भूस्खलन से आप क्या समझते हैं, भूस्खलन पर निबंध, भूस्खलन के कारण एवं प्रभाव, भूस्खलन नियंत्रण के उपाय, Effects of landslide in hindi, Landslide prone areas in hindi, Causes of landslide in hindi, Landslide protection in hindi)
भूस्खलन एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसमें मिट्टी, चट्टानें और अन्य भू-तत्व अचानक अपने स्थान से खिसककर नीचे की ओर गिरते हैं। यह घटना पर्वतीय क्षेत्रों में ज़्यादातर होती है, जहाँ ढलान पर स्थित मृदा और चट्टानों का संतुलन बिगड़ जाता है।
आपने न्यूज़ में देखा या पढ़ा होगा कि पहाड़ी क्षेत्र के दुर्गम रास्तों में कैसे रेल मार्ग और सड़क मार्ग पर अचानक, गीली मिट्टी, मलबे या चट्टानों के गिरने से रास्ता अवरुद्ध हो जाता है। ये मलबा, या चट्टानों का समूह खिसककर ढाल से नीचे की ओर गिरता है।भूस्खलन न केवल प्राकृतिक संतुलन को बाधित करता है, बल्कि इससे जान-माल का भारी नुक़सान भी होता है। इसका प्राकृतिक पर्यावरण और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
इस अंक में हम भूस्खलन का अर्थ, कारण, प्रभाव एवं बचाव के बारे में विस्तार से जानने वाले हैं। आइए भूस्खलन क्या है (landslide kya hai?) विस्तार से जानते हैं।
Table of Contents :1.1.1. अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र1.1.2. अधिक सुभेद्यता क्षेत्र1.1.3. मध्यम व कम सुभेद्यता क्षेत्र1.1.4. अन्य क्षेत्र1.3.1. भूस्खलन के प्राकृतिक कारण1.3.2. भूस्खलन के मानवीय कारण
भूस्खलन क्या है? (What is landslide in hindi)
जब मिट्टी, चट्टान या अन्य पदार्थ ढलान से नीचे की ओर खिसकते हैं, तो इस घटना को भूस्खलन (landslide) कहते हैं। यह एक प्राकृतिक आपदा है जो अक्सर भारी बारिश, भूकंप या मानवीय गतिविधियों के कारण होती है।
भूस्खलन जान-माल के लिए बहुत ख़तरनाक होते हैं। वे घरों, सड़कों, और पुलों को नष्ट कर सकते हैं। साथ ही, वे बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कारण भी बन सकते हैं।
भूस्खलन के प्रकार निम्न होते हैं, जैसे कि -
• चट्टान गिरना : बड़ी बड़ी चट्टानें ढलान से नीचे गिरती हैं। जो भयावह परिस्थितियां उत्पन्न करती हैं।
• मिट्टी का बहना : मिट्टी और पानी का मिश्रण तेज़ी से ढलान से नीचे की ओर बहता है। जो देखने में भयानक और बेहद नुकसानप्रद होता है।
• मलबा का बहना : चट्टान, मिट्टी और पेड़ों का मिश्रण तेज़ी से ढलान से नीचे की ओर बहता है। जिसके कारण रास्ता अवरुद्ध हो जाता है और जान-माल का नुक़सान भी झेलने पड़ता है।
भूस्खलन संभावित क्षेत्र (Landslide Prone Areas)
भूस्खलन की परिभाषा बताना और इसके व्यवहार को शब्दों में बांधना मुश्क़िल कार्य है। किंतु फ़िर भी पिछले अनुभवों, इसकी बारंबारता और इसके घटने को प्रभावित करने वाले कारकों, जैसे - भूविज्ञान, भूआकृतिक कारक, ढाल, भूमि का उपयोग, वनस्पति आवरण और मानवीय गतिविधियों के आधार पर भारत के विभिन्न क्षेत्रों को भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में बांटा जा सकता है।
(1) अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र
इन क्षेत्रों में भूस्खलन की बारंबारता अत्यधिक देखी जाती है। ज़्यादा अस्थिर हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलाएं, अंडमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और नीलगिरी में अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर पूर्वी क्षेत्र, भूकंप प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव क्रियाकलापों वाले क्षेत्र, जिसमें सड़क और बांध निर्माण इत्यादि आते हैं। ये क्षेत्र अत्यधिक भूस्खलन सुभेद्यता क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
(2) अधिक सुभेद्यता क्षेत्र
अधिक भूस्खलन सुभेद्यता क्षेत्रों में भी अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्रों की तरह ही मिलती जुलती परिस्थितियां होती हैं। भूस्खलन की स्थिति की बात करें तो, इनके बीच भूस्खलन का नियंत्रण करने वाले कारकों के संयोजन, गहनता और बारंबारता का ही अंतर होता है। हिमालय क्षेत्र का सारे राज्य और उत्तर-पूर्वी भाग (असम को छोड़कर) इस क्षेत्र के अंतर्गत शामिल किए जाते हैं।
