पूर्ति किसे कहते हैं? पूर्ति का अर्थ, आवश्यक तत्व एवं पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्व | What is supply in economics in hindi

पूर्ति से आप क्या समझते हैं? इसके लिए आवश्यक तत्व क्या हैं? | पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्व/कारक कौन कौन से हैं?




किसी वस्तु की पूर्ती से अभिप्राय, वस्तु की उस मात्रा से होता है, जिसे एक विक्रेता किसी निश्चित समय में, एक निश्चित क़ीमत पर बाज़ार में बिक्री करने के लिए तैयार होता है।

अन्य शब्दों में कहा जाए तो, पूर्ति का आशय (purti ka aashay) एक ऐसी अनुसूची या तालिका होता है, जिसमें वस्तु की उन मात्राओं को दर्शाया जाता है, जिन्हें कोई उत्पादक, वस्तु की विभिन्न क़ीमतों पर किसी निश्चित समय पर बिक्री करने हेतु तैयार रहता है।

अनुक्रम (index)👇

• पूर्ति क्या है? (purti kya hai?)
• पूर्ति की परिभाषाएं
• पूर्ति के आवश्यक तत्व क्या होते हैं?
• पूर्ति के कौन कौन से प्रकार होते हैं?
• पूर्ति को प्रभावित/निर्धारित करने वाले तत्व 


पूर्ति क्या है? (Purti Kya hai?)

अर्थशास्त्र में पूर्ति शब्द का अर्थ किसी वस्तु की उस मात्रा से होता है जिसे कोई विक्रेता, एक निश्चित समय और एक निश्चित कीमत पर बाज़ार में बेचने के लिए तैयार हो जाता है। जिस प्रकार मांग संबंध हमेशा ही एक निश्चित समय तथा एक निश्चित कीमत से होता है। ठीक उसी प्रकार पूर्ति का संबंध भी सदैव एक निश्चित समय तथा निश्चित कीमत से होता है। किसी वस्तु की पूर्ति (kisi vastu ki purti) को हम इस उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं।

उदाहरण के लिए मान लीजिए कि पूर्ति के संबंध में यह कहा जाए कि गेहूं की पूर्ति 2000 क्विंटल है। तो यह कहना सरासर ग़लत होगा। क्योंकि इसमें गेहूं की कीमत और निश्चित समय का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। 

बल्कि उदाहरण के तौर पर, पूर्ति के संबंध में यह कहना उचित और सत्य होगा कि ₹ 300 प्रति क्विंटल पर आज बाज़ार में गेहूं की पूर्ति 2000 क्विंटल है।  

पूर्ति की परिभाषाएं (purti ki paribhasha)

अर्थशास्त्र में पूर्ति का तात्पर्य है किसी वस्तु की वह मात्रा से है जो किसी उत्पादक या विक्रेता द्वारा, निश्चित समय पर, किसी विशेष मूल्य पर बाज़ार में बिक्री के लिए उपलब्ध की जाती है। आइए पूर्ति की कुछ परिभाषाएं जानते हैं।

प्रो. बेन्हम के अनुसार - "पूर्ति का आशय वस्तु की उस मात्रा से होता है, जिसे उत्पादक या विक्रेता, प्रति इकाई समय में बेचने लिए बाज़ार में प्रस्तुत करता है।"

प्रो. अनातोल मुराद के अनुसार - "किसी वस्तु की पूर्ति का आशय, वस्तु की उस मात्रा से है, जिसे कोई विक्रेता या उत्पादक, किसी नियत मूल्य पर, किसी बाज़ार में, एक निश्चित समय पर बेचने को तैयार रहता है।"



साधारण बोलचाल की भाषा में हम पूर्ति तथा स्टॉक को एक जैसा ही समझते हैं। किन्तु आर्थिक विश्लेषण की दृष्टि से देखा जाए तो ये दोनों ही अलग-अलग हैं। दरअसल स्टॉक किसी वस्तु की उस समस्त उपलब्ध मात्रा को कहते हैं जो किसी उत्पादक के पास होती है। ठीक इससे अलग पूर्ति उस स्टॉक में से एक निश्चित समय तथा निश्चित क़ीमत पर बिक्री हेतु, प्रस्तुत की गई मात्रा होती है।




पूर्ति के आवश्यक तत्व (enssential elements of supply in hindi)

