निदर्शन रीति या प्रतिचयन रीति - निदर्शन (प्रतिचयन) का अर्थ, आवश्यकता, गुण या विशेषताएँ (merits), दोष, कमियाँ या सीमाएँ (demerits), निदर्शन (प्रतिचयन) के उद्देश्य (objective of sampling)
आज के इस अंक में हम आपके साथ, निदर्शन रीति क्या है? अथवा प्रतिचयन रीति क्या है? इसके गुण व दोष, आवश्यकताएं व उद्देश्य आदि पर सटीक व उद्देश्यपूर्ण चर्चा करने वाले हैं। इस अंक के अंत तक बने रहिये। निदर्शन प्रणाली को आज हम सरल से सरल शब्दों में समझने का प्रयास करेंगे। चलिये बिना देर किए हम प्रतिचयन किसे कहते हैं। sampling theory in hindi जानने का प्रयास करते हैं।
प्रतिचयन या निदर्शन रीति के अंतर्गत समग्र में से कुछ प्रतिनिधि इकाइयों को चुन लिया जाता है। फ़िर उन्हीं चुनी हुई इकाइयों का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला जाता है। समग्र में से चुनी हुई इन्हीं इकाइयों को प्रतिदर्श (sample) कहा जाता है। समग्र में से कुछ इकाइयों (प्रतिदर्श) को चयनित कर अध्ययन करने की प्रक्रिया को निदर्शन रीति या प्रतिचयन रीति Sampling method कहते हैं। इसे प्रतिचयन की विधि या प्रतिदर्श विधि अथवा प्रतिदर्श चयन Sampling in hindi भी कहा जाता है।
• निदर्शन या प्रतिचयन क्या है ?
• निदर्शन या प्रतिचयन का अर्थ।
• निदर्शन या प्रतिचयन की पद्धतियाँ।
• निदर्शन रीति की आवश्यकता या महत्त्व।
• निदर्शन रीति के गुण, विशेषताएँ, लाभ।
• निदर्शन रीति के दोष, कमियाँ, सीमाएँ।
• निदर्शन या प्रतिचयन रीति के उद्देश्य।
निदर्शन क्या है? | प्रतिचयन क्या है? | निदर्शन पद्धति क्या है? | प्रतिचयन से क्या आशय है?
प्रतिचयन किसे कहते हैं? चलिये इसे समझने के लिए एक दिलचस्प example लेते है। वह ये कि जब आप बीमार हो जाते हैं तब डॉक्टर आपको ब्लड टेस्ट करने के लिए कहता है। तब आपके शरीर से पूरा blood निकालने के बजाय परखनली में थोड़ा सा सेम्पल sample (प्रतिदर्श) ही लिया जाता है। कुछ बूँदों को टेस्ट करने के बाद जो भी निष्कर्ष निकाला जाता है। उसे आपके शरीर के पूरे ब्लड पर लागू कर दिया जाता है। इसी आधार पर डॉक्टर बीमारी का पता लगा लेते हैं।
आइये इसे कुछ घरेलू उदाहरणों से समझने का प्रयास करते हैं। आप के घरों में चावल तो पकाया ही जाता होगा। चावल कच्चा है या पका? इसे जानने के लिए आप गंजी में से कुछ दानों को ही चेक करते हैं और फ़िर निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं कि चावल पका है या नहीं।
चलिये अब एक और उदाहरण लेते हैं। वह यह कि जब आप चावल या गेहूँ ख़रीदने का प्लान बनाते हैं। तब आप दुकानदार के पास जाकर चावल या गेहूँ के कुछ दानों को सेम्पलिंग (sampling) के तौर पर घर लेकर आते हैं। फ़िर आपके घरों में इसी sample को देख परखकर यह अनुमान लगा लिया जाता है कि चावल या गेहूँ की बोरी ख़रीदने लायक है अथवा नहीं।
