हरित क्रांति क्या है? | हरित क्रांति के फ़ायदे और नुक़सान | Green revolution meaning in hindi

हरित क्रांति का अर्थ क्या है? (definition of green revolution in hindi), विशेषताएँ, हरित क्रांति के तत्व, प्रभाव, समस्याएँ और सफलता हेतु सुझाव। what is the meaning of green revolution in hindi?

हरित शब्द का अर्थ है 'फसलें' और क्रांति से अभिप्राय है 'तेज़ी से वृद्धि' यानि कि दोनों ही शब्दों को मिलाकर आप यह कह सकते हैं कि हरित क्रांति मतलब "फसलों के उत्पादन में तेज़ी से वृद्धि"।

हरित क्रांति क्या है?

हरित क्रांति से आशय (harit kranti se ashay) कृषि उत्पादकता में उस वृद्धि से है जो देश में थोड़े समय में अधिक से अधिक मात्रा में उच्च पैदावार वाले बीजों और उर्वरकों के सफल प्रयोगों के फलस्वरूप हुई है। इसके अंतर्गत बीज व खाद के संयोग को सफल बनाने के लिए अन्य आवश्यक साधनों जैसे- सिंचाई, मशीनें, कीटनाशक दवाएँ आदि का प्रबंध भी विशेष तौर पर किया जाता है।

भारत में हरित क्रांति कब आई? (when green revolution started in india) तो हम बता दें कि Harit kranti ki shuruaat हरित क्रांति की शुरुआत सन 1966-67 (लगभग 1960 से 1970 के दशक के मध्य) से हुई। विश्व स्तर पर हरित क्रांति के जनक के रूप में प्रोफ़ेसर नारमन बोरलॉग को माना जाता है। इन्हें हरित क्रांति का पिता Father of green revolution in hindi कहा जाता है।


भारत में एम. एस. स्वामीनाथन जो कि अनुवांशिक वैज्ञानिक थे। उन्होंने सही मायने में हरित क्रांति की शुरुआत की। इन्होंने ही कृषि क्षेत्र में नवीनतम विचारों और रचनात्मकता का विकास किया। इसीलिये भारत में इन्हें ही हरित क्रांति का जनक माना जाता है।

अनुक्रम 

• हरित क्रांति की आवश्यकता
• हरित क्रांति क्या है?
• हरित क्रांति के चरण 
• हरित क्रांति की विशेषताएँ /उद्देश्य 
• हरित क्रांति के प्रभाव 
• हरित क्रांति का फसलों पर प्रभाव, उपलब्धियाँ 
• हरित क्रांति की समस्याएँ /दुष्परिणाम 


हरित क्रांति की आवश्यकता (harit kranti ki avashyakta)

एक प्रश्न उठता है कि हरित क्रांति को क्यों लागू किया गया? हरित क्रांति लागू करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? तो आइए हम हरित क्रांति की आवश्यकता को सटीक शब्दों में समझते हैं। स्वतंत्रता के समय देश की लगभग 75% जनसंख्या केवल कृषि पर आश्रित थी। किसानों के पास आधारिक संरचना का अभाव और कृषि में पुरानी तकनीक का प्रयोग, उत्पादकता में कमी का प्रमुख कारण थी।


अधिकांश किसान, कृषि हेतु मानसून पर निर्भर रहते थे क्योंकि सिंचाई सुविधा कुछ ही किसानों के पास उपलब्ध थीं। वित्त की कमी के कारण बाक़ी के किसान अपने लिए अच्छी सुविधाओं की व्यवस्था करने में असमर्थ थे। जिस कारण लगातार पैदावार का स्तर निम्न हो चला था। इस विकट परिस्थिति से उबरने के लिए किसी ऐसी योजना की आवश्यकता थी जिससे कृषि की उत्पादकता में संतोषजनक वृद्धि लायी जा सके।

हरित क्रांति योजना ने इस औपनिवेशिक काल के कृषि गतिरोध को स्थायी रूप से समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब हरित क्रांति पर प्रश्न उठता है कि हरित क्रांति का तात्पर्य क्या है? तो आइये हम हरित क्रांति किसे कहते हैं? harit kranti ka arth विस्तार से जानते हैं?

हरित क्रांति क्या है? | Harit Kranti kya hai?

