जे. बी. से का बाज़ार नियम समझाइए | से का बाज़ार नियम का अर्थ - मान्यताएं अथवा विशेषताएं एवं आलोचनाएं।
परंपरावादी (प्रतिष्ठित) अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गई पूर्ण रोज़गार की धारणा फ्रांसीसी अर्थशास्त्री जे. बी. से के बाज़ार नियम पर आधारित है। जे. बी. से के बाज़ार नियम के अन्तर्गत यह माना गया है कि उत्पादन ही वस्तुओं के लिए बाज़ार तैयार करता है।
जहां उत्पादन ही अपने लिए मांग उत्पन्न कर लेता है। जिस अनुपात में पूर्ति बढ़ती या घटती है। ठीक उसी अनुपात में उत्पादन के साधनों की क्रय शक्ति एवं मांग भी बढ़ती घटती है। इस प्रकार कुल पूर्ति तथा कुल मांग सदैव एक दूसरे के बराबर होते हैं।
जे. बी. से के अनुसार - "पूर्ति सदैव अपनी मांग स्वयं उत्पन्न करती है।"
यदि 'से का बाज़ार नियम (Se Ka Bazar Niyam)' को आसान भाषा में समझा जाए तो अर्थव्यवस्था में जब किसी भी वस्तु का उत्पादन किया जाता है। तो उत्पादन के फलस्वरूप कुछ साधनों को रोज़गार प्राप्त होता है। जिन्हें आय के रूप में मज़दूरी, ब्याज़ तथा लाभ की प्राप्ति होती है। जिसके फलस्वरूप उनमें क्रय शक्ति का सृजन होता है। जिसका परिणाम यह होता है कि उत्पादित माल स्वतः ही बिक जाता है।
दूसरों शब्दों में कहा जाए तो जितना उत्पादन किया जाता है, स्वयमेव ही उस उत्पादन की मांग उत्पन्न हो जाती है। इस कारण अर्थव्यवस्था में अति उत्पादन या न्यून उत्पादन की स्थिति निर्मित ही नहीं हो पाती। वास्तव में यह सिद्धांत इस मान्यता पर आधारित है कि अर्थव्यवस्था में साधनों को जो आय प्राप्त होती है वह सभी उपभोग एवं विनिमय पर व्यय कर दी जाती है। अतः कुल पूर्ति सदैव कुल मांग के बराबर रहती है।
‘से’ के बाजार नियम की मान्यताएं
'से' का बाज़ार नियम की मान्यताएं निम्नलिखित हैं -
(1) से का बाजार नियम इस मान्यता पर आधारित है कि बाज़ार में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है।
(2) कीमतों, मज़दूरी तथा ब्याज़ की दर में लोचशीलता पाई जाती है अर्थात् आवश्यकतानुसार परिवर्तन किये जा सकते हैं।
(3) मुद्रा केवल एक आवरण मात्र है। इसका आर्थिक क्रियाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(4) सारी मुद्रा ख़र्च कर दी जाती है अर्थात् किसी प्रकार का संचय नहीं किया जाता है।
(5) आर्थिक क्रियाओं में सरकार की ओर से किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होता है।
(6) बाज़ार का आकार सामान्य न होकर विस्तृत होता है।
(7) से का बाज़ार नियम दीर्घकाल में ही लागू होता है।
(2) कीमतों, मज़दूरी तथा ब्याज़ की दर में लोचशीलता पाई जाती है अर्थात् आवश्यकतानुसार परिवर्तन किये जा सकते हैं।
(3) मुद्रा केवल एक आवरण मात्र है। इसका आर्थिक क्रियाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(4) सारी मुद्रा ख़र्च कर दी जाती है अर्थात् किसी प्रकार का संचय नहीं किया जाता है।
(5) आर्थिक क्रियाओं में सरकार की ओर से किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होता है।
(6) बाज़ार का आकार सामान्य न होकर विस्तृत होता है।
(7) से का बाज़ार नियम दीर्घकाल में ही लागू होता है।
यह भी मान्यता है कि उत्पादन, उपभोक्ताओं की पसन्द के अनुसार ही किया जाता है। ताकि जितना भी उत्पादन होता है वह अवश्य ही ख़रीद लिया जाए। किन्तु से के बाज़ार नियम की मान्यताएं, वास्तविक जीवन के लिए असंभव प्रतीत होती है। आइए 'से' के बाज़ार नियम की प्रमुख आलोचनाएं क्या है? जानते हैं।
‘से’ के बाजार नियम की आलोचनाएं
से के बाज़ार नियम इसकी प्रमुख आलोचनाएं निम्न हैं -
(1) से बाज़ार नियम पूर्ण रोज़गार की मान्यता पर आधारित है। जबकि वास्तविक जीवन में ऐसी स्थिति असंभव है।
(2) से के बाजार नियम की यह धारणा भी गलत है कि अर्थव्यवस्था में स्वत: समन्वय आ जाता है।
(3) से के बाज़ार में बचत और निवेश में सन्तुलन की धारणा भी ग़लत है। कींस के अनुसार बचत और निवेश में समानता, ब्याज़ की दर में परिवर्तन होने के कारण नहीं आती बल्कि आय के स्तर में परिवर्तन होने के कारण आती है।
(4) इस नियम में मान्यता है कि मुद्रा केवल विनियम का माध्यम होती है। जबकि मुद्रा केवल विनिमय का माध्यम न होकर, धन संचय का साधन भी है।
(5) से के बाज़ार नियम के अन्तर्गत यह मान्यता है कि
आर्थिक क्रियाओं में सरकार की ओर से किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होता। जबकि सरकार को आवश्यक रूप से आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करके समन्वय स्थापित करना चाहिए।
(6) से का बाज़ार नियम दीर्घकालीन दृष्टिकोण पर आधारित है। जिस कारण यह अल्पकालीन समस्याओं को सुलझाने में असमर्थ है।
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अर्थशास्त्र