दैव निदर्शन से क्या आशय है? इसके गुण एवं दोष बताइए | Random Sampling meaning in hindi

दैव निदर्शन (dev nidarshan) को जानने से पहले निदर्शन रीति क्या है? जानना ज़रूरी है।समग्र में से कुछ इकाइयों (प्रतिदर्श) को चुनने की प्रक्रिया प्रतिचयन रीति अथवा निदर्शन रीति कहलाती है। निदर्शन के अंतर्गत किसी समग्र में से किसी भी पद्धति से कुछ इकाइयाँ चुन ली जाती हैं। जो भी निष्कर्ष निकलता है उस निष्कर्ष को समग्र पर लागू कर दिया जाता है। निदर्शन को सरल शब्दों में विस्तार से जानने के लिए निदर्शन (प्रतिचयन) रीति क्या है? पर क्लिक करें।


Random Sampling Method in hindi

अनुक्रम 

● दैव प्रतिचयन / दैव निदर्शन क्या है?
● दैव निदर्शन/प्रतिचयन के प्रकार, निदर्शन/प्रतिचयन चुनने की रीतियां
● दैव निदर्शन/प्रतिचयन के गुण या लाभ
● दैव निदर्शन/प्रतिचयन के दोष या सीमाएँ 
● दैव निदर्शन/प्रतिचयन  मान्यताएँ


दैव प्रतिचयन क्या है | दैव निदर्शन क्या है | Dev pratichayan kya hai? 

दैव निदर्शन विधि क्या है? तो हम आपको बता दें कि दैव निदर्शन, निदर्शन विधि में प्रयुक्त की गई विधियों में से एक विधि है। दैव निदर्शन का चुनाव किस प्रकार किया जाता है? इसमें समग्र की कुछ इकाइयों को एक ख़ास तरीक़े से चुना जाता है। इस रीति के अनुसार समग्र में से इकाइयों को इस तरह छाँटा जाता है कि समग्र की प्रत्येक इकाई की, प्रतिदर्श में चुने जाने की संभावना समान होती है।

प्रतिदर्श में कौन सी इकाई चुने और कौन सी नहीं। इसे तय करना अनुसंधानकर्ता की इच्छा पर निर्भर नहीं करता। समग्र में से इन इकाइयों को प्रतिदर्श में रूप में चुने जाने की क्रिया को पूरी तरह भाग्य (Chance) यानि कि दैवयोग पर छोड़ दिया जाता है।





जब समग्र में से इकाइयों का चयन इस प्रकार किया जाए कि उनमें से प्रत्येक इकाइयों के चयनित होने की संभावनाएं बराबर हों। तो उसे दैव निदर्शन (dev nidarshan) कहा जाता है।
 
इस निदर्शन में कौन सी इकाइयाँ सम्मिलित की जाएगी और कौन सी नहीं। यह अनुसंधानकर्ता की इच्छा पर निर्भर नहीं करता। बल्कि इसका निर्णय भाग्य पर छोड़ दिया जाता है। आइये दैव निदर्शन की कुछ परिभाषाएँ random sampling definition in hindi पर नज़र डालते हैं।

हार्पर के अनुसार - "ऐसा प्रतिदर्श जिसमें समग्र की प्रत्येक इकाई को सम्मिलित होने के समान अवसर प्राप्त हों। इस तरह चयनित किये गए प्रतिदर्श को दैव प्रतिदर्श कहा जाता है।"

सिम्पसन और काफ़्का के अनुसार - "दैव न्यादर्श एक ऐसा न्यादर्श है जिसमें समग्र के प्रत्येक पद को चुने जाने का अवसर समान होता है। इसमें अवसर ही निर्धारित करता है कि किन पदों को शामिल किया जाएगा और किनको नहीं।"

पार्टन के अनुसार - "दैव निदर्शन रीति के प्रयोग करने से यह निश्चित हो जाता है कि समग्र की प्रत्येक इकाई के चुने जाने के अवसर समान होते हैं।"

दैव प्रतिचयन को यादृच्छिक प्रतिचयन भी कहा जाता है। जहाँ समष्टि प्रतिदर्श समूह से व्यष्टिगत इकाइयों (प्रतिदर्श) को यादृच्छिक रूप से चुना जाता है। 

आइये इसे एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करते हैं। मानाकि की सरकार किसी क्षेत्र विशेष के 300 परिवारों के बजट पर पेट्रोल के दाम बढ़ने से होने वाले प्रभावों की जाँच करना चाहती है।

इसके लिए उन 300 परिवारों में से कोई भी 30 परिवारों का यादृच्छिक (प्रतिदर्श) प्राप्त करके उसका अध्ययन करना है। इस तरह चुनाव करने के लिए उस क्षेत्र के सभी 300 परिवारों के नाम की पर्चियाँ लिखकर आपस में मिला दी जाती हैं। इसके बाद उसमें से साक्षात्कार के लिए बारी-बारी से 30 पर्चियों को चुनकर 30 प्रतिदर्श चुन लिए जाते हैं।

