विकिरण प्रदूषण के स्रोत, प्रभाव तथा नियंत्रण |
Sources, effects and control of radiation pollutionin hindi
आज के युग में प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है, जो पर्यावरण, जीव-जंतुओं और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण आदि के साथ-साथ आज के वैज्ञानिक और औद्योगिक युग की एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या बन चुका है। जिसे विकिरण प्रदूषण (Radiation Pollution) कहा जाता है।
विकिरण प्रदूषण क्या है? | What is Radiation Pollution in hindi?)
विकिरण प्रदूषण (Radiation Pollution) उस स्थिति को दर्शाता है जब पर्यावरण में प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से अत्यधिक विकिरण मौजूद होती है। जो जीव-जंतुओं और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
विकिरण प्रदूषण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है- आयनीकरण विकिरण (ionizing radiation) और अनायनीकरण विकिरण (non-ionizing radiation)। इनमें आयनीकरण विकिरण, जैसे कि गामा किरणें, एक्स-रे, अल्फा और बीटा कण, अधिक ख़तरनाक माने जाते हैं।
यह विकिरण प्रदूषण प्राकृतिक रूप से भी हो सकता है (जैसे सूर्य से आने वाली यूवी किरणें या पृथ्वी से निकलने वाली रेडियोधर्मी गैस रैडॉन) और मानव निर्मित गतिविधियों से भी (जैसे परमाणु ऊर्जा संयंत्र, एक्स-रे, मोबाइल टॉवर, परमाणु परीक्षण आदि)।
विकिरण के प्रकार (Types of radiation in hindi)
विकिरण दो प्रकार के होते हैं -
1. आयनकारी विकिरण (Ionizing Radiation)-
इसमें इतनी ऊर्जा होती है कि यह परमाणुओं से इलेक्ट्रॉन को हटा सकती है। यह DNA को क्षतिग्रस्त कर सकती है और कैंसर जैसे रोगों का कारण बनती है। इसके उदाहरण हैं- गामा किरणें, एक्स-रे, अल्फा और बीटा कण।
2. अनायनकारी विकिरण (Non-Ionizing Radiation)-
अनायनकारी विकिरण में ऊर्जा कम होती है लेकिन यह ऊतकों को गर्म कर सकती है। मोबाइल टॉवर, माइक्रोवेव, रेडियो तरंगें आदि इसके उदाहरण हैं।
विकिरण प्रदूषण स्त्रोत (Sources of Radiation Pollution in hindi)
विकिरण प्रदूषण के विभिन्न स्रोत होते हैं जो प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों प्रकार के हो सकते हैं। विकिरण प्रदूषण के कारण (स्रोत) निम्न हो सकते हैं -
1. प्राकृतिक स्रोत (Natural sources) :
(क) ब्रह्मांडीय विकिरण (Cosmic Radiation) :
ब्रह्मांड से आने वाली उच्च-ऊर्जा विकिरणें जैसे कि गामा किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती हैं। यद्यपि वायुमंडल और चुंबकीय क्षेत्र इनका अधिकांश भाग अवशोषित कर लेते हैं, फिर भी कुछ विकिरण पृथ्वी की सतह तक पहुंचती है। उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों, जैसे पर्वतीय इलाकों और वायुयान यात्रियों को अधिक ब्रह्मांडीय विकिरण का सामना करना पड़ता है।
(ख) स्थलीय विकिरण (Terrestrial Radiation) :
कुछ चट्टानें और मिट्टी प्राकृतिक रूप से रेडियोधर्मी तत्वों जैसे यूरेनियम, थोरियम और पोटेशियम-40 से युक्त होती हैं। ये तत्व धरती की सतह से विकिरण छोड़ते हैं। यह विकिरण मनुष्यों द्वारा सीधे अवशोषित होती है।
