अर्थशास्त्र में बेरोज़गारी उस स्थिति को कहा जाता है जब कोई किसी काम को करने की इच्छा रखता हो, योग्यता रखता हो, उसमें उस काम को करने का सामर्थ्य भी हो। परन्तु उसे उसके सामर्थ्य के अनुसार काम नहीं मिलता।
साधारण बोलचाल की भाषा में व्यक्ति को काम न मिलने की दशा को ही बेरोज़गारी (berojgari) कहा जाता है। किन्तु अर्थशास्त्र में बेरोज़गारी का अभिप्राय (berojgari ka abhipray) अलग होता है। अर्थशास्त्र में बेरोज़गारी उस स्थिति को कहा जाता है जब कोई किसी काम को करने की इच्छा रखता हो, उसमें उस काम को करने की योग्यता एवं सामर्थ्य भी हो। परन्तु उसे उसके सामर्थ्य के अनुसार काम नहीं मिल पाता।
आज प्रत्येक अर्थव्यवस्था के सामने एक सबसे बड़ी समस्या है unemployment यानि कि बेरोज़गारी की समस्या। साधारण तौर पर देखा जाए तो अधिकतम उत्पादन के लिए, उत्पादन के सभी साधनों को पूर्ण रोज़गार प्राप्त होना आवश्यक माना जाता है। देश का आर्थिक विकास भी तभी संभव होगा। चलिए बेरोज़गारी किसे कहते हैं? (berozgari kise kahte hain?) हम और भी सरल शब्दों में जानने का प्रयास करते हैं।
बेरोज़गारी क्या है (berozgari kya hai?) | meaning of unemployment in hindi
बेरोज़गारी एक ऐसी परिस्थिति को कहा जा सकता है जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पाते हैं। अथवा हम यह भी कह सकते हैं कि एक शारीरिक व मानसिक रूप से सक्षम व्यक्ति जो काम करने का इच्छुक है। उसमें उस काम के लायक योग्यता भी है। लेकिन उसे काम नहीं मिल पाता है। बेरोज़गारी इसी परिस्थिति को कहते हैं।
वास्तव में बेरोज़गारी (berojgari) की ऐसी परिस्थिति को अनैच्छिक बेरोज़गारी भी कहते हैं। क्योंकि उस काम को करने की योग्यता और इच्छा के होने के बावजूद भी उसे काम नहीं मिलता है और वह बेरोज़गार रह जाता है। ऐसे अनेक पढ़े लिखे और कई होनहार युवा अनैच्छिक बेरोज़गारी के शिकार बन जाते हैं।
इसके विपरीत, अर्थव्यवस्था में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो काम करने की योग्यता रखें या ना रखें। किन्तु वे काम नहीं करना चाहते। इस प्रकार की बेरोज़गारी को ऐच्छिक बेरोज़गारी कहा जाता है। कुछ ऐसे बेरोज़गार भी होते हैं जिनको मज़दूरी भी ठीक ठाक मिल सकती है लेकिन फ़िर भी ये लोग काम नही करना चाहते हैं जैसे- भिखारी, साधू और अमीर बाप के बेटे इत्यादि।
हालांकि अर्थशास्त्र ऐच्छिक बेरोज़गारी कोई समाधान प्रस्तुत नहीं करता है। अर्थशास्त्र का संबंध केवल अनैच्छिक बेरोज़गारी से होता है। इस अंक में आज आप बेरोज़गारी से क्या आशय है? (berojgari se kya ashay hai?) स्पष्ट रूप से जानने का प्रयास कर रहे हैं।
किसी भी अर्थव्यवस्था में ऐसे अनेक कारण होते हैं जिनके चलते सभी लोगों को रोज़गार नहीं मिल पाता। इस तरह देश में बेरोज़गारी उत्पन्न हो जाती है। जिसके फलस्वरूप ग़रीबी फैलने लगती है। बेरोज़गार व्यक्ति चोरी, डकैती जैसे कार्यों में लीन हो जाते हैं।
अतः देश के आर्थिक विकास व व्यक्तियों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए इस समस्या का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए इस अंक में हम बेरोज़गारी क्या है? इसके प्रकार (berojgari kya hai? iske prakar) के बारे में हम स्पष्ट व सरल शब्दों में जानने का प्रयास करेंगे।
चूंकि बेरोज़गारी को किसी एक परिभाषा में पिरोना उपयुक्त नहीं होगा। क्योंकि कोई एक परिभाषा बेरोज़गारी की समस्या के अनेक तथ्यों को पूर्णतया स्पष्ट नहीं कर सकती है। इसलिए हम बेरोज़गारी के विभिन्न प्रकारों का प्रथक से अध्ययन करके ही बेरोज़गारी की समस्या का पता लगा सकते हैं। तो चलिए बिना देर किए हम जानते हैं कि बेरोज़गारी कितने प्रकार की होती है? (berojgari kitne prakar ki hoti hai?)
