बाढ़ का अर्थ क्या है इन हिंदी, बाढ़ से बचने के उपाय, बाढ़ आने के कारण क्या हैं?, बाढ़ के प्राकृतिक व मानवीय कारण, (Badh ka kya arth hai - badh aane ke karan, prabhav avam badh se bachav ke upay)
बारिश के दिनों में समाचार पत्र या टीवी चैनल्स के ज़रिए आपने पढ़ा या देखा होगा। कि किस तरह कुछ क्षेत्र वर्षा ऋतु में बाढ़ ग्रस्त हो जाते हैं। नदी का जल उफ़ान के साथ मानव बस्तियों, खेतों और सड़कों पर इस तरह कहर ढाने लग जाता है। मानो कोई भयंकर दानव कुछ ही घंटों में सब कुछ डुबाकर तबाह कर देना चाहता है।
बाढ़ की समस्या ख़ासकर निचले और तटीय इलाकों में अधिक गंभीर होती है। बाढ़ के कारण न केवल संपत्ति का नुक़सान होता है, बल्कि मानव जीवन, पशुधन और खेती पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। इस अंक में हम बाढ़ के प्रमुख कारण, प्रभाव और बचाव के उपायों पर चर्चा करने वाले हैं। तो चलिए जानते हैं कि बाढ़ क्या है? (Badh kya hai?)
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बाढ़ क्या है? | बाढ़ आपदा क्या है?
बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है जिसमें किसी क्षेत्र में सामान्य से अधिक मात्रा में पानी भर जाने से जनजीवन प्रभावित होता है। यह पानी नदियों, झीलों, समुद्रों या भारी वर्षा के कारण फैल सकता है और आसपास के क्षेत्रों में घुस सकता है। बाढ़ से कृषि भूमि, घरों, सड़कों और इमारतों को भरी नुक़सान पहुंचता है।
बाढ़ आमतौर पर अचानक नहीं आती। यह कुछ विशेष क्षेत्रों और ऋतु में ही आती है। बाढ़ तब आती है जब नदी जल-वाहिकाओं में इनकी क्षमता से अधिक जल बहाव होता है और जल, बाढ़ के रूप में मैदान के निचले हिस्सों में भर जाता है।
कई बार तो झीलों और आंतरिक जल क्षेत्रों में भी क्षमता से अधिक जल भर जाता है। बाढ़ आने के और भी कई कारण हो सकते हैं, जैसे- तटीय क्षेत्रों में तूफ़ान, लंबे समय तक होने वाली तेज़ बारिश, हिम का पिघलना, ज़मीन की जल अवशोषण क्षमता का घटना, अधिक मृदा अपरदन के कारण नदी जल में जलोढ़ की मात्रा में वृद्धि होना आदि बाद के कारण बनते हैं।
भारत में बाढ़ की स्थिति (Flood situation in india)
भारत में बाढ़ से काफ़ी तबाही होती है, किंतु दक्षिण, दक्षिण-पूर्व और पूर्व एशिया के देशों, विशेषकर चीन, भारत और बांग्लादेश में बाढ़ की बारंबारता और इससे होने वाले नुक़सान भी अधिक हैं।
भारत के विभिन्न राज्यों में बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण जान-माल का भारी नुकसान होता है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। असम, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में से एक हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की ज़्यादातर नदियाँ, विशेषकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ से ग्रसित रहती हैं।
राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब, आकस्मिक बाढ़ से पिछले कुछ दशकों में जलमग्न होते रहे हैं। इसका कारण मानसून वर्षा की तीव्रता तथा मानव कार्यकलापों द्वारा प्राकृतिक अपवाह तंत्र का अवरुद्ध होना है। कई बार तमिलनाडु में बाढ़, नवंबर से जनवरी माह के बीच वापस लौटते मानसून द्वारा आती है।
बाढ़ के प्रभाव (Effects of flooding)
बाढ़ का प्रभाव (effects of flooding in hindi) जीवन के हर पहलू पर पड़ता है, चाहे वह पर्यावरणीय, आर्थिक या सामाजिक क्षेत्र ही क्यों न हो। इसके कुछ प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं -
1. जन-धन की हानि -
बाढ़ के कारण हज़ारों लोग बेघर हो जाते हैं, जबकि संपत्ति, फ़सल और पशुधन को भारी नुक़सान पहुंचता है। कई बार बाढ़ के दौरान जानमाल का नुक़सान भी होता है।
2. खेती पर प्रभाव -
फसलें जलमग्न होने से किसानों को भारी नुक़सान उठाना पड़ता है। मिट्टी की उर्वरता भी बाढ़ के बाद प्रभावित होती है, जिससे लंबे समय तक कृषि प्रभावित रहती है।
3. स्वास्थ्य समस्याएं -
बाढ़ के बाद गंदा पानी जमा होने से मलेरिया, डेंगू, टाइफाइड जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। दूषित जल आपूर्ति से पीने के पानी की समस्या भी उत्पन्न होती है।
4. बिजली और परिवहन व्यवस्था पर असर -
