आपने समाज में बुज़ुर्गों को यह कहते हुए सुना तो ज़रूर होगा कि माता-पिता की असली संपत्ति उनकी संतान होती है। हर माता-पिता इसीलिये अपनी इस असली संपत्ति में बढ़ोत्तरी के लिए सदैव ही प्रयत्नशील रहते हैं। इसके लिए उन्हें अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, अच्छे संस्कार आदि देकर उन्हें इस लायक बनाने का प्रयत्न करते हैं कि उनकी संतान आगे चलकर आय के सृजन के साथ-साथ समाज में भी अपनी प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी कर सके।
क्योंकि उनकी आय और प्रतिष्ठा के साथ ही परिवार की आय और प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी होगी। अब आप अनुमान लगाइए कि यदि समाज और देश में मौजूद हर माता-पिता अपनी संतान रूपी संपत्ति में बढ़ोत्तरी करने का प्रयास करेंगे तो स्वाभाविक है सम्पूर्ण देश की आय और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। सीधे शब्दों में हम कह सकते हैं कि देश में संपूर्ण विकास की धारा बहने लगेगी।
हम आपको यही बताना चाहते हैं कि जब परिवार, समाज, देश यानि कि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए मनुष्यों पर निवेश करते हुए उन्हें इस लायक तैयार किया जाता है कि वे शिक्षित, प्रशिक्षित, स्वस्थ व कार्यकुशल होकर अर्थव्यवस्था के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। ऐसे मनुष्यों को मानव पूँजी (Human Capital) कहा जाता है।
मनुष्य को अपने किसी भी कार्य को कुशलतापूर्वक करने के लिये प्रशिक्षण तथा कौशल की आवश्यकता होती है। आप अच्छी तरह जानते हैं कि किसी शिक्षित व्यक्ति का कार्यकौशल, अनपढ़ व्यक्ति के कार्यकौशल की अपेक्षा अधिक ही होता है। जिसका श्रम कौशल अधिक होता है। वह आय का सृजन भी अधिक करता है। साथ ही आर्थिक संवृद्धि में उसी का योगदान ज़्यादा होता है। अपेक्षाकृत किसी अनपढ़ व्यक्ति के।
वैसे मनुष्य को शिक्षा प्राप्त करने का लक्ष्य केवल धन उपार्जन ही नहीं है। अपितु शिक्षा प्राप्त करने के अनेक लाभ होते हैं। शिक्षा मनुष्य को सामाजिक स्थिति और गौरव प्रदान करती है। किसी व्यक्ति को अपने जीवन में बेहतर विकल्प को चयन करने के योग्य बनाती है।
शिक्षा व्यक्ति को समाज में चल रहे परिवर्तन की बेहतर समझ प्रदान करती है और नये परिवर्तनों को बढ़ावा देती है। शिक्षित श्रम शक्ति की उपलब्धता नई प्रौद्योगिकी को अपनाने में भी सहायक होती है। आइये आज इस अंक में मानव पूँजी निर्माण से संबंधित विशिष्ट अनुक्रमों को जानने का प्रयास करते हैं।
- मानव पूँजी क्या है?
- मानव पूँजी निर्माण का अर्थ।
- प्रो. शुल्ज़ द्वारा बताये गए मानव पूँजी निर्माण के 5 तरीके।
- मानव पूँजी के स्रोत क्या हैं?
- आर्थिक विकास में मानव पूँजी की भूमिका।
- मानव पूँजी निर्माण की समस्याएँ क्या हैं?