सीधे शब्दों में कहा जाए तो उपरोक्त तीनों ही उदाहरण प्रतिचयन या निदर्शन रीति Sampling method के अच्छे उदाहरण कहे जा सकते हैं। इसी तरह घरों में दालें, घी, अनाज आदि की जाँच प्रतिचयन रीति यानि कि निदर्शन रीति (nidarshan riti) से ही की जाती है।
माना कि किसी कॉलेज के 1000 विद्यार्थियों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाना है। इसके लिए दो रीतियाँ अपनायी जा सकती हैं। संगणना रीति के अंतर्गत 1000 विद्यार्थियों में प्रत्येक विद्यार्थी का परीक्षण किया जाएगा।
लेकिन यदि निदर्शन पद्धति से परीक्षण किया जाए तो उन 1000 विद्यार्थियों में से प्रतिदर्श के तौर पर किन्ही 200 विद्यार्थियों को छाँटकर उनके स्वास्थ्य का अध्ययन कर लिया जाएगा। फ़िर इन 200 विद्यार्थियों के परीक्षण के परिणाम को पूरे 1000 विद्यार्थियों पर लागू कर दिया जाएगा। अध्ययन की इस पद्धति में समय की बचत भी होगी। और मेहनत भी कम लगेगी। साथ ही धन भी कम यानि कि ख़र्च भी कम ही होगा।
निदर्शन का अर्थ एवं परिभाषा | प्रतिचयन रीति का अर्थ एवं परिभाषा | प्रतिचयन रीति क्या है?
निदर्शन किसी समग्र का एक छोटा भाग या अंश होता है जिसमें उस समग्र का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता हो। और जिसमें समग्र की मौलिक विशेषताएँ पायी जाती हों। दैनिक जीवन में चावल, गेहूँ जैसे अनाजों या बाज़ार से अन्य चीज़ों को ख़रीदने से पहले इनका नमूना (सेम्पल) देखा जाता है। यह नमूना sample ही प्रतिदर्श या प्रतिचयन या निदर्शन कहलाता है। निदर्शन का अर्थ हिंदी में यदि जानना चाहें तो यही है।
निदर्शन रीति में महत्वपूर्ण भूमिका प्रतिदर्श (सेम्पलिंग) की होती है। जितनी कुशलता के साथ sampling ली जाती है। शुद्ध परिणाम आने की संभावना उतनी ही अधिक होती है। अर्थात प्रतिदर्श चुनने के लिए सबसे आवश्यक है समष्टि की पहचान करना।
एक बार समष्टि की पहचान हो जाये तो अनुसंधानकर्ता अध्ययन के दौरान यह अनुमान लगाता है कि उस समष्टि या जनसंख्या का सर्वेक्षण संभव नहीं है। तब ऐसी स्थिति में वह प्रतिनिधि प्रतिदर्श का चुनाव करता है। एक आदर्श प्रतिदर्श (प्रतिनिधि प्रतिदर्श) सामान्य रूप से समष्टि से छोटा होता है। यह लागत व कम समय मे समष्टि से संबंधित पर्याप्त सूचनाएँ देने में सक्षम होता है।
प्रतिचयन रीति को भिन्न-भिन्न अर्थशास्त्रियों ने परिभाषाएँ दी हैं। आइये निदर्शन रीति की परिभाषाएँ क्या हैं? जानते हैं-
सिम्पसन कब अनुसार - "निदर्शन, समग्र की इकाइयों का ऐसा अंश होता है, जो सम्पूर्ण समूह के अध्ययन हेतु चुना जाता है।"
बोगार्डस के अनुसार - "निदर्शन रीति एक पूर्व निर्धारित नियोजन है। जिसके अंतर्गत इकाइयों के किसी एक वर्ग में से एक निश्चित प्रतिशत का चुनाव करना सुनिश्चित किया जाता है।"