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बेरोज़गारी के प्रकार (Berojgari ke prakar)
अल्पविकसित या विकासशील देशों में बेरोज़गारी के प्रकार (berojgari ke pramukh prakar) निम्न होते हैं -
1) ऐक्छिक बेरोज़गारी (Aichhik berojgari) -
जब कोई व्यक्ति बाज़ार में प्रचलित मज़दूरी दर पर काम करने को तैयार नहीं होता है अर्थात वह ज़्यादा मज़दूरी की मांग कर रहा है जो कि उसको मिल नहीं रही है। जिसके चलते वह अपनी इन आकांक्षाओं के कारण बेरोज़गार रह जाता है। बेरोज़गारी की ऐसी स्थिति को ऐक्छिक बेरोज़गारी (aichhik berozgari) कहते हैं।
2) अनैक्छिक बेरोज़गारी Anaichhik berojgari) -
जब उपयुक्त योग्यता व काम करने की प्रबल इच्छा रखने वाले लोगों को भी उनके सामर्थ्य के अनुरूप काम नहीं मिल पाता है। तब बेरोज़गारी की ऐसी स्थिति को अनैच्छिक बेरोज़गारी (anaichhik berozgari) कहा जाता है।
3) मौसमी बेरोज़गारी (Mousami berojgari) -
इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है। देश में अनेक ऐसे लोग होते हैं जिन्हें पूरे वर्ष का काम नहीं मिल पाता है। मजबूरी में कृषि को छोड़कर अन्य किसी स्थान पर भी नहीं जा सकते। कृषि में लगे लोगों को कृषि की जुताई, बोवाई, कटाई आदि कार्यों के समय रोज़गार तो मिलता है लेकिन कृषि कार्य ख़त्म होते ही कृषि में लगे लोग बेरोज़गार हो जाते हैं।
4) अदृश्य बेरोज़गारी (Adrishya berojgari) -
देश के ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की बेरोज़गारी बहुतायत में देखने मिलती है। अदृश्य बेरोज़गारी का दूसरा नाम, छिपी हुई बेरोज़गारी भी है। अदृश्य बेरोज़गारी एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी कार्य को करने के लिए जितने श्रमिकों की आवश्यकता होती है उससे कहीं अधिक श्रमिक काम पर लगे होते हैं। ऐसे में यदि कुछ श्रमिकों को काम पर से हटा भी दिया जाए तो उत्पादन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आती है। हटाए गए श्रमिकों की इस स्थिति को अदृश्य बेरोज़गारी या छिपी हुई बेरोज़गारी कहा जाता है।
5) संरचनात्मक बेरोज़गारी (Sanrachnatmak berojgari) -
संरचनात्मक बेरोज़गारी तब प्रकट होती है जब बाज़ार में दीर्घकालिक स्थितियों में बदलाव आता है। उदाहरण के लिए भारत में यदि स्कूटर का उत्पादन बंद कर दिया जाए और कार का उत्पादन बढ़ा दिया जाए। उत्पादन में आये इस नए बदलाव के कारण स्कूटर के उत्पादन में लगे कर्मचारी बेरोज़गार हो जाएंगे और कार बनाने वाले कर्मचारियों की मांग एकाएक बढ़ जायेगी। इस प्रकार की बेरोज़गारी संरचनात्मक बेरोज़गारी कहलाती है। जो कि आर्थिक संरचना में आए बदलाव के कारण पैदा होती है।
6) खुली बेरोज़गारी (Khuli berojgari) -
