प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर क्या हैं, प्रत्यक्ष कर क्या है इसके गुण एवं दोषों को लिखिए, अप्रत्यक्ष कर क्या है इसके गुण एवं दोषों को लिखिए, (Pratyaksh evn apratyaksh kar kise kahate hain, Pratyaksh kar ke gun aur dosh, Apratyaksh kar ke gun aur dosh)
एक अर्थव्यवस्था में विविध प्रकार के कर लगाए जाते हैं। क्योंकि किसी भी अर्थव्यवस्था के चहुँमुखी विकास हेतु सार्वजनिक आय का मुख्य स्रोत 'कर (Tax)' होते हैं। कर मुद्रा के रूप में एक अनिवार्य अंशदान है जो नागरिकों के सामान्य हित एवं कल्याण के लिए सरकार द्वारा उस देश के नागरिकों से वसूला जाता है। भारतीय कर प्रणाली को और विस्तार से समझने के लिए आप हमारे इस लिंक "भारतीय कर प्रणाली क्या है? इसके प्रकार क्या है?" पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
वैसे तो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर (pratyaksh kar aur apratyaksh kar) की अनेक परिभाषायें दी गयी हैं लेकिन उन सबसे महत्वपूर्ण परिभाषा कराघात एवं करापात पर आधारित हैं। दरअसल जिस व्यक्ति पर सबसे पहले कर लगाया जाता है। उसी पर कराघात होता है। परंतु यह भी संभव है कि वह व्यक्ति इस कर को अन्य व्यक्तियों पर विवर्तित कर दे। अतः हम कह सकते हैं कि जो व्यक्ति वास्तव में अथवा अंतिम रूप से कर अदा कर रहा हो उस पर करापात होता है।
Table of Contents2.1. प्रत्यक्ष कर के गुण2.2. प्रत्यक्ष कर के दोष3.1. अप्रत्यक्ष कर के गुण3.2. अप्रत्यक्ष कर के दोष
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर का अर्थ (Meaning of Direct and Indirect Taxes in hindi)
प्रत्यक्ष कर (Direct Tax) उसे कहते हैं जिस कर का भुगतान वास्तव में उस व्यक्ति द्वारा ही किया जाता है जिस व्यक्ति पर लगाया जाता है। जबकि अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) उस कर को कहते हैं जिसे असल मे एक व्यक्ति पर लगाया तो जाता है लेकिन उसका भुगतान पूर्ण या आंशिक रूप से दूसरे व्यक्तियों द्वारा किया जाता है।
दूसरे शब्दों में- "प्रत्यक्ष कर ऐसे कर को कहा जाता है जिसका कराघात तथा करापात किसी एक ही व्यक्ति विशेष पर पड़ता है। अर्थात पूर्णतः ये कर उसी व्यक्ति द्वारा चुकाया जाता है। ठीक इसके विपरीत अप्रत्यक्ष कर ऐसे कर को कहा जाता है जिस कर का कराघात एवं करापात किसी एक व्यक्ति पर न पड़ते हुए अलग-अलग व्यक्तियों पर पड़ता है। यानि कि इस कर को चुकाने की ज़िम्मेदारी पूर्णतः उस व्यक्ति की नहीं होती।"
भारत में प्रत्यक्ष कर के उदाहरण में आय कर, निगम कर, उपहार कर आदि आते हैं। तो वहीं अप्रत्यक्ष कर के अंतर्गत बिक्री कर, उत्पाद शुल्क, वस्तु एवं सेवा कर, सीमा शुल्क, मनोरंजन कर आदि आते हैं।
प्रत्यक्ष कर के गुण व दोष (merits and demerits of direct tax in hindi)
प्रत्यक्ष कर के गुण एवं दोष (pratyaksha kar ke gun evam dosh) को हम पृथक पृथक रूप से निम्न प्रकार से समझ सकते हैं -
प्रत्यक्ष कर के गुण (merit of direct tax in hindi)
प्रत्यक्ष करों के गुण (pratyaksh kar ke gun) निम्नलिखित हैं-
(1) कर देय अनुकूलता के अनुकूल- प्रत्यक्ष करों को योग्यता के अनुरूप लगाया जाता है। जिसके अंतर्गत इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इन करों का भार अमीरों पर अधिक पड़े तथा ग़रीबों पर कम पड़े। यानि कि इसमें न्यायशीलता के सिद्धांत की पूर्ति होती है।
(2) निश्चितता- इन करो में कर का भुगतान करने वाले को पता है कि उसे कब, किस प्रकार व कितनी दर से अदा करना है। इसी तरह सरकार को भी इस बात का आटा होता है कि उसे इन कारों से कितनी आय प्राप्त होनी है।
(3) मितव्ययिता- इन करों को हम मितव्ययी कह सकते हैं क्योंकि इनके संग्रहण में कम व्यय होता है। इसका कारण यह है कि इन करों में कर की अधिकांश राशि स्रोत पर ही इकट्ठी कर ली जाती है।
(4) उत्पादकता- इन करों में उत्पादकता भरपूर होती है। क्योंकि देश में आय तथा संपत्ति में वृद्धि होने पर इन करों से प्राप्त होने वाली आय की राशि मे भी वृद्धि हो जाती है।
(5) लोच- इस तरह के कर लोचदार होते हैं। क्योंकि इन करों को आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
(6) नागरिक चैतन्यता- इन करों से समाज में जागृति तथा नागरिकों में चैतन्यता का उदय होता है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को यह मालूम होता है कि वह सरकारी कोष में कितना अंशदान कर रहा है। इस कारण वह अपने अधिकारों को प्राप्त करने की तथा कर्तव्यों को समझने की पूर्ण चेष्टा करता है।
