अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्र कौन कौन से हैं? | प्राथमिक क्षेत्र किसे कहते हैं | द्वितीयक क्षेत्र किसे कहते हैं | तृतीयक क्षेत्र किसे कहते हैं?
अर्थव्यवस्था के सभी उत्पादक उद्यम जो उत्पादन के साधनों का प्रयोग करते हैं। उन सभी उत्पादक उद्यमों की यदि प्रथक से पहचान की जाए तो इन उद्यमों को प्रमुख रूप से तीन क्षेत्रों में बांटा जाता है -
(1) प्राथमिक क्षेत्र (Primary sector)
(2) द्वितीयक क्षेत्र (Secondary sector)
(3) तृतीयक क्षेत्र (Tertiary sector)
1) प्राथमिक क्षेत्र (Primary sector) -
वह क्षेत्र जिसके अन्तर्गत वस्तुओं के उत्पादन में प्राकृतिक साधनों का प्रयोग किया जाता है। प्राथमिक क्षेत्र (prathmik kshetra) कहलाता है। इसमें कृषि एवं उससे संबंधित क्रियाएं, जैसे- उत्पादन, पशुपालन, मछली पालन, वन लगाना, खनन एवं उत्खनन आदि क्रियाएं आती हैं। सामान्य तौर पर देखा जाए तो प्राथमिक क्षेत्र द्वारा उत्पादित किए गए उत्पाद कच्चे माल के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं। जिन्हें मध्यवर्ती वस्तुएं भी कहा जाता है।
अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र के अन्तर्गत कच्चे माल के निष्कर्षण और उत्पादन में शामिल कोई भी उद्योग शामिल किए सकते हैं। प्राथमिक क्षेत्र, विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में अर्थव्यवस्था एक बड़े और विशिष्ट हिस्से को बनाने की प्रवृत्ति रखते हैं। विभिन्न उद्योग, कच्चे माल के लिए इन्हीं प्राथमिक क्षेत्रों पर निर्भर रहते हैं।
2) द्वितीयक क्षेत्र (Secondary sector) -
वह क्षेत्र जो कच्चे माल को निर्मित माल में परिवर्तित करता है। द्वितीयक क्षेत्र (dvitiyak kshetra) कहलाता है। जैसे - सुती धागे का सूती कपड़े के रूप में परिवर्तित करना, गन्ने से चीनी का उत्पादन करना, लकड़ी से फर्नीचर बनाना आदि। इसे विनिर्माण क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत ऐसे उद्योग आते है जो प्राथमिक क्षेत्र से कच्चे माल लेकर अंतिम वस्तुओं का निर्माण करते हैं।
3) तृतीयक क्षेत्र (Tertiary sector) -
वह क्षेत्र जो सेवाओं का उत्पादन करता है तृतीयक क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र को सेवा क्षेत्र (seva kshetra) भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में बैंकिंग, बीमा, परिवहन, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, संस्कृति, मनोरंजन, लोक सेवा, लोक प्रशासन आदि सम्मिलित किए जाते हैं।
तृतीयक क्षेत्र का विकास 20वीं शताब्दी के आरंभ में शुरू हुआ। आज के समय में अर्थव्यवस्था को तेज़ी से बढ़ाने में तृतीयक क्षेत्र की भागीदारी महत्वपूर्ण है। आज के युग में परिवहन, संचार, मनोरंजन, व्यापार आदि के बग़ैर किसी भी अर्थव्यवस्था की कल्पना नहीं की जा सकती है। और ये सभी साधन तृतीयक क्षेत्र (tratiyak kshetra) के अन्तर्गत आते हैं।
FAQ : -
प्रश्न 1. प्राथमिक क्षेत्र को प्राथमिक क्यों कहा जाता है?
Ans - प्राथमिक क्षेत्रों में उत्पादित किए जाने वाले उत्पादों के लिए मुख्य रूप से प्राकृतिक संसाधनों का ही प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 2. प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र क्यों कहा जाता है?
Ans - प्राथमिक क्षेत्र में प्रयोग में लाए जाने वाले संसाधन प्राकृतिक होते हैं। ज़्यादातर इस प्रकार के उत्पादन कृषि से संबंधित होते हैं। इसलिए इस क्षेत्र को कृषि क्षेत्र या कृषि से संबंधित क्षेत्र कहा जाता है।
प्रश्न 3. मध्यवर्ती वस्तुएं किसे कहते हैं?
Ans - जब कोई वस्तु किसी विशेष वस्तु के निर्माण में प्रयोग होने वाले कच्चे माल के रूप में ख़रीदी जाती है तो वह मध्यवर्ती वस्तु (madhyavarti vastu) कहलाती है।
प्रश्न 4. अंतिम वस्तुएं किसे कहते हैं?
Ans - अंतिम वस्तुओं का आशय ऐसी वस्तुओं से है जो उपभोक्ता एवं निवेशक द्वारा वस्तु के अंतिम प्रयोग के लिए उपलब्ध होती है। दूसरे शब्दों में, जब कोई वस्तु अंतिम प्रयोगकर्ता के पास पहुंच जाती है उसे अंतिम वस्तु (antim vastu) कहा जाता है।
प्रश्न 5. प्राथमिक क्षेत्र की विशेषताएं या महत्व क्या है?
Ans - (1) कच्चे माल का उत्पादक, (2) सभी उद्यमी क्षेत्रों का आधार, (3) देश की आर्थिक गतिविधियां प्राथमिक क्षेत्रों पर निर्भर होती है, (4) प्राथमिक क्षेत्र बड़ी मात्रा में रोज़गार का स्रजन करता है, (5) देश की जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान।
प्रश्न 6 - उपभोग वस्तुएं किसे कहते हैं?
Ans ऐसी अंतिम वस्तुएं जिनका उपभोग उसी समय किया जाता है। उपभोग वस्तुएं कहलाती हैं। जैसे - आहार, वस्त्र, मनोरंजन जैसी सेवाएं आदि। कुछ सेवाएं उपभोग वस्तुओं में सम्मिलित की जाती है। हालांकि सेवाओं को समान्य तौर पर सुविधा की दृष्टि से उपभोक्ता वस्तुएं कहा जाता है।
प्रश्न 7 - पूंजीगत या टिकाऊ वस्तुएं किसे कहते हैं?
Ans - कुछ ऐसी अंतिम वस्तुएं जैसे टीवी, ऑटोमोबाइल्स, घरेलू कम्प्यूटर जो तुरंत नष्ट या अल्पकालिक उपभोग से नष्ट नहीं होती हैं। इनका जीवन काल, उपभोग वस्तुओं की अपेक्षा लंबा होता है। बस इन्हें सुरक्षा और रखरखाव की ज़रूरत होती है। इन्हें पूंजीगत या टिकाऊ वस्तुएं कहा जाता है।
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अर्थशास्त्र