अर्थशास्त्र क्या है? अर्थशास्त्र पर टिप्पणी लिखिये । Economics Definition for Students in hindi

अर्थशास्त्र से क्या तात्पर्य है? Simple Definition of Economics

र्थशास्त्र एक ऐसा विषय है जिसके बिना प्रयोग के घर परिवार तो क्या, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र भी अपाहिज बनकर रह जाता है। अर्थव्यवस्था को नियंत्रित और समन्वित करने में अर्थशास्त्र से बेहतर कुछ और हो नहीं सकता।

अर्थशास्त्र क्या है इन हिंदी 


किसी भी शास्त्र की प्रकृति, विषय सामग्री आदि को समझने के लिए सर्वप्रथम उसे परिभाषित करना निश्चित रूप से आवश्यक होता है। क्योंकि बिना परिभाषा के किसी भी शास्त्र के विषय में विस्तृत रूप से जानना उतना ही कठिन होता है जितना कि किसी व्यक्ति का नाम, उसका स्थान जाने बिना उसकी सम्पूर्ण प्रकृति के बारे में जानने की कोशिश करना। इस लेख में हम अर्थशास्त्र को उसकी विभिन्न परिभाषाओं तथा प्राचीन से लेकर आधुनिक विचारधाराओं के आधार पर विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे।


अर्थशास्त्र की परिभाषा । Economics definition in hindi । Arthshastra ki paribhasha

"सामाजिक विज्ञान की उस शाखा को, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र कहा जाता है।"

देश में उत्पादन हो, वितरण हो, उपभोग हो अथवा विनिमय ही क्यों ना हो। अर्थशास्त्र का चोली-दामन का साथ होता है। घर के छोटे-मोटे हिसाब-किताब हों या राष्ट्र की सम्पूर्ण आय का सवाल हो। अर्थशास्त्र के बग़ैर पत्ता ही नहीं हिलता। किसानों से लेकर बैंक के कार्य भी अर्थशास्त्र के बिना अधूरे हैं।

अर्थात हम सीधे शब्दों में यह कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र का उपयोग क़दम-क़दम पर होता है। चाहे फ़िर व्यवस्था आर्थिक हो, व्यावसायिक हो, धार्मिक हो, सामाजिक हो या राजनैतिक ही क्यों न हो।

अर्थशास्त्र शब्द प्रमुख रूप से संस्कृत के दो शब्दों अर्थ (धन) एवं शास्त्र से मिलकर बना है। जिनका शाब्दिक अर्थ है, धन का अध्ययन। यानी कि अर्थशास्त्र के अंतर्गत समाज में विभिन्न वर्गों की आर्थिक स्थिति की जानकारी लेना। अर्थात अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थ से संबंधित कार्यों का विस्तृत एवं क्रमबद्ध ज्ञान आवश्यक है।

अधिकांश प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को धन, प्रबंध आदि का विज्ञान कहकर परिभाषित किया किन्तु एडम स्मिथ पहले अर्थशास्त्री थे जिन्होंने अर्थशास्त्र को सर्वप्रथम एक पृथक विज्ञान के रूप में विकसित किया। इसीलिये इन्हें "अर्थशास्त्र का जनक" कहा जाता है। इन्हें ही अर्थशास्त्र के जन्मदाता, अर्थशास्त्र के खोजकर्ता आदि के नाम से जाना जाता है।





अर्थशास्त्र एक परिचय (Arthshastra ek parichay)

अर्थशास्त्र शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के दो शब्दों oikos और nomos से हुई है। जहाँ oikos का अर्थ होता है- परिवार, और nomos का अर्थ होता है प्रबंध। अर्थशास्त्र का आरंभ अर्थात प्रयोग सही मायने में कहा जाए तो परिवार से ही शुरू हो जाता है जहाँ परिवार के मुखिया को अपनी सीमित आय में ही पारिवारिक आवश्यकताओं का मैनेजमेंट यानी कि प्रबंधन करना होता है। इसीलिए शुरुआत में अर्थशास्त्र को परिवार के प्रबंध के सिद्धांतों के रूप में परिभाषित किया गया।
 
