पूजी निर्माण का अर्थ एवं परिभाषा, पूंजी निर्माण में आने वाली बढ़ाएं, पूंजी निर्माण में वृद्धि कैसे करें, (Meaning Of Capital Formation in hindi, Punji nirman ke prakar, Punji nirman ka mahatva)
पूंजी निर्माण (punji nirman) एक अत्यंत महत्वपूर्ण आर्थिक प्रक्रिया है जो किसी देश के आर्थिक विकास और समृद्धि में केंद्रीय भूमिका निभाती है। यह वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत देश की कुल आय का एक हिस्सा बचाया जाता है और उसे उत्पादक साधनों में निवेश किया जाता है, जिससे भविष्य में उत्पादन की क्षमता को बढ़ाया जा सके।
पूंजी कुल उत्पादन का वह भाग है जो उपभोग के लिए नहीं बल्कि और अधिक उत्पादन के लिए प्रयोग में आता है। इस तरह, उत्पादन का जितना भाग उपभोग कर लिया जाता है वह पूंजी की कोटि में नहीं आता। कुल उत्पादन में से यदि उपभोग वस्तुओं के भाग को घटा दिया जाए और ऐसा करने से जो संसाधन बचें, उनको पूंजीगत वस्तुओं के बनाने में लगाया जाए, तो पूंजी-स्टॉक में वृद्धि होती है। पूंजी-स्टॉक में होने वाली इस वृद्धि को पूंजी निर्माण (Capital formation in hindi) या निवेश कहा जाता है।
निवेश से आशय पूंजीगत वस्तुओं पर किए जाने वाले ख़र्च से होता है। पूंजीगत वस्तुएं अनेक प्रकार की हो सकती हैं, जैसे फार्म हाउस, ट्रैक्टर, अन्य मशीन व उपकरण आदि। इस तरह के निवेश से कृषि अर्थव्यवस्था के पूंजी-स्टॉक में वृद्धि होती है। इसी कारण निवेश को पूंजी निर्माण भी कहा जाता है।
पूंजी निर्माण का अर्थ (Punji Nirman ka arth)
पूंजी निर्माण का शाब्दिक अर्थ है- पूंजी का निर्माण करना। इसका अभिप्राय है कि जब समाज के लोग अपनी आय का उपभोग न करके उसे बचाते हैं और वह बचत निवेश के रूप में उपयोग में लाई जाती है, तो उससे नई मशीनें, फैक्ट्रियाँ, भवन, सड़कें, पुल, सिंचाई व्यवस्था आदि का निर्माण होता है। यही प्रक्रिया पूंजी निर्माण (punji nirman) कहलाती है।
पूंजी निर्माण के अंतर्गत धन, मशीनें, भवन, साधन, यंत्र, तकनीक और अन्य भौतिक तथा मानवीय संसाधनों का निर्माण आता है, जिनका उपयोग भविष्य में अधिक उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
पूंजी निर्माण (Capital Formation) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी देश या समाज में नई उत्पादन क्षमता विकसित की जाती है। इसमें नई मशीनों, उपकरणों, भवनों, सड़कों, कारखानों आदि का निर्माण शामिल होता है, जिससे उत्पादन बढ़ाया जा सके।
सरल शब्दों में कहा जाए तो पूंजी निर्माण का अर्थ है भविष्य में अधिक उत्पादन के लिए आज के संसाधनों का निवेश करना। पूंजी निर्माण को आर्थिक विकास की रीढ़ कहा जाता है क्योंकि इसके बिना उत्पादन, रोज़गार और समृद्धि संभव नहीं सकते।
प्रो. नर्क्स के अनुसार, "पूंजी निर्माण का अभिप्राय यह है कि समाज अपनी समस्त वर्तमान उत्पादन क्षमता को वर्तमान उपभोग पर व्यय न करके, उसके एक भाग को पूंजीगत माल-उपकरण व यन्त्र, मशीन, परिवहन सुविधाएं, प्लाण्ट व साज-सज्जा के निर्माण पर व्यय करता है। ये वास्तविक पूंजी के विभिन्न रूप होते हैं जो उत्पादक के प्रयासों की कार्यक्षमता को अधिक बढ़ा देते हैं।"
उपर्युक्त परिभाषा में केवल भौतिक सम्पत्ति के निर्माण को शामिल किया गया है, परन्तु अर्द्ध-विकसित देशों के सन्दर्भ में यह परिभाषा अपूर्ण है, क्योंकि अर्द्ध-विकसित देशों में भौतिक पूंजी के अतिरिक्त मानव पूंजी के निर्माण की भी आवश्यकता होती है।
विस्तृत विचारधारा के अन्तर्गत पूंजी निर्माण में भौतिक परि-सम्पत्ति के अतिरिक्त मानवीय सम्पत्ति को भी सम्मिलित किया जाता है।
