मुद्रा का प्रचलन वेग | What is the velocity of money in economics in hindi | मुद्रा के प्रचलन वेग को प्रभावित करने वाले कारक
किसी निश्चित समयावधि में किन्हीं वस्तुओं या सेवाओं को ख़रीदने में मुद्रा की किसी निश्चित मात्रा का औसतन जितनी बार प्रयोग होता है। उसे मुद्रा का प्रचलन वेग (mudra ka prachalan veg) कहा जाता है।
दरअसल मुद्रा का प्रचलन वेग एक ऐसा अंतर्जात तत्व है। जो मुद्रा की पूर्ति को प्रभावित करता है। यदि मुद्रा का प्रचलन वेग (mudra ka prachlan veg) बढ़ता है तो मुद्रा की पूर्ति में कमी होने पर भी बैंक साख में गिरावट नहीं आती है। इस अंक में हम मुद्रा के प्रचलन वेग का अर्थ एवं इसके निर्धारक तत्वों के बारे में अध्ययन करेंगे।
मुद्रा का प्रचलन वेग (Mudra ka prachalan veg)
मुद्रा के प्रचलन वेग से आशय यह है कि किसी समय में वस्तुओं एवं सेवाओं को ख़रीदने में मुद्रा की किसी निश्चित मात्रा का औसतन कितनी बार प्रयोग होता है? मुद्रा के प्रचलन वेग से तात्पर्य चलायमान मुद्रा से है, स्थिर मुद्रा से नहीं जो कि बैंकों, संस्थाओं या व्यक्तियों केे पास संचित रहती है।
मुद्रा की विभिन्न इकाइयां लेनदेन की प्रक्रिया में कई हाथों से गुज़रती है। इस प्रकार एक निश्चित अवधि में मुद्रा की एक इकाई, औसतन जितनी बार भुगतान के लिए प्रयोग की जाती है उसे उस मुद्रा का प्रचलन वेग (mudra ka prachalan veg) कहते हैं। आइए इसे हम एक उदाहरण द्वारा समझते हैं।
माना कि ₹10 के नोट का किसी निश्चित समय में वस्तुओं एवं सेवाओं की ख़रीदी के लिए भुगतान के रूप में 5 बार प्रयोग किया जाता है। तो हम यह कह सकते हैं कि ₹10 के नोट का प्रचलन वेग 5 है।
चूंकि मुद्रा की अलग अलग इकाइयां किसी निश्चत समय में विभिन्न सौदों को निपटाती हैं। यानि कि मुद्रा की विभिन्न इकाइयों का प्रचलन वेग अलग-अलग होता है। इसलिए मुद्रा की प्रत्येक इकाइयों के प्रचलन वेग का अध्ययन करने के बजाय अर्थव्यवस्था की समस्त मुद्रा के औसत प्रचलन वेग को लिया जाता है। जिसे V द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
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मुद्रा की पूर्ति ज्ञात करते समय उसके औसत प्रचलन वेग को ध्यान में रखना होता है। प्रचलन वेग बढ़ने तथा मुद्रा की पूर्ति में कमी होने पर भी मुद्रा की प्रभावपूर्ण पूर्ति (बैंक साख) में कमी नहीं आती है। आइए इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं।
माना कि मुद्रा की मात्रा ₹100 है। तथा
मुद्रा का प्रचलन वेग = 5 है। तो
मुद्रा की प्रभावपूर्ण आपूर्ति,
प्रभावपूर्ण आपूर्ति = M × V = MV
100 × 5 = ₹500
अब यदि मुद्रा की मात्रा घटकर ₹80 हो जाए तथा मुद्रा का प्रचलन वेग बढ़कर 8 हो जाए। तो मुद्रा की प्रभावपूर्ण आपूर्ति,
प्रभावपूर्ण आपूर्ति = M × V = MV
80 × 8 = ₹640
अतः स्पष्ट है कि भले ही मुद्रा की मात्रा (पूर्ति) में कमी हो जाए। किन्तु यदि मुद्रा का प्रचलन वेग बढ़ रहा हो, तब बैंक साख अर्थात मुद्रा की प्रभावपूर्ण पूर्ति (आपूर्ति) में गिरावट नहीं होती है।
मुद्रा के प्रचलन वेग को प्रभावित करने वाले तत्व (mudra ke prachalan veg ko prabhavit karne vale tatva)
सामान्य तौर पर देखें तो मुद्रा का प्रचलन वेग (mudra ka prachalan veg) स्वतंत्र नहीं होता है। इसे अनेक तत्व प्रभावित करते हैं। मुद्रा के प्रचलन वेग को प्रभावित करने वाले घटक निम्नलिखित हैं -