प्राकृतिक स्रोतों के अतिरिक्त मानव द्वारा भी विकिरण उत्पन्न किए जाते हैं, जो और अधिक घातक हैं, जैसे प्लूटोनियम तथा थोरियम का शुद्धिकरण, आण्विक ऊर्जा संयन्त्र, नाभिकीय शस्त्रों का उत्पादन, परीक्षण तथा प्रयोग, नाभिकीय ईंधन तथा रेडियोऐक्टिव आइसोटोप्स का निर्माण आदि।
(ग) रेडॉन गैस (Radon Gas) :
पृथ्वी की सतह से निकलने वाली रैडॉन गैस एक प्राकृतिक रेडियोधर्मी गैस है जो विकिरण प्रदूषण का कारण बन सकती है। ये यूरेनियम के क्षय के दौरान उत्पन्न होती है। यह गैस मिट्टी और चट्टानों से निकलकर घरों के भीतर जमा हो सकती है और श्वसन के द्वारा शरीर में प्रवेश करके फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकती है। यह दुनिया भर में विकिरण प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत है।
2. मानव निर्मित स्रोत (Man-made Sources) :
(क) परमाणु बिजलीघर (Nuclear Power Plants) :
परमाणु ऊर्जा उत्पादन केंद्रों में यूरेनियम या प्लूटोनियम के विखंडन से बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। यदि इन केंद्रों से रेडियोधर्मी पदार्थों का रिसाव हो जाए, तो यह व्यापक विकिरण प्रदूषण फैला सकता है। चेर्नोबिल (1986) और फुकुशिमा (2011) दुर्घटनाएँ इसके उदाहरण हैं।
(ख) परमाणु परीक्षण (Nuclear Testing) :
20वीं शताब्दी में विभिन्न देशों ने वातावरण, जल और ज़मीन पर हजारों परमाणु परीक्षण किए। इन परीक्षणों से रेडियोधर्मी कण वातावरण में फैल गए जो वर्षा के साथ ज़मीन पर आकर मिट्टी, जल और वनस्पतियों को दूषित करते हैं।
(ग) औद्योगिक विकिरण स्रोत (Industrial Radiation Sources) :
कुछ उद्योगों में रेडियोधर्मी तत्वों का उपयोग निरीक्षण, चित्रण, और शोध कार्यों में किया जाता है। जैसे तेल और गैस उद्योग में पाइपलाइन की जांच के लिए गामा रेडियोग्राफी का उपयोग। यदि इन स्रोतों का सही ढंग से प्रबंधन नहीं किया गया, तो यह मानव स्वास्थ्य के लिए। ख़तरा बन सकता है।
(घ) चिकित्सा उपकरण (Medical Equipment) :
चिकित्सा विज्ञान में एक्स-रे, सीटी स्कैन, रेडियोथेरेपी आदि में विकिरण का प्रयोग आम है। हालाँकि यह सीमित और नियंत्रित मात्रा में होता है, लेकिन अधिक या बार-बार उपयोग करने पर यह स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डाल सकता है। रेडियोआइसोटोप्स का प्रयोग कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में किया जाता है, लेकिन इनके अपशिष्ट का उचित निपटान आवश्यक है।
(ङ) उपग्रह एवं अंतरिक्ष मिशन :
अंतरिक्ष में भेजे गए उपग्रहों और अन्य मिशनों में अक्सर रेडियोधर्मी ऊर्जा स्रोत (RTGs) का उपयोग किया जाता है। यदि ये उपग्रह धरती पर गिरते हैं तो इससे गंभीर विकिरण प्रदूषण हो सकता है।
(च) उपभोक्ता वस्तुएँ (Consumer Products) :
मोबाइल टावर और रेडार, विकिरण प्रदूषण के प्रमुख कारणों में गिने जा सकते हैं। कुछ घरेलू उत्पादों में अल्प मात्रा में रेडियोधर्मी सामग्री होती है, जैसे धूम्रपान डिटेक्टर, लैंटर्न मैंटल और रेडियम के प्रयोग वाली प्राचीन घड़ियाँ। हालांकि इनका प्रभाव सीमित होता है, फ़िर भी यह विकिरण के छोटे स्रोत माने जा सकते हैं।
3. दुर्घटनात्मक स्रोत (Accidental Sources) :
(क) विकिरण रिसाव की घटनाएँ :
