निर्धनता क्या है? अर्थ एवं परिभाषा | सापेक्ष व निरपेक्ष निर्धनता | भारत में निर्धनता के कारण व इसे दूर करने के सुझाव

ग़रीबी या निर्धनता क्या है? अर्थात ऐसे व्यक्ति अथवा परिवार, जिसकी व्याख्या हम आज इस अंक में विस्तार से करने वाले हैं। निर्धनता से क्या समझते हैं? (Nirdhanta se aap kya samajhte hain?) सामान्य शब्दों में ग़रीबी या निर्धनता ऐसी दशा को कहते हैं जिससे हर एक व्यक्ति बचना चाहता है। जो अपने जीवन की न्यूनतम आवश्यकताएं भी पूरी नहीं कर सकता।




भारत में निर्धनता Nirdhanta kya hai? एक ऐसा विषय है जिस पर जितनी बात की जाये उतनी ही कम है। निर्धनता से क्या तात्पर्य है? इसके जवाब में बहुत ही संक्षेप में शाहीन रफ़ी खान और डेमियन किल्लेन ने क्या ख़ूब कहा है-

"निर्धनता भूख है। बीमार होना और डॉक्टर से न दिखा पाने की विवशता ही निर्धनता है। निर्धनता स्कूल न जाकर निरक्षर रह जाने का नाम है। निर्धनता बेरोज़गारी है। निर्धनता भविष्य के प्रति भय है, दिन में एक बार भोजन पाना ही निर्धनता है। निर्धनता अपने बच्चे को उस बीमारी से मरते देखने का नाम है जो अस्वच्छ पानी पीने से भी होती है। निर्धनता शक्ति, प्रतिनिधित्व हीनता और स्वतंत्रता की हीनता का नाम है।"

अनुक्रम 👇

• निर्धनता की विशेषताएं क्या हैं ?
• ग़रीबी या निर्धनता का क्या अर्थ है ?
• निर्धनता रेखा का वर्गीकरण- निरपेक्ष और सापेक्ष निर्धनता 
• गरीबी के प्रकार 
• ग़रीबी (निर्धनता) रेखा की धारणा 
• भारत में निर्धनता के प्रमुख कारण 
• भारत निर्धनता दूर करने प्रकार 
• निष्कर्ष (Conclusion)



निर्धन कौन हैं? इनकी विशेषताएँ क्या हैं? | निर्धनों की पहचान कैसे होती है?

निर्धनता के लक्षण (nirdhanta ke lakshan) की बात करें तो आपने देखा होगा, प्रायः सभी क्षेत्रों-गाँवों और शहरों में निर्धन वर्ग पाए जाते हैं। जैसे- रेलगाड़ी, गली में काम करने वाले मोची, मालाएँ गूँथने वाली महिलाएँ, कागज़-कतरन बिन वाले, फेरी वाले, भिखारी आदि शहरी क्षेत्रों के अति निर्धन और जोख़िम भरा जीवन बिताने वाले वर्ग हैं। इनकी परिसंपत्तियां बहुत कम होती हैं, ये कच्चे घरों में रहते हैं।


ग्रामीण क्षेत्रों के निर्धनों के पास तो प्रायः भूमि भी नहीं होती है। यदि किसी के पास हो तो वह भी सूखी या बंजर होती है। निर्धन परिवार के सदस्यों को तो दिन में 2 बार भोजन भी नहीं पाता। यही इनका शाश्वत सत्य होता है। ये बुनियादी साक्षरता के साथ-साथ रोज़गार से भी वंचित रहते हैं। कुपोषण, अस्वस्थता, अपंगता व गंभीर बीमारियां इन्हें शारीरिक रूप से कमज़ोर बना देती हैं। 

ये साहूकार से ऊँची ब्याज़ दर से उधार ले लेते हैं। तथा जीवन पर्यंत ये लोग ऋणग्रस्तता से दबे रहते हैं। नियत मज़दूरी नहीं मिलती, बिजली उपलब्ध नहीं होती, पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं होता। महिलाओं को मातृत्व काल में भी आराम व देखभाल जैसी कोई सुविधा नहीं मिल पाती। यहाँ तक कि उनके बच्चों में स्वस्थ जन्म लेने और फ़िर दीर्घ जीवन धारण की संभावनाएं भी क्षीण होती हैं। इसे ही सही मायने में ग्रामीण निर्धनता कहते हैं।