देश के सिंचित व असिंचित कृषि क्षेत्रो में अच्छी फ़सल यानि कि उच्च पैदावार वाले बीजों के उपयोग से उत्पादन में आश्चर्यजनक तेज़ी लाने की प्रक्रिया को ही हरित क्रांति के नाम से जाना जाता है। जहाँ पारंपरिक तकनीक के स्थान पर नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही उर्वरकों, सिंचाई के साधनों और उपयुक्त कीटनाशकों के प्रयोग से उच्च क़िस्म के बीजों द्वारा उत्पादन को बढ़ाने के इस प्रयास को सफलतम स्तर तक ले जाने का प्रयास किया जाता है।

चूँकि कृषि क्षेत्र में यह तकनीक अचानक लायी गयी, उतनी ही तेज़ी से इसका विकास भी हुआ और थोड़े ही समय में इसके आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हुए यही कारण है कि इस अप्रत्याशित प्रगति को कृषि विशेषज्ञों ने हरित क्रांति harit kranti नाम दिया।


स्वतंत्रता के पश्चात उत्पादन स्तर में आयी गिरावट को रोकने के लिए उच्च पैदावार वाली क़िस्मों के बीजों (HYV) का प्रयोग विशेषकर गेहूँ और चावल के उत्पादन में वृद्धि हेतु किया गया। इन बीजों के प्रयोग के लिए पर्याप्त मात्रा में उवर्रकों, कीटनाशकों और पर्याप्त जल आपूर्ति की व्यवस्था सुनिश्चित की गयी।

हरित क्रांति के चरण (stages of green revolution in hindi)

भारत में हरित क्रांति 1960 से 1980 तक दो चरणों में हुई थी। हरित क्रांति के अंतर्गत उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हेतु 2 चरणों में ये प्रयास किये किये थे। आइये जानते हैं ये 2 चरण क्या थे-

(1) प्रथम चरण (1960 से 1970 के मध्य) - हरित क्रांति के पहले चरण में HYV बीजों का प्रयोग केवल पंजाब, आन्ध्रप्रदेश और तमिलनाडु जैसे  समृद्ध राज्यों तक ही पहुँच पाया था। इस पहली हरित क्रांति में केवल गेहूँ के उत्पादन करने वाले क्षेत्रों को ही फ़ायदा मिल पाया।

(2) द्वितीय चरण (1970 से 1980 के मध्य) - दूसरी हरित क्रांति 2nd green revolution in hindi के अंतर्गत HYV बीजों की प्रौद्योगिकी का विस्तार कर कई राज्यों तक पहुँचाया गया। जिससे फसलों को लाभ मिला।  इस चरण में हरित क्रांति का स्तर और भी व्यापक हो गया।


हरित क्रांति की विशेषताएँ | हरित क्रांति के तत्व | हरित क्रांति के उद्देश्य

भारत में हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएँ (harit kranti ki mukhya visheshtaen) या तत्व या उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) उच्च पैदावार वाली क़िस्म के बीजों का प्रयोग - हरित क्रांति के अंतर्गत कम समय में अधिक उपज देने वाले उच्च क़िस्म के बीजों का प्रयोग किया जाता है। किसान साल में दो या अधिक बार भी फसल उगा सकते हैं। भारत में इसके अंतर्गत गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का की फसलें उगाई जाती हैं।


(2) उर्वरकों का प्रयोग - उन्नत क़िस्म के बीजों के साथ-साथ मिट्टी में पोषक तत्व भी ज़रूरी होते हैं। इसके लिए रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाता है।

(3) कीटनाशकों का प्रयोग - उन्नत बीजों और अच्छे रासायनिक उर्वरकों के बाद भी अक़्सर फसलें कीड़ों के कारण को नष्ट हो जाती हैं। इससे बचाव के लिए बचाव के कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।

(4) सिंचाई की व्यवस्था - उन्नत क़िस्म के बीज, कीटनाशक तथा उर्वरकों की उपलब्धता के साथ-साथ सिंचाई भी अत्यंत महत्वपूर्ण होई है अन्यथा सारी सुविधाओं के बावजूद उत्पादन में वृद्धि नहीं हो पाती। इसलिए हरित क्रांति में सिंचाई सुविधाओं के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