इस प्रकार की बेरोज़गारी में ऐसे श्रमिक आते हैं जो कि काम तो करना चाहते हैं लेकिन उन्हें थोड़ा बहुत काम भी नहीं मिल पाता है। काम के न मिलने पर श्रमिक पूरी तरह बेकार रहते हैं। सामान्यतः इस तरह की बेरोज़गारी शहरों में पाई जाती है। दरअसल ग्रामीण इलाकों से काम की तलाश में श्रमिक जब शहर आते हैं। उन्हें जब तक काम नहीं मिल जाता, वे पूरी तरह ख़ाली (बेकार) रहते हैं। उनकी इस स्थिति को खुली बेरोज़गारी कहते हैं।
7) शिक्षित बेरोज़गारी (Shikshit berojgari) -
बेरोज़गारी का एक स्वरूप शिक्षित बेरोज़गारी भी है। देश में अनेक ऐसे पढ़े लिखे शिक्षित युवा होते हैं जो अपनी क्षमता (शिक्षा) के अनुरूप काम करना चाहते हैं। काम के प्रति उनकी आशाएं भिन्न भिन्न होती हैं। वे अधिक श्रम यानि कि रोज़गार करना चाहते है जिसमें उनकी शिक्षा का भरपूर उपयोग हो सके। लेकिन उन्हें अपनी शिक्षा, योग्यता या क्षमता के अनुसार काम नहीं मिल पाता। फलस्वरूप वे अल्प रोज़गार के स्थिति में रह जाते हैं। कुछ शिक्षित युवा ऐसे भी होते हैं जिन्हें कोई भी काम नहीं मिल पाता। इनकी इस बेरोज़गारी को शिक्षित बेरोज़गारी कहा जाता है।
8) चक्रीय बेरोज़गारी (Chakriya berojgari) -
इस प्रकार की बेरोज़गारी, अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ाव के कारण उत्पन्न होती है। जब अर्थव्यवस्था में समृद्धि का दौर होता है तो उत्पादन बढ़ता है रोज़गार के नए अवसर पैदा होते हैं किन्तु जब अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर आता है तब अर्थव्यवस्था में मांग तेज़ी से घटने लगती है। जिस कारण उत्पादक अपनी वस्तु के उत्पादन में कमी करना चाहते हैं। इसलिए वे श्रमिकों की छंटनी करने लगते हैं। जिस कारण अनेक श्रमिक बेरोज़गार हो जाते हैं। इस प्रकार की बेरोज़गारी को चक्रीय बेरोज़गारी कहते हैं। विकसित देशों में इस प्रकार की बेरोज़गारी ज़्यादातर पायी जाती है।
9) प्रतिरोधात्मक बेरोज़गारी (Pratirodhatmak berojgari) -
विकास के साथ उद्योगों में, उत्पादन तकनीक में परिवर्तन होता है। नए उद्योग में नई तकनीक के आने से श्रमिकों को काम से हटा दिया जाता है। क्योंकि इसके लिए श्रमिकों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। ये श्रमिक प्रशिक्षण प्राप्त करके जब तक पुनः वापस काम पर नहीं लग जाते, तब तक बेरोज़गार रहते हैं। इस तरह की बेरोज़गारी को प्रतिरोधात्मक बेरोज़गारी या घर्षण जनित बेरोज़गारी कहा जाता है।
उम्मीद है आपने इस अंक में बेरोज़गारी किसे कहते हैं? (berojgari kise kahate hain?) भली भांति जान लिया होगा। साथ ही बेरोज़गारी के कितने प्रकार हैं? (berojgari ke kitne prakar hain?) निश्चित रूप से आसान भाषा में समझ लिया होगा। इसे आप अपने दोस्तों से ज़रूर शेयर कीजिए। आप अपनी प्रतिक्रिया कमेंट्स के माध्यम से हमें दे सकते हैं।
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