यदि रेडियोधर्मी कचरे का समुचित भंडारण न हो या कोई दुर्घटना हो जाए, तो यह व्यापक क्षेत्र में विकिरण फैला सकता है। कई बार कबाड़ उद्योगों में रेडियोधर्मी पदार्थ गलती से पहुँच जाते हैं, जिससे वहाँ कार्यरत लोगों और आस-पास के इलाकों में विकिरण फैलती है।
(ख) आतंकवादी गतिविधियाँ और "डर्ट बॉम्ब्स" :
आज के युग में रेडियोधर्मी सामग्री के दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है। तथाकथित “डर्ट बॉम्ब” एक ऐसा हथियार है जिसमें पारंपरिक विस्फोटकों के साथ विकिरण फैलाने वाले तत्व मिलाए जाते हैं। यह विकिरण प्रदूषण का घातक रूप हो सकता है।
विकिरण प्रदूषण के ऐतिहासिक उदाहरण
1. चेरनोबिल (Chernobyl), 1986 :
यूक्रेन के चेरनोबिल में परमाणु संयंत्र में हुए विस्फोट से भारी मात्रा में रेडियोधर्मी तत्व वातावरण में फैल गए, जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए। आज भी वहां के क्षेत्र “ख़तरनाक क्षेत्र” माने जाते हैं।
2. फुकुशिमा (Fukushima), 2011 :
जापान में सुनामी के कारण परमाणु संयंत्र को क्षति पहुँची और विकिरण लीक हो गया। इसका प्रभाव समुद्री जीवन और आसपास के निवासियों पर गंभीर रहा।
3. हिरोशिमा और नागासाकी (1945) :
अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बम गिराने से हजारों लोग तुरंत मारे गए, और बाद में विकिरण के प्रभाव से हजारों लोगों को कैंसर, विकलांगता और अन्य बीमारियाँ हुईं।
1945 में अमेरिका ने जापान के दो प्रमुख नगरों हीरोशिमा तथा नागासाकी पर आण्विक बम गिराए, जिसके फलस्वरूप वहां सब कुछ नष्ट हो गया। शायद ही कोई जीव वहां जीवित रहा हो, किन्तु इसका प्रभाव आस-पास के शहरों में रहने वाले जीवों पर भी पड़ा। यहां तक कि आज, लगभग 59 वर्ष बाद, भी वहां के बच्चों में विकिरण प्रदूषण के लक्षण विद्यमान हैं, क्योंकि नाभिकीय अपशिष्ट में रेडियोऐक्टिव तत्व होते हैं, जो एक हजार वर्ष तक सक्रिय रहते हैं। इसीलिए स्पष्टतया कहा जा सकता है कि विकिरण प्रदूषण सबसे अधिक हानिकारक होता है।
विकिरण प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Radiation Pollution in hindi)
विकिरण प्रदूषण के प्रभाव (vikiran pradushan ke prabhav) निम्नलिखित है -
1. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
विकिरण की सूक्ष्म मात्रा भी शरीर के अंगों को प्रभावित करती है। अंगों की कार्यक्षमता कम हो जाती है। जिससे इम्यून सिस्टम का कमज़ोर हो जाता है।
शरीर के साथ विकिरण का अधिक समय के लिए सम्पर्क आपको अनेक बीमारियों जैसे- मानसिक विकार, कैंसर (रक्त कैंसर), त्वचा संबंधी रोग, थायरॉइड, जन्मजात विकृतियाँ, बांझपन और प्रजनन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है।
विकिरण प्रदूषण, भावी पीढ़ियों को भी प्रभावित करते हैं इसलिए ये सबसे अधिक हानिकारक माने जाते हैं। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि अत्यधिक विकिरण के प्रदूषण से मृत्यु भी हो जाती है।
2. पर्यावरण पर प्रभाव
विकिरण के अत्यधिक प्रदूषण से मृदा की उर्वरता में कमी होती है। पौधों में उत्परिवर्तन (mutation) और जल स्रोतों में प्रदूषण बढ़ जाता है। इतना ही नहीं, बल्कि जीव-जंतुओं की प्रजातियों में गिरावट देखी जाती है। और संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन शुरू हो जाता है।
3. आनुवंशिक प्रभाव