ये छोटी जोत के मालिक अथवा भूमिहीन मज़दूर होते हैं। या किसी और कि ज़मीन पर आसामी काश्तकार की भाँति खेती करते हैं। शहर में भी यही निर्धन होते हैं जो काम काज की तलाश में चले आते हैं। यही लोग तरह-तरह के अनियमित काम करते रहते हैं। ये सड़कों के किनारे, गलियों में घूम-घूमकर सामान बेचते दिखाई देते हैं। चलिये इसे परिभाषित रूप से जानते हैं।


ग़रीबी या निर्धनता का अर्थ (Meaning of poverty in hindi) | निर्धनता का क्या अर्थ है? | Nirdhanta kya hai?

निर्धनता या ग़रीबी एक अवस्था है जिसमें जीवन जीने के लिए न्युनतम उपयोग जैसे- रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मानवीय आवश्यकताओं को प्राप्त करने में असमर्थता या अभाव को निर्धनता अथवा ग़रीबी (Nirdhanta ya garibi) कहते हैं।

निर्धनता या ग़रीबी से आशय (nirdhanta ya garibi se aashay) है "ऐसी अवस्था जिसमें समाज का एक भाग निश्चित न्यूनतम उपभोग स्तर से नीचे जीवन-यापन कर रहा होता है।" हालांकि यह स्तर भिन्न-भिन्न देशों के लिए भिन्न-भिन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए- अमेरिका में रहने वालों का यह स्तर ऊँचा होगा क्योंकि वह देश विकसित देशों की श्रेणी में आता है। जबकि इसके विपरीत भारत में यह स्तर नीचा होगा क्योंकि यह अल्प-विकसित देशों की श्रेणी में गिना जाता है।

अर्थात "वह न्यूनतम आय जिसकी आवश्यकता किसी परिवार को अपनी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए होती है। लेकिन वह परिवार उस न्यूनतम आय को जुटा पाने में असमर्थ होता है।

सरल शब्दों में "निर्धनता से तात्पर्य मनुष्य की आधारभूत आवश्यकताओं जैसे- भोजन, वस्त्र, आवास आदि की पूर्ति के लिए पर्याप्त साधनों को जुटा पाने में असमर्थता से है"

निर्धनता रेखा (ग़रीबी रेखा) - ऐसा परिवार जो पारिवारिक आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उस न्यूनतम आय को जुटा पाने में असमर्थ रहता है वह परिवार "ग़रीबी रेखा से नीचे" जीवन यापन कर रहा माना जाता है।

निर्धनता के विषय में कुछ प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने अपनी विचारधाराएं प्रस्तुत की हैं जो कि निम्नानुसार हैं-

1. गिलीन के अनुसार- "ग़रीबी का आशय उस अवस्था से है जिसमें व्यक्ति अपनी काम आय और असीमित व्यय के कारण अपना एवं अपने परिवार का जीवन स्तर ऊँचा करने में असमर्थ होता है। जिस कारण उसकी और उसके परिवार के सदस्यों की शारीरिक व मानसिक क्षमता खराब हो जाती है।"

2. गोडार्ड के अनुसार- "ग़रीबी में उन वस्तुुुओं का अभाव होता है जो कि एक व्यक्ति तथा उसके आश्रितों को स्वस्थ एवं बलवान बनाये रखने के लिए आवश्यक है।"

3. रॉबर्ट मेकनमारा के अनुसार- "अति ग़रीबी जीवन की एक ऐसी अवस्था है जिसमें अपर्याप्त भोजन, अशिक्षा, बीमारी, ऊँची शैशव मृत्यु-दर और औसत आयु कम होना आदि पाया जाता है।"

वास्तव में, ग़रीबी एक ऐसा सापेक्षिक शब्द है जिसे किसी परिभाषा विशेष में बांधना सही नहीं है। इसे देशकाल एवं परिस्थितियों के आधार पर ही परिभाषित किया जा सकता है। 

'ग़रीबी रेखा अथवा निर्धनता रेखा उस रेखा को कहा जाता है जो क्रय-शक्ति को प्रकट करती है। जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट करने का प्रयास करते है। यानी कि यह आवश्यकताओं को एक न्यूनतम स्तर पर संतुष्ट करने की क्षमता को प्रकट करती है।'


