पूर्ति के नियम की व्याख्या | पूर्ति के नियम की मान्यताएं | पूर्ति के नियम के अपवाद | आपूर्ति का नियम क्या है?
हम आपको बता दें कि पूर्ति का नियम, मांग के नियम की दिशा के ठीक विपरीत कार्य करता है। जहां मांग के नियम में क़ीमत के बढ़ने पर मांग घटती है और घटने पर मांग बढ़ती है। यानि कि मांग और क़ीमत में ऋणात्मक संबंध होता है। तो वहीं पूर्ति का नियम ठीक इसके विपरीत कार्य करता है।
यदि किसी समय विशेष पर अन्य बातें स्थिर हों, तो किसी वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन होने पर उसकी पूर्ति में भी परिवर्तन होते हैं। यानि कि यह कहा जा सकता है कि वस्तु की क़ीमत और पूर्ति में प्रत्यक्ष (सीधा) संबंध होता है।
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पूर्ति का नियम क्या है? | Purti ka niyam kya hai?
पूर्ति का नियम, मांग के नियम के विपरीत है। इसे आसान शब्दों में कहें तो, वस्तु की क़ीमत में वृद्धि होने पर, उसकी पूर्ति भी बढ़ जाती है और वस्तु की क़ीमत में कमी होने पर, उस वस्तु की पूर्ति भी घट जाती है। क़ीमत और पूर्ति के इस संबंध को ही पूर्ति का नियम (purti ka niyam) कहते हैं।
पूर्ति का नियम - " यदि अन्य बातें स्थिर हों, तो किसी वस्तु या सेवा की क़ीमत में वृद्धि होने पर, उसकी पूर्ती में भी वृद्धि हो जाती है तथा उस वस्तु की क़ीमत में कमी होने पर उसकी पूर्ती में भी कमी हो जाती है।"
इस प्रकार क़ीमत और पूर्ति के बीच सीधा संबंध होता है। यह भी कहा जा सकता है कि पूर्ति के नियम (purti ke niyam) में, क़ीमत और पूर्ति के बीच धनात्मक संबंध होता है।
सूत्र - S = f(P)
{जहां S = वस्तु की क़ीमत, f = फलनात्मक संबंध}
पूर्ति के नियम की व्याख्या, पूर्ति तालिका एवं पूर्ति वक्र (रेखाचित्र) की सहायता से बड़ी ही सरलतापूर्वक की जा सकती है। आइए हम पूर्ति के नियम को पूर्ति तालिका (purti talika) तथा पूर्ति वक्र (purti vakra) की सहायता से समझने का प्रयास करते हैं।
• तालिका द्वारा स्पष्टीकरण (पूर्ति तालिका) -
उपर्युक्त तालिका से यह स्पष्ट है कि जैसे जैसे वस्तु की क़ीमत में बढ़ोत्तरी होती है। वैसे वैसे ही विक्रेता या उत्पादक के द्वारा वस्तु की पूर्ति को बढ़ाया जाता है।
तालिका में आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि जब वस्तु की क़ीमत सबसे कम यानि कि 1 रुपए प्रति इकाई है तब वस्तु की पूर्ति सबसे कम यानि की 10 इकाइयां होती है। लेकिन जैसे जैसे वस्तु की क़ीमतें बढ़ती हैं, वस्तु की पूर्ति भी बढ़ने लगती है। अंत में जब वस्तु की क़ीमत 5 रुपए प्रति इकाई हो जाती है तब वस्तु की पूर्ति भी बढ़कर 30 इकाइयां हो जाती हैं।
• रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण (पूर्ति वक्र) -