(3) मध्यम और कम सुभेद्यता क्षेत्र
ऐसे क्षेत्रों में भूस्खलन कभी कभी और मध्यम गति वाले देखे जाते हैं। हिमालय के पार कम वृष्टि वाले क्षेत्र लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में स्पिती, अरावली पहाड़ियों में कम वर्षा वाला क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट के व दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र ऐसे इलाके हैं, जहाँ कभी-कभी भूस्खलन (bhuskhalan) होता है। इसके अलावा भूस्खलन की बारंबारता की बात करें तो मध्यप्रदेश झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गोवा और केरल में खदानों और भूमि के धँसने से भूस्खलन होता रहता है।
(4) अन्य क्षेत्र
भारत के अन्य क्षेत्र विशेषकर राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग ज़िले को छोड़कर) असम (कार्बी अनलोंग को छोड़कर) और दक्षिण प्रांतों के तटीय के क्षेत्रों में भी भूस्खलन की परिस्थितियां अक्सर देखने मिलती हैं।
भूस्खलन के प्रभाव (Effects of landslides) | भूस्खलन के परिणाम
भूस्खलनों का प्रभाव अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र में अधिक पाया जाता है तथा यह स्थानीय होता है। परन्तु भूस्खलन के कारण सड़क मार्ग में अवरोध, रेलपटरियों का टूट जाना और जल वाहिकाओं में चट्टानें गिरने से पैदा हुई रुकावटों आदि के कारण गंभीर नुक़सान हो सकते हैं। भूस्खलन की वजह से हुए नदी रास्तों में बदलाव बाढ़ ला सकते हैं और जान माल का भारी नुक़सान हो सकता है। भूस्खलन (bhuskhalan) के आने से इन क्षेत्रों में आवागमन प्रभावित हो जाता है और विकास कार्यों की रफ़्तार भी धीमी पड़ जाती है।
भूस्खलन से कई प्रकार के नकारात्मक प्रभाव देखने मिलते हैं, जैसे -
• भूस्खलन के होने से गाँवों, सड़कों और इमारतों को नुक़सान पहुँचता है।
• भूस्खलन के होने से यातायात बाधित हो जाता है, जिससे लोगों को असुविधा होती है।
• भूस्खलन के होने से कृषि भूमि नष्ट हो जाती है। जिससे किसान सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं।
• भूस्खलन के आने से नदियों में मिट्टी जमा हो जाती है। जिसके कारण नदियों में बाढ़ का ख़तरा बढ़ जाता है। इससे नदियों के रस्ते भी बदल जाते हैं जिससे नदियों का पानी दूसरे क्षेत्रों में भर जाने का ख़तरा बढ़ जाता है।
भूस्खलन के कारण (Causes of landslides)
भूस्खलन कई कारणों से होता है, जिनमें प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारक शामिल हैं। आइए जानते हैं कि भूस्खलन के कारण क्या हैं? (Bhuskhlan ke karan kya hain?) ये प्राकृतिक एवं मानवीय कारण निम्न हो होते हैं -
1. प्राकृतिक कारण
भूस्खलन के प्राकृतिक कारण (bhuskhalan ke prakratik karan) निम्न हो सकते हैं -
भारी बारिश : बारिश से मिट्टी भारी हो जाती है और ढलान पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे भूस्खलन हो सकता है। अत्यधिक वर्षा से मिट्टी का संतुलन भी बिगड़ जाता है।
भूकंप आना : भूकंप के झटकों से ढलान अस्थिर हो जाती है और मिट्टी और चट्टानें खिसकने लगती हैं। और भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
ज्वालामुखी : भूकंप आने और ज्वालामुखी विस्फोट के कारण चट्टानों का दरकना प्रारंभ हो जाता है। जिस कारण भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न होती है।
बर्फ पिघलना : बर्फ़ के पिघलने से पानी की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे ढलान कमज़ोर हो जाती है। और उस जगह से भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
2. मानवीय कारण
भूस्खलन के मानवीय कारण (bhuskhalan ke manviya karan) निम्न हो सकते हैं -
वनों की कटाई : जंगलों की अंधाधुंध कटाई से मिट्टी का संरक्षण कमज़ोर हो जाता है। जिस कारण भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
सड़क निर्माण और खनन : आजकल सड़क के निर्माण और खनन का कार्य ज़ोरों पर चलने के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है।