(1) मुद्रा की मात्रा -
देश में मुद्रा की मात्रा कम या अधिक होने से मुद्रा का प्रचलन वेग प्रभावित होता है। यदि देश में मुद्रा की मात्रा अधिक होती है तो मुद्रा का प्रचलन वेग कम हो जाता है क्योंकि मुद्रा की इकाइयों का बार बार प्रयोग नहीं होता है। इसके विपरीत जब मुद्रा की मात्रा कम हो तो मुद्रा का प्रचलन वेग बढ़ जाता है। क्योंकि तब विनिमय बल लिए मुद्रा की इकाइयों की आवश्यकता बार बार पड़ती है।
(2) बैंक तथा अन्य साख संस्थाओं का विकास -
ऐसे देश जहां बैंकिग या अन्य संस्थाओं का विकास अपेक्षाकृत अधिक होता है। वहां पर मुद्रा का प्रचलन वेग अपेक्षाकृत अधिक होता है। क्योंकि वहां विनिमय और व्यय करने की की गति में तेज़ी आ जाती है। इसके विपरीत यदि बैंकिंग व अन्य साख व्यवस्था ठीक न हों तो मुद्रा का प्रचलन वेग कम हो जाता है।
(3) भुगतान की रीति और अवधि -
ऐसा स्थान जहां पर ढेर सारे मज़दूर काम करते हों और जहां मज़दूरी का भुगतान नकद एवं जल्दी जल्दी किया जाता हो। वहां पर मुद्रा का प्रचलन वेग अधिक होता है। इसके विपरीत दशा में मुद्रा का प्रचलन वेग धीमा हो जाता है।
(4) उपभोग तथा बचत की आदत -
मुद्रा का प्रचलन वेग तब अधिक हो जाता है जब समाज में उपभोग की आदत अधिक तथा बचत करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है। इसके विपरीत अधिक बचत एवं कम उपभोग की आदत बन जाने पर मुद्रा का प्रचलन वेग कम हो जाता है।
(5) देश का तेज़ी से आर्थिक विकास -
जब किसी देश में आर्थिक विकास की लहर तेज़ी से चलने लगती है तब उस देश के अंदर आर्थिक क्रियाओं में तेज़ी आने लगती है। परिणास्वरूप मुद्रा का प्रचलन वेग बढ़ने लगता है।
(6) मूल्यों में परिवर्तन की संभावना -
मुद्रा का प्रचलन वेग तब अत्यधिक हो जाता है जब भविष्य में वस्तुओं की क़ीमतों में वृद्धि होने की संभावना हो। ऐसी स्थिति में लोग तात्कालिक क़ीमतों पर अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं का क्रय करने लगते हैं। जिस कारण एकाएक मुद्रा का प्रचलन वेग बढ़ जाता है। इसके विपरीत वस्तुओं की क़ीमतों में गिरावट की संभावना होने पर लोगों में क्रय करने की क्रिया धीमी पड़ जाती है जिस कारण मुद्रा का प्रचलन वेग कम हो जाता है।
(7) तरलता पसंदगी की मात्रा -
यदि लोगों में तरलता पसंदगी बढ़ती है अर्थात लोगों में मुद्रा को नकद के रूप में रखने की इच्छा बढ़ती है। तब मुद्रा प्रचलन वेग कम होने लगता है। इसके विपरीत यदि लोगों। में तरलता पसंदगी कम हो जाए तो मुद्रा के प्रचलन वेग में कमी आने लगती है।
(8) उधार की सुविधा -
यदि अर्थव्यवस्था में लेन देन की प्रक्रिया उधारी के रूप में होने लगे तब अधिकांश सौदे मुद्रा के बिना ही संपन्न होने लगते हैं। परिणास्वरूप मुद्रा का प्रचलन वेग कम हो जाता है। ठीक इसके विपरीत व्यापारिक लेन देन नकदी होने लगे, तो मुद्रा का प्रचलन वेग बढ़ जाता है।
उम्मीद है हमारा यह अंक "अर्थशास्त्र में मुद्रा का प्रचलन वेग क्या है? | what is the velocity of money in hindi आपके अध्ययन में अवश्य ही सहायक साबित होगा। ऐसे ही अर्थशास्त्र के महत्वपूर्ण टॉपिक्स पढ़ने के लिए बने रहिए हमारी वेबसाइट StudyBoosting के साथ।
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