प्राचीनकाल से आधुनिक काल तक अर्थशास्त्र की अवधारणा देने और उसको परिभाषित करने के लिए अर्थशास्त्र की परिभाषा के संबंध में अर्थशास्त्रियों में बहुत मतभेद हैं। इन्ही मतभेदों और भिन्न भिन्न विचारकों को हम समय के अनुसार निम्न दो वर्गों में विभाजित कर सकते है-

(1) प्राचीन भारतीय आर्थिक विचारक (Ancient Indian Economic thinkers)
(2) पाश्चात्य आर्थिक विचारक (Western Economic Thinkers)

अर्थशास्त्र की परिभाषाओं को समझने के लिए हमें उपरोक्त दोनों ही विचारधाराओं के अर्थशास्त्रियों की अवधारणाओं को समझना होगा। तो चलिए हम क्रमशः प्राचीन और पाश्चात्य विचारकों की अर्थशास्त्र के संदर्भ में विचारों को जानने का प्रयास करते हैं-


(1) प्राचीन भारतीय आर्थिक विचारक (Ancient Indian Economic Thinkers)

प्राचीन भारतीय आर्थिक विचारकों में प्रमुखतः कौटिल्य (इतिहास में इन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है) और इलाहाबाद (प्रयागराज) विश्वविद्यालय के प्रो. जे. के. मेहता का नाम लिया जाता है। आइये इनके विचार क्रमशः जानें-

1. कौटिल्य के अनुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा-

भारतीय आर्थिक विचारकों में कौटिल्य का स्थान सबसे पहले लिया जाता है। इनका दूसरा नाम विष्णुगुप्त भी था। इतिहास में इन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है। 

कौटिल्य की परिभाषा- "मनुष्य की आजीविका और मनुष्य द्वारा उपयोग में ली जा रही भूमि दोनों को ही अर्थ के नाम से पुकारा जाता है। ऐसी भूमि को ग्रहण करने एवं सुरक्षा से जुड़े साधनों का विवेचन करने वाले शास्त्र को अर्थशास्त्र कहा जाता है।"

इनकी परिभाषा से स्पष्ट होता है कि अर्थशास्त्र का मूल आधार भूमि है। इसका कारण शायद यही है कि उस समय कृषि कार्य को ही आजीविका का प्रमुख आधार माना जाता था। इसीलिये कौटिल्य ने कृषि कार्य का साधन अर्थात कृषि को अर्थशास्त्र का प्रमुख भाग माना। 

आर्थिक नियमों एवं उनके प्रतिपादन हेतु कौटिल्य ने अपने समय में जिन तर्कों, सिद्धांतों का उल्लेख किया है। उनके अधिकतर सिद्धांत आज के आधुनिक युग में भी उतने ही उपयोगी सिद्ध होते हैं। कौटिल्य ने धर्म, अर्थ एवं काम तीनों ही पुरुषार्थों को एक सा महत्व देते हुए समान माना है। कौटिल्य के अनुसार जो भी व्यक्ति इन तीनों में असंतुलन पैदा करता है। तो समझो कि वह अपने दुःखी रहने का कारण स्वयं बनता है।


2. जे. के. मेहता के अनुसार कृषि की परिभाषा-

इलाहाबाद (प्रयागराज) विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जे. के. मेहता ने अपनी परिभाषा में आर्थिक और भौतिक दृष्टिकोण से अलग, नैतिक दृष्टिकोण को आधार माना।

जे. के. मेहता की परिभाषा- "अर्थशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसके अंतर्गत मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। जो कि आवश्यकता विहीनता (शून्यता) के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील है।"

इनकी परिभाषा से स्पष्ट है कि मनुष्य की आवश्यकताएं असीमित हैं लेकिन साधन उतने ही सीमित। अतः मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को घटाकर ही सहज आनंद प्राप्त कर सकता है। इसीलिए वह साम्य को प्राप्त करना चाहता है। साम्य अर्थात ऐसी अवस्था या मनोदशा जिसमें उसके मन पर बाह्य आकर्षणों, लालच आदि का प्रभाव नहीं पड़ता और उसका मन विचलित नहीं हो पाता। इस अवस्था में मनुष्य पूर्ण तृप्ति यानी कि वास्तविक सुख का अनुभव करने लगता है।



