चक्रीय बेरोज़गारी क्या है, चक्रीय बेरोज़गारी क्या होती है, चक्रीय बेरोज़गारी को दूर करने का उपाय, चक्रीय बेरोज़गारी से बचने के उपाय, (Chakriya berojgari kya hoti hai, Chakriya Berojgari ko kaise dur liya jaye, Chakriya Berojgari ko dur kaise kare)
अर्थव्यवस्था में चक्रीय परिवर्तन होना एक सामान्य सी घटना है। चक्रीय उतार चढ़ाव के इस दौर में, कभी आर्थिक स्थिति में विस्तार या वृद्धि होती है। तो कभी संकुचन और मन्दी की स्थिति देखी जाती है। आर्थिक स्थिति में विस्तार के दौर में श्रम की माँग बढ़ती है, रोज़गार के अवसरों में वृद्धि होती है। तो वहीं मंदी या संकुचन के दौर में उत्पादन और रोज़गार कम हो जाता है।
अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार चढ़ाव के फलस्वरूप आर्थिक मंदी, उत्पादन में कमी, रोज़गार में कमी, सरकारी नीतियों का अप्रत्यक्ष प्रभाव आदि स्थितियों के कारण अर्थव्यवस्था में जिस तरह की बेरोज़गारी देखी जाती है उसे चक्रीय बेरोज़गारी (Cyclical unemployment) कहा जाता है।
सीधे और सरल शब्दों में कहा जाए तो "जब अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुज़र रही होती है तब लोगों के पास काम की कमी हो जाती है जिसके चलते वे बेरोज़गार हो जाते हैं।"
आइए इसे और भी स्पष्ट तौर पर जानते हैं कि चक्रीय बेरोज़गारी क्या है? इसे कैसे दूर किया जा सकता है (Chakriya berojgari kya hai? ise kaise dur kiya ja sakta hai?)
चक्रीय बेरोज़गारी (Cyclical Unemployment in hindi)
अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार चढ़ाव के कारण, जब अर्थव्यवस्था में समृद्धि का दौर होता है। तो उत्पादन में वृद्धि होती है और रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न होते हैं। किंतु जब मंदी का दौर आता है तब अर्थव्यवस्था में मांग तेज़ी से घटने लगती है। जिसके चलते कंपनिया उत्पादन कम कर देती हैं और श्रमिकों (कर्मचारियों) की छंटनी करना शुरू कर देती है। परिणामस्वरूप अनेक श्रमिक अचानक बेरोज़गार हो जाते हैं। इस बेरोज़गारी को चक्रीय बेरोज़गारी कहा जाता है।
चक्रीय बेरोज़गारी, मन्दी की स्थिति में उत्पन्न होती है। चूँकि इसका उपयुक्त कारण कीन्स ने स्पष्ट किया था, इसलिए इसे केन्जियन बेरोज़गारी (Keynesian Unemployment) भी कहा जाता है। कीन्स के अनुसार, राष्ट्र में निवेश के कम होने के कारण समग्र माँग के घट जाने से इस प्रकार की बेरोज़गारी उत्पन्न होती है। इसलिए इस प्रकार की बेरोजगारी को न्यून माँग द्वारा उत्पन्न बेरोज़गारी (Deficient Demand Unemployment) भी कहते हैं।
चक्रीय बेरोज़गारी को दूर करने के उपाय | How to tackle cyclical unemployment in hindi
चक्रीय बेरोज़गारी को दूर करने के उपाय (Chakriya Berojgari ko dur karne ke upay) निम्नलिखित हो सकते हैं -
1. सरकारी व्यय में वृद्धि -
सरकार सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके रोज़गार बढ़ा सकती है। सरकार सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए विभिन्न परियोजनाओं के अंतर्गत निवेश, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं आदि में निवेश कर सकती है। इस तरह सरकारी व्यय में वृद्धि से समस्त मांग में वृद्धि होगी जिससे आय और उत्पादन दोनों बढ़ेंगे। और श्रमिकों के लिए रोज़गार के नए अवसर भी उत्पन्न होंगे।
2. करों में कटौती -
करों (tax) में कटौती से लोगों के हाथ में पैसा बढ़ेगा जिससे उपभोग व्यय बढ़ेगा जिससे समस्त माँग में वृद्धि होगी। समस्त माँग में वृद्धि होने से उत्पादन बढ़ेगा। जिस कारण रोज़गार बढ़ेंगे। इसका प्रभाव यह होगा कि अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की अवस्था कुछ हद तक आने में मदद मिलेगी।
