समांतर माध्य क्या है, समांतर माध्य की परिभाषा, समांतर माध्य के गुण व दोष, (Samantar madhya kya hai, samantar madhya ka arth, gun evanm dosh)
जब किसी श्रेणी के पदों को जोड़कर पदों की संख्या से भाग दे दिया जाता है। तो प्राप्त परिणाम मध्यक, औसत या समांतर माध्य कहलाता है।
गणित एवं सांख्यिकी में माध्य या समांतर माध्य संकलित आँकड़ों की केंद्रीय प्रवृत्ति (Kendriya pravritti) की एक गणितीय माप है। इसे प्रायः औसत (average) या माध्य (mean) भी कहते हैं।
जब किसी श्रेणी के पदों को जोड़कर पदों की संख्या से भाग दे दिया जाता है। तो प्राप्त परिणाम मध्यक, औसत या समांतर माध्य कहलाता है।
Table of Contents :1.2. समांतर माध्य के गुण1.3. समांतर माध्य के दोष
समांतर माध्य की परिभाषा (Samantar madhya ki paribhasha)
किंग के अनुसार - "किसी श्रेणी के पदों के मूल्यों के योग में यदि उनकी संख्या का भाग दिया जाए तो जो मूल्य प्राप्त होता है। उसे समांतर माध्य के रूप में परिभाषित किया जाता है।
सैक्राइट्स के अनुसार - "किसी समंक माला के समस्त पदों के मूल्यों के योग में उनकी संख्या से भाग दिया जाए तो प्राप्त संख्या माध्य कहलाती है।"
समांतर माध्य की विशेषताएँ क्या है? | अंकगणितीय माध्य की विशेषताएँ
समांतर माध्य की प्रमुख विशेषताएँ (Samantar madhya visheshtaye) निम्नलिखित हैं-
1) समांतर माध्य से लिये गए सभी विचलनों का योग शून्य होगा। तथा विचलनों का वर्ग योग न्युनतम होगा।
2) समांतर माध्य की गणना में यदि दो तथ्य मालूम है, तो तीसरे को ज्ञात किया जाता है।
3) तुलनात्मक रूप में देखा जाए तो समांतर माध्य ज्ञात करना बहुत आसान है।
4) यदि दो वितरणों की संख्या और समांतर माध्य ज्ञात हैं, तो उनकी सामूहिक समांतर माध्य ज्ञात की जा सकती है।
5) यदि विभिन्न मूल्यों में एक सामान्य संख्या को जोड़ा जाये, घटाया जाये या गुणा किया जाये तो प्राप्त समांतर माध्य भी इसी रूप में बढ़ जाएगा कम हो जाएगा या उतने ही गुना बढ़ जाएगा।
6) यदि पदों की संख्या विषम है और पदों की कमी या वृद्धि निश्चित है, तो ऐसी दशा में बीच की संख्या समांतर माध्य होगी।
7) समान्तर माध्य का बीजगणितीय विवेचन संभव है।
8) समांतर माध्य को निश्चित रूप से बिना किसी संदेह के ज्ञात किया जाता है।
माध्य के गुण (Merits of Arithmetic Means in hindi) | समांतर माध्य के गुण
समान्तर माध्य के गुण (Samantar madhya ke gun) निम्नलिखित है -
(1) समांतर माध्य एक सरल माध्य है। इसकी गणना करने के लिए सांख्यिकी सामग्री (समंक) को किसी भी प्रकार से व्यवस्थित करने की आवश्यकता नहीं होती है। इसे सरल अंकगणितीय रीति से प्राप्त किया जा सकता है।
(2) समांतर माध्य प्राप्त समंकों के सभी पदों पर आधारित होता है। जिस कारण ये अधिक वैज्ञानिक होता है।
(3) यह माध्य सदैव निश्चित व दृढ होता है। यह तुलना करने लिए सबसे अच्छा आधार माना जाता है।
(4) समांतर माध्य या अंकगणितीय माध्य की विवेचना करना संभव होता है।
(5) यदि पदों की संख्या एक समान हों तो यह अधिक सही व विश्वसनीय होता है।
(6) यह मध्यिका व भूयिष्ठक की तरह स्थिति सम्बन्धी माध्य (positional average) न होकर गणितीय माध्य होता है।
(7) इसमें अन्य माध्यों की तुलना में उच्चावचन कम होता है। यानि कि इसमें निदर्शन में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव न्यूनतम होता है।
(8) इस माध्य की गणना के लिए समंकों का विशेष होना आवश्यक नहीं। यदि समंक श्रेणी में कुछ कमी हो तब भी समांतर माध्य की गणना आसानी से की जा सकती है। जबकि अन्य माध्यों में यह नहीं पाया जाता।
समांतर माध्य के दोष (Demerits of arithmetic mean in hindi)
समांतर माध्य के दोष (samantar madhya ke dosh) निम्नलिखित हैं -
(1) इसमें प्रत्येक पदों को समान महत्व दिया जाता है। जिस कारण ऐसे पदों को भी अत्यधिक महत्व मिल जाता है जो उतने महत्वपूर्ण नहीं होते।
(2) समांतर माध्य की गणना करते समय वास्तविक मूल्यों का होना अत्यंत आवश्यक होता है। जिस कारण इसका उपयोग गुणात्मक सामग्री के अध्ययन में नहीं किया जा सकता।
(3) समांतर माध्य में एक कमी यह है कि इसका चित्रों द्वारा प्रदर्शन संभव नहीं है।
(4) समांतर माध्य की गणना केवल अवलोकन से संभव नहीं है।
(5) समांतर माध्य, दर, अनुपात एवं वृद्धि जैसे विषयों के अध्ययन में उपयुक्त नहीं होती।
(6) कभी कभी मध्य-मूल्य के स्वर अशुद्ध निष्कर्ष प्राप्त होते हैं।
(7) समांतर माध्य को सामान्य तौर पर देखा जाए तो यह एक अवास्तविक संख्या होती है।
(8) समांतर माध्य को बहुलक व मध्यिका की भाँति निरीक्षण करके ज्ञात नहीं किया जा सकता है।
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