(2) पाश्चात्य आर्थिक विचारक (Western Economic Thinkers)

वैसे तो पाश्चात्य आर्थिक विचारों के मामले में पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों में गहरे मतभेद रहे हैं। अर्थशास्त्र के विषय में पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों ने अपने अलग अलग दृष्टिकोण रखते हुए अपनी अलग अलग परिभाषाएँ दी हैं। 

पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों की परिभाषाओं को विस्तार पूर्वक जानने के लिए हम इनकी परिभाषाओं को निम्न चार वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-


आइये हम उपरोक्त विभाजित चारों ही वर्गों के अंतर्गत पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों के विचारों, उनके दृष्टिकोणों तथा उनकी परिभाषाओं की विवेचना करें-

(1) धन संबंधी परिभाषाएँ ꘡ Wealth Related Definitions in hindi

धन संबंधी परिभाषाओं (dhan sambandhi paribhasha) के समूह में एडम स्मिथ, जे. बी. से, वॉकर आदि अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान कहकर परिभाषित किया। इन्होंनेे अर्थशास्त्र का मूल आधार धन को माना।

एडम स्मिथ जिन्हें आधुनिक अर्थशास्त्र का जनक कहा जाता है। इन्होंने सन 1776 में प्रकाशित अपनी पुस्तक "राष्ट्रों के धन के स्वरूप तथा कारणों की खोज" केे माध्यम से अर्थशास्त्र के स्पष्ट स्वरूप को सामने लाने का प्रयास किया।


एडम स्मिथ की परिभाषा- "अर्थशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसका उपयोग राष्ट्र की संपत्ति की प्रकृति एवं कारणों की जांच पड़ताल करने हेतु किया जाता है। इसलिये यह धन का विज्ञान कहलाता है।"

जे. बी. से की परिभाषा- "जो धन का अध्ययन करे। उसे धन का विज्ञान कहा जाता है।"

वॉकर की परिभाषा- "अर्थशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जिसका संबंध धन से होता है।"

वैसे तो हम साधारण भाषा में धन का मतलब मुद्रा ही समझते हैं। किंतु अर्थशास्त्र में धन का अर्थ उन वस्तुओं से होता है जिनसे हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। अर्थात धन मानवीय जीवन का केंद्र बिन्दु है।

इस तरह उपरोक्त अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान कहते हुए धन को मानवीय सुखों का आधार माना है। यानी कि सभी सुखों का एकमात्र आधार धन है। इसका स्थान मनुष्य की तुलना में कहीं अधिक माना गया है


(2) कल्याण संबंधी परिभाषाएँ ꘡ Welfare Related Definitions in hindi

जैसा कि नाम से स्पष्ट है। इसमें अर्थशास्त्र को मानव कल्याण का विज्ञान माना गया है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में अल्फ्रेड मार्शल (Alcred marshall) ने अपनी पुस्तक "Principal Of Economics" में अर्थशास्त्र को मानव कल्याण से सम्बद्ध करते हुए अर्थशास्त्र को आलोचनाओं से बचाते हुए सम्मानजनक स्थान प्रदान किया।

मार्शल की परिभाषा- "अर्थशास्त्र सामान्य व्यवसाय में मानव जाति का अध्ययन करते हुए इस बात की जाँच करता है कि वह किस प्रकार आय प्राप्त करते हुए अपनी आय का उपयोग करता है। इस तरह अर्थशास्त्र धन के साथ-साथ मनुष्य के आर्थिक कल्याण का भी अध्ययन करता है।

मार्शल ने एक बड़ी ही सार्थक और दिलचस्प बात कही। वह ये कि मनुष्य के लिए धन है ना कि धन के लिए मनुष्य। यानी कि धन एक साधन है ना कि साध्य।