किसी भी वस्तु की पूर्ति की अवधारणा (purti ki avdharna) को समझने के लिए लिए उस वस्तु की पूर्ति के आवश्यक तत्व (purti ke avashyak tatva) महत्वपूर्ण होते हैं जो कि निम्न हैं -

1. वस्तु की मात्रा - किसी वस्तु की पूर्ति तब कहलाती है जब कोई उत्पादक अपने पास उपलब्ध किसी वस्तु के स्टॉक में से उस वस्तु की एक निश्चित मात्रा को बाज़ार में बेचने के लिए तैयार हो जाए।

2. वस्तु की क़ीमत - किसी वस्तु की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए उस वस्तु की एक निश्चित क़ीमत का होना भी अत्यंत आवश्यक होता है। कोई उत्पादक, जिस पर वस्तु की निश्चित मात्रा को बेचने के लिए तैयार हो जाए।

3. निश्चित समय अंतराल - किसी भी वस्तु की पूर्ति के लिए एक निश्चित समय अंतराल का होना भी उतना ही आवश्यक होता है जितना कि वस्तु की क़ीमत और मात्रा का होना माना जाता है।




पूर्ति के प्रकार (purti ke prakar)

किसी वस्तु की पूर्ति (vastu ki purti) के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं -

(1) बाज़ार पूर्ति (bazar purti) - 
बाज़ार पूर्ति को अति अल्पकालीन पूर्ति भी कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पूर्ति, बाज़ार के दिन यानि कि कुछ घंटे या उस एक दिन के लिए ही होती है। जब किसी स्थान विशेष पर एक-दो दिनों के लिए ही बाज़ार लग रहा हो।

(2) अल्पकालीन पूर्ति (alpkalino purti) -
किसी भी वस्तु की अल्पकालीन पूर्ति वह पूर्ति होती है जिसे उत्पादक या विक्रेता अपने स्टॉक में विद्यमान वस्तु की मात्रा में ही वृद्धि कर सकता है। उसके पास इतना समय नहीं होता कि पूर्ति बढ़ाने के लिए उत्पत्ति के साधनों में वृद्धि कर सके।

(3) दीर्घकालीन पूर्ति (dirghkalin purti) -
दीर्घकालीन पूर्ति किसी वस्तु की वह पूर्ति होती है जिसमें उत्पादक मांग के अनुसार बढ़ा सकता है। उसके पास इतना पर्याप्त समय होता है कि वह अपने पुराने साधनों में वृद्धि करने के साथ-साथ उत्पत्ति के नए साधनों का प्रयोग भी कर सकता है।

(4) संयुक्त पूर्ति (sanyukt purti) -
उत्पादक जब किसी वस्तु की पूर्ति के साथ कोई अन्य वस्तु भी शामिल करता है। तो पूर्ति को संयुक्त पूर्ति कहा जाता है। जैसे- गेहूं के साथ भूसा, शक्कर के साथ शीरा, मांस के साथ चमड़ा।

(5) सामूहिक पूर्ति (samuhik purti) -
ऐसी पूर्ति जो कई स्रोतों से की जा सकती है, उसे सामूहिक पूर्ति कहा जाता है। जैसे प्रकाश की पूर्ति विद्युत, लालटेन, मोमबत्ती, लैंप आदि से की जा सकती है।



पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक (purti ko prabhavit karne wale karak)


वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक (vastu ki purti ko prabhavit karne wale karak) निम्न हैं - 

(1) वस्तु की क़ीमत -
वस्तु की क़ीमत का वस्तु की पूर्ति पर अधिक प्रभाव पड़ता है। यदि अन्य बातें स्थिर हों तो वस्तु की ऊंची क़ीमत होने पर वस्तु की पूर्ति अधिक होती है। क्योंकि विक्रेता भी ऊंची क़ीमत पर वस्तु को बेचना ज़्यादा पसंद करता है। इसके विपरीत क़ीमत नीची होने पर पूर्ति भी कम हो जाती है।

(2) संबंधित वस्तुओं की क़ीमत -
वस्तु की पूर्ति पर संबंधित वस्तुओं की क़ीमत का भी प्रभाव पड़ता है। यदि किसी वस्तु की स्थानापन्न वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाए तो उत्पादक इस वस्तु की पूर्ति कम कर, उसके स्थानापन्न वस्तु का उत्पादन व बिक्री करना चाहेंगे। फलस्वरूप वे स्थानापन्न वस्तु की पूर्ति बढ़ाना चाहेंगे। इसी प्रकार यदि किसी वस्तु की स्थानापन्न वस्तुओं का मूल्य कम हो जाए तो उत्पादक स्थानापन्न वस्तुओं के बजाय इस वस्तु की पूर्ति बढ़ाना चाहेंगे।  