- मानव पूँजी निर्माण हेतु सुझाव।
मानव पूँजी क्या है? What is Human Capital in hindi
आप अच्छी तरह समझ सकते हैं कि समाज को सबसे पहले पर्याप्त रूप से मानव पूँजी की ही आवश्यकता होती है। क्योंकि मानव पूँजी ही आगे चलकर भौतिक पूँजी का निर्माण करती है। उदाहरण के लिए विद्यार्थियों का ही उदाहरण लें। हमें विद्यार्थियों को बेहतर मानव पूँजी बनाने के लिए बेहतर शिक्षकों व प्रशिक्षकों की ज़रूरत होती है। ताकि यही विद्यार्थी आगे चलकर अच्छे इंजीनियर, डॉक्टर, उद्योगपति, समाजसेवक, शिक्षक, प्रोफ़ेसर आदि बनकर स्वयं के साथ-साथ देश के आर्थिक विकास में सहायक बन सकें। इसका अर्थ यह है कि हमें अच्छे मानव पूँजी के निर्माण के लिए मानव पूँजी निवेश की आवश्यकता होती है।
यानि कि हम यह कह सकते हैं कि माता-पिता अपने बच्चों पर निवेश करते हैं ताकि उनके बच्चे शिक्षित एवं प्रशिक्षित होकर अपनी कार्यक्षमता में वृद्धि कर सकें और सामाजिक व आर्थिक रूप से सुदृढ़ होकर सर्वोत्तम विकास में अग्रणी बन सकें।
जिस प्रकार एक देश के लिए अपने भौतिक संसाधनों को भौतिक पूँजी में परिवर्तित करना आवश्यक होता है। ठीक उसी तरह देश में उपलब्ध मानव संसाधनों को मानव पूँजी में परिवर्तित करना भी आवश्यक होता है।
मानव पूँजी निर्माण का अर्थ (Meaning of Human Capital Formation in hindi)
मानव पूँजी अथवा मानवीय पूँजी का आशय (manav punji ka aashay) किसी देश की जनसंख्या, उसकी शिक्षा, कौशलता, दूरदर्शिता तथा उत्पादकता से होता है। इस प्रकार मानव पूँजी को जनसंख्या के साथ-साथ उसकी गुणात्मक विशेषताओं को भी शामिल किया जाता है। "देश के व्यक्तियों में गुणात्मक सुधार हेतु इनको शिक्षित, प्रशिक्षित, स्वस्थ, कार्यकुशल आदि बनाने के लिए यह आवश्यक होता है कि मानवीय संसाधनों में निवेश किया जाय। मानवीय संसाधनों में निवेश की क्रिया को मानव पूँजी निर्माण (Human Capital Formation) कहा जाता है।"
अर्थात मानवीय पूँजी निर्माण (Manav punji nirman), मानवीय संसाधनों के एक ऐसे स्टॉक में वृद्धि है, जो अर्थव्यवस्था के विकास में प्रभावी रूप से प्रयुक्त होता है। जब व्यक्तियों पर शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी व्यय किये जाते हैं। तो मानव पूँजी या परिसंपत्ति में वृद्धि एवं उन्नति होती है। इससे व्यक्तियों की कार्य कुशलता बढ़ जाती है। प्रायः उनका कार्यकारी जीवनकाल लंबा हो जाता है। परिणामस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होती है। यह शिक्षा और स्वास्थ्य पर किया गया व्यय ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार भौतिक पूँजी के निर्माण के लिए निवेश किया जाता है।
प्रो. शुल्ज द्वारा मानव पूँजी निर्माण के लिए बताए गए 5 तरीक़े -
प्रो. शुल्ज ने मानवीय संसाधन के विकास हेतु 5 तरीक़े बताए हैं जो निम्न है-
(1) ऐसी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना जो लोगों की जीवन प्रत्याशा, शक्ति, उत्साह व कार्य क्षमता में सुधार कर सके।
(2) कार्य प्रशिक्षण को बढ़ावा देना।
(3) प्रारंभिक, माध्यमिक एवं उच्च स्तर पर शिक्षा की व्यवस्था करना।
(4) वयस्कों के लिए शिक्षा संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराना।
(5) व्यक्तियों व परिवारों का स्थान परिवर्तन करके उसे नौकरी के अवसरों में समायोजित करना।
मानव पूँजी के स्रोत क्या हैं? (What are the sources of human capital hindi)