इन्होंने अपनी परिभाषा में धन और मानव दोनों का ही अध्ययन करना बताया है लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि मानव को इन्होंने पहली प्राथमिकता प्रदान की है।

मार्शल द्वारा किये गए विश्लेषण और उनके द्वारा दी गयी अर्थशास्त्र की सटीक परिभाषाओं के बाद कुछ अन्य अर्थशास्त्रियों द्वारा और भी कुछ परिभाषाएँ (Kalyan sambandhi paribhasha) दी गयीं जो निम्न हैं-

पिगू की परिभाषा (पीगू का कल्याण अर्थशास्त्र) "हमारी जाँच का क्षेत्र सामाजिक कल्याण के उस भाग तक सीमित हो जाता है जिसे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मुद्रा रूपी पैमाने के साथ जोड़ा जा सकता है।"

केनन की परिभाषा- "अर्थशास्त्र (राज्य की अर्थव्यवस्था) का उद्देश्य सामाजिक कारणों की व्याख्या से है जिन पर मनुष्य का भौतिक कल्याण निर्भर होता है।"

प्रो. चैपमैन की परिभाषा- "अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसके अंतर्गत मनुष्य के धन कमाने तथा उसके व्यय करने से संबंधित क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।"

(3) दुर्लभता संबंधी परिभाषाएँ ꘡ Scarcity Related Definitions in hindi

प्रो. रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में अर्थशास्त्र के संबंध में अपना एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। इन्होंने 1932 में अपनी पुस्तक "An easy on the mature and significance of economic science" में बताया कि दैनिक जीवन में मनुष्य आर्थिक समस्याओं से जूझता रहता है। क्योंकि उसके पास साधनों का अभाव होता है। 

अतः उसे स्वयं को संतुष्ट करने के लिए आवश्यकताओं के आधार पर उन साधनों का चयन करना होता है ताकि वह समस्याओं से भरे जीवन में चयन की प्रक्रिया से संतुष्टि पा सके। इसी आधार पर इन्होंने अर्थशास्त्र को "चयन का तर्कशास्त्र" भी कहा है। रॉबिन्स के इन्हीं विचारधाराओं के आधार पर अर्थशास्त्र चयन का विज्ञान भी कहलाता है। 

रॉबिन्स की परिभाषा- "अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसके अंतर्गत सीमित और वैकल्पिक साधनों और लक्ष्यों के संबंध में मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।"

स्पष्ट है कि मनुष्य के जीवन में धन व समय सीमित होते है। साधनों की सीमितता के कारण मनुष्य को सदैव ही इस बात का चुनाव करना पड़ता है कि वह किन आवश्यकताओं की पूर्ति कर और किन की नहीं। इस तरह वह प्राथमिकताओं के आधार पर संतुष्टि पाने का प्रयत्न करता रहता है। यही बात रॉबिन्स ने समझायी है।


रॉबिन्स ने धन और कल्याण दोनों को ही अलग करते हुए जीवन की सच्चाई को उजागर करते हुए मनुष्य की असंख्य आवश्यकताओं के दुर्लभ/सीमित साधनों से संबंध स्थापित करने का प्रयत्न किया।

दुर्लभता से संबंधित विचारधाराओं में अन्य अर्थशास्त्रियों ने भी धन और कल्याण को परे रखते हुए मनुष्य की प्राथमिकताओं के आधार पर अपनी कुछ परिभाषाएँ (Durlabhta sambandhit paribhasha) दीं जो निम्न हैं-

प्रो. स्टेलर के अनुसार- "अर्थशास्त्र में उन सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है जो सीमित साधनों प्रतियोगी उद्देश्य और उसके बँटवारे को शामिल करते हैं जहां बँटवारे का लक्ष्य उद्देश्य की अधिकता प्राप्त करना होता है।"

प्रो. मिल्टन फ्रीडमैन- "अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसके अंतर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है। कि किसी समाज में मनुष्य अपनी आर्थिक समस्याओं को किस तरह हल करता है। उसके सामने अनेक समस्याएं मौजूद रहती हैं। जबकि उसके द्वारा सीमित साधन प्रयोग हेतु लगाए जाते हैं।"