यदि हमें यह ज्ञात हो जाये कि किसी व्यक्ति का जीवन स्तर न्यूनतम बनाये रखने के लिए उस व्यक्ति के क्रय शक्ति का स्तर अर्थात प्रति व्यक्ति औसत मासिक व्यय क्या होना चाहिए। तब उस स्तर से थोड़ा नीचे जीवन यापन करने वालों को ग़रीब माना जा सकता है।


निर्धनता रेखा का वर्गीकरण (Poverty line classification in hindi)

भारत में निर्धनता रेखा (ग़रीबी रेखा) मापने के लिए वैसे तो सरकार या विशेषज्ञों अलग-अलग मापदंड दिए हैं। जैसे कि एक विधि के अनुसार हम सदा निर्धन और सामान्यतः निर्धन में भी वर्गीकरण कर सकते हैं। सामान्यतः निर्धन वर्ग में वे लोग आते हैं जिनके पास कभी-कभी कुछ धन आ जाता है। जैसे- अनियत मज़दूर। सीधी भाषा में हम इन दोनों ही वर्गों को मिलाकर इसे एक नया नाम 'चिरकालीन निर्धन' नाम दे देते हैं। एक ऐसा वर्ग भी है जो निरंतर निर्धन और ग़ैर निर्धन वर्गों के बीच झूलता रहता है। जैसे- छोटे किसान और मौसमी मज़दूर। 

एक वर्ग और भी होता है जिन्हें अल्पकालिक निर्धन कहा जाता है। क्योंकि ये लोग अधिकांश समय में धनी ही होते हैं लेकिन कभी-कभी दुर्भाग्यवश किसी कारण से कुछ समय के लिए निर्धन हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कभी भी निर्धन नहीं होते हैं उन्हें ग़ैर-निर्धन कहा जाता है।

ग़रीबी शब्द का प्रयोग प्रायः दो रूपों में किया जा सकता है। अथवा यह कह सकते हैं कि भारत में निर्धनता की सीमा का अनुमान दो प्रकार से लगाया जाता है।

(1) निरपेक्ष निर्धनता (Absolute Poverty)
(2) सापेक्ष निर्धनता (Relative Poverty)

आइये ग़रीबी के इन दोनों ही रूपों को हम समझने का प्रयास करते हैं।


(1) निरपेक्ष निर्धनता | निरपेक्ष ग़रीबी | Absolute Poverty in hindi

मानव जब अपनी आधारभूत आवश्यकताओं जैसे- भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य सहायता आदि की पूर्ति के लिए पर्याप्त वस्तुओं व सेवाओं को भी जुटाने पाने में असमर्थ होता है। तब ऐसी ग़रीबी को निरपेक्ष ग़रीबी या निरपेक्ष निर्धनता कहा जाता है। भारत जैसा देश, जहाँ निर्धनता बहुतायत में पायी जाती है। ऐसे देश में मुख्य रूप से निरपेक्ष निर्धनता की अवधारणा ही महत्वपूर्ण हो सकती है। यानि आप कह सकते हैं कि भारत में ग़रीबी यानि निरपेक्ष निर्धनता।


आइये हम यह जानते हैं कि भारत में ग़रीबी का आंकलन किस आधार पर होता है? निर्धनता रेखा के मापन की प्रचलित विधियाँ हैं-  न्यूनतम कैलोरी मापदंड तथा न्यूनतम उपभोग मापदंड।

न्यूनतम कैलोरी मापदंड के अंतर्गत किसी भी गाँव के व्यक्ति को 2400 कैलोरी तथा शहरी व्यक्ति को 2100 कैलोरी न्यूनतम उपभोग प्रतिदिन मिलना चाहिए। यदि इन दोनों ही व्यक्तियों को इस मापदंड से भी कम उपभोग मिलता है तब इन्हें निर्धन (ग़रीब) कहा जायेगा। यानि कि इन्हें निर्धनता रेखा से नीचे रखा जाएगा। स्वतंत्रता के पूर्व भारत में सबसे पहले निर्धनता-रेखा की अवधारणा पर विचार करने वाले पहले व्यक्ति दादा भाई नौरोजी थे।