इमारतों का निर्माण : अवैज्ञानिक ढंग से इमारतों का निर्माण जैसी मानवीय गतिविधियां भी भूस्खलन का कारण बन सकती हैं।
भूस्खलन से बचने के उपाय (Landslide protection in hindi)
भूस्खलन की घटनाओं को पूरी तरह से रोक पाना संभव नहीं है, लेकिन सावधानी और वैज्ञानिक उपायों से इसके प्रभाव को कुछ हद तक कम ज़रूर किया जा सकता है। भूस्खलन से बचाव के लिए हम निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं -
जंगलों का संरक्षण : जंगल मिट्टी को बांधे रखते हैं और भूस्खलन को रोकने में मदद करते हैं। इसलिए वनों के संरक्षण को महत्व देते हुए, पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना भी सबसे कारगर उपाय हो सकता है।
खनन और निर्माण में सावधानी : कार्यों खनन और निर्माण कार्य को पूरी तरह रोक पाना तो असंभव जान पड़ता है। लेकिन इस कार्य के लिए उचित तकनीकी सावधानी बरतना, भूस्खलन के कारणों को रोकने में ज़रूर मददगार साबित हो सकता है।
जागरूकता फैलाना : भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करना और आपदा प्रबंधन की तैयारी करना, भूस्खलन से बचाव के लिए एक महत्वपूर्व क़दम साबित हो सकता है।
जल-प्रवाह की दिशा पर नियंत्रण : जल प्रवाह की दिशा को नियंत्रित करने के लिए उचित जल निकासी का प्रबंध अत्यन्त आवश्यक होता है। इसलिए ऐसी परिस्थितियों के लिए जल निकासी के लिए उचित प्रणाली विकसित करना, भूस्खलन से बचने के लिए अच्छा उपाय हो सकता है।
चेतावनी प्रणाली : भूस्खलन की संभावना वाले क्षेत्रों में चेतावनी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए। समय से पहले ही वहां निवास कर रहे लोगों को भूस्खलन से बचने के लिए एलर्ट किया जा सके।
अपने घर को मज़बूत बनाएं : अपने घर को भूस्खलन से बचाने के लिए आप कुछ सुरक्षा उपाय कर सकते हैं, जैसे कि ढलान पर पेड़ लगाना और घर के आसपास मिट्टी की दीवार बनाना। ताकि आपके घर के आसपास की मिट्टी मज़बूती से आपके घर की सुरक्षा में महत्वपूर्ण निभा सके।
ख़तरनाक क्षेत्रों से दूर रहें : अगर आप किसी ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहां भूस्खलन का ख़तरा बना रहता है, तो उस स्थान में बढ़ने के बजाय, किसी सुरक्षित स्थान पर जाकर बसने पर विचार करें।
ढलानों पर निर्माण से बचें : ढलानों पर कभी भी भवन या अन्य कोई निर्माण कार्य न करें। ऐसा करना भविष्य के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है।आपके लिए भविष्य में ख़तरा उत्पन्न कर सकता है।
चेतावनी संकेतों पर ध्यान दें : अगर आपको आपके इलाक़े में भूस्खलन की चेतावनी मिलती है, तो जितनी जल्दी हो सके, तुरंत सुरक्षित स्थान पर जाने का प्रयास करें। और अपने के लोगों तक भी यह सूचना प्रेषित करें। ताकि वे भी सुरक्षित क़दम उठा सकें।
निष्कर्ष (Conclusion)
भूस्खलन एक गंभीर समस्या है, जो प्राकृतिक संतुलन और मानव जीवन दोनों को प्रभावित करती है। इसे नियंत्रित करने के लिए सरकार, समाज और नागरिकों के द्वारा मिलकर प्रयास करना अत्यन्त आवश्यक है। सतर्कता और सही प्रबंधन के माध्यम से ही भूस्खलन के प्रभाव (bhuskhalan ke prabhav) को कम किया जा सकता है, जिससे हम अपने पर्यावरण और समाज को सुरक्षित बना सकते हैं।
भूस्खलन की समस्या पर नियंत्रण (bhuskhalan ki samasya par niyantran) के लिए प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। भूस्खलन को रोकने के लिए सतत विकास, जल प्रबंधन, तथा वृक्षारोपण जैसी नीतियों पर अमल करना आवश्यक है। साथ ही संवेदनशील क्षेत्रों में पूर्वानुमान और उचित निर्माण तकनीकों का उपयोग भी ज़रूरी है। यदि प्राकृतिक संसाधनों का सही प्रबंधन और जागरूकता को बढ़ावा दिया जाए तो इस समस्या को काफ़ी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
उम्मीद है इस अंक के ज़रिए आपने भूस्खलन क्या है? इसे रोकने के उपाय क्या हो सकते हैं? अच्छी तरह जान लिया होगा। भूस्खलन के कारण एवं निवारण जानने के बाद निश्चित तौर पर आप इससे बचने के उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का प्रयास करेंगे। हम ऐसी आशा करते हैं।
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