प्रबंधित तैरती विनियम दर प्रणाली, प्रबंधित फ्लोटिंग विनिमय दर प्रणाली, स्वच्छ एवं गंदी तैरती विनिमय प्रणाली, (Managed floating exchange rate system in hindi, Managed floating exchange rate meaning in hindi)
प्रबंधित तैरती विनिमय प्रणाली एक ऐसी विनिमय दर प्रणाली है जिसमें उस देश के केंद्रीय बैंक को, मुद्रा की लोचशीलता पर नियंत्रण करने के लिए विदेशी मुद्रा बाज़ारों में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी जाती है। इस प्रणाली को गंदी फ्लोट प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है।
प्रबंधित फ़्लोटिंग विनिमय दर प्रणाली में, विनिमय दरें मांग और आपूर्ति द्वारा निर्धारित की जाती हैं, लेकिन सरकारें इन विनिमय दरों को प्रभावित करने के लिए मुद्राओं के ख़रीदार या विक्रेता के रूप में स्वयं हस्तक्षेप करती हैं।
सरल शब्दों में -
"प्रबंधित तैरती विनिमय प्रणाली, एक ऐसी लोचपूर्ण विनिमय दर प्रणाली है जिसके अंतर्गत विनिमय दर, विदेशी मुद्रा बाज़ार में करेंसियों की मांग व पूर्ति के द्वारा निर्धारित की जाती है। किन्तु इसमें सरकार के हस्तक्षेप से विनिमय दरों की लोचशीलता को कुछ सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है।"
भारत में इस समय प्रबंधित फ़्लोटिंग विनिमय दर प्रणाली ही प्रचलन में है। भारत में विदेशी विनिमय दर के निर्धारण में सरकार द्वारा कुछ हद तक हस्तक्षेप किया जाता है।
प्रबंधित फ्लोटिंग एक्सचेंज प्रणाली कब और कैसे लागू की गई?
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं विदेशी निवेशों का प्रवाह विनिमय दरों में निरंतर होने वाले उच्चावचनों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है। इसी समस्या के समाधान के लिए 18 दिसम्बर, 1971 को स्मिथसोनियन समझौता (Smithsonian Agreement) किया गया। इस समझौते द्वारा विनिमय समता के दोनों ओर उतार- चढ़ाव की पट्टी को 1 प्रतिशत से 2.25 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया।
• विदेशी विनिमय दर किसे कहते हैं? विदेशी विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारकों (तत्वों) को समझाइये।
12 फरवरी, 1973 को अमरीकी डॉलर के अवमूल्यन के बाद स्मिथसोनियन समझौता टूट गया। जनवरी, 1976 में जमैका समझौते (Jamaica agreement) के बाद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अधीन तैरती विनिमय दर की व्यवस्था का आरंभ हुआ।
तैरती विनियम प्रणाली वास्तव में मुक्त लोचपूर्ण विनिमय दर प्रणाली नहीं थी बल्कि यह एक प्रबंधित तैरती विनिमय दर प्रणाली थी जिसके अंतर्गत विभिन्न देशों के प्रशासन को यह ज़िम्मेदारी दी गई थी कि वे विनिमय दरों की दीर्घकालिक प्रवृत्ति को प्रभावित किये बिना विनिमय दर के अल्पकालिक उतार-चढ़ावों पर नियंत्रण कर सकें।
इस प्रबंधित तैरती प्रणाली में जहाँ एक ओर देशों को स्थिर विनिमय दरों से होने वाले लाभों को प्राप्त करने का अवसर दिया गया, वहीं दूसरी ओर देश के भुगतान शेष के असंतुलनों को समायोजित करने के लिए लोचशीलता बनाए रखने का भी अवसर दिया गया।
प्रबंधित तैरती प्रणाली (prabandhit tairti pranali) के अंतर्गत विदेशी विनिमय कोषों का प्रयोग करते हुए विनिमय दर के दीर्घकालिक झुकाव को प्रभावित किये बिना विनिमय दर के अल्पकालिक उतार-चढ़ावों को कम करने में सफलता मिलती है।
स्वच्छ तैरती एवं गन्दी तैरती प्रणाली (Clean floating and dirty floating system)
फ्लोटिंग एक्सचेंज सिस्टम (floating exchange system) यानि कि तैरती विनिमय प्रणाली के हम निम्न 2 रूपों के माध्यम से आसानी से समझ सकते हैं-
(1) स्वच्छ तैरती विनियम प्रणाली (Clean floating Exchange System)
स्वच्छ तैरती प्रणाली (Clean floating system) में विनिमय दर माँग एवं पूर्ति की मुक्त बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। इसमें प्रशासन किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता। विदेशी विनिमय बाज़ार बिना किसी हस्तक्षेप के स्वतः ही माँग एवं पूर्ति में समायोजन कर लेता है।
(2) गन्दी तैरती विनिमय प्रणाली (Dirty floating exchange system)
गंदी तैरती प्रणाली (Dirty floating system) में देश का मौलिक प्रशासन, कीलन क्रियाओं (Pegging operation) के द्वारा विनिमय दर के उतार-चढ़ावों को कम करने या पूरी तरह समाप्त करने के लिए हस्तक्षेप करता है। सामान्यतया इस हस्तक्षेप का उद्देश्य घरेलू देश को लाभ पहुँचाना होता है।
इस प्रकार स्वच्छ तैरती प्रणाली (Clean floating exchange system) में कुछ सीमा तक विनिमय दर में लोचशीलता देखी जाती है। जबकि इसके विपरीत गन्दी तैरती प्रणाली (dirty floating exchange system) में विनिमय दर में लोचशीलता उतनी नहीं दिखाई देती। इसके पीछे सरकार का हस्तक्षेप होता है जो विनिमय दरों को कुछ हद तक नियंत्रित करने का प्रयास करती है।
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