जब पूर्ति तालिका को रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है तो उसे पूर्ति वक्र (supply curve) कहा जाता है। इस प्रकार पूर्ति वक्र (purti vakra) किसी वस्तु की भिन्न भिन्न क़ीमतों और उस वस्तु की बेची जाने वाली मात्राओं के बीच के संबंध को प्रदर्शित करता है।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि पूर्ति वक्र (पूर्ति रेखा) SS किस तरह वस्तु की क़ीमतों के बढ़ने के साथ साथ A बिन्दु से B, C, D और E बिन्दु तक बढ़ता है। चित्र में देखकर आप समझ सकते हैं कि जब वस्तु की क़ीमत 1 रुपए प्रति इकाई है तब वस्तु की पूर्ति 10 इकाइयां हैं। लेकिन जैसे जैसे वस्तु की क़ीमतें बढ़ने लगती हैं, वस्तु की पूर्ति भी वैसे वैसे बढ़ने लगती है। जब अंत में वस्तु की क़ीमत 5 रुपए प्रति इकाई हो जाती है तब वस्तु की पूर्ति भी बढ़कर 30 इकाइयां हो जाती हैं।
पूर्ति वक्र (purti vakra) का निर्माण करते समय, यह मान लिया जाता है कि क्रेता व विक्रेता की आय, रुचि, स्वभाव आदि में कोई परिवर्तन नहीं होता है। साथ ही उत्पादन के साधनों की क़ीमतों और तकनीकी में भी कोई परिवर्तन नहीं होता है।
पूर्ति के नियम की मान्यताएं (Assumptions of the law of supply in hindi)
पूर्ति का नियम (purti ka niyam) तभी लागू होता है जब अन्य बातें स्थिर रखी जाएं। पूर्ति के नियम की प्रमुख मान्यताएं (purti ke niyam ki manyataen) निम्न हैं -
1) क्रेताओं एवं विक्रेताओं की आय स्थिर होनी चाहिए। अर्थात इनकी आय में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
2) क्रेताओं तथा विक्रेताओं की आदत, रुचि, स्वभाव वी उद्देश्य में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
3) उत्पादन के साधनों की क़ीमतें भी स्थिर रहनी चाहिए। अर्थात इस नियम के अन्तर्गत उत्पादन के साधनों की क़ीमतों को यथावत मान लिया जाता है।
4) संबंधित वस्तुओं की क़ीमतों में कोई भी परिवर्तन नहीं होना चाहिए। क्योंकि यदि ऐसा नहीं हुआ, तो पूर्ति का नियम ऐसी वस्तुओं पर लागू नहीं होगा।
5) उत्पादन की तकनीक में कोई भी परिवर्तन नहीं होना चाहिए। अर्थात यह मान लिया जाता है कि उत्पादकों के तकनीकी ज्ञान में कोई भी वृद्धि नहीं होती। उनका ज्ञान यथावत रहता है।
6) वस्तुओं की क़ीमतों में थोड़ा भी परिवर्तन हो, तो पूर्ति में भी परिवर्तन होना चाहिए। अर्थात क़ीमत व पूर्ति के बीच पारस्परिक संबंध में निरंतरता होनी चाहिए।
पूर्ति के नियम के अपवाद (purti ke niyam ke apvad)
पूर्ति के नियम के प्रमुख अपवाद (purti ke niyam ke pramukh apvad) निम्न हैं -
1. भविष्य में क़ीमतों में परिवर्तन की संभावना -
यदि वस्तु की क़ीमत में तेज़ी हो लेकिन उत्पादकों या विक्रेताओं को भविष्य में और भी अधिक क़ीमतों के बढ़ने की संभावना हों। तो वे जानबूझकर बढ़ी हुई क़ीमत पर भी उस वस्तु की अधिक मात्रा नहीं बेचेंगें बल्कि पूर्ति में यथासंभव और भी कमी करेंगे।
ठीक इसके विपरीत यदि उत्पादकों को भविष्य में क़ीमतों के और भी कम होने की संभावना हो तो वर्तमान में वस्तु की क़ीमत में कमी होने पर भी विक्रेता वर्तमान कीमत पर भी अधिक वस्तुओं को बेचेंगे, ताकि भविष्य में उन्हें होने वाली हानि कम हो सके।
2. कृषि उत्पादन संबंधी वस्तुओं पर लागू न होना -