क्रेयर्न क्रॉस के अनुसार- "अर्थशास्त्र वह सामाजिक विज्ञान है जिसमें कि इस बात का अध्ययन किया जाता है कि व्यक्ति सीमित साधनों के होते हुए अपनी आवश्यकताओं के साथ किस प्रकार समायोजन करने का प्रयास करता है। तथा उसका यह प्रयास विनिमय द्वारा किस प्रकार प्रकट हो पाता है।"

स्पस्ट भाषा में हम कहें तो उपरोक्त अर्थशास्त्रियों के विचार के अनुसार यह पता चलता है कि उन्होंने धन और मनुष्य के कल्याण से अलग, अर्थशास्त्र में चयन की प्रक्रिया को समझने का प्रयास किया है।

चूंकि दुनिया में साधनों की सीमितता है और मनुष्य की आवश्यकताएं असीमित हैं। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी आवश्यकताओं की तीव्रता को संतुलित करते हुए तथा साधनों के वैकल्पिक प्रयोग को प्राथमिकता देते हुए अपनी संतुष्टि को पाने का प्रयास करता है।


4) विकास संबंधी परिभाषाएँ ꘡ Growth Related Definitions in hindi

आधुनिक युग में मनुष्य की आवश्यकताएं निरंतर बढ़ती ही जा रही हैं। यही वजह है कि मनुष्य वर्तमान में उपलब्ध संसाधनों के प्रयोग तक ही सीमित न रहकर नित नए-नए संसाधनों को खोजने और उच्च जीवन स्तर को प्राप्त करने की होड़ में लगा हुआ है।

सेम्युलसन जैसे आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने इस विचारधारा को स्वीकार कर अर्थशास्त्र की परिभाषा (arthshastra ki paribhasha) को एक नई दिशा प्रदान की है। जो विकास सम्बन्धी परिभाषा (Vikas sambandhi paribhasha) कही जाती है। इसमें उन्होंने माना कि उच्च जीवन प्राप्त करने के लिए समय समय पर नए-नए संसाधन खोजने होंगे। इसके अतिरिक्त उन्होंने बताया कि अर्थशास्त्र की परिभाषा में अर्थशास्त्र का संबंध केवल सीमित साधनों के एक निश्चित समय के अंदर प्रयोग करने से नहीं, बल्कि उनके कुशलतम उपयोग करने से भी है।

सेम्युलसन की परिभाषा- "अर्थशास्त्र के अंतर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि समाज में लोग मुद्रा का प्रयोग भले ही करें या ना करें, लेकिन वे अपनी विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए सीमित साधनों का किस प्रकार प्रयोग करते हैं एवं इन वस्तुओं को किस प्रकार उपभोग हेतु वर्तमान तथा भविष्य का ध्यान रखते हुए समाज के विभिन्न वर्गों (व्यक्तियों और समूहों) के बीच वितरित करते हैं।"


परिभाषा से स्पष्ट है कि इस परिभाषा में साधनों के केवल प्रयोग पर ही नहीं अपितु उनके कुशलतम (भावी) उपयोग पर भी बल दिया गया है। ताकि उच्च जीवन स्तर प्राप्त करने में पूर्ण सहयोग मिल सके। उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए नए संसाधनों की खोज पर भी बल दिया गया है। 

अर्थात आधुनिक विचारधारा के अनुसार अर्थशास्त्र का संबंध केवल सीमित संसाधनों के चयन तक सीमित न रहते हुए वस्तुओं के वर्तमान और भविष्य में उत्पादन से है। पूर्ण रोज़गार व आर्थिक स्थायित्व कैसे प्राप्त किया जाए तथा नये संसाधनों की खोज के साथ-साथ आर्थिक विकास की गति को कैसे बढ़ाया जाए आदि समस्याओं का अध्ययन इसके अंतर्गत किया जाता है। 




अर्थशास्त्र की श्रेष्ठ परिभाषा किसे माना जा सकता हैं?