भारतीय योजना आयोग के अनुसार न्यूनतम कैलोरी मापदंड के अन्तर्गत गाँव के व्यक्ति को 2400 कैलोरी तथा 2100 कैलोरी न्यूनतम कैलोरी का प्रतिदिन उपभोग करना माना जाता है। इस विधि का सबसे पहले सन 1989 को लकड़ावाला समिति ने विचार किया था।

लेकिन 2003 की आलोचनाओं के बाद वर्ष 2004-05 में सुरेश तेंदुलकर समिति नए सिरे से न्यूनतम उपभोग व्यय के आधार पर निर्धनता का मापन का प्रयास किया गया। जिसके अंतर्गत माना गया कि गाँव के व्यक्ति के लिए उपभोग व्यय ₹27/दिन तथा शहर के व्यक्ति के लिए ₹33/दिन उपभोग व्यय का आधार माना गया।

वर्ष 2012 में योजना आयोग द्वारा न्यूनतम उपभोग व्यय की सिफ़ारिश की जाँच के फलस्वररूप तेंदुलकर समिति के आधार को सही मानते हुए उसी में कुछ सुधार करते हुए ग्रामीण स्तर पर ₹32/दिन तथा शहरी स्तर पर ₹47/दिन  न्यूनतम उपभोग व्यय को ग़रीबी रेखा का आधार माना गया। यह नये आधारों पर निर्धनता का मापन था।

(2) सापेक्ष निर्धनता | सापेक्ष ग़रीबी | Relative Poverty in hindi

जब निर्धनता की तुलना अन्य देशों, राज्यों या व्यक्तियों की निर्धनता से की जाती है। तब वह सापेक्ष निर्धनता कहलाती है। यदि हम कहें कि अमेरिका, इंग्लैंड, जापान आदि देशों की तुलना में भारत की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है तो इसका मतलब होता है भारत के लोग सापेक्ष रूप से निर्धन हैं।


ग़रीबी के प्रकार | Types of Poverty in hindi | Garibi ke prakar

(1) शहरी ग़रीबी ( Urban poverty) -

शहरों में रहने वाले अधिकतर लोग नौकरी, व्यापार या किसी कामकाज आदि से जुड़े रहते हैं। यदि ये लोग अपने इन कार्यों से भी इतना नहीं कमा पाते कि अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। तो इनकी इस परिस्थिति को शहरी ग़रीबी या शहरी निर्धनता कहते हैं। ज़्यादातर मज़दूर, मज़दूरी करने के लिए बड़ी संख्या में औद्योगिक शहरों में आकर निवास करते हैं। इन मज़दूरों को इतनी मज़दूरी नहीं मिल पाती जिससे कि ये शहर के सभी ख़र्चों को पूरा कर सकें। जिस कारण उनका जीवन दयनीय हो जाता है।


अनेक लोगों का जीवन फुटपाथ पर ही गुज़र जाता है। अनेक मज़दूर ऐसे भी होते हैं जिन्हें पूरे टाइम रोज़गार नहीं मिल पाता। मजबूरन ये कोई भी छोटा मोटा काम करके अपना गुज़ारा करने का प्रयास करते हैं। इन्हीं परिस्थितियों को शहरी निर्धनता कहा जाता है।

(2) ग्रामीण ग़रीबी (Rural poverty)- 

हम आपको बता दें कि भारत की लगभग 75% जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। और गाँव के कृषि का निम्नस्तर किसी से छिपा नहीं है। क्योंकि गाँव में सिंचाई व्यवस्था, परम्परागगत जुताई, बुवाई, कटाई व्यवस्था प्रचलित है। इसीलिए भारत के गाँव का कृषक केवल कृषि से इतनी आय अर्जित नहीं कर पाता कि वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति पर्याप्त रूप से कर सके। बल्कि उसे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने व खेती करने के लिए लोन पर निर्भर रहना पड़ता है। जिस कारण वह निर्धन हो जाता है। इसी परिस्थिति को ग्रामीण ग़रीबी या ग्रामीण निर्धनता कहा जाता है।


गरीबी रेखा की धारणा | Concept of Poverty Line in hindi | Nirdhanta rekha kya hai? 