मानव पूँजी के स्रोत अथवा मानव संसाधन विकास के तत्व या घटक क्या हैं? इसके लिए आइये हम कुछ निम्नलिखित स्रोतों के बारे में जानने का प्रयास करते हैं-
(1) स्वास्थ्य -
आप अनुमान लगा सकते हैं कि एक रोगी व्यक्ति और एक स्वस्थ व्यक्ति दोनों में से, किसी कार्य को कौन बेहतर क्षमता के साथ कर सकता है। अतः यह स्पष्ट है कि स्वास्थ्य सुविधायें एवं सेवाओं के अंतर्गत उन प्रयासों को शामिल किया जाए जिनसे व्यक्तियों की जीवन प्रत्याशा व शारीरिक क्षमता में वृद्धि हो सके। जीवन प्रत्याशा अर्थात व्यक्ति लंबे समय तक कार्य कर सके। उनके शिक्षण व प्रशिक्षण पर किये गए निवेश का प्रतिफल लंबे समय तक प्राप्त होता रहे।
(2) पोषण -
अल्पविकसित देशों की एक समस्या कुपोषण की होती है। जिस कारण वहाँ मानवीय संसाधनों की शारीरिक क्षमता कम होती है। जिस कारण उत्पादकता का स्तर और भी नीचा हो जाता है। शारीरिक योग्यता पर्याप्त व पौष्टिक भोजन पर निर्भर करती है। संतुलित भोजन मिलने पर व्यक्तियों की शारीरिक दुर्बलता कम होकर उनकी कार्य क्षमता व कार्यकुशलता बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप उनकी उत्पादकता बढ़ जाती है। अतः पौष्टिक भोजन में विनियोग, देश की श्रम शक्ति को कार्यकुशल बनाये रखने में मदद करता है।
(3) शिक्षा एवं प्रशिक्षण -
शिक्षा एवं प्रशिक्षण पर विनियोग आर्थिक विकास की दृष्टि से सर्वाधिक सार्थक विनियोग होता है। इसके अंतर्गत प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा तथा कार्यकुशलता बढ़ाने की दृष्टि से प्रशिक्षण आदि को सम्मिलित किया जाता है। विकासशील देशों के पिछड़ेपन का एक कारण मानवीय संसाधनों के विकास पर ध्यान न देना है।
एक व्यक्ति की दृष्टि से शिक्षा पर व्यय उपभोग व्यय हो सकता है परंतु समाज की दृष्टि से यह विनियोग हो सकता है। व्यक्तियों को व्यावसायिक कला कौशल से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। शिक्षा क्षेत्र के साथ-साथ कृषि विस्तार सेवाओं की व्यवस्था, औद्योगिक कौशल को उन्नत करने तथा प्रशासकीय एवं प्रबंधकीय क्षमता में वृद्धि की जानी चाहिए।
(4) रोज़गार की जानकारी एवं स्थान परिवर्तन -
मानव संसाधन विकास के लिए रोज़गार के संबंध में समस्त जानकारी तथा स्थान परिवर्तन भी आवश्यक है। अतः सरकार को रोज़गार की उपलब्धता एवं उसकी कार्य दशाओं की जानकारी देने पर व्यय करना चाहिए तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर अच्छा वेतन पाने हेतु जो स्थान परिवर्तन होने पर व्यय होता है उस पर भी विनियोग करना चाहिए।
आर्थिक विकास में मानव पूँजी की भूमिका (Role of Human Capital in Economic Development in hindi)
हम यह भी कह सकते हैं कि आर्थिक विकास में मानव संसाधन की क्या भूमिका है? किसी भी देश का आर्थिक विकास उसकी श्रम शक्ति, कार्यकुशलता तथा प्रशिक्षण पर निर्भर करता है। इसीलिये देश के आर्थिक विकास के लिए उस देश में रहने वाले मानवीय संसाधनों का विकास अत्यंत ही आवश्यक होता है। हमें व्यापक दरिद्रता एवं कठोर शारीरिक श्रम से मुक्ति तब तक नहीं मिल सकती जब तक मानवीय संसाधनों का विकास न किया जाए।
आर्थिक विकास की दृष्टि से देखा जाए तो मानवीय संसाधनों को प्राकृतिक संसाधनों से भी अधिक महत्वपूर्ण माना जा सकता है। क्योंकि मानवीय साधनों की कुशलता एवं दक्षता पर ही आर्थिक विकास की रूपरेखा तैयार की जा सकती है।
हम निश्चित रूप से यह कह सकते हैं कि आर्थिक विकास में मानव पूँजी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चलिए देखते है कि विकास के किन-किन कार्यों पर मानव पूँजी की विशेष भूमिका होती है-