विकिरण DNA में बदलाव ला सकता है, जो पीढ़ियों तक चले जा सकते हैं। गर्भस्थ शिशुओं में मानसिक व शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
विकिरण प्रदूषण नियन्त्रण (Control of Radiation Pollu-tion)
विकिरण प्रदूषण की रोकथाम के उपाय (vikiran pradushan ki roktham ke upay) निम्नलिखित हैं -
1. परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा :
अत्यंत सख्त मानकों के अनुसार परमाणु संयंत्रों का निर्माण और संचालन करना चाहिए। दुर्घटनाओं से बचने के लिए सुरक्षा सम्बन्धी नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिए।
2. रेडियोधर्मी कचरे का सुरक्षित निपटान :
विशेष तकनीकों से इन कचरों को ज़मीन के अंदर सुरक्षित रूप से दबाया जाना चाहिए ताकि वह वातावरण में न फैल सके।
3. परमाणु परीक्षणों पर रोक :
अंतरराष्ट्रीय संधियों के माध्यम से परमाणु हथियारों के परीक्षणों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
4. रेडिएशन का निगरानी तंत्र :
उन स्थानों पर रेडिएशन डिटेक्टर विशेष तौर पर लगाए जाने चाहिए जहाँ से विकिरण के फैलने की संभावना बनी हुई हो। आण्विक रिएक्टर की स्थापना मानव आबादी से बहुत दूर करनी चाहिए।
5. परिवहन व उपयोग में सावधानी :
रिएक्टरों से रिसाव, रेडियोऐक्टिव ईंधन तथा आइसोटोपों के परिवहन तथा उपयोग में किसी भी तरह की लापरवाही बरतने पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
6. मोबाइल टॉवर सीमित नियोजन :
मोबाइल टॉवरों की संख्या और स्थान का नियंत्रण
आबादी वाले क्षेत्रों में अधिक मात्रा में मोबाइल टावर लगाना नियोजित और सीमित किया जाना चाहिए।
7. जनजागरूकता ज़रूरी :
सामान्यतया लोगों को विकिरण के ख़तरे और सुरक्षा उपायों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है। ताकि वे किसी भी समस्या से उबरने के लिए तैयार रह सकें।
8. वैज्ञानिक अनुसंधान और नीतियाँ :
सरकारों को विकिरण से संबंधित वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देना चाहिए और प्रभावी नीतियाँ बनानी चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
विकिरण प्रदूषण एक गंभीर, अदृश्य और धीमा ज़हर है जो हमारे जीवन, पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के लिए ख़तरा बन सकता है। इसलिए इसका समय रहते नियंत्रण, जनजागरूकता और वैज्ञानिक तरीके से निपटान आवश्यक है। आधुनिकता और विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ हमें इसके ख़तरों को भी समझना होगा और सतर्क रहना होगा, ताकि विकास का मार्ग सुरक्षित और स्थायी हो सके।
विकिरण प्रदूषण एक अदृश्य लेकिन अत्यंत गंभीर समस्या है। इसके प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों स्रोत हैं। जहाँ एक ओर प्रकृति से प्राप्त विकिरण सीमित और अपेक्षाकृत स्थिर होते हैं, वहीं मानव द्वारा उत्पन्न विकिरण का स्तर असंतुलित और ख़तरनाक हो सकता है। विशेष रूप से परमाणु ऊर्जा और चिकित्सा क्षेत्र में इनका उपयोग करते समय सुरक्षा मानकों का पालन अत्यावश्यक है।
समय की माँग है कि हम विकिरण स्रोतों की निगरानी करें, परमाणु और औद्योगिक अपशिष्टों का सुरक्षित निपटान करें, और जनजागरूकता बढ़ाएँ ताकि इस अदृश्य खतरे से हमारी पृथ्वी और जीवन सुरक्षित रह सके।
Some more topics :