इसका सीधा अर्थ यह है कि यादृच्छिक प्रतिचयन (दैव निदर्शन) में प्रत्येक परिवार के चुने जाने की संभावना समान होगी। और चुना गया परिवार ठीक वैसा ही होगा जैसा कि नहीं चुना गया परिवार। यानि कि निदर्शन रीति में सभी 300 परिवारों को उन 30 परिवारों के प्रतिचयन से निकाले गए प्रतिदर्श को ही यादृच्छिक (दैव) प्रतिदर्श कहा जाता है। इस विधि को 'लॉटरी विधि' के रूप में भी जाना जाता है। वैसे भी आजकल यादृच्छिक प्रतिदर्श को चुनने के लिए कंप्यूटरीकृत प्रोग्रामों का उपयोग भी किया जाता है।

यादृच्छिक प्रतिचयन के विपरीत अयादृच्छिक प्रतिचयन होता है। अयादृच्छिक प्रतिचयन में समग्र में से किन-किन इकाइयों को चुनें और किन-किन इकाइयों को छोड़ें। यह अनुसंधानकर्ता की इच्छा पर निर्भर रहता है। इसके लिए अनुसंधानकर्ता अपनी सुविधानुसार समग्र में से प्रतिदर्श का चुनाव कर सकता है।

उदाहरण के लिए मानाकि की 100 परिवारों में से केवल 10 परिवारों को चुनना हो। तो अयादृच्छिक प्रतिचयन में उन 100 परिवारों में से प्रत्येक परिवार के चुने जाने की संभावना नहीं होगी। क्योंकि इसमें अनुसंधानकर्ता (सर्वेक्षण कर्ता) की सुविधा या निर्णय की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। यह चयन अपने उद्देश्य, निर्णय, सुविधा तथा कोटा के आधार पर किया जाता है। अतः इस रीति को अयादृच्छिक प्रतिचयन या सविचार प्रतिचयन कहा जाता है।


दैव निदर्शन के प्रकार | निदर्शन चुनने की रीतियाँ | दैव प्रतिचयन के प्रकार


दैव प्रतिचयन या निदर्शन रीति (Dev pratichayan ya nidarshan riti) द्वारा न्यादर्श चुनने की कुछ अलग-अलग प्रणालियां (dev nidarshan ke prakar) निम्नलिखित हैं-

(1) लॉटरी विधि (Lottery method) -

प्रतिचयन की यह सर्वाधिक प्रचलित विधि मानी जाती है। इस विधि में सबसे पहले तो समग्र की इकाइयों के नाम अथवा नंबर कागज़ की चिटों या पर्चियों, गोलियों, चौकोर अथवा आयताकार टुकड़ों पर लिख लिए जाते हैं। इसके बाद किसी निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा या स्वयं आँखें बंद करके उतनी पर्चियाँ निकाल ली जाती हैं। जितनी कि इकाइयाँ प्रतिदर्श में शामिल करनी होती है। 

इसमें इसी बात का ध्यान रखना होता है कि लिखी हुई पर्चियाँ एक समान हों। ताकि सही ढंग से मिलकर किसी एक व्यक्ति द्वारा ही निष्पक्ष रूप से पर्चियाँ निकली जा सकें। आजकल इस लॉटरी विधि का प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक मशीनों द्वारा भी होता है। बड़ी-बड़ी लॉटरियों के नंबर आजकल इसी रीति से निकाले जाते हैं।





(2) ढोल घुमाकर ((By rotating the drum) -

निदर्शन की इस विधि में किसी ढोल के समान आकार के लोहे या लकड़ी के गोल टुकडे जिन पर  0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 तक अंक लिखे जाते हैं। फ़िर ढोल को हाथ या बिजली से घुमाकर उन लिखे हुए सभी अंकों को अच्छी तरह मिला दिया जाता है। इसके बाद किसी अनजान व्यक्ति अथवा किसी निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा उस ढोल में से एक-एक टुकड़ा निकालते हुए उस पर लिखे अंकों को अलग से लिख लिया जाता है। यही अंक न्यादर्श (प्रतिदर्श) के रूप में मने जाते हैं। ये अलग-अलग टुकड़े इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।

(3) निश्चित क्रम द्वारा (By systematic arrangement) -

इस रीति के अंतर्गत समग्र की इकाइयों को संख्यात्मक या वर्णनात्मक क्रम से व्यवस्थित कर लिया जाता है। यानि कि किसी विशेष अवधि के अनुसार लिख लिया जाता है। समग्र की इकाइयों के नामों को चुनने का तरीक़ा कोई भी हो सकता है।

उदाहरण के लिए, क्रिकेट खेलने के लिए सभी खिलाड़ियों (समग्र) में से कुछ खिलाड़ियों को चुनकर 1 टीम बनानी हो तो। पहले सभी को एक कतार में खड़ा किया जा सकता है। फ़िर इस कतार में से प्रत्येक दूसरा, या तीसरा या चौथा या पाँचवाँ आदि को चुनकर एक टीम बनाई जा सकती है। आपने बचपन मे अक्सर इस तरह टीम बहुत चुनी होगी।