3. मुद्रा पूर्ति में वृद्धि -
चक्रीय बेरोज़गारी को दूर करने के लिए उचित मौद्रिक नीति के अंतर्गत केन्द्रीय बैंक द्वारा, मुद्रा पूर्ति में वृद्धि की जा सकती है। जिसके कारण व्यापारिक बैंकों में ब्याज़ दर घट सकती है। ब्याज़ दर के घटने से निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। निजी निवेश के बढ़ने से समस्त माँग में वृद्धि होगी जिससे उत्पादन तथा रोज़गार दोनों बढ़ेंगे।
4. ब्याज़ दरों में कटौती -
केंद्रीय बैंक द्वारा, ब्याज़ दरों में कटौती करके उधार लेने को प्रोत्साहित किया जा सकता है। अर्थात केंद्रीय बैंक, बैंकों को अधिक ऋण देकर बाज़ार में तरलता बढ़ा सकता है। इससे व्यापारिक बैंक जनता को आसानी से ऋण देकर निवेश के लिए प्रोत्साहित कर सकेंगे। इससे निवेश बढ़ेगा और मांग के कारण उत्पादन तथा रोज़गार में वृद्धि होगी।
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5. कौशल विकास कार्यक्रम -
बेरोज़गारों को नए कौशल सिखाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए ताकि वे प्रशिक्षित होकर नए सिरे से रोज़गार के योग्य बन सकें।
6. उद्योगों को प्रोत्साहन -
सरकार द्वारा नए उद्योग स्थापित करने के साथ साथ
मौजूदा उद्योगों का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके अलावा सरकार लघु एवं कुटीर उद्योगों को भी बढ़ावा देकर रोज़गार के अवसर पैदा कर सकती है। उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी और वित्तीय सहायता प्रदान कर ऐसी विपरीत परिस्थिति में सरकार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
7. निर्यात को बढ़ावा -
स्थानीय उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुंचाने में मदद करना भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण क़दम साबित हो सकता है। ऐसा करने से स्थानीय उत्पादों की मांग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ने से उत्पादन और रोज़गार। दोनों के लिए अवसर बढ़ सकते हैं।
8. शिक्षा और अनुसंधान में निवेश -
शिक्षा और अनुसंधान में निवेश करके मानव पूंजी का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार द्वारा विभिन्न अवसर प्रदान किए जाने चाहिए ताकि विद्यार्थी अलग अलग क्षेत्रों में मनचाही शिक्षा प्राप्त करने के साथ साथ नए अनुसंधान भी कर सकें। इससे देश में नई ऊर्जा एवं तकनीक से परिपूर्ण मानव पूंजी का निर्माण किया जाना संभव हो सकेगा। और यही विद्यार्थी (मानव पूंजी) आगे चलकर देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभा सकेंगे।
निष्कर्ष (Conclusion)
चक्रीय बेरोज़गारी को दूर करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। इसलिए राजकोषीय नीति, मौद्रिक नीति, श्रम बाज़ार सुधार, सामाजिक सुरक्षा और दीर्घकालिक रणनीतियों का संयोजन करके ही चक्रीय बेरोज़गारी को कम किया जा सकता है। चक्रीय बेरोज़गारी से निपटने के लिए इन सभी नीतियों का मक़सद, अर्थव्यवस्था में मांग और उत्पादन में सुधार लाना ही होता है।
अर्थात सरकार, उद्योगों और समाज के सामूहिक प्रयासों से ही यह संभव हो सकता है। हालांकि, इन उपायों को लागू करने में कई चुनौतियाँ भी हैं। लेकिन सरकार के प्रयासों के साथ साथ यदि राजनीतिक, सामाजिक दृढ़ इच्छाशक्ति का साथ हो तो किसी भी आर्थिक मंदी से उठकर अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करना कठिन तो हो सकता है किंतु असंभव नहीं।
उम्मीद है इस अंक के माध्यम से आप चक्रीय बेरोज़गारी का क्या अर्थ है? जान चुके होंगे। और साथ ही चक्रीय बेरोज़गारी को दूर करने के उपाय क्या हैं? भली भांति जान चुके होंगे। हम आशा करते हैं कि यह अंक आपके अध्ययन में अवश्य मददगार साबित होगा।
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