बाढ़ से बिजली के खंभे और ट्रांसफार्मर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे बिजली आपूर्ति बाधित होती है। सड़कों और पुलों के टूटने से यातायात व्यवस्था चरमरा जाती है।
5. पर्यावरणीय प्रभाव -
बाढ़ के कारण मिट्टी का कटाव होता है, जिससे पर्यावरण संतुलन प्रभावित होता है। कई बार यह वन्यजीवों और जैव विविधता के लिए भी ख़तरा पैदा करती है। इस तरह पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुक़सान पहुंचता है।
बाढ़ के कारण (Causes of flooding)
सामान्य तौर पर प्राकृतिक और मानवीय कारण मिलकर बाढ़ की गंभीरता को बढ़ा सकते हैं और कई बार विनाशकारी स्थिति पैदा कर सकते हैं। बाढ़ के प्रमुख कारण (badh ke pramukh karan) निम्नलिखित हैं -
1. अत्यधिक वर्षा -
जब किसी क्षेत्र में सामान्य से अधिक और लगातार बारिश होती है, तो नदियों, झीलों, जलाशयों या अन्य जलस्रोतों में अत्यधिक पानी भर जाने पर ये अपने किनारों को तोड़कर आसपास के क्षेत्र में फैल जाते हैं। जिससे बाढ़ आ जाती है। विशेष रूप से मानसून के दौरान भारत में ऐसी स्थिति ज़्यादातर देखने मिलती है।
2. जलवायु परिवर्तन -
तापमान में वृद्धि के कारण मौसम में अस्थिरता आती है, जिससे अत्यधिक वर्षा और समुद्री जलस्तर बढ़ने की घटनाएं होती हैं। यह एक विध्वंशक कारण है।
3. नदी तटों का कटाव और जाम -
नदियों के किनारों पर अतिक्रमण और कटाव से उनकी प्रवाह क्षमता घट जाती है। इसके अलावा, नदी मार्ग में गाद और कचरे का जमाव भी पानी के प्रवाह को बाधित करता है, जिससे जलस्तर बढ़कर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।
4. भूगर्भीय कारण -
ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमनदों के पिघलने से नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है। हिमालय जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने से नदियों में पानी का बहाव अचानक बढ़ जाता है। जिस कारण निचले क्षेत्रों में अचानक बाढ़ आ जाती है।
इसके अतिरिक्त भूकंप या भूस्खलन से भी नदियों का प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है, और अवरोध टूटने पर पानी अचानक फैलकर बाढ़ का रूप ले सकता है।
5. वनों की कटाई -
पेड़-पौधे वर्षा जल को अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन जंगलों की अंधाधुंध कटाई से मिट्टी का क्षरण बढ़ता है, और जल अवशोषण की क्षमता घट जाती है, जिससे पानी का बहाव तेज़ी से नदियों तक पहुंचता है जिससे भयंकर बाढ़ की स्थिति पैदा होती है।
6. अतिक्रमण और अव्यवस्थित शहरीकरण -
नदियों और जलाशयों के पास अतिक्रमण और निर्माण कार्य से बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है। दरअसल
अनियोजित शहरीकरण और अतिक्रमण के कारण जल निकासी व्यवस्था बाधित हो जाती है। नालों और जलाशयों को पाटकर अवैध निर्माण किया जाना बाढ़ का एक बड़ा कारण बनते हैं।
7. बाँधों और बैराजों का टूटना -
बांधों और जलाशयों का निर्माण जल प्रबंधन के लिए किया जाता है, लेकिन कभी-कभी बांधों के टूटने या समय पर पानी छोड़ने में विफलता से बाढ़ आ सकती है। यदि बाँधों की देखरेख सही से नहीं की जाती है या वे अत्यधिक दबाव झेलते हैं, तो वे टूट सकते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर बाढ़ आती है।
8. चक्रवात और तूफ़ान का आना -
समुद्री क्षेत्रों में अक्सर चक्रवात, भारी बारिश और तूफ़ानी लहरों का क़हर देखने मिलता है। ये कारण बड़े ही विध्वंशक बनकर सामने आते हैं। इनसे प्रभावित क्षेत्रों में जान-माल का भारी नुक़सान देखने मिलता है। चक्रवात या तूफ़ान के कारण तटवर्ती क्षेत्रों में समुद्र का पानी अंदर की ओर आकर बाढ़ पैदा कर सकता है।
बाढ़ से बचाव के उपाय (flood prevention measures)
बाढ़ से बचाव के लिए नियंत्रण निम्नलिखित हो सकते हैं -
1. वनों का संरक्षण -
वन जल धारण करने में मददगार होते हैं और भू-क्षरण को रोकते हैं। इसलिए, वनों की कटाई पर रोक लगाकर हरियाली बढ़ाना बाढ़ नियंत्रण का एक प्रभावी तरीक़ा हो सकता है।
2. सुरक्षित जल निकासी व्यवस्था -