फ्रैंक याटन के अनुसार - "निदर्शन शब्द का उपयोग किसी सम्पूर्ण वस्तु की इकाइयों के किसी निश्चित सेट या अंश के लिए किया जाना चाहिए। जिसे इस विश्वास के साथ चुना जा चुका हो कि वह प्रतिदर्श, समग्र का उचित प्रकार से प्रतिनिधित्व कर सके।"
गुडे एवं हाट के अनुसार - "एक प्रतिचयन जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है। यह कि वह किसी विशाल समूह का छोटा सा प्रतिनिधि है।"
निदर्शन की पद्धतियाँ (Methods of Sampling) | प्रतिचयन पद्धतियाँ | निदर्शन पद्धति के प्रकार
प्रतिचयन प्रणाली के प्रकार निम्नलिखित हैं-
(1) सविचार निदर्शन
(2) दैव निदर्शन
(3) स्तरित या मिश्रित निदर्शन
(4) कोटा या अभ्यंश निदर्शन
(5) बहु स्तरीय निदर्शन
(6) सुविधाजनक निदर्शन
(7) व्यवस्थित निदर्शन
(1) सविचार निदर्शन (Deliberate sampling)
जब कोई अनुसंधानकर्ता अपने सर्वेक्षण के लिए, किसी विशिष्ट उद्देश्य के साथ, जानबूझकर कुछ इकाइयों का चयन करता है। उसे सविचार निदर्शन (purposive sampling) कहते हैं। समग्र में से किन इकाइयों (न्यादर्शों) को चुना जाये यह अनुसंधानकर्ता की इच्छा पर निर्भर करता है। इसमें अनुसंधानकर्ता प्रायः उन्हीं इकाइयों का चयन करता है जिनमें समग्र का प्रतिनिधित्व करने की संभावना ज़्यादा दिखाई देती है।
(2) दैव निदर्शन (Random sampling)
जब समग्र में से इकाइयों का चयन इस प्रकार किया जाए कि उनमें से प्रत्येक इकाइयों के चयनित होने की संभावनाएं बराबर हों। तो उसे दैव निदर्शन कहा जाता है। इस निदर्शन में कौन सी इकाइयाँ सम्मिलित की जाएगी और कौन सी नहीं। यह अनुसंधानकर्ता की इच्छा पर निर्भर नहीं करता। बल्कि इसका निर्णय भाग्य पर छोड़ दिया जाता है।
(3) स्तरित निदर्शन (Stratified sampling)
इस रीति में सर्वप्रथम समग्र को भिन्न-भिन्न विशेषताओं के आधार पर सविचार निदर्शन से अनेक सजातीय स्तरों में बाँट लिया जाता है। इसके बाद उन विभिन्न स्तरों में से दैव प्रतिचयन (दैव निदर्शन) रीति से इकाइयाँ छाँट ली जाती हैं। इसे ही स्तरित या मिश्रित निदर्शन कहा जाता है।
इस रीति को प्रतिचयन (निदर्शन) की सबसे अच्छी रीति मन जाता है। क्योंकि इस रीति में पक्षपात होने की संभावना नहीं होती। यही कारण है कि निदर्शन प्रणाली में ज़्यादातर दैव निदर्शन प्रणाली (dev nidarshan pranali) ही प्रचलित है।
(4) अभ्यंश निदर्शन (Quota sampling)
इस निदर्शन में अनुसंधान संबंधी समंकों के संकलन के लिए प्रगणकों के कार्य का कोटा तय कर दिया जाता है। अर्थात इस बात का निर्धारण कर दिया जाता है कि प्रगणक किस क्षेत्र विशेष से प्रतिदर्शों (इकाइयों) के चयन करेगा। कोटा या अभ्यंश निदर्शन कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इस रीति में समग्र को विभिन्न विशेषताओं के आधार पर भिन्न-भिन्न स्तरों में, सविचार निदर्शन से वर्गीकृत कर लिया जाता है। फ़िर उन भिन्न-भिन्न स्तरों (भागों) में से प्रगणकों को प्रतिदर्श चुनने के लिए कहा जाता है। ध्यान देने वाली बात यही है कि इसमें दैव निदर्शन के बजाय सविचार निदर्शन का प्रयोग किया जाता है। यानि कि अंत में इकाइयों का चुनाव, अनुसंधानकर्ता की इच्छा पर निर्भर करता है।