(3) उत्पत्ति के साधनों की क़ीमत - 
उत्पादन के साधनों की क़ीमतों में परिवर्तन हो जाने पर भी वस्तु की पूर्ति (Supply) में महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है। उत्पत्ति के साधनों की क़ीमत बढ़ने से उस वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ जाती है। जिससे उत्पादकों को लाभ कम होता है। इसलिए उत्पादक उस वस्तु का उत्पादन कम करते हैं जिस कारण उस वस्तु की पूर्ति घट जाती है। इसके विपरीत उत्पत्ति के साधनों की क़ीमत घट जाने से उत्पादन लागत कम हो जाती है। जिस कारण उत्पादन भी बढ़ जाता है और पूर्ति भी बढ़ जाती है।



(4) तकनीकी ज्ञान -
तकनीकी ज्ञान में वृद्धि होने पर वस्तु के उत्पादन में वृद्धि होती है और वस्तु की पूर्ति भी बढ़ जाती है। क्योंकि तकनीकी विकास से उत्पादन में सुधार होता है और उत्पादन लागत भी कम हो जाती है। इसके विपरीत परिस्थितियों में वस्तु की पूर्ति घट जाती है।

(5) प्राकृतिक तत्व -
जिन वस्तुओं के उत्पादन में प्राकृतिक साधनों या परिस्थितियों का प्रभाव ज़्यादा होता है। उन वस्तुओं की पूर्ति भी प्राकृतिक तत्वों के कारण परिवर्तित हो जाती है। जैसे- समय पर पर्याप्त वर्षा, सिंचाई के साधन आदि मिल जाएं तो उस अनाज का उत्पादन भी बढ़ जाता है। अर्थात पूर्ति भी बढ़ जाती है। इसके विपरीत यदि सूखा, बाढ़, अतिवृष्टि, बीमारी आदि हो जाए तो वस्तु का उत्पादन घट जाता है। अर्थात वस्तु की पूर्ति भी घट जाती है।

(6) उत्पादकों की रुचि -
कभी-कभी वस्तु के उत्पादन पर उत्पादकों की विशेष रुचि का भी प्रभाव पड़ता है। क्योंकि उत्पादक जिस वस्तु में रुचि हो उस वस्तु के उत्पादन को वरीयता देता है। फलस्वरूप उस वस्तु की पूर्ति भी बढ़ जाती है। इसके विपरीत यदि उस वस्तु के उत्पादन में उत्पादक की कोई रुचि न हो, वह उसका उत्पादन कम करेगा। फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति घट जाएगी।

(7) उत्पादकों का विशेष लक्ष्य - 
आर्थिक विश्लेषण के नज़रिये से देखा जाए तो प्रायः यह मान लिया जाता है कि कोई भी फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के उद्देश्य से कार्य करती है। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि फर्म सिर्फ़ लाभ कमाने के बजाय किसी बाज़ार में अपनी वस्तु का विस्तार करना चाहती है। ऐसी स्थिति में वह अपनी उस वस्तु की पूर्ति को बढ़ाने का प्रयास करती है।

(8) सरकार की कर नीति - 
किसी वस्तु की पूर्ति पर सरकार की कर नीति का भी प्रभाव पड़ता है। किसी वस्तु पर यदि सरकार अधिक कर लगती है तो बाज़ार में उस वस्तु की क़ीमत एकाएक बढ़ जाती है। जिस कारण उस वस्तु की मांग घटने लगती है। उत्पादकों को लाभ कम होता है जिस कारण उस वस्तु का उत्पादन भी कम होने लगता है। फलस्वरप वस्तु की पूर्ति घट जाती है।

उम्मीद है इस अंक में आप पूर्ति क्या होती है? (purti kya hoti hai?) जान चुके होंगे। साथ ही पूर्ति की अवधारणा के साथ साथ पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्व कौन कौन से हैं? भलीभांति जान चुके होंगे। ऐसे ही अर्थशास्त्र से जुड़े महत्वपूर्ण टॉपिक्स के लिए बने रहिए studyboosting के साथ।

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