जल प्रदूषण को विस्तार से समझाइए, जल प्रदूषण के कारण, जल प्रदूषण रोकने के उपाय, (Water Pollution in hindi, Sources of Water Pollution essay in hindi, jal pradushan ke karan aur upay)
पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए जल का होना अत्यंत आवश्यक है। जल, जीवन का मूल आधार है।
मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सभी के लिए जल एक अनिवार्य तत्व है। लेकिन आधुनिक जीवनशैली में औद्योगीकरण, शहरीकरण तथा जनसंख्या वृद्धि ने जल को अत्यधिक प्रदूषित कर दिया है। जिस कारण जल प्रदूषण आज एक गंभीर वैश्विक समस्या बन चुकी है, जो मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के लिए ख़तरा है।
जल प्रदूषण क्या है? | Jal Pradushan kya hai?
जब जल के स्रोतों, जैसे नदियाँ, झीलें, तालाब, समुद्र, और भूजल में हानिकारक रसायन, कचरा, जीवाणु, या अन्य प्रदूषक पदार्थ मिल जाते हैं, तो उस स्थिति को जल प्रदूषण (jal pradushan) कहा जाता है। यह प्रदूषण जल की गुणवत्ता को ख़राब कर देता है, जिससे उसका उपयोग पीने, सिंचाई, उद्योग या अन्य कार्यों के लिए असुरक्षित हो जाता है।
सामान्य शब्दों में, जल स्रोतों (जैसे कि नदियाँ, झीलें, तालाब, समुद्र और भूमिगत जल) में हानिकारक पदार्थों का मिश्रण या प्रवेश, जिससे जल की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है और वह मनुष्यों, जानवरों तथा पर्यावरण के लिए हानिकारक बन जाता है।
जल प्रदूषण स्त्रोत | जल प्रदूषण का कारण
जल प्रदूषण के अनेक स्रोत होते हैं। इन्हें मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है : (a) प्राकृतिक स्रोत, (b) मानव निर्मित स्रोत
(a) प्राकृतिक स्रोत :
प्राकृतिक कारणों की बात करें तो इसके अंतर्गत ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन, बाढ़ आदि आते हैं, जिनके कारण जल स्रोतों में मिट्टी, राख, खनिज आदि का जमावड़ा बढ़ जाता है।
अम्लीय जल वर्षा होने, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों के मिलने से, मृदा अपरदन से, खनिजों के लीचिंग से, कार्बनिक पदार्थों के विघटन आदि से प्राकृतिक जल प्रदूषण (jal pradushan) होता है।
(b) मानव निर्मित स्रोत :
ये सबसे अधिक ख़तरनाक होते हैं और इनमें निम्न स्रोत शामिल हैं -
• औद्योगिक अपशिष्ट : जल की आवश्यकता लगभग सभी उद्योग-धन्धों में होती है। ठण्डा करने, धोने आदि के लिए भी जल की आवश्यकता होती है।उद्योगों में प्रयोग किए जाने के बाद अपशिष्ट जल (जिसमें हानिकारक धातु के कण, रंग तथा अन्य विषैले पदार्थ (toxic substances) घुले रहते हैं) को नदी, नालों, जलधाराओं आदि में छोड़ दिया जाता है।
इस तरह उर्वरक, इस्पात, चीनी, कपड़ा, पेन्ट्स, रिफाइनरी, ऊर्जा आदि के कारखानों में उत्पादित सभी अपशिष्ट तथा आविषालु पदार्थ जल में छोड़ दिए जाते हैं। जिससे जल प्रदूषण अत्यधिक विकराल रूप धारण कर लेता है। खानों से निकला अम्लीय जल भी नदियों तथा समुद्र को प्रदूषित करता है
• घरेलू अपशिष्ट : घरों से निकलने वाला कचरा, साबुन, डिटर्जेंट, मल-मूत्र आदि सीधे जल स्रोतों में प्रवाहित कर दिया जाता है। नदियों और समुद्रों में फेंका गया प्लास्टिक कचरा जल को बुरी तरह प्रदूषित करता है।
• कृषि गतिविधियाँ : कृषि के आधुनिकीकरण से उर्वरकों तथा कीटनाशकों का उपयोग हद से ज़्यादा बढ़ चुका है। खेतों में इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और खरपतवार नाशक वर्षा के साथ बहकर जल स्रोतों में मिल जाते हैं। इस प्रकार भूमिगत जल भी प्रदूषित हो जाता है।
• नाभिकीय तथा ताप ऊर्जा संयन्त्रों का जल :
नाभिकीय तथा ताप ऊर्जा संयन्त्रों में भी ठण्डा करने के लिए जल की अधिक आवश्यकता होती है। ऐसे में यह जल प्रदूषित हो जाता है और मनुष्य इस जल को सीधे ही जलधाराओं में छोड़ देता है। क्योंकि इस जल का तापक्रम भी अधिक होता है। इस दूषित जल से जलीय जन्तु तथा पौधे भी मर जाते हैं।
• तेल रिसाव : समुद्रों में तेल टैंकरों से तेल का रिसाव भी जल प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। बड़ी-बड़ी नाव, पानी के जहाज तथा एनडुब्बियां जल में अपने पीछे तेल की धारा छोड़ते जाते हैं जो जल की सतह पर फैल जाता है। इससे जलीय जीवों को ऑक्सीजन कम मिल पाती है। इससे जलीय जीवों का जीवन कष्टमय हो जाता है।
• वैज्ञानिक प्रयोग - वैज्ञानिक अपने प्रयोगों में अनेक रसायनों का प्रयोग करते हैं और बिना शुद्धिकरण के ही उन्हें जल में छोड़ देते हैं। इस प्रकार अक़्सर देखा जाता है कि वैज्ञानिक भी जल प्रदूषण का कारण बनते हैं।
जल प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Water Pollution in hindi)
जल प्रदूषण के दुष्परिणाम (jal pradushan ke dushprabhav) बहुत व्यापक और गंभीर होते हैं। इनमें प्रमुख निम्न हैं -
• मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव : गंदे पानी के सेवन से डायरिया, हैजा, टाइफाइड, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियाँ होती हैं। बच्चों में कुपोषण और मानसिक विकास में रुकावट भी हो सकती है। औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों में लैड, कैडमियम, पारा, जिंक, लोहा, आदि मिला रहता है। इनसे जल नहाने तथा पीने योग्य नहीं रहता।
पारा (Mercury) एक भारी धातु है,जो कि जल प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है। यह खाद्य-श्रृंखला में धीरे-धीरे लगातार बढ़ता जाता है। खानों, कागज के कारखानों तथा विद्युत् संयन्त्र बनाने वाली फैक्टरियों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ में पारा अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है। पारे से हाथ, पैर, होंठ, जीभ आदि सुन्न हो जाते हैं। इससे बहरापन तथा अन्धापन या पागलपन भी हो जाता है।
• जलीय जीवन पर प्रभाव : प्रदूषित जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे मछलियाँ और अन्य जल जीव मर जाते हैं। जल में तेल की मिलावट से पक्षियों के पंखों में तेल लग जाने से वे उड़ नहीं पाते और मर जाते हैं। जल का तापक्रम बढ़ने से जीवों की या तो मृत्यु हो जाती है या उनका जीना कठिन हो जाता है।
• पारिस्थितिकी तंत्र का असंतुलन : एक जैविक श्रृंखला के प्रभावित होने से पूरी पारिस्थितिकी प्रणाली असंतुलित हो जाती है।
• भूमिगत जल का प्रदूषण : जब हानिकारक रसायन ज़मीन में रिसकर भूजल तक पहुँचते हैं, तो यह पीने योग्य जल को भी असुरक्षित बना देते हैं।
• आर्थिक हानि : जल प्रदूषण के कारण मछली पालन, वेपर्यटन और कृषि जैसे क्षेत्रों को भारी नुकसान होता है।
भारत में जल प्रदूषण की स्थिति
भारत में गंगा, यमुना, गोदावरी जैसी नदियाँ सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। लेकिन आज ये नदियाँ अत्यधिक प्रदूषित हो चुकी हैं। गंगा सफाई अभियान जैसे अनेक प्रयासों के बावजूद स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जल निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण जल स्रोतों में सीधे गंदा पानी बहा दिया जाता है।
जल प्रदूषण का नियन्त्रण (Control of Water Pollution in hindi)
जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए उपाय निम्नलिखित किए जा सकते हैं -
(1) तालाबों, झीलों तथा जल धाराओं में बैठ कर नहाना, कपड़े धोना, साबुन लगाकर नहाना, आदि बंद कर देना चाहिए। हमें फॉस्फेट की कम मात्रा वाले साबुन या डिटरजेन्ट आदि का प्रयोग करना चाहिए।
(2) औद्योगिक अपशिष्टों का उपचार, जल प्रदूषण के लिए अत्यंत आवश्यक है। उद्योगों को चाहिए कि वे अपशिष्ट जल को शोधित (Treat) करने के बाद ही जल स्रोतों में छोड़े।
(3) अपशिष्ट पदार्थ जिनका दहन नहीं हो सकता या जैव-विघटन (Biodegradation) नहीं हो सकता, उन पदार्थों से निचली भूमि या गड्डों को भरना चाहिए।
(4) जल प्रदूषण के प्रति क़ानूनी प्रवर्तन की आवश्यकता है। सरकार को जल प्रदूषण से संबंधित कड़े कानूनों को लागू करना चाहिए और दोषियों पर दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।
(5) पुनः प्रयोग और रीसायक्लिंग से दूषित पानी का बेहतर प्रयोग किया जा सकता है। इसलिए पानी के पुनः उपयोग और रीसायक्लिंग को बढ़ावा देना चाहिए।
(6) घरेलू जल प्रबंधन के अंतर्गत घरों से निकलने वाले कचरे और अपशिष्टों का उचित निपटान किया जाए।
(7) जैविक कृषि को बढ़ावा देना जल प्रदूषण के लिए रासायनिक खादों की जगह जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।
(8) जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना बेहद ज़रूरी है। आज के समय में जन जागरूकता ही जल प्रदूषण रोकने में विशेष भूमिका निभा सकती है।
(9) वाहित मल शुद्धिकरण संयन्त्र लगाने चाहिए और वाहित मल का उपचार करने के पश्चात् ही जल में छोड़ना चाहिए।
(10) पादपनाशक, कीटनाशक, उर्वरकों आदि पदार्थों का केवल आवश्यकतानुसार ही प्रयोग करना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
जल प्रदूषण आज की दुनिया के सामने एक अत्यंत गंभीर चुनौती है। यदि समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो मानव जाति को इसके भयावह परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। स्वच्छ जल का महत्व जितना जीवन के लिए है, उतना ही यह विकास और समृद्धि के लिए भी आवश्यक है।
अतः हमें जल को प्रदूषित करने वाले सभी कार्यों से बचना चाहिए और यह संकल्प लेना चाहिए कि हम जल संरक्षण में अपनी जिम्मेदारी निभाएँगे। एक जागरूक समाज ही जल प्रदूषण जैसी समस्या का स्थायी समाधान खोज सकता है।
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