(5) बहु-फसली कार्यक्रम - हरित क्रांति के अंतर्गत कम समय में गहन खेती वाली फसलों को ज़्यादा महत्व दिया जाता है। बहु-फसली कार्यक्रम पर ज़ोर दिया जाता है।

(6) कृषि का मशीनीकरण - कृषि उपज में तेज़ी से वृद्धि करने हेतु बहु-फसलों के साथ-साथ मशीनीकरण पर भी ध्यान दिया जाता है। ताकि फसलों को कम समय में अधिक बार उत्पादित किया जा सके।

(7) शुष्क भूमि वाली फसलों का विकास - इसके अंतर्गत ऐसी फसलों का विकास किया जाता है। जो कम पानी मे भी थोड़े समय में तैयार की जा सकती है।


हरित क्रांति के प्रभाव | Impact of green revolution in hindi | Effects or Benefits of green revolution in hindi

भारत में 2 दोनों चरणों में लागू की गई हरित क्रांति के प्रभाव निम्न रूप में दिखाई दिए-

1.  हरित क्रांति के फलस्वररूप खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई। इसके बाद भारत, खाद्य संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य देशों पर निर्भर नहीं रह गया।

2. दूसरी हरित क्रांति (2nd green revolution in hindi) के दौरान किसान अपने गेहूँ और चावल के अतिरिक्त उत्पादन का अच्छा ख़ासा हिस्सा बाज़ार में बेचकर आय प्राप्त करने लगे।

3. दूसरी हरित क्रांति के फलस्वररूप खाद्यान्नों की क़ीमतों में, उपभोग की अन्य वस्तुओं की अपेक्षा अभूतपूर्व कमी देखी गयी। जिसका फ़ायदा निम्न आय वाले वर्गों को पहुँचा। जो कि अपनी आय का बड़ा हिस्सा अपने उपभोग की वस्तुओं (भोजन) पर ही ख़र्च कर दिया करते थे।



4. हरित क्रांति के इस दूसरे चरण के परिणाम स्वरूप सरकार सुरक्षित स्टॉक के रूप में पर्याप्त खाद्यान्न इकट्ठा करने में सक्षम हो गयी। जिसे वह आपातकालीन स्थिति में खाद्यान्न की कमी के समय उपयोग में ला सकती थी।


हरित क्रांति का फसलों पर प्रभाव | हरित क्रांति की उपलब्धियाँ 

हरित क्रांति के लागू होने से भारत में चारों तरफ़ हरित क्रांति के लाभ दिखाई देने लगे। कृषि क्षेत्र में उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़े। आइये जानते हैं भारत में फसलों पर हरित क्रांति के प्रभाव क्या थे? 

(1) उत्पादन में वृद्धि - हरित क्रांति के परिणामस्वरूप देश में गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा तथा मक्का आदि फसलों के उत्पादन में पहले की अपेक्षा तेज़ी से वृद्धि हुई। जिनमें गेहूँ के उत्पादन सब्स ज़्यादा गति से बढ़ा है। 1965-66 में जहाँ उत्पादन 103 लाख टन था। वह 2016-2017 में बढ़कर 984 लाख टन हो गया।

(2) प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि - भारत की हरित क्रांति के फलस्वरूप प्रति हेक्टेयर पैदावार में तेज़ी से वृद्धि हुई। 1960-61 में प्रति हेक्टेयर उपज जहाँ 851 किग्रा थी। वहीं 2016-17 बढ़कर 3216 किग्रा प्रति हेक्टेयर हो गयी।

(3) कृषि बचतों में वृद्धि - इस नई नीति को अपनाने के बाद भारतीय कृषि में बचतें बढ़ने लगीं। कृषि की ये बचतें भारतीय औद्योगीकरण के लिए सहायक सिद्ध हुईं।


(4) खाद्यान्न आयतों में कमी - भारत में हरित क्रांति के फलस्वररूप देश के अंदर होने वाले खाद्यान्न के आयातों में कमी आ गयी। खाद्यान्न के आयात लगभग बंद हो गये। खाद्यान्न आयतों से बची हुई मुद्रा से अन्य वस्तुओं का आयात सम्भव हो सका।


हरित क्रांति की समस्याएँ | Problems of green revolution in hindi | हरित क्रांति के दुष्परिणाम