चूंकि अधिकांश कृषि संबंधी वस्तुओं कि पूर्ति प्रकृति पर निर्भर करती है। इसलिए यदि कृषि पदार्थों की क़ीमत बढ़ती है तब भी इनकी पूर्ति को नहीं बढ़ाया जा सकता है। अर्थात यह कहा जा सकता है कि या नियम कुछ दशाओं में कृषि संबंधी वस्तुओं पर लागू नहीं होता।
3. नीलामी की वस्तुओं पर लागू न होना -
पूर्ति का नियम नीलाम की जाने वाली वस्तुओं पर लागू नहीं होता क्योंकि इसी वस्तुओं कि पूर्ति (मात्रा) सीमित होती है। इन वस्तुओं की क़ीमतों में कितनी भी वृद्धि हो जाए या घट जाए। इनकी पूर्ति एम परिवर्तन नहीं किया सकता।
4. श्रेष्ठ अथवा कलात्मक वस्तुओं पर लागू न होना -
किसी भी श्रेष्ठ या दुर्लभ कलात्मक वस्तु की क़ीमत चाहे जितनी भी बढ़ जाए। किन्तु इसकी पूर्ति को बढ़ाया नहीं जा सकता क्योंकि ऐसी वस्तुएं भी सीमित ही होती है।
5. नाशवान वस्तुओं पर लागू न होना -
प्राकृतिक व नाशवान वस्तुएं जैसे- सब्ज़ी, फल, दूध आदि एक सीमित समय तक ही सुरक्षित रखे जा सकते हैं। इनके ख़राब होने का ख़तरा बना रहता है। इसलिए कम क़ीमत हो जाने पर भी विक्रेता इन वस्तुओं को अधिक से अधिक मात्रा में बेचना चाहता है। ताकि ख़राब होने के बाद की हानि से बचा जा सके।
6. अल्पविकसित राष्ट्रों के श्रमिकों पर लागू न होना -
सामान्यतः अर्धविकसित देशों में श्रम की पूर्ति अधिक हो जाए, तो उनकी मज़दूरी की दर कम कर दी जाती है। वैसे भी इन देशों में लोगों। का जीवन स्तर निम्न होने के साथ साथ इनकी आवश्यकताएं भी सीमित होती है। जिस कारण इन देशों में एक निश्चित स्तर के बाद, मज़दूरी की दर में वृद्धि होने के बाद भी श्रमिकों की पूर्ति में बढ़ोत्तरी नहीं देखी जाती। वे कम काम करके ही संतुष्टि प्राप्त कर लेते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
पूर्ति का नियम, मांग के नियम की ही भांति एक 'गुणात्मक कथन' है ना कि 'परिमाणात्मक कथन'। अर्थात यह नियम क़ीमत तथा पूर्ति के बीच कोई गणितीय संबंध नहीं बताता बल्कि केवल पूर्ति की मात्रा में होने वाले परिवर्तनों की दिशा व्यक्त करता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी वस्तु की क़ीमत दुगुनी हो जाए तो यह आवश्यक नहीं कि उसकी पूर्ति भी बढ़कर दुगुनी हो जाएगी। इसके विपरित यह भी आवश्यक नहीं है कि वस्तु की क़ीमत आधी हो जाए, तो उस वस्तु की पूर्ति भी घटकर आधी हो जाएगी। अर्थात हम यह कह सकते हैं कि पूर्ति का नियम केवल यह बताता है कि क़ीमत और पूर्ति दोनों एक ही दिशा में परिवर्तित होते हैं।
उम्मीद है हमारे इस अंक "पूर्ति के नियम (rules of supply in hindi)" में अब आप पूर्ति क्या है? इसकी मान्यताएं एवं अपवाद क्या हैं? भलीभांति जान चुके होंगे। हम आशा करते हैं कि यह अंक आपके अध्ययन में अवश्य ही सहायक साबित होगा। ऐसे ही सटीक व सरल भाषा में अर्थशास्त्र के टॉपिक्स को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट studyboosting के साथ बने रहिए।
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