माँग का नियम क्या है? | माँग के नियम की मान्यताएँ व अपवाद क्या हैं | Law of Demand in economics in hindi

माँग के नियम से आप क्या समझते हैं? (Law of demand meaning in hindi)




माँग का नियम (Mang ka niyam) क़ीमत तथा माँग के संबंध को व्यक्त करता है। माँग के नियम के अनुसार क़ीमत तथा माँग में विपरीत संबंध होता है। अर्थात हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि,

"वस्तु की माँग की मात्रा उसकी क़ीमत के विपरीत दिशा में परिवर्तित होती है। यानि कि क़ीमत कम होने पर माँग बढ़ जाती है तथा क़ीमत बढ़ने पर माँग स्वतः ही कम होने लगती है। यदि सम्पूर्ण परिस्थितियाँ सामान्य हों।"


माँग का नियम क्या है? | Mang ka niyam kya hai? माँग का नियम किसने प्रतिपादित किया? 

साधारण तौर पर कहें तो आप इसे अपने निजी जीवन में होने वाले परिवर्तनों से भी समझ सकते हैं। यही कि "अगर किसी वस्तु की क़ीमत में कमी आ जाये तो उस वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। ठीक इसके विपरीत यदि वस्तु की क़ीमत में बढ़ोत्तरी हो जाये तो उस वस्तु की माँग में कमी आ जाती है।" यदि अन्य बातें स्थिर हों। 

इस प्रश्न के जवाब में हम आपको बता दें कि माँग के नियम का प्रतिपादन प्रो. मार्शल ने किया। मार्शल ने वस्तुओं की कीमतों व उनकी माँग को लेकर अनेक प्रयोग किए तथा अंत में एक निष्कर्ष निकाला। जिसे मार्शल का माँग का नियम कहा जाता है।


प्रो. मार्शल के अनुसार- "यदि अन्य बातें समान रहें, तो किसी वस्तु के मूल्य में कमी होने पर, उसकी माँग में स्वतः वृद्धि हो जाती है।और उस वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने पर माँग में कमी हो जाती है।"

किसी वस्तु की आप जितनी अधिक मात्रा बेचने के लिए तैयार होते हैं। उतनी ही कम क़ीमत पर उस वस्तु की मात्रा को बेचने के लिए आपको मजबूर होना पड़ता है। ताकि उस वस्तु के लिए पर्याप्त क्रेता मिल सकें।"

उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि क़ीमत में परिवर्तन की दिशा पर माँग का नियम आधारित है, माँग की मात्रा पर नहीं। यहाँ यह स्पष्ट है कि वस्तु की क़ीमत बढ़ने पर माँग घटेगी एवं क़ीमत घटने पर माँग बढ़ेगी। परंतु कितनी मात्रा में, यह नियम इस बात की व्याख्या नहीं करता। 



रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण 

हम निम्न रूप में मांग का नियम चित्र की सहायता से  समझ सकते हैं। आइये हम माँग के नियम को निम्न रेखाचित्र की सहायता से समझने का प्रयास करते हैं।

माँग का नियम चित्र की सहायता से

चित्र के अनुसार PQ मूल्य पर वस्तु की माँग OQ है। यदि क़ीमत घटकर P1Q1 हो जाती है तो माँग बढ़कर OQ1 हो जाएगी। यदि क़ीमत बढ़कर P2Q2 हो जाए। तो माँग घटकर OQ2 हो जाएगी।


माँग के नियम की मान्यताएं | Assumptions of the law of demand in hindi

हम आपको बता दें कि माँग का नियम कुछ मान्यताओं पर आधारित है। इन मान्यताओं को हम माँग के नियम की विशेषताएँ (Mang ke niyam ki visheshtayen) भी कह सकते हैं। आइए जानते हैं कि माँग के नियम की मान्यताएं क्या हैं?

(1) उपभोक्ता की अपनी आय स्थिर होना चाहिए। यानि कि उसकी आय में किसी भी प्रकार की कमी या वृद्धि नहीं होनी चाहिए।

(2) माँग के नियम के लिए यह ज़रूरी है कि इसके अंतर्गत उपभोक्ताओं की रुचि, स्वभाव परिवर्तित नहीं होना चाहिए। यानि कि उनका व्यवहार एक सा रहना चाहिए।

(3) अन्य संबंधित वस्तुओं में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। दूर-दूर तक उस वस्तु से मिलती जुलती कोई भी वस्तु नहीं होनी चाहिए।