(5) बहु स्तरीय निदर्शन (Multi-stage sampling)
इस रीति में निदर्शन कई स्तरों पर किया जाता है। तथा अंत मे दैव निदर्शन से न्यादर्श (प्रतिदर्श) का चुनाव किया जाता है। जैसे- किसी शहर की जनसंख्या का data एकत्रित करना हो तो सर्वप्रथम उस शहर को विशेषताओं के आधार पर कुछ विशेष क्षेत्रों में अलग-अलग बाँट दिया जाए। फ़िर उन प्रत्येक क्षेत्रों में से दैव निदर्शन रीति के माध्यम से प्रतिदर्शों (इकाइयों) का चुनाव किया जाए। इसे बहु स्तरीय निदर्शन रीति कहते हैं।
(6) सुविधाजनक निदर्शन (Convenience sampling)
इस रीति के अंतर्गत अनुसंधानकर्ता किसी विशिष्ट समग्र में से इकाइयों का चुनाव अपनी सुविधा के अनुसार करता है। जैसे- स्कूल में पढ़ने वाले ऐसे छात्रों का अध्ययन करना जिनकी रुचि खेलों में हो। ऐसी स्थिति में अनुसंधानकर्ता केवल उन्हीं स्कूलों का चयन करेगा जो उसके आसपास हों। जहाँ आने जाने में वह सुविधा महसूस करता हो। हालांकि ऐसी रीति से प्राप्त प्रतिदर्श, समग्र का उचित रूप से प्रतिनिधित्व करते नहीं दिखाई पड़ते। बल्कि परिणाम में भ्रामक होते हैं।
(7) व्यवस्थित निदर्शन (Systematic sampling)
इस रीति में समग्र को व्यवस्थित रूप से वर्गीकृत कर दैव प्रतिचयन (निदर्शन) के आधार पर चुनाव किया जाता है। जैसे- 1000 इकाइयों के समूह में से 100 इकाइयों के प्रतिदर्श चुनना हो तो पहली इकाई दैव निदर्शन द्वारा चुन ली जाएगी। यानि कि 1 से लेकर 10 तक की इकाइयों में से कोई एक इकाई को दैव प्रतिचयन से चुन लिया जायेगा। क्रमशः यही प्रक्रिया प्रत्येक बार अपनायी जाएगी जिसमें इकाई का चयन दैव निदर्शन द्वारा किया जायेगा।
साधारण तौर पर देखा जाए तो यह रीति सरल व मितव्ययी अवश्य है। किंतु यह रीति उचित नहीं दिखाई देती। इस रीति में इस बात की संभावना ज्यादा रहती है कि एक जैसे गुणों वाली जिन इकाइयों की सर्वाधिक पुनरावृत्ति हो रही हो। उन इकाइयों को या तो प्रतिदर्श में मौका न मिले या फ़िर उन्हीं इकाइयों को ज़्यादा मौका मिले।
निदर्शन रीति की आवश्यकता | प्रतिचयन के आवश्यक तत्व | निदर्शन रीति के महत्व
महत्वपूर्ण निष्कर्षों के लिए प्रतिचयन रीति की आवश्यकता (nidarshan riti ke mahatva) को हम निम्न बिंदुओं के आधार पर समझ सकते हैं -
(1) प्रतिनिधित्व - प्रतिचयन (निदर्शन) रीति की आवश्यकता तब होती है जब समग्र की प्रत्येक इकाई ऐसी हो, समग्र का पूर्ण प्रतिनिधित्व कर सके। यानि कि समग्र की प्रत्येक इकाई को निदर्शन रीति में शामिल होने का सामान अवसर प्राप्त हो सके।
(2) स्वतंत्रता - समग्र का प्रत्येक अवयव यानि कि इकाई किसी भी प्रतिदर्श में शामिल होने के लिए स्वतंत्र हो। किसी भी अल्प पद पर निर्भर न हो।