डॉ. सिंगर के अनुसार, "पूंजी निर्माण में भौतिक तथा अभौतिक दोनों ही वस्तुओं को सम्मिलित किया जाना चाहिए।"
पूंजी निर्माण के प्रकार (Types of Capital Formation in hindi)
पूंजी निर्माण के प्रकार (Punji nirman ke prakar) निम्नलिखित हैं -
1. भौतिक पूंजी निर्माण (Physical Capital Formation) : भौतिक पूंजी के निर्माण के अंतर्गत मशीनें, फैक्ट्रियाँ, सड़कें, पुल, बिजली आदि का निर्माण आता है।
2. मानव पूंजी निर्माण (Human Capital Formation) : इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशिक्षण और कौशल विकास पर किया गया निवेश शामिल है, जिससे श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ती है।
3. वित्तीय पूंजी निर्माण (Financial Capital Formation) : इसमें शेयर, बॉन्ड, मुद्रा और अन्य वित्तीय संसाधनों का निर्माण शामिल है।
पूंजी निर्माण की प्रक्रिया (Process Of Capital Formation in hindi)
किसी भी देश में पूंजी निर्माण का प्रमुख आधार बचतें मानी जाती हैं जिसको उपभोग व्यय कम करके प्राप्त किया जा सकता है। हम जानते हैं,
Y (आय) = C (उपभोग) + S बचत
Y - C = S
या
आय - उपभोग = बचत
उपर्युक्त समीकरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय आय का उपभोग की दर पर जितना आधिक्य होगा वही बचत (S) अथवा निवेश (1) की वास्तविक मात्रा होगी [क्योंकि साम्य की अवस्था में बचत (S) = निवेश (I) होता है।]
इस तरह, यदि उपभोग को कम कर दिया जाए और ऐसा करने से जिन संसाधनों की बचत हो उनको पूंजीगत वस्तुओं के बनाने में लगा दिया जाए, तो इससे पूंजी निर्माण (capital formation) होगा। इस प्रक्रिया को पूंजी निर्माण की प्रक्रिया कहा जाता है।
किसी देश में पूंजी निर्माण की प्रक्रिया (punji nirman ki prakriya) निम्न तत्वों पर निर्भर करती है :
1. बचतों की उपलब्धता (Availability of Savings)
2. बचतों का एकत्रीकरण (Mobilization of Savings)
3. बचतों का विनियोजन करना (Investment of Savings)
1. बचतों की उपलब्धता (Availability of Savings)
यह पूंजी निर्माण की पहली अवस्था है। इसमें व्यक्ति, परिवार, संस्थाएं और सरकार अपनी आय का एक भाग उपभोग के बजाय बचत के रूप में रखते हैं। बचत, पूंजी निर्माण की आधारशिला होती है। बचतों को चार भागों में बांटा जा सकता है- (क) ऐच्छिक बचतें, (ख) अनिवार्य बचतें, (ग) घाटे की वित्त व्यवस्था द्वारा बचतें, (घ) बाह्य बचतें।
(क) ऐच्छिक बचतें - ऐच्छिक बचतें पूंजी निर्माण का सबसे अधिक प्रभावशाली तथा न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला क्षेत्र है। ऐच्छिक बचतें जनता की इच्छा पर निर्भर करती हैं, वह चाहे बचत करे चाहे न करे। ये बचतें सामान्यतया उच्च आय वर्ग, मध्यम आय वर्ग, कृषकों तथा व्यापारियों द्वारा की जाती हैं।
ऐच्छिक बचतों के माध्यम से समाज में किसी प्रकार की प्रतिक्रिया उत्पन्न किए बिना, विकास हेतु सुविधापूर्वक पूंजी प्राप्त की जा सकती है, परन्तु ऐच्छिक बचतों को गतिशील करने के लिए, देश में पर्याप्त ऐच्छिक मात्रा में वित्तीय व साख संस्थाओं; यथा- बैंकों, डाकघरों, सहकारी समितियों का होना आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त सरकारी बॉण्ड तथा बचत पत्रों को जारी कर भी बचतों को एकत्र किया जा सकता है। बचतों को प्रोत्साहित करने के लिए ब्याज दर आकर्षक बनाई जानी चाहिए तथा बचतों को एकत्र करने की सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।
