्रेता-विक्रेता की अधिक संख्या, एकरूप वस्तु तथा फ़र्मों को स्वतंत्र प्रवेश व बहिर्गमन होना ही पर्याप्त माना जाता है। इसीलिये विशुद्ध प्रतियोगिता, पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में अधिक सरल कही जाती है।
उम्मीद है आपको हमारा यह अंक "पूर्ण प्रतियोगिता बाजार का अर्थ व इसकी विशेषताएँ (Meaning and characteristics of Perfect competition in hindi)" आपके अध्ययन में अवश्य ही मददग़ार साबित हुआ होगा।
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