(3) सजातीयता - समूह यानि कि समग्र ऐसा हो कि उसकी इकाइयों में सजातीयता हो। तभी निदर्शन रीति उपयुक्त होती है।
(4) पर्याप्तता - निदर्शन रीति में जितना हो सके समग्र में से अधिक से अधिक इकाइयों को प्रतिनिधि के तौर पर चुना जाना चाहिये। तभी प्राप्त निष्कर्ष अधिक शुद्ध हो सकेंगे।
निदर्शन रीति के गुण | निदर्शन रीति की विशेषताएँ | निदर्शन रीति के लाभ | Merits of sampling method in hindi
निदर्शन प्रणाली यानि कि प्रतिचयन रीति के प्रमुख गुण, महत्व या प्रतिचयन रीति की विशेषताएँ (pratichayan riti ki visheshtaen) निम्नलिखित हैं-
(1) समय की बचत - निदर्शन रीति में इकाइयों की संख्या कम होती है। परिणामस्वरूप कम प्रतिनिधि इकाईयों का अध्ययन करने के लिए कम समय लगता है।
(2) धन की बचत - संगणना रीति में समग्र की प्रत्येक इकाइयों के अध्ययन करने में अतिरिक्त धन खर्च होता है। बजाय इसके, निदर्शन रीति में कुछ ही चयनित इकाइयों का अध्ययन किया जाता है। जिसमें धन की बचत हो जाती है।
(3) गहनता से अध्ययन - जहाँ संगणना प्रणाली में इकाइयों की बहुत अधिक संख्या होने के कारण उन इकाइयों का गहन अध्ययन करना संभव नहीं हो पाता। वहीं प्रतिचयन रीति (निदर्शन रीति) में सीमित इकाइयों के होने से प्राप्त आँकड़ों का सूक्ष्मता से अध्ययन हो पाता है।
(4) निदर्शन रीति की उपयुक्तता - सामाजिक, आर्थिक व व्यापारिक समस्याओं के अध्ययन हेतु प्रतिचयन रीति (निदर्शन रीति) ही उपयुक्त होती है। समग्र यदि अनंत हो (जैसे- नवजात शिशुओं का औसत भार, उपभोक्ता की रुचि आदि) तो सभी इकाइयों का अध्ययन करने के बजाय निदर्शन विधि (nidarshan vidhi) का प्रयोग करना ज़्यादा बेहतर लगता है।
(5) वैज्ञानिक पद्धति का होना - निदर्शन प्रणाली अधिक वैज्ञानिक होती है। क्योंकि इसमें प्राप्त समंकों की अन्य प्रतिदर्शों द्वारा जाँच की जा सकती है।
(6) सूचनाओं की प्राप्ति सुविधाजनक - इसमें प्रतिनिधि इकाइयों के सीमित होने के कारण अनुसंधान अपेक्षाकृत सरल हो जाता है। जिस कारण विस्तृत क्षेत्र की अपेक्षा सीमित क्षेत्र से समंकों को प्राप्त करना और भी अधिक सुविधाजनक हो जाता है।
(7) प्रशासनिक प्रबंधन की सुविधा - सीमित इकाइयों के कारण अनुसंधान का संगठन सरल हो जाता है। अनुसंधान के लिए कार्यकर्ताओं की नियुक्ति तथा नियंत्रण, तीव्र संपर्क के साथ सम्पूर्ण सर्वेक्षण हेतु प्रशासनिक व्यवस्था आसान हो जाती है।
निदर्शन रीति के दोष | निदर्शन रीति की कमियाँ | निदर्शन रीति की सीमाएँ | Sampling method demerits in hindi
निदर्शन प्रणाली यानि कि प्रतिचयन रीति के प्रमुख दोष, सीमाएँ या कमियां निम्न रूप में व्यक्त की जा सकती हैं-
(1) पक्षपात की संभावना - निदर्शन विधि का प्रमुख दोष यह है कि इस रीति में किसी न किसी रूप में पक्षपात हो ही जाता है। यदि निदर्श उपयुक्त नहीं है तो अनुसंधान से प्राप्त परिणाम निश्चित रूप से भ्रमित करने वाले होंगे।