(ख) अनिवार्य बचतें- जब सतत प्रयासों के बावजूद ऐच्छिक बचतों के रूप में पर्याप्त पूंजी नहीं एकत्र हो पाती तब सरकार अनिवार्य बचत की नीति अपनाती है। इसमें ऐसे साधन कार्य में लाए जाते हैं जिससे व्यक्ति स्वतः बचत करने को मजबूर हो जाता है। सरकार द्वारा इसके लिए अनिवार्य बीमा, भविष्य निधि में जमा कार्यक्रम के अतिरिक्त अनिवार्य बचत योजना जैसे कार्यक्रम भी लागू कर सकती है।
इसके अतिरिक्त सरकार देश के नागरिकों पर विभिन्न प्रकार के नवीन कर लगाती है और पुराने करों की दरों में वृद्धि करती है ताकि देश के नागरिक अपने उपभोग को कम कर अपनी बचतों को सरकार को हस्तान्तरित कर सकें। परन्तु अनिवार्य बचत योजना एक कठोर नीति है जो प्रजातान्त्रिक देशों के लिए उपयुक्त नहीं समझी जाती है।
(ग) घाटे की वित्त व्यवस्था- जब देश में अनिवार्य एवं ऐच्छिक बचत द्वारा पर्याप्त पूंजी प्राप्त नहीं होती तो घाटे की वित्त व्यवस्था की नीति को अपनाकर पूंजी निर्माण किया जा सकता है, परन्तु इस विधि का प्रयोग अधिक मात्रा में नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे उत्पादकता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(घ) बाह्य बचतें - पूंजी निर्माण हेतु घरेलू बचतों को बाह्य साधनों से अनुपूरित करने की आवश्यकता पड़ती है। इसके अन्तर्गत पूंजी का आयात प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से किया जा सकता है। इसमें विदेशी ऋण, तकनीकी ज्ञान, मशीनरी तथा पूंजीगत माल, आदि उधार लिया जाता है जिसका भुगतान निर्यात के माध्यम से किया जाता है।
2. बचतों का एकत्रीकरण (Mobilization of Savings)
पूंजी निर्माण हेतु बचतों को एकत्रित करने के लिए प्रभावशाली वित्तीय संस्थाओं का होना आवश्यक होता है ताकि देश में समाज की बचतों को एकत्र कर उसके निवेश की समुचित व्यवस्था की जा सके। इस कार्य के लिए देश में बैंक, पोस्ट ऑफिस तथा बीमा कम्पनियों की शाखाओं का पर्याप्त विस्तार किया जाना चाहिए। इन वित्तीय संस्थाओं को शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पर्याप्त शाखाएं खोलनी चाहिए ताकि जनता अपनी बचत इन संस्थाओं में जमा कर सके और ये संस्थाएं बचतों को निवेशकर्ताओं तक सरलता से पहुंचा सकें।
3. बचतों का विनियोजन
केवल बचतों को एकत्र करने से पूंजी निर्माण सम्भव नहीं होता बल्कि इसके लिए आवश्यक है कि देश में योग्य व कुशल साहसी हों जो इन बचतों को उत्पादन कार्यों में विनियोजन कर उत्पादन में वृद्धि कर सकें तथा भावी पूंजी का निर्माण कर सकें।
बचाई गई पूंजी को यदि किसी उत्पादक कार्य में नहीं लगाया जाए तो वह अर्थव्यवस्था के लिए निष्क्रिय बनी रहती है। अतः बचाई गई पूंजी का उद्योगों, व्यवसायों, इंफ्रास्ट्रक्चर, तकनीक आदि में बेहतर निवेश करना आवश्यक है। ताकि उससे भविष्य में उत्पादन संभव हो सके।
इतना ही नहीं बल्कि नवीन पूंजी निर्माण की प्रक्रिया भी चलती रहनी चाहिए। जैसे- निवेश के फलस्वरूप मशीन, भवन, सड़कें, रेलमार्ग, संचार व्यवस्था आदि का निर्माण किया जाना। ये सभी भविष्य में उत्पादन की क्षमता को बढ़ाते हैं। इसी को नवीन पूंजी निर्माण कहा जाता है।
पूंजी निर्माण का महत्व (Importance of Capital Formation in hindi)
पूंजी निर्माण का महत्व (punji nirman ka mahatva) निम्नलिखित है -
1. आर्थिक विकास का आधार :
पूंजी निर्माण के माध्यम से उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे देश का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढ़ता है।
2. रोज़गार के अवसर :