(4) गुण की दृष्टि से देखा जाए तो वस्तुएँ समरूप यानि कि इनकी बनावट व आकार समान होना चाहिए।




(5) वस्तु की कोई भी नयी स्थानापन्न वस्तु बाज़ार में उपलब्ध नहीं होना चाहिए। उससे मिलती जुलती कोई भी वस्तु नहीं होनी चाहिए।

(6) वस्तु प्रतिष्ठा सूचक नहीं होना चाहिए। कोई ऐसी वस्तु नहीं होना चाहिए जिसे ख़रीदने से समाज में प्रतिष्ठा मिलती हो।

(7) जो भी रीति-रिवाज समाज के चलन में हों। यथावत हों। समाज के अंदर इसमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन न हो।

(8) उपभोक्ता की आदतें एक सी होनी चाहिए। उनकी आदतों में कोई भी बदलाव नहीं होना चाहिए।

(9) निकट भविष्य में वस्तुओं की क़ीमतों में घटने या बढ़ने की कोई भी संभावना ना हो।

उपरोक्त प्रकारों की मान्यताएं पढ़कर आप झट से समझ सकते हैं कि वस्तुओं की मात्रा और माँग के बीच क्या शर्तें होती हैं। जिसके चलते माँग का नियम लागू किया जा सके।


माँग के नियम की व्याख्या | माँग वक्र का ढलान ऋणात्मक क्यों होता है?

हमने जाना कि माँग का नियम क़ीमत तथा माँग में विपरीत संबंध को बताता है। अर्थात हम कह सकते हैं कि कम क़ीमत पर वस्तु की माँग धड़ल्ले से बढ़नी शुरू हो जाती है तथा अधिक क़ीमत पर माँग में कमी। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि माँग का नियम क्यों लागू होता है? एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि आख़िर माँग वक्र बाएं से दाएं और ऊपर से नीचे की ओर क्यों झुका होता है? आइये हम जानते हैं कि माँग वक्र के नीचे जाने का क्या कारण होता है? इसके निम्नलिखित कारण माने जाते हैं-


(1) सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम -

माँग का नियम उपयोगिता ह्रास नियम पर आधारित है। चूँकि सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम के अनुसार- उपभोक्ता जैसे-जैसे किसी वस्तु की अधिक इकाइयों के उपभोग करता है। वैसे-वैसे उस वस्तु से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता इकाइयों के उपभोग के साथ-साथ घटती जाती है। 

अर्थात स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि कोई भी उपभोक्ता किसी वस्तु की अधिक क़ीमत देने को तभी तैयार होता है जब उसके लिए उस वस्तु की सीमांत उपयोगिता अधिक हो। इसीलिये यह माँग के नियम की व्याख्या (Mang ke niyam ki vyakhya) करता है कि कम क़ीमत पर वस्तु की अधिक माँग व अधिक क़ीमत पर वस्तु की कम माँग हो जाती है।

(2) क़ीमत प्रभाव -

वस्तुओं की क़ीमतों के बारे में बात करें तो अक्सर यह देखने में आता है कि जब किसी वस्तु की क़ीमत गिरने लगती है तो नये-नये उपभोक्ता उस वस्तु को ख़रीदने लगते हैं। यानि कि नए-नए क्रेताओं की संख्या बढ़ने लगती है। फ़लस्वरूप उस वस्तु की माँग फ़िर से बढ़ने लगती है। 

ठीक इसके विपरीत होने वाली परिस्थिति देखें, तो पाएंगे कि जब वस्तु की क़ीमत बढ़ जाती है तो ज़्यादातर उपभोक्ता उस ऐसी वस्तु का उपभोग या कम कर देते हैं या बंद कर देते हैं। जिस कारण उस वस्तु की माँग में पहले से कमी आ जाती है।

अर्थात वस्तुओं की क़ीमतों में परिवर्तन के कारण उनकी ख़रीदी पर होने वाले प्रभाव को मूल्य-प्रभाव (क़ीमत प्रभाव) कहते हैं। इस तरह मूल्य परिवर्तन के कारण वस्तुओं की माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग वक्र बाएँ से दाएँ ढलान की ओर ऋणात्मक हो जाता है। 

(3) आय प्रभाव -

जब उपभोक्ता की आय बढ़ती है तो उस उपभोक्ता में वस्तुओं की अधिक मात्रा ख़रीदने की क्षमता बढ़ जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यदि वस्तु की क़ीमत में कमी आ जाये तो वह पहले से अधिक मात्रा में ख़रीदी करने लग जाता है। फलस्वरूप वस्तु की माँग बढ़ने लगती है। ज़रा सोचिए कि यदि आपकी आय पहले से बढ़ जाए और खाने के तेल की क़ीमत ₹200/litr से घटकर ₹125/litr हो जाये तब आप क्या करेंगे? 