(4) टिप्पेट की दैव संख्याएँ (Tippet) -

हम आपको बता दें कि यह प्रणाली दैव निदर्शन प्रणालियों में एक महत्वपूर्ण प्रणाली है। टिप्पेट ने कुछ देशों की जनसंख्या की रिपोर्ट के आधार पर चार-चार अंकों वाली 10400 संख्याओं वाली एक सूची तैयार की जिन्हें टिप्पेट की दैव संख्याएँ कहते हैं। इन संख्याओं को बिना किसी क्रम के कई पृष्ठों पर लिखा गया है। 

इसके आधार पर यदि 5000 छात्रों में से केवल 12 न्यादर्श छाँटने हों तो पूरे 5000 विद्यार्थियों को 1 से 5000 तक क्रम संख्याओं में क्रमबद्ध किया जाएगा। फ़िर उस सारणी में से प्रारंभ से ऐसे 12 अंक चुन लिए जाएंगे, जो 5000 से अधिक न हों।

ठीक इसी तरह यदि 2000 समग्र वाली इकाइयों में से कुछ इकाइयों के न्यादर्श प्राप्त करना हो तो, समस्त 2000 इकाइयों को क्रमबद्ध व्यवस्थित करने के बाद जिन इकाइयों को छांटना हो, उतने अंक छाँट लिए जाएंगे। इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि ये 2000 से अधिक ना हों। 

 

दैव निदर्शन के गुण | दैव निदर्शन के लाभ | Merits of Random Sampling in hindi

दैव निदर्शन के महत्व (dev nidarshan ke mahatva) या दैव प्रतिचयन के महत्व, गुण या लाभ (dev nidarshan ke gun) निम्नलिखित हैं-

(1) दैव निदर्शन रीति में प्रतिदर्श का चुनाव दैव योग अर्थात भाग्य पर निर्भर करता है। इसलिए यह रीति पक्षपात की भावना से मुक्त होती है। इसका न्यादर्श पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

(2) इस रीति में सबसे ख़ास बात यह है कि इसमें समय, धन व श्रम की बचत होती है।

(3) इसे अधिक प्रतिनिधित्व पूर्ण कहा जा सकता है। क्योंकि इस रीति में प्रत्येक इकाई के चुने जाने के अवसर समान होते हैं।

(4) सामान्य रूप से देखा जाए तो यह रीति बहुत सरल होती है। क्योंकि इसमें सब कुछ भाग्य पर छोड़ दिया जाता है। चयन करने के लिए ज़्यादा बुद्धि (दिमाग़) नहीं लगाना पड़ता है।




दैव निदर्शन के दोष | दैव निदर्शन की सीमाएँ | Demerits of Random Sampling in hindi

दैव निदर्शन रीति में प्रतिदर्श के चुनाव में कुछ दोष भी देखे जाते हैं जिसके बारे में हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से जानेंगे। दैव प्रतिचयन के दोष या सीमाएँ (dev nidarshan ke dosh) निम्नलिखित हैं-

(1) यदि प्रतिदर्श का आकार छोटा हो या समग्र में विविध प्रकार की इकाइयाँ हों। तो ऐसी स्थिति में दैव निदर्शन (दैव प्रतिचयन) उचित रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करता है।

(2) जब समग्र बहुत छोटा हो और कुछ कुछ इकाइयाँ इतनी महत्वपूर्ण हों कि उन्हें निदर्श में शामिल करना आवश्यक हो। तब ऐसी स्थिति में यह रीति उपयुक्त नहीं होती।

(3) इस रीति में यह आवश्यक है कि प्रयोग में लाये जाने वाले समग्र की इकाइयाँ एक दूसरे से स्वतंत्र हों।

(4) इस रीति में कभी-कभी पक्षपात पूर्ण रवैया देखने मिलता है। कई बात लॉटरी विधि पक्षपात रूप से क्रियान्वित की जाती है।






दैव निदर्शन की मान्यताएँ (Assumptions of Random Sampling in hindi)

इस रीति को सफल बनाने हेतु कुछ विशिष्ट मान्यताएँ (dev nidarshan ki manyata) हैं जिन्हें हम निम्नांकित बिंदुओं में पढ़ेंगे। दैव प्रतिचयन की मान्यताएँ (dev pratichayan ki manyata) निम्नलिखित हैं -

(1) दैव प्रतिचयन पूर्ण रूप से सफल हो इसके लिए सबसे ज़्यादा यह आवश्यक है कि इसमें किए जाने वाले चुनाव निष्पक्ष हों।

(2) इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाए कि प्रत्येक इकाई के प्रतिदर्श में शामिल होने के अवसर समान हों। 

(3) विभिन्न इकाइयों के चुनाव स्वतंत्र रूप से हो तथा चुनाव के बाद निदर्शन इकाइयों में किसी प्रकार का परिवर्तन ना हो। 

(4) इस रीति में इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए कि समग्र में से इकाइयों को चुनने की किसी भी रीति में पक्षपातपूर्ण रवैया न हो।

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