सामान्य रूप से देखा जाए तो इस हरित क्रांति अभियान में कुछ कमियाँ या समस्याएँ सामने आयी हैं। आइये देखते हैं कि हरित क्रांति के दुष्प्रभाव क्या थे? आप इन्हें हरित क्रांति की सीमाएँ limits of green revolution in hindi भी कह सकते हैं। आइये देखते हैं हरित क्रांति की कमियाँ (harit kranti ki kamiya) क्या हैं- 

(1) खाद्य फसलों को ही फ़ायदा - हरित क्रांति का लाभ तो सम्पूर्ण देश को पहुँचा। लेकिन इसमें एक कमी यह रह गयी कि इसका फ़ायदा केवल गेहूँ की फसल को ही ज़्यादा लाभ मिल पाया। अन्य फसलों को लाभ नहीं मिल पाया।

(2) सीमित क्षेत्र में विकास - हरित क्रांति का प्रभाव पूरे देश मे एकसमान नहीं दिखाई दिया। जो क्षेत्र समृद्ध थे। जिन क्षेत्रों में पर्याप्त सिंचाई की सुविधाएँ उओलब्ध थीं। हरित क्रांति का प्रभाव उन्हीं क्षेत्रों में ज़्यादा दिखाई दिया। जैसे- पंजाब, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र आदि प्रदेश कृषि में बहुत आगे निकल गए। जबकि अन्य क्षेत्र इससे लाभान्वित नहीं हो सके।

(3) किसानों की आय में असमानताएँ - हरित क्रांति का उद्देश्य तो सभी किसानों को लाभ पहुँचाना था। किंतु इसका लाभ अमीर किसानों को ही ज़्यादा मिला। ग़रीब किसान इस योजना का फ़ायदा नहीं ले पाए। कुछ ही किसानों ने उन्नत बीजों व नई तकनीकों का लाभ लिया। जिस कारण देश के किसानों की आय में असमानताएँ और भी ज़्यादा बढ़ गयीं।

(4) खाद्य फसलों तक ही सीमित - सही मायने में देखा जाए तो हरित क्रांति का प्रभाव केवल खाद्य फसलों पर ही ज़्यादा पड़ा। ग़ैर खाद्यान्न फसलों (पूंजीगत फसलों) को इसका कोई लाभ न मिल सका।

(5) बेरोज़गारी में वृद्धि - हरित क्रांति की एक विशेषता यह थी कि इस योजना में मशीनीकरण का बहुतायत में विस्तार किया गया। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि देश में श्रमिकों की बेरोज़गारी पहले से भी ज़्यादा बढ़ गयी।


(6) पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव - आप जान चुके हैं कि हरित क्रांति अभियान के तहत उर्वरकों का बहुतायत में प्रयोग किया गया। उर्वरकों में यूरिया का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग तथा कीटनाशक के रूप में अत्यधिक मात्रा में रसायन के प्रयोग के परिणामस्वरूप जल और वायु का प्रदूषण बढ़ गया। जिस कारण भूमि का अपघटन भी शुरू हो गया।

(7) स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव - हरित क्रांति में अधिक मात्रा में यूरिया व रसायन के प्रयोग से व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगा। देश में रहने वाले लोग कैंसर, दमा, गुर्दे के रोग आदि बीमारियों से भारी संख्या में पीड़ित होने लगे।


आपने इस अंक में जाना कि किस तरह भारत की हरित क्रांति green revolution in india के सफलतम प्रभाव क्या थे? हरित क्रांति कब लागू हुई थी? फसलों की सुरक्षा के अंतर्गत हरित क्रांति खाद्य सुरक्षा के बारे में जाना। हरित क्रांति का अर्थ एवं विशेषताएँ क्या हैं? इस अंक में आपने सटीक एवं सरल शब्दों में जाना। 

उम्मीद है आपने अब हरित क्रांति अभियान क्या है? अच्छी तरह समझ लिया होगा। आशा करता हूँ आप इसी तरह हमारी इस वेबसाइट studyboosting.com से जुड़े रहेंगे। अपनी प्रतिक्रिया आप हमें अवश्य दे सकते हैं।

अन्य टॉपिक्स पर भी आर्टिकल्स पढ़ें 👇













Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