ग़रीबी (निर्धनता) रेखा उस रेखा को कहा जाता है। जो उस क्रय शक्ति को प्रकट करती है। जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट कर सकते हैं। अर्थात दूसरे शब्दों में कहें तो यह आधारभूत आवश्यकताओं को एक न्यूनतम स्तर तक संतुष्ट करने की क्षमता प्रकट करती है। उसे "प्रति व्यक्ति औसत मासिक व्यय" के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

स्पष्ट तौर पर यह कहा जा सकता है कि वे लोग जो जिनके पास न्यूनतम क्रय शक्ति यानि कि न्यूनतम मासिक व्यय तभी नहीं है, ऐसे लोग ग़रीबी रेखा के नीचे अर्थात ग़रीब माने जाते हैं। इसके विपरीत जिनकी क्रय शक्ति (मासिक व्यय) ग़रीबी रेखा से ऊपर है। वो ग़रीब नहीं माना जा सकता।


आधुनिक समय में ग़रीबी रेखा या निर्धनता रेखा का निर्धारण योजना आयोग के 1993-94 के राष्ट्रीय न्यादर्श सर्वेक्षण (National Sample Survey) 'NSS' के आँकड़ों के आधार पर किया जाता है। इसके अंतर्गत ग़रीबी रेखा से तात्पर्य (garibi rekha se tatparya) उस प्रतिव्यक्ति मासिक व्यय से है जिसके द्वारा ग्रामीण व्यक्ति प्रतिदिन 2400 कैलोरी तथा शहरी व्यक्ति 2100 कैलोरी प्राप्त करता है।


भारत में निर्धनता के प्रमुख कारण (Causes of poverty in india in hindi)

भारत में निर्धनता के क्या कारण (Bharat me nirdhanta ke karan) क्या हैं? विशेषतया देखा जाये तो भारत में निर्धनता poverty in india in hindi के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(1) ब्रिटिश दासता - भारत की निर्धनता का कारण यहाँ एक लंबे समय तक ब्रिटिश शासन का बने रहना है। विशेष रूप से देखा जाये तो ब्रिटिश शासन ने भारत को कच्चे माल का निर्यातक और निर्मित माल का आयातक बनाए रखा। इसने कृषि के आधुनिकीकरण की ओर ध्यान न देकर अपने निहित स्वार्थ के लिए औद्योगीकरण पर विशेष बल दिया। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण देश के कृषि का स्तर पिछड़ गया। और निर्धनता चारों तरफ़ फैल गयी।

(2) प्राकृतिक संसाधनों का अपूर्ण विदोहन - भारत में प्राकृतिक साधनों की प्रचुरता है। किन्तु इन संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग न कर पाने के कारण भी निर्धनता फैली है। उदाहरणार्थ- प्रचुर मात्रा में खनिज साधन होते हुए भी औद्योगिक विकास न हो पाना। अपार जल संपदा होने के बाद भी सिंचाई व्यवस्था में कोई विकास न हो पाना। इसके अलावा विद्युत का संकट बराबर बने रहना।

(3) पूँजी की कमी - देश के अंदर प्रति व्यक्ति आय की नीची होने के कारण बचत व पूँजी का स्तर भी नीचे ही राह जाता है। परिणाम स्वरूप निवेश में वृद्धि नहीं हो पाती और देश में निर्धनता बढ़ती चली जाती है।

(4) जनसंख्या में वृद्धि - भारत की जनसंख्या लगभग 2.6% प्रति हज़ार की दर से बढ़ती है। लेकिन जिस गति से जनसंख्या बढ़ती है उसी गति से उत्पादन व साधनों की मात्रा में वृद्धि नहीं होती। जिससे सम्पूर्ण देश का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है। साथ ही माँग और पूर्ति में असंतुलन के फलस्वरूप क़ीमतों में वृद्धि होने लगती है। जिस कारण लोगों की क्रय शक्ति घटने लगती है। अतः लोग ऐसी स्थिति में अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं कर पाते और ग़रीबी रहकर जीवन यापन करते हैं।

(5) पूँजी की कमी - देश में प्रति व्यक्ति आय नीची होने के कारण बचत व पूँजी का स्तर नीचा है। जिस कारण निवेश की दसर नहीं बढ़ पातीं। फलस्वरूप देश मे निर्धनता बढ़ती जाती है।