शहरों और गांवों में जल निकासी की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने की सख़्त ज़रूरत है। इसके अलावा अवैध निर्माण रोकने और नदियों के किनारे अतिक्रमण हटाने से भी बाढ़ के जोख़िम को कम किया जा सकता है।
3. बांध और जलाशयों का उचित प्रबंधन -
बांधों और जलाशयों के जलस्तर की नियमित निगरानी बेहद ज़रूरी है ताकि समय पर अतिरिक्त पानी छोड़ा जा सके। पुराने बांधों की मरम्मत और नए बांधों का निर्माण भी बाढ़ नियंत्रण में सहायक हो सकता है।
4. जलवायु अनुकूलन उपाय -
जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। इसलिए, जलवायु अनुकूलन नीतियां बनाकर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना ज़रूरी है।
5. जन जागरूकता और शिक्षा -
लोगों को बाढ़ से बचाव के लिए प्रशिक्षित करना और आपदा के समय प्राथमिक उपचार और राहत के तरीकों से अवगत कराना ज़रूरी है। समय-समय पर मॉक ड्रिल और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करना प्रभावी सिद्ध हो सकता है।
6. बाढ़ चेतावनी प्रणाली -
आधुनिक तकनीकों की सहायता से बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली को सुदृढ़ किया जा सकता है। मौसम विभाग द्वारा समय पर चेतावनी जारी करने से जनहानि को काफ़ी हद तक रोका जा सकता है।
7. पुनर्वास और आपदा प्रबंधन -
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत और पुनर्वास कार्यों को तेज़ी से लागू करना जरूरी है। सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से प्रभावित लोगों को समय पर मदद पहुंचाई जा सकती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
बाढ़ एक गंभीर समस्या है, लेकिन इसके प्रभावों को अवश्य कम किया जा सकता है यदि समय रहते उचित कदम उठाए जाएं। इसके लिए जलवायु परिवर्तन से निपटना, वन संरक्षण, अव्यवस्थित शहरीकरण पर नियंत्रण, तथा वैज्ञानिक तरीकों से जल प्रबंधन अनिवार्य है। जन-जागरूकता बढ़ाकर और प्रशासनिक तंत्र को मज़बूत बनाकर बाढ़ के दुष्प्रभावों को नियंत्रित किया जाना संभव है। सरकार और समाज के संयुक्त प्रयासों से हम इस आपदा से न केवल बच सकते हैं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का भी बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं।
बाढ़ के आने से न सिर्फ़ फ़सलें बर्बाद होती हैं बल्कि इससे अर्थव्यवस्था के आधारभूत ढाँचे पर भी प्रभाव पड़ता है। जैसे- सड़कें, रेल की पटरियां, पुल और मानव बस्तियां भी बाद के आने से बर्बाद हो जय करती हैं। बाढ़ से ग्रसित क्षेत्र कई तरह की बीमारियाँ से घिर जाते हैं, जैसे- हैजा, आंत्रशोथ, हेपेटाईटिस और अन्य दूषित जल जनित रोग इन क्षेत्रों में विकराल रूप धारण कर लेते हैं।
दूसरी ओर बाढ़ से कुछ लाभ भी हैं। हर वर्ष बाढ़ खेतों में उपजाऊ मिट्टी लाकर जमा करती है जो फ़सलों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है। बह्मपुत्र नदी में स्थित मजौली (असम) जो सबसे बड़ा नदीय द्वीप है, हर वर्ष बाढ़ ग्रस्त होता है। परंतु यहाँ चावल की फ़सल बहुत अच्छी होती है। लेकिन ये लाभ भीषण नुक़सान के सामने गौण मात्र है।
भारत सरकार और राज्य सरकारें प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ से उत्पन्न होने वाली गंभीर स्थिति से भलीभांति अवगत होती हैं। इसलिए सरकार द्वारा बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण क़दम उठाए जाने चाहिए जैसे- बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में तटबंध बनाना, नदियों पर बाँध बनाना, वनीकरण और आमतौर पर बाढ़ लाने वाली नदियों के ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्र में निर्माण कार्य पर रोक लगाना आदि। इन प्रयासों से काफ़ी हद तक बाढ़ पर नियंत्रण पाने के साथ साथ इससे होने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है।
नदी वाहिकाओं पर बसे लोगों को कहीं और बसाना और बाढ़ के मैदानों में जनसंख्या के जमाव पर नियंत्रण रखना, इस दिशा में कुछ और क़दम हो सकते हैं। आकस्मिक बाढ़ प्रभावित देश के पश्चिमी और उत्तरी भागों में यह ज़्यादा उपयुक्त क़दम होंगे। तटीय क्षेत्रों में चक्रवात सूचना केंद्र तूफ़ान के उफ़ान से होने वाले प्रभाव को कम कर सकते हैं।
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