(1) भौतिक पूँजी का प्रयोग-
आज के युग में भौतिक पूँजी ने आधुनिक तकनीकी रूप धारण कर लिया है। आज के आधुनिक संयंत्रों, तकनीकों और प्रबंधों को समझना तभी संभव है जब इसके लिए पर्याप्त शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त किया जाए।
(2) आधुनिक जानकारी की प्राप्ति-
दरअसल आज के समय में विकसित देश अपने उत्पादन में नित नई-नई जानकारी और तरीकों का प्रयोग कर रहे हैं। चूंकि अल्पविकसित देशों में विकास करना हो तो नप्रवर्तन का सहारा लेना ही होगा। और यह तभी संभव है जब देश मे मानव पूँजी निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाए। सीधे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि इस विकास में मानव पूँजी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
(3) उत्पादकता में वृद्धि-
अल्पविकसित देशों में श्रम उत्पादकता इसिलिये कम होती है क्योंकि यहाँ पर शिक्षा एवं स्वास्थ्य का स्तर निम्न होता है। हम उन्हें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशिक्षण देकर उनकी उत्पादकता में वृद्धि कर सकते हैं। मानव पूँजी के कुशल प्रशिक्षण से उत्पादकता में अभूतपूर्व वृद्धि संभव है।
(4) अभिवृत्तियों का आधुनिकीकरण-
अधिकतर देखा जाता है कि पुराने रीति-रिवाज, विचार और अभिवृत्तियाँ किसी भी देश के विकास में बाधक ही होती हैं। पुराने ढकोसलों के कारण उत्पादन में विशिष्टीकरण व गतिशीलता का लगातार अभाव होता है। परिणामस्वरूप उनकी कार्यक्षमता में भारी कमी हो जाती है। अर्थात जिस देश में कुरीतियाँ, पुराने अनावश्यक विचार ज़्यादा होंगे उस देश का विकास करना असंभव होगा। मानव पूँजी में निवेश के फलस्वरूप उनके व्यवहार, विचार एवं अभिवृत्तियों में परिवर्तन आ जाता है। जो कि देश के सम्पूर्ण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मानवीय पूँजी निर्माण की समस्याएँ क्या है? (Problems of Human Capital Formation in hindi)
भारत जैसे देश में मानवीय पूँजी निर्माण की विशेष भूमिका होती है। किन्तु इस मानव पूँजी के निर्माण में अनेक समस्याएँ होती है जो कि निम्नानुसार हैं-
(1) निम्न प्राथमिकता क्षेत्र-
आर्थिक विकास के लिए कृषि, उद्योग, आधारित संरचना आदि को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने के कारण मानवीय पूँजी निर्माण पर पर्याय ध्यान नहीं दिया जाता। परिणाम स्वरूप मानव पूँजी निर्माण उचित प्रकार से नहीं हो पाता।
(2) क्षेत्रीय विषमताओं का होना-
मानव पूँजी निर्माण में विस्तृत पैमाने पर क्षेत्रीय विषमताएं विशेष बाधा पहुँचाती हैं। ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में इस तरह की विषमतायें बहुतायत में देखी जाती हैं। जैसे कि शहरों में शिक्षा, स्वास्थ्य विशेष रूप में पायी जाती हैं। जबकि ग्रामीण अधिकांशतः इन्हीं बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते रहते हैं।
(3) पर्याप्त वित्त का ना होना-
देश में मानव पूँजी का निर्माण, उस देश के सर्वांगीण विकास के लिए विशेष भूमिका करते हैं। लेकिन पर्याप्त वित्त के अभाव में मानव पूँजी के निर्माण में समस्या आ जाती हैं।
(4) निम्न उत्पादकता का होना–
चूँकि मानवीय पूँजी निर्माण के बिना उत्पादकता में वृद्धि करना असंभव है जो कि देश के आर्थिक विकास के लिए बहुत अधिक आवश्यक है। इसमें विनियोजित तरीके से शिक्षण-प्रशिक्षण देकर हम उत्पादकता में अभूतपूर्व सुधार कर सकते है।