(6) बेरोज़गारी में वृद्धि - यह तो आप अच्छी तरह जानते हैं कि बेरोज़गारी दूसरों पर आश्रित बना देती है। बेरोज़गार व्यक्ति अपना और आने परिवार का भरण पोषण ठीक ढंग से नहीं कर पाता। परिणामस्वरूप वह आर्थिक विकास न कर पाने के कारण ग़रीब रह जाता है।

(7) निम्न पूँजी निर्माण - भारत में निर्धनता का कारण पूँजी निर्माण के निम्न स्तर का होना भी माना जाता है। यहाँ लोगों की आय निम्न होने की वजह से बचत की मात्रा बहुत कम हो जाती है। कुछ बचत हो भी जाये उसे अचल संपत्तियों में व्यय कर दिया जाता है। जिससे उद्योगों के लिए पूँजी का निर्माण नहीं हो पाता है। 

(8) कार्यकुशलता में कमी - किसी भी देश में उच्च स्तर के उत्पादन के लिए कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। चूँकि भारत जैसे देश में कुशल श्रमिकों की कमी है। जिस कारण उत्पादन का स्तर नीचा होता है। परिणाम स्वरूप अर्थव्यवस्था नीची ही रहती है और निर्धनता बनी रहती है।

(9) बुरी आदतें - किसी भी व्यक्ति अथवा समाज में बुरी आदतों का होना उस व्यक्ति या समाज के पतन का कारण बन जाती हैं। भारत जैसे देशों में बुरी आदतों के भंडार होता है जैसे-  जुए की आदत होना, सट्टेबाज़ी, वेश्यावृति, नशेबाज़ी आदि। परिणामस्वरूप इन आदतों के चलते व्यक्ति हमेशा निर्धनता की नदी में डुबकी मरता रहता है।

(10) कृषि की पिछड़ी अवस्था - भारत एक कृषि प्रधान देश है। इस देश की लगभग 70 से 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। लेकिन चिंताजनक विषय यह है कि यहाँ की कृषि अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक पिछड़ी हुई अवस्था में है। जिस कारण प्रति व्यक्ति आय का स्तर नीचा बना रहता है। परिणामस्वरूप निर्धनता की स्थिति लगातार देश में बनी रहती है।



(11) साक्षरता का कमी - भारत जैसे देश में निर्धनता का कारण उसमें व्याप्त निरक्षरता भी है। भारत में तकनीकी शिक्षा, प्रशिक्षण आदि की सुविधाओं की भारी कमी है। जिस कारण यहाँ के उद्योगों व कारखानों के लिए अच्छे व कार्यकुशल श्रमिक नहीं मिल पाते। और यही कड़वा सच है कि कुशल व तकनीकी श्रम के बिना आर्थिक विकास संभव नहीं है। बल्कि निर्धनता बनी रहती है।

(12) राजनीतिक अस्थिरता - किसी भी देश में राजनीतिक अस्थिरता और राजनीतिक उथल-पुथल भी निर्धनता को लगातार बढ़नव देती है। जिससे चारों ओर असंतोष, जमाखोरी, मुनाफ़ाखोरी, कालाबाज़ारी, भ्रष्टाचार आदि को बढ़वा मिलता है। जिससे क़ीमतों में वृद्धि होती है। जिस कारण लोगों की क्रयशक्ति में कमी आती है। जिसका परिणाम यह होता है कि देश में निर्धनता फलती फूलती रहती है।


भारत में निर्धनता दूर करने हेतु सुझाव | Measures to Eradicate Poverty in India)

यह जानने के लिए कि निर्धनता कम करने के लिए कौन सी नीतियाँ सफल हो सकती हैं, कौन सी नहीं? समयानुसार किन-किन बातों में बदलाव लाने हो सकते हैं? निर्धनता निवारण के उपाय (nirdhanta dur karne ke upay) के अंतर्गत भारत में निर्धनता को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाये जा सकते हैं-

(1) आर्थिक विकास की व्यूह रचना में परिवर्तन - भारत में आर्थिक विकास का लाभ ज़्यादातर बड़े कृषकों व बड़े उद्योगपतियों को ही मिलता रहा है। अतः सकल आर्थिक विकास के लिए यह ज़रूरी है कि छोटे-छोटे कृषकों व कुटीर उद्योगों का भी समुचित विकास किया जाए। उद्योग तथा कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास के लिए उपाय किये जाएं। जहाँ कम पूँजी लगाकर अधिक से अधिक रोज़गार देने का लक्ष्य पाया जा सके। 