यदि हम पूर्व की परिभाषाओं पर नज़र डालें तो यही स्पष्ट होता है कि आधुनिक समय में अब उन परिभाषाओं की उतनी उपयोगिता नहीं रह गयी हैं। ये परिभाषाएँ उपयुक्त नहीं दिखाई देतीं। वर्तमान में जिस अर्थशास्त्री की परिभाषा उपयुक्त लग रही हो, यह निश्चित नहीं होता कि भविष्य की अर्थव्यवस्था और आवश्यकताओं के आधार पर खरी उतरेगी या नहीं। समय के साथ साथ विचारधाराएं भी बदलती हैं। शायद इसीलिए समय-समय पर अर्थशास्त्रियों की विचारधाराओं में मतभेद होते रहते हैं।

यह प्रश्न कि "अर्थशास्त्र की कौन सी परिभाषा श्रेष्ठ है?" या किसकी परिभाषा सर्वश्रेष्ठ है?  यह विषय विवादास्पद प्रतीत होता है। आज केे युग के लिये ये सभी परिभाषाएँ आधारभूत अवश्य मानी जा सकती है किंतु आज के समय में 100 फ़ीसदी स्वीकार करने योग्य नहीं दिखाई पड़तीं।

एडम स्मिथ की परिभाषा अब उपयुक्त नहीं है क्योंकि एडम स्मिथ की धन संबंधी विचारधारा आधुनिक समय में फिट नहीं बैठती। इनके अलावा प्रो. जे. के. मेहता की परिभाषा नैतिकता और दर्शन की दृष्टि से ठीक मानी जा सकती है किंतु इसे लागू नही किया जा सकता क्योंकि यदि इनके दृष्टिकोण को स्वीकार कर लिया जाए तो आर्थिक प्रगति ही रुक जाएगी।

प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा तर्क की दृष्टि से ज़रूर स्वीकार की जा सकती है। आज के युग में लगभग हर व्यक्ति, फर्म, उद्योग या राष्ट्र के सामने संसाधनों का अभाव और असीमित लक्ष्यों को पूरा करने की चुनौती आकर खड़ी है।

आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने अपनी विचारधाराओं में मार्शल और रॉबिन्स (कल्याण और सीमितता की विचारधारा) की परिभाषाओं को मिलाकर नई परिभाषा देने का प्रयास किया है। किंतु उनमें प्रो. मार्शल और प्रो. रॉबिन्स की तरह मौलिकता और स्पष्टता नहीं दिखाई देती। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने मिला जुलाकर समय के साथ अपनी विचारधाराएं अवश्य प्रस्तुत की हैं। 

यदि श्रेष्ठता की बात की जाए तो प्रो. मार्शल और प्रो. रॉबिन्स की परिभाषाओं को श्रेष्ठता की श्रेणी में माना जा सकता है। सरलता, स्पष्टता और व्यवहारिकता के आधार पर प्रो. मार्शल की परिभाषा को इस श्रेणी में रखा जा सकता है जबकि तर्क एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा को इस श्रेणी में माना जा सकता है।

चूँकि आधुनिक समय में अर्थव्यवस्था के अंतर्गत आय व रोज़गार के स्तर के निर्धारण तथा आर्थिक विकास के सिद्धांतों की आवश्यकता निश्चित रूप से होती है। जो कि समय के साथ इस बदलाव के चलते सेम्युलसन ने रॉबिन्स और मार्शल की परिभाषाओं को मिलाकर अपनी एक नई परिभाषा दी है। इसीलिए आधुनिक विचारधारा को भी इन्हीं के साथ-साथ उपयुक्त स्थान दिया जा सकता है।

हम आशा करते हैं उपरोक्त अंक "अर्थशास्त्र क्या है? अर्थशास्त्र की विभिन्न परिभाषाओं" के आधार पर आपको अर्थशास्त्र की अवधारणाओं को समझने में आसानी होगी। आप अपनी प्रतिक्रिया कमेंट्स बॉक्स में हमें दे सकते हैं। हम विषय सम्बन्धी समस्याओं का समाधान निश्चित तौर पर करने का प्रयास करेंगे।

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