तब आप मात्रा में कटौती न करते हुए बड़ा पैक या थोड़ी अधिक मात्रा में तेल ले सकेंगे। ठीक इसके विपरीत यदि तेल की क़ीमत पहले से और भी ज़्यादा हो जाये तो आप निश्चित तौर पर तेल की कम मात्रा ख़रीदेंगे। आपने देखा कि यहाँ भी वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन का ठीक विपरीत प्रभाव उसकी माँग पर होता है। जिस कारण कहा जा सकता है कि माँग वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर अवनत होता है।

(4) प्रतिस्थापन प्रभाव -

जब किसी वस्तु की स्थानापन्न वस्तुएँ बाज़ार में उपलब्ध हों। ऐसी स्थिति में यदि उनमें से एक वस्तु की क़ीमत में कमी आ जाए तो उपभोक्ता अन्य संबंधित वस्तुओं के स्थान पर उस वस्तु का प्रतिस्थापन करने लगते हैं। जिस कारण उस वस्तु विशेष की माँग बढ़ जाती है। इसे प्रतिस्थापन का प्रभाव कहते हैं। 

उदाहरणार्थ- यदि चाय की क़ीमत गिर जाए और कॉफी की क़ीमत अपरिवर्तित रहे तब निश्चित रूप से कुछ व्यक्ति कॉफी के स्थान पर चाय का प्रतिस्थापन करने लगेंगे जिस कारण चाय की माँग पहले की अपेक्षा बढ़ जाएगी। आपने देखा कि प्रतिस्थापन प्रभाव के अंतर्गत यही स्थिति होती है कि जिस वस्तु की क़ीमत में कमी आती है तो उसकी माँग बढ़ने लगती है और इसके विपरीत वस्तु की क़ीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग में कमी आने लगती है। यही कारण है कि माँग वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुका हुआ होता है।


(5) वस्तु के वैकल्पिक प्रयोग -

प्रत्येक वस्तु के अनेक प्रयोग होते हैं। यदि बिजली का ही उदाहरण लें तो आप जानते हैं कि बिजली का प्रयोग अनेक प्रयोगों में होता है। जैसे रोशनी करने में, कपड़े को आयरन करने में, खाना बनाने में, रेडियो-टीवी चलाने में, पंखे व कूलर, ए.सी. आदि चलाने में होता है। यदि ऐसी वस्तु की क़ीमत में वृद्धि होती है। तब उपभोक्ता इसका प्रयोग थोड़ा कम करने लगता है यानि कि बहुत ही आवश्यक कार्यों में ही इसका प्रयोग करता है। परिणाम स्वरूप इसकी माँग में कमी आने लगती है। 

इसके विपरीत यदि ऐसी वस्तु की क़ीमत में कमी होती है तो उपभोक्ता अधिक से अधिक कार्यों में इसका प्रयोग करने लगता है। परिणामस्वरूप वस्तु की माँग में वृद्धि होने लगती है। अर्थात आपने यहाँ भी देखा कि ऐसी परिस्थिति में भी माँग वक्र ऊपर से नीचे की ओर बाएँ से दाएँ झुकता हुआ दिखाई देता है।

(6) क्रेताओं की संख्या में कमी या वृद्धि -

आप इसे अपने आसपास के मार्केट के बारे में एनालिसिस करके समझ सकते हैं। आपने देखा होगा कि जब किसी वस्तु की क़ीमत कम होती है। तब कुछ ऐसे क्रेता भी उस वस्तु को ख़रीदने में रुचि लेने लगते हैं जो पहले उस वस्तु का प्रयोग नहीं करते थे। इस तरह उनके क्रय करने की वजह दे इस वस्तु की माँग में वृद्धि होने लगती है। 

ठीक इसके विपरीत यदि वस्तु की क़ीमत बढ़ जाए तब कुछ क्रेताओं के लिए इस बढ़ी हुई क़ीमत पर पहले जैसे ही उस वस्तु की मात्रा को ख़रीदना संभव नहीं होता। जिस करना उस वस्तु की माँग में कमी आने लगती है। अर्थात अब तो आप समझ गए होंगे कि यही कारण है कि माँग वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की तरफ़ झुका हुआ होता है।

उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर हमने जाना कि माँग वक्र नीचे की ओर क्यों गिरता है? साथ ही हमने जाना कि माँग का नियम क्यों लागू होता है? उम्मीद है माँग के नियम की व्याख्या आपने अच्छी तरह समझ लिया होगा।




माँग के नियम के अपवाद | exceptions to the law of demand in hindi

आपको बता दें कि माँग का नियम कुछ परिस्थितियों में लागू नहीं होता है। इन्हीं परिस्थितियों को माँग के नियम के अपवाद mangke niyam ke apvad कहा जाता है।इन परिस्थितियों में माँग के नियम के विपरीत प्रभाव भी देखने मिलता है। इसे हम माँग के नियम की सीमाएँ भी कह सकते हैं। चलिये जानते हैं कि माँग के नियम के क्या अपवाद हैं? हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से माँग के नियम की आलोचनात्मक व्याख्या करेंगे।

हम आपको बता दें कि ऐसी दशाओं में माँग के नियम में क्रियाशील होने के बजाय विपरीत क्रिया दिखाई देती है। यानि कि वस्तु की क़ीमत कम होने पर माँग बढ़ने के बजाय कम होने लगती है। तथा क़ीमत बढ़ने पर माँग घटने के बजाय बढ़ जाती है। ऐसी दशा में नीचे की ओर झुकने के बजाय, माँग वक्र ऊपर की ओर उठता हुआ दिखाई देता है। आइये जानते हैं माँग के नियम के अपवाद क्या हैं?

(1) गिफ़िन का विरोधाभास -

सर रॉबर्ट गिफ़िन के अनुसार निम्न कोटि की वस्तुओं के संबंध में माँग का नियम लागू नहीं होता है। निम्न कोटि की वस्तुओं को गिफ़िन के ही नाम पर गिफ़िन वस्तुएँ (gifin vastuyen कहा जाता है। इन्होंने बताया कि निम्न कोटि की वस्तु वह होती है जिस पर उपभोक्ता अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा व्यय करता है। 

चूँकि ऐसी वस्तुएँ घटिया क़िस्म की होती हैं। तथा उस वस्तु की क़ीमत वास्तविक आय में हुई वृद्धि में कमी होने पर भी उपभोक्ता अपनी आय में दिखाई दे रही वृद्धि को उस घटिया वस्तु पर ख़र्च करने के बजाय श्रेष्ठ वस्तु पर ख़र्च करना बेहतर मानता है। 

उदाहरणार्थ- गेहूँ की तुलना में बाजरा एक निम्न कोटि की वस्तु है। अतः एक ग़रीब आदमी अपनी आय का एक बड़ा भाग गेहूँ के बजाय बाजरे पर व्यय करना चाहेगा। किंतु जब बाजरे की क़ीमत कम होती है तब वह बाजरे की और भी अतिरिक्त मात्रा ख़रीदने के बजाय गेहूँ का उपयोग करना बेहतर समझेगा।

चूँकि बाज़ार में गेहूँ का मूल्य अधिक होता है। इसलिए निर्धन लोग अपनी आय का ज़्यादा भाग ज्वार बाजरा पर ख़र्च करते हुए अपनी आवश्यकता को संतुष्ट करते हैं। लेकिन जब ऐसी घटिया वस्तुओं की क़ीमत में भारी कमी आती है तब इसके विपरीत ग़रीब लोगों की वास्तविक आय में बचत यानि कि ख़रीदारी करने की क्षमता में वृद्धि हो जाती है। इसलिए ग़रीब लोग अपनी वास्तविक आय की इस बचत का प्रयोग श्रेष्ठ वस्तुओं को ख़रीदने में करते हैं। ताकि उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके। 

इस तरह घटिया क़िस्म वस्तुओं की क़ीमतों में परिवर्तन होने पर भी इसकी माँग में वृद्धि होने के बजाय कमी होने लगती है। ज़ाहिर है अब आप गिफ़िन का विरोधाभास क्या है? Gifin virodhabhas kya hai? जान चुके होंगे।

(2) भविष्य में मूल्य वृद्धि या कमी की संभावना -

यह एक बड़ी ही अटपटी स्थिति होती है जिसमें उपभोक्ता को भविष्य में मूल्य वृद्धि की आशंका के होती है जिस कारण वह बढ़े हुए मूल्य पर भी और उस वस्तु की और भी अधिक मात्रा ख़रीदने लगता है। यानि कि इसमें माँग का नियम लागू नहीं होता। 