(2) साक्षरता में वृद्धि - निर्धनता से छुटकारा पाना हो तो साक्षरता स्तर में वृद्धि करना आवश्यक है। शिक्षा की प्रचलित पद्धतियों में अपेक्षाकृत सुधार की आवश्यकता होगी। व्यावसायिक व व्यवहारिक शिक्षा में विकास करना होगा। गाँवों में कृषि-शिक्षा का विस्तार भी करना होगा। ताकि निर्धनता से छुटकारा पा सकें।

(3) पूँजी निर्माण - देश में पूँजी निर्माण में वृद्धि करने से निर्धनता दूर की जा सकती है। अधिक पूँजी के होने से नए नए अनेक उद्योग स्थापित किए सकते हैं। प्राकृतिक साधनों का सही ढंग से विदोहन किया जा सकता है। जिससे रोज़गार के अवसरों में वृद्धि हो सके। परिणामस्वरूप निर्धनता के स्तर में कमी होगी।

(4) रोज़गार में वृद्धि - निर्धनता को दूर करने के लिए एक बेहतर उपाय यह है कि कृषि क्षेत्र में एवं लघु उद्योगोंमें विशेष ध्यान देकर इन क्षेत्रों में उचित विकास किया जाए ताकि पूर्ण तथा आंशिक बेरोज़गारों को रोज़गार मिल सके। तथा उनकी निर्धनता दूर हो सके।

(5) कीमत वृद्धि पर नियंत्रण - भारत जैसे देश की निर्धनता के प्रमुख कारणों में से एक कारण इस देश की महंगाई यानि कि बेतहाशा बढ़ती क़ीमतें भी हैं। सरकार को अपनी विभिन्न मौद्रिक व राजकोषीय उपायों द्वारा वस्तुओं की कीमतों पर नियंत्रण करने का प्रयास करन चाहिए। सरकार के इस प्रयास से निर्धन लोगों की क्रय शक्ति में बढ़ोत्तरी होगी। और वे अपनी आवश्यकताएं पूरी करने में सक्षम हो सकेंगे।

(6) श्रम गहन तकनीक का इस्तेमाल - आज के दौर में मशीनीकरण के बेतहाशा प्रयोग ने कहीं न कहीं श्रमिकों का हक़ छीना है। इसलिए जितना हो सके कृषि तथा उद्योग दोनों में ही श्रम गहन तकनीक का प्रयोग करना चाहिए। ताकि उत्पादन के क्षेत्र में पूँजी के स्थान पर श्रमिकों का अधिक से अधिक प्रयोग किया जा सके। इससे ज़्यादा लोगों को काम मिलेगा जिससे उनकी निर्धनता दूर होगी।

(7) निर्धनों को आवास सुविधा - ऐसे निर्धन लोग, जिनके पास रहने के लिए उनका घर न हो। उनके लिए सरकार द्वारा आवास उपलब्ध कराए जाएं। इसके लिए इन्हें मकान बनाने के लिए ज़मीन, आवश्यक वस्तुएँ तथा उचित सुविधाएं उपलब्ध करायी जायें।

(8) परिवार नियोजन ज़ोर -  अक़्सर देखा जाता है कि निर्धन वर्ग के लोगों के घरों में बच्चों की संख्या ज़्यादा होती हैं। जिससे परिवार पर आमदनी का बोझ ज़्यादा पड़ने लगता है। अतः इस निर्धनता को दूर करने के लिए उन्हें छोटे परिवार का महत्व समझाना चाहिए। इसके लिए देश में परिवार नियोजन कार्यक्रमों को चलाया जाना चाहिए।


(9) सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था - यह आवश्यक है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक सुरक्षा संबंधी सेवाओं की समुचित व्यवस्था करायी जाए। जैसे- अस्पताल, पीने का पानी, सस्ती दर पर वश्यक वस्तुओं की उपलब्धता, शिक्षा, परिवार नियोजन के लिए बेहतर सुविधा आदि की व्यवस्था की जाए।