(5) जनसंख्या वृद्धि-
देश मे व्याप्त जनसंख्या के लिए जितनी मानव पूँजी उपलब्ध करायी जाती है। जनसंख्या इसके अनुपात में कहीं ज़्यादा बढ़ती जा रही है। फलस्वरूप यह समस्या, एक सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने उभर रही है।
मानवीय पूँजी निर्माण हेतु सुझाव (Suggestions for human capital formation in hindi)
मानवीय संसाधनों का विकास उचित प्रकार से हो सके इसके लिए अनेक सुझाव दिए जा सकते हैं। आइये कुछ प्रमुख सुझावों को समझने का प्रयास करते हैं-
(1) जनशक्ति नियोजन-
सरकार नियोजन करते समय इनके बाद का आंकलन करे कि भविष्य में कितनी मानव शक्ति की आवश्यकता होगी। जिस प्रकार के प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता हो उनके अनुरूप उन्हें प्रशिक्षित करने की व्यवस्था करनी चाहिए।
(2) अलग से विकास-
यह सही है कि आर्थिक विकास मानवीय संसाधनों के विकास पर अच्छा प्रभाव डालता है। परंतु केवल आर्थिक विकास पर ही ध्यान न देकर मानवीय पूँजी निर्माण पर अलग से ध्यान देना चाहिए।
(3) दृष्टिकोण में परिवर्तन-
सरकार को यह समझना चाहिए कि मानवीय पूँजी निर्माण होने पर ही आर्थिक विकास की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी। अतः इसे उत्पादकीय व्यय मानना चाहिए।
(4) जनसंख्या पर नियंत्रण-
भारत मे मानवीय संसाधनों को उचित प्रकार से विकसित करने हेतु जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण लगाना चाहिए। क्योंकि मानव पूंजी के निर्माण में जनसंख्या भी प्रमुख रूप से बाधा डालने में अपनी भूमिका निभाती है।
(5) वित्त की उपलब्धता-
मानवीय पूँजी निर्माण के लिए सरकार को पर्याप्त मात्रा में वित्त उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था करनी चाहिए। क्योंकि वित्त का अभाव एक ऐसी समस्या है जिसके चलते मानव पूँजी के निर्माण के विषय में सोचना निरर्थक ही होगा।
कुछ समय पूर्व तक मानव पूँजी में निवेश पर ध्यान न दिया जाकर भौतिक पूँजी में निवेश पर अधिक ध्यान दिया जाता था। मानव पूँजी के रूप में प्रबंध का मुख्य कार्य भौतिक पूँजी के आवंटन का निर्णय करना ही माना जाता था। परंतु आधुनिक समय में स्थितियां परिवर्तित हो गयी हैं। आज आर्थिक जगत में नवप्रवर्तन (innovation) अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं। इसी पर आर्थिक मूल्यों की प्राप्ति निर्भर है।
कड़ी प्रतियोगिता की दशा में नवप्रवर्तनों की द्वारा ही लाभ प्राप्त हो सकते है। नवप्रवर्तन एक रचनात्मक कार्य है। जो तकनीकी रूप से कुशल एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति ही पूरा कर सकता है। अतः देश मे जितने अधिक दक्ष एवं प्रतिभावान व्यक्ति होंगे उतनी ही अधिक उत्पादकता होगी।इसीलिये आज कंपनियां तकनीशियन, वित्तीय विशेषज्ञ, विपणन एवं ग्राहक अन्तर्व्यवहार प्रबन्धों आदि पर अधिक निर्भर हो रही हैं। अतः कुशल एवं प्रतिभाशाली व्यक्तियों अर्थात मानव संसाधन का विकास, शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, पोषण आदि पर निवेश द्वारा ही संभव होता है।
उम्मीद करते हैं आज का यह अंक "मानव पूँजी निर्माण क्या है? स्रोत, समस्याएँ व सुझाव" आपके अध्ययन सामग्री के अंतर्गत अवश्य ही मददगार साबित होगा। आप अपनी प्रतिक्रिया हमें दे सकते हैं। हम इसी तरह आप सभी के लिए शिक्षा सम्बन्धी सामग्री उपलब्ध कराने हेतु संकल्पित हैं।
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