(7) आय की असमानताओं में कमी- इस तरह के कर प्रायः प्रगतिशील होते हैं इसलिए ये समाज में वितरण की असमानता को कम करने में प्रभावकारी सिद्ध होते हैं।
प्रत्यक्ष कर के दोष (Demerits of direct tax in hindi)
प्रत्यक्ष करों के दोष (pratyaksh kar ke dosh) निम्नलिखित हैं-
(1) असुविधाजनक- प्रत्यक्ष कर असुविधाजनक होते हैं। इसका कारण यह है कि इन करों में करदाताओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जैसे- किताब का विवरण रखना, निरीक्षण रखना, बार-बार दफ़्तरों में आना-जाना इत्यादि।
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(2) करों की चोरी- इस तरह के करों में चोरी की संभावना बहुत अधिक होती है। इसमें करदाता आय व संपत्ति के झुठे विवरण दिखाकर करों की चोरी करने के लिए प्रोत्साहित होता है।
(3) करों की मनमानी दर- ऐसे करों में कर की दर का निर्धारण पूरी तरह सरकार के अधीन होता है। यानि कि सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में समझें तो सरकार द्वारा न्यायशीलता की बात करते हुए इन करों की दर का निर्धारण मनमाने ढंग से कर दिया जाता है।
(4) कर का सभी वर्गों से वसूला न जाना- प्रत्यक्ष कर एक निश्चित सीमा से अधिक आय वालों पर लगाये जाते हैं। यानि कि समाज के सभी वर्गों का योगदान इस कर में नहीं होता है।
(5) अलोकप्रिय- ऐसे कर अलोकप्रिय होते हैं। क्योंकि इनका भुगतान करते समय करदाता कष्ट एवं त्याग का अनुभव से गुजरता है।
अप्रत्यक्ष कर के गुण व दोष ( merits and demerits of indirect taxes in hindi)
अप्रत्यक्ष कर के गुण एवं दोष (apratyaksh kar ke gun evam dosh) हम निम्न रूप में समझ सकते हैं -
अप्रत्यक्ष कर के गुण (merits of indirect tax in hindi)
अप्रत्यक्ष करों के गुण apratyaksh kar ke gun निम्नलिखित हैं-
(1) न्यायपूर्ण- सामान्यतः ये कर आनुपातिक होते हैं। किंतु विलासिता की वस्तुओं के मामले में ऊँची दर तथा आवश्यकता की वस्तुओं पर नीची दर से लगाकर इन्हें भी प्रगितशील बना दिया जाता है।
(2) सुविधाजनक- इन करों का भुगतान विभिन्न समयों पर छोटी-छोटी किश्तों के रूप में करना पड़ता है। इसलिए इन करों को आसान कहा जा सकता है। इसके अतिरिक्त ये कर वस्तुओं के मूल्यों में ही समाहित होते हैं। जिस कारण करदाता को पता ही नहीं चल पाता कि वह उस वस्तु के मूल्य के साथ ही कर अदा कर चुका है।
(3) करों की चोरी कठिन- इस तरह के करों की चोरी कठिन होती है क्योंकि ऐसे करों का भुगतान करदाता, वस्तु के मूल्य के साथ ही कर देता है।
(4) लोचदार- ऐसे कर लोचदार होते हैं। क्योंकि ज़रूरी यानि कि आवश्यक वस्तुओं पर यदि ज़रा सा भी कर लगा दिया जाए तो सरकार को बहुत सारी आय प्राप्त हो जाती है।
(5) कर का विस्तृत आधार- ऐसी करों से किसी भी देश की कर प्रणाली का आधार अत्यधिक विस्तृत हो जाता है।
(6) सामाजिक लाभ- इन करों की ऊँची दरों द्वारा मादक पदार्थों तथा अन्य हानिकारक वस्तुओं के उपभोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
अप्रत्यक्ष कर के दोष (demerits of indirect tax in hindi)
अप्रत्यक्ष करों के दोष apratyaksh kar ke dosh निम्नलिखित हैं -
(1) न्यायसंगत नहीं- ये कर न्यायसंगत नहीं होते हैं। क्योंकि इन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक वस्तुओं पर लगाये जाते हैं। जिस कारण इनका अधिकतम भार ग़रीबों पर पड़ता है।
(2) अनिश्चितता- इन करों से प्राप्त होने वाली आय अनिश्चित होती है। क्योंकि इनका ठीक ठाक पूर्वानुमान लगाना बड़ा कठिन होता है।
(3) बेलोचता- यदि इन करों को केवल विलासिता की वस्तुओं पर लगाया दिया जाए तब भी इनमें लोचता का अभाव रहता है।
(4) माँग का कम होना- ऐसे कर वस्तुओं तथा सेवाओं पर ही लगा दिए जाते हैं इसलिए इससे वस्तुओं व सेवाओं की क़ीमत बढ़ जाती है। जिस कारण माँग में कमी आ जाती है। वस्तुओं की माँग में कमी आ जाने से बेरोज़गारी व आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न होने लगती है।
(5) अमितव्ययी- इन करों के संग्रहण में बहुत ख़र्च होता है। जबकि इसके मुकाबले सरकार को इतनी आय प्राप्त नहीं हो पाती।
(6) वितरण में असमानता- चूँकि इन कारों का भार ग़रीबों पर अधिक पड़ता है। इसलिए इन करों से समाज में आय के वितरण की असमानता बढ़ जाती है।
(7) नागरिक चैतन्यता का अभाव- इन करों के भुगतान के समय करदाता को पता ही नहीं रहता कि वह कर अदा कर रहा है। इसीलिए इन करों से नागरिक चैतन्यता उत्पन्न नहीं होती हैं।
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