पूंजी निर्माण से उद्योगों का विस्तार होता है जिससे रोज़गार के अवसर बढ़ते हैं।
3. उद्योगीकरण को बढ़ावा :
अधिक पूंजी के कारण नए उद्योगों की स्थापना आसान होती है। इससे औद्योगिक विकास होता है।
4. विदेशी निवेश को आकर्षित करता है :
जिन देशों में पूंजी निर्माण की गति अधिक होती है, वे विदेशी निवेशकों को आकर्षित करते हैं।
5. आय और जीवन स्तर में सुधार :
पूंजी निर्माण से जब उत्पादन और रोज़गार बढ़ते हैं, तो लोगों की आय में वृद्धि होती है और उनका जीवन स्तर बेहतर होता है।
6. तकनीकी प्रगति :
पूंजी निर्माण से वैज्ञानिक और तकनीकी उपकरणों का निर्माण होता है जिससे नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
भारत में पूंजी निर्माण की स्थिति (Status of Capital Formation in India)
भारत जैसे विकासशील देश में पूंजी निर्माण की दर किसी भी समय देश की आर्थिक स्थिति का दर्पण होती है। भारत में 1991 के उदारीकरण के बाद पूंजी निर्माण में काफी वृद्धि हुई है। सरकारी योजनाओं, विदेशी निवेश, निजी क्षेत्र की भागीदारी, और स्टार्टअप संस्कृति ने पूंजी निर्माण को नई दिशा दी है।
हालांकि, भारत में अब भी बचत और निवेश की दर विकसित देशों की तुलना में कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और वित्तीय साक्षरता की कमी, असंगठित क्षेत्र की अधिकता और बेरोज़गारी इसके प्रमुख कारण हैं।
पूंजी निर्माण में बाधाएँ (Barriers to Capital Formation in hindi)
पूंजी निर्माण की प्रक्रिया में रुकावट पैदा करने वाले ऐसे अनेक घटक हैं जिनमें कुछ प्रमुख बाधाएं निम्नलिखित हैं -
1. कम बचत दर : कम आय वाले परिवारों की बचत क्षमता सीमित होती है।
2. अविकसित वित्तीय प्रणाली : ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक और वित्तीय संस्थानों की पहुँच कम है।
3. राजनीतिक अस्थिरता : नीति निर्धारण में अनिश्चितता निवेशकों को हतोत्साहित करती है।
4. प्रशिक्षण की कमी : तकनीकी ज्ञान और कुशल श्रमिकों की कमी।
5. भ्रष्टाचार और लालफीताशाही : निवेश प्रक्रिया में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
पूंजी निर्माण को बढ़ाने के उपाय (Measures to enhance capital formation in hindi)
पूंजी निर्माण में वृद्धि करने हेतु कुछ ऐसे प्रयास आवश्यक हैं जिनसे पूंजी के निर्माण को प्रोत्साहन मिल सके। ये प्रयास निम्नलिखित हो सकते हैं -
1. बचत को प्रोत्साहन : लोगों को बचत के लिए प्रेरित करना और अधिक ब्याज़ दरें देना।
2. शिक्षा और वित्तीय साक्षरता : लोगों को निवेश और वित्तीय नियोजन के बारे में शिक्षित करना।
3. उद्योगों को बढ़ावा : व्यापारिक माहौल को सुगम बनाना ताकि निवेश को प्रोत्साहन मिले।
4. विदेशी निवेश को आकर्षित करना : सरल नियमों और सब्सिडी के माध्यम से विदेशी कंपनियों को आमंत्रित करना।
5. बुनियादी ढांचे का विकास : सड़कों, परिवहन, बिजली आदि में सुधार करना जिससे उत्पादन और निवेश बढ़े।
निष्कर्ष (Conclusion)
पूंजी निर्माण किसी भी देश के आर्थिक विकास की कुंजी है। इसके माध्यम से न केवल उत्पादन और आय में वृद्धि होती है, बल्कि। रोज़गार, शिक्षा, तकनीक और जीवन स्तर में भी सुधार आता है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए पूंजी निर्माण (punji nirman) एक अनिवार्य आवश्यकता है। इसके लिए सरकार, निजी क्षेत्र और आम जनता, सभी को एक साथ मिलकर कार्य करना होगा। तभी पूंजी निर्माण की गति तीव्र होगी, और तभी भारत एक आत्मनिर्भर, समृद्ध और विकसित राष्ट्र बन सकेगा।
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