(2) प्रतिनिधि इकाइयों के चुनाव में कठिनाई - निदर्शन रीति तभी सार्थक मानी जाती है जब इस रीति में चुनी गई इकाइयाँ कुशलतापूर्वक समग्र का प्रतिनिधित्व कर सकें। लेकिन ऐसी इकाइयों के चुनाव करना ही अत्यंत कठिन होता है। क्योंकि भिन्न-भिन्न व्यक्तियों या इकाइयों में विभिन्न विविधताएँ पायी जाती हैं।
(3) निदर्शन में प्रतिनिधि इकाइयों के क़ायम रहने की कठिनाई - यद्यपि निदर्शन रीति में प्रतिनिधि इकाइयों की संख्या कम होती है। लेकिन इस बात की गारंटी कम ही होती है कि उन इकाइयों को एक बार चुन लेने के बाद वो सभी इकाइयाँ उन निदर्शनों पर क़ायम रह सके।
(4) विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता - निदर्शन विधि में प्रतिनिधि इकाइयों का सही चुनाव करना अत्यंत ही कठिन कार्य होता है। इसलिए इस कार्य हेतु विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है। ताकि इस विधि से सही परिणामों तक पहुँचा जा सके।
(5) निदर्शन रीति की अनुपयुक्तता - जिस तरह कुछ विशेष परिस्थितियों में संगणना रीति उपयुक्त नहीं होती। ठीक असित तरह कुछ विशेष परिस्थितियों में निदर्शन रीति (प्रतिचयन रीति) की आवश्यकता नहीं होती। यानि कि कुछ जगहों पर निदर्शन विधि असंभव प्रतीत होती है।
निदर्शन के उद्देश्य (Objective of sampling in hindi) | प्रतिचयन रीति के उद्देश्य
निदर्शन रीति का प्रमुख उद्देश्य (nidarshan riti ka pramukh uddeshya) कम से कम धन व समय का व्यय, कम परिश्रम के साथ अनुसंधान हेतु आवश्यक समंकों का संकलन करना होता है। इसके अतिरिक्त उद्देश्य भी हैं। आइये हम इन अतिरिक्त उद्देश्यों को जानते हैं-
(1) परिणामों की सत्यता की जाँच करना - प्रतिचयन (निदर्शन) का एक उद्देश्य संगणना रीति (अनुसंधान) से प्राप्त परिणामों की सत्यता की जाँच करना भी होता है।
(2) निरंतर जानकारी प्राप्त करना - समग्र में निहित इकाइयों के व्यवहारों में निरंतर होने वाले परिवर्तनों को जानना हो तो निदर्शन रीति की आवश्यकता होती है।
(3) सार्थकता की जाँच करना - प्रतिचयन/निदर्शन का एक उद्देश्य समग्र तथा प्रतिदर्श की माप में अंतर की सार्थकता की जाँच करना भी होता है। इस तरह की किसी भी परिकल्पना की जाँच प्रतिचयन विधि (निदर्शन विधि) द्वारा ही की जाती है।
(4) सर्वेक्षण में दक्षता लाना - निदर्शन रीति का उद्देश्य पहले से प्राप्त किये गए परिणामों को संशोधित करना तथा उस अनुसंधान में विशिष्ट दक्षता लाना होता है।
उम्मीद है हमारे इस अंक में आपको कुछ विशेष प्रश्नों जैसे- प्रतिदर्श से आप क्या समझते हैं? | निदर्शन विधि क्या है? | दैव प्रतिचयन क्या है? के जवाब अच्छी तरह मिल गये होंगे। मैं आशा करता हूँ आपके अध्ययन में यह अंक भी अवश्य मददग़ार साबित होगा।
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