इसके विपरीत, यदि भविष्य में किसी वस्तु की क़ीमत में भारी गिरावट की संभावना हो तब उस वस्तु की माँग में वृद्धि के बजाय कमी आने लगती है। क्योंकि उपभोक्ता उसकी क़ीमत कम होने का इंतज़ार करने लगते हैं। इस कारण माँग वक्र बाएँ से दाएँ नीचे से ऊपर की ओर उठा हुआ होता है।


(3) मिथ्या आकर्षण या प्रतिष्ठा सूचक -

कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जो व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा दिलाती हैं या समाज मे मिथ्या आकर्षण का केंद्र बनती हैं। जैसे- सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात आदि। इसलिए अक़्सर यह देखा जाता है कि अमीर व्यक्ति ऐसी वस्तुओं की क़ीमतों में वृद्धि के बावजूद भी अपने धन का प्रदर्शन करने के लिए इन प्रतिष्ठा सूचक (दिखावटी) वस्तुओं को ख़रीदने लगते हैं। 

इसका परिणाम यह होता है कि इन वस्तुओं की माँग, इनके मूल्य बढ़ने से और भी अधिक हो जाती है। इसके ठीक यदि ऐसी वस्तुओं की कीमतों में भारी गिरावट आ जाये। तब ये वस्तुएँ पप्रतिष्ठात्मक या प्रदर्शन करने लायक नहीं रह जातीं। अतः इनकी क़ीमतों में गिरावट होने से अमीर व्यक्तियों के बीच माँग घाट जाती है। इसलिए माँग का नियम इन पर लागू नहीं होता है। इसलिए ऐसी वस्तुओं का माँग वक्र बाएँ से दाएँ नीचे से ऊपर की ओर उठता दिखाई देता है।

(4) वस्तुओं की दुर्लभता -

अक़्सर यह देखा जाता है कि जब किसी वस्तु की दुर्लभता यानि कि भविष्य में आसानी से मिल पाने की आशंका बनी रहती है तब ऐसी स्थिति में उन वस्तुओं की क़ीमतें बढ़ जाने पर भी उपभोक्ता, उन्हीं बढ़ी हुई क़ीमतों पर अधिक से अधिक मात्रा में उन वस्तुओं को ख़रीदने लगता है। अर्थात वस्तु की क़ीमतें बढ़ने पर उन वस्तुओं की माँग में भी वृद्धि हो जाती है। इस कारण माँग वक्र बाएँ से दाएँ, नीचे से ऊपर की ओर उठने लगता है। ऐसी स्थिति आपने कोरोना के Lockdown के समय अवश्य देखी होगी।

(5) वस्तुओं की अनिवार्यता -

मानव जीवन के लिए कुछ ऐसी वस्तुएँ भी होती हैं जिनका उपभोग करना मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। बल्कि आप यह कह सकते हैं कि मानव जीवन इन वस्तुओं के बिना संभव ही नहीं। जैसे- खाद्यान्न, कपड़ा, मकान आदि। ऐसी वस्तुओं की क़ीमतों में वृद्धि होने के बावजूद इन वस्तुओं की माँग में कोई कमी नहीं होती।


इन वस्तुओं पर माँग का नियम लागू नहीं होता। क्योंकि उपभोक्ता को वस्तुओं की उतनी मात्रा का उपयोग तो करना ही होता है, जितना उसके जीवन के लिए आवश्यक होता है। अतः मूल्य की वृद्धि के विपरीत उसकी माँग में कमी नहीं होगी। बल्कि आवश्यकता के अनुसार माँग में और भी वृद्धि हो सकती है।

(6) क्रेताओं की अज्ञानता या भ्रामकता -

कई बार बाज़ार में यही देखने मिलता है कि कभी-कभी क्रेता अज्ञानतावश अधिक मूल्य वाली वस्तुओं को कम मूल्य वाली वस्तुओं से श्रेष्ठ समझने लगते हैं। अधिकतर क्रेता भ्रमवश कम क़ीमतों वाली वस्तुओं को घटिया वस्तु मानने लगते हैं। इसी अज्ञानता की वजह से अधिक क़ीमतों वाली वस्तुओं की माँग और भी अधिक बढ़ने लगती है। और कम क़ीमत होने पर माँग भी कम होने लगती है। जिस कारण इनका माँग वक्र नीचे से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है।

उम्मीद है आपने माँग का नियम अर्थशास्त्र क्या है? विस्तार से जान लिया होगा। यह अंक "माँग का नियम क्या है? इसकी मान्यताएँ व अपवाद क्या हैं?" आपके अध्ययन के लिए अवश्य ही फ़ायदेमंद साबित होगा। ऐसी मैं आशा करता हूँ।

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