10) भूमि सुधार कार्यक्रम - निर्धनता दूर करने के लिए कृषि सुधार कार्यक्रम चलाए जाएं। इसके तहत कृषि योग्य भूमि व जोतों की सीमाबन्दी के अंतर्गत उपलब्ध होने वाली अतिरिक्त भूमि को निर्धनों में वितरित कर दिया जाए। सिंचाई सुविधाएं, उत्तम बीज, उवर्रक, नए कृषि उपकरणों का सही उपयोग, आर्थिक सहायता, चकबंदी तथा सहकारिता को प्रोत्साहन करके कृषि में स्थायी सुधार किया जा सकता है। ऐसा करने से निर्धनों की आय बढ़ेगी और उनके जीवन स्तर में सुधार होगा।

(11) उचित मज़दूरी दर का निर्धारण - सरकार द्वारा कृषि तथा उद्योग क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी दर का निर्धारण करना चाहिए। इससे उद्योग या कृषि क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों की निर्धनता को कम किया जा सकता है।

(12) निर्धनता निवारण योजनाएँ - सरकार द्वारा निर्धनों के लिए ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत अनेक योजनाएँ लागू किया जाना चाहिए। विशेष तौर पर इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि ये योजनाएँ, स्पष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु प्रभावी ढंग से लागू की जा सकें।

आपने उपरोक्त बिंदुओं में जाना कि निर्धनता सचमुच एक सामाजिक और आर्थिक चुनौती है। जिसके लिए शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और प्राकृतिक कारण सभी मिलाजुलाकर उत्तरदायी हैं।


निष्कर्ष

संविधान सभा को 1947 में संबोधित करते हुए जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, "स्वतंत्रता की प्राप्ति तो एक कदम मात्र है, अभी तो और भी बहुत सी महान उपलब्धियाँ और विजयोत्सव हमारी प्रतीक्षा में हैं। जैसे कि निर्धनता, अज्ञान, रोग और अवसरों की असमानताओं के उन्मूलन के उत्सव।

किंतु आज हम कहाँ तक पहुँच पाए हैं? यह एक ज्वलंत सवाल है। आज विश्व के निर्धनों की कुल संख्या के पाँचवे हिस्से से अधिक निर्धन ऐसे हैं जो केवल भारत में निवास करते हैं। यहाँ लगभग 30 करोड़ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी मूलभूत ज़रूरतों को ढंग से पूरा भी नहीं कर पाते। निर्धनता पर और भी कुछ विशिष्ट बातें जानने के लिए आप poverty in hindi wikipedia पर visit कर सकते हैं।


ग़रीबी या निर्धनता, निर्धन तथा धनी दोनों के लिए विश्व को बदलने का एक आव्हान है जिसके फलस्वरुप सभी को पेट भर भोजन नसीब हो सके, सिर छुपाने बेहतर जगह मिल सके, शिक्षा व चिकित्सा सुविधाएँ मिल सके, हिंसा से उनका बचाव हो सके तथा उनके आने समाज के किसी घटनाक्रम में उनकी आवाज़ की सुनवाई भी हो सके।

हालांकि सरकार इन निर्धनता निवारण योजनाओं के द्वारा ग़रीबी को दूर करने का भरसक प्रयास करती है। किंतु किसी भी योजना में निर्धनता निवारण के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया सका है। वास्तव में इन योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किये जाने की आवश्यकता है। ताकि भारत से Nirdhanta ke dushchakra निर्धनता का दुष्चक्र हटाया जा सके।

चूँकि भारतीय निर्धनता एक चुनौती है। यदि भारत में निर्धनता की समस्या का निवारण (eradication of poverty) करना है तो निर्धनता के मूलभूत कारणों का पता लगाने के लिए निर्धनता निवारण कार्यक्रम के अंतर्गत विशेष नीतियाँ, योजनाएँ बनानी होंगी। विशेष योजनाओं के उचित क्रियान्वयन के लिए सरकार को निर्धनों की पहचान करने के लिए उपयुक्त स्केल बनाना होगा। साथ ही उन कसौटियों व विधियों का बहुत ध्यानपूर्वक चयन करना होगा।

उम्मीद है आपने इस अंक में निर्धनता का अर्थ, निर्धनता आने के कारण तथा इससे बचने के उपायों को पढ़कर अपने अध्ययन सामग्री में अवश्य बढ़ोत्तरी की होगी।

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