व्यापारिक बैंक क्या है? व्यापारिक बैंकों का महत्व | vyaparik bank ka mahatva bataiye
बैंक अथवा व्यापारिक बैंक का तात्पर्य उन बैंकों से होता है जिनकी स्थापना भारतीय कंपनी अधिनियम के अंतर्गत की गई है और जो सभी साधारण बैंकिंग कार्यों को सम्पन्न करते हैं। अर्थात सीधे शब्दों में कहा जाए तो बैंक या व्यापारिक बैंक किसी ऐसे व्यक्ति अथवा संस्था को कहा जा सकता है जिसका प्रमुख कार्य मुद्रा तथा साख में व्यवहार करना होता है। बैंक या व्यापारिक बैंक का अर्थ, परिभाषा व कार्य क्या हैं?
बैंक हमारे जीवन में अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बैंकों के कार्यों को ध्यान में रखते हुए हम व्यापारिक बैंकों को कुछ इस तरह परिभाषित कर सकते हैं कि-
"बैंक एक ऐसी संस्था है जो मुद्रा का व्यवसाय करती है। यह एक ऐसा प्रतिष्ठान है जहाँ धन का जमा होना, संरक्षण तथा निर्गमन होना पाया जाता है। यहाँ ऋण तथा कटौती की सुविधाएँ भी प्रदान की जाती हैं। साथ ही धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने का प्रबंध भी सुरक्षात्मक ढंग से किया जाता है।"
बैंकों के महत्व की बात करें तो सचमुच इन बैंकों के बिना व्यापार, भुगतान, बचत, हस्तांतरण, सुरक्षा और किसी भी निवेश के लिए उपयुक्त सहायता के बारे में सोचना एक स्वप्न की तरह है। बैंक के माध्यम से ही हमारी इन सभी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति संभव हो पाती है।
बैंकों के महत्व समस्त अर्थव्यवस्था के लिए विशेष मायने रखते हैं। इसलिए भारत के विकास में बैंकों का महत्व जानना अत्यंत आवश्यक है। भारत में बैंकों का महत्व (bharat me banko ka mahatva) क्या है? Vyaparik bank ka mahatva आइये जानते हैं।
व्यापारिक बैंकों का महत्व (Importance of Commercial Banks in hindi)
आधुनिक समय में बैंक समाज के सम्पूर्ण आर्थिक विकास की आधारशिला है। सीधे तौर पर कहा जाए तो आज की अर्थव्यवस्था में बैंकों का स्थान अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। बैंक ही होते है जो मुद्रा की माँग व पूर्ति में सामंजस्य स्थापित कर आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। बैंकों का महत्व आधुनिक समय में निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट होता है-
(1) व्यापार एवं उद्योगों में मदद
कोई भी उद्योगपति या व्यापारी कितना ही बड़ा क्यों न हो। वह अकेले दम पर अपने व्यापार व उत्पादन संबंधी ज़रूरतों को पूरी करने में सक्षम नहीं हो सकता। उन्हें अपने व्यापार का विकास करने या अपने उत्पादन में वृद्धि करने के लिए नित नई-नई तकनीकों व यंत्रों की आवश्यकता होती है। और ये नई तकनीकों और यंत्रों की व्यवस्था अतिरिक्त पूँजी के बिना संभव नहीं हो सकती।
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ऐसे समय में बैंक ही इन व्यापारियों व उद्योगपतियों को ऋण प्रदान करते हैं। दरअसल बैंक समाज की अतिरिक्त आय को बचतकर्ताओं से एकत्रित करके इस प्रकार के विनियोगकर्ताओं के लिए ऋण उपलब्ध कराते हैं। इस तरह ये व्यापारिक बैंक या वाणिज्यिक बैंक उद्योग व व्यापार के क्षेत्र में आधारभूत भूमिका अदा करते हैं। banking ka mahatva प्रमुखतः यही है।
(2) भुगतान करने की सुविधा
बैंकों के द्वारा बड़े-बड़े भुगतान करना बहुत आसान हो जाता है। बैंकों की वजह से ही आज चेकों और ड्रॉफ्टों द्वारा धन को एक जगह से दूसरे जगह तक भेजना आसान हो सका है। चेक द्वारा भुगतान करने में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें राशि को गिनने की आवश्यकता नहीं होती और ना हि किसी प्रकार की असुरक्षा बनी रहती है। बैंकों की इस लाजवाब सुविधा के चलते ही आज देश व विदेशी व्यापार में इतना विकास हुआ है।
(3) बचतों का उत्पादन कार्यों में उपयोग
बैंकों की एक ख़ासियत होती है कि ये देश की छोटी व बड़ी बचतों को संग्रहित (stored) करते हैं। इस तरह ये समाज के एक हिस्से की अतिरिक्त राशि को उस स्थान में भेजते हैं जहाँ पूँजी की कमी है। यानि कि जहाँ के स्थान अपेक्षाकृत पिछड़े हुए हैं।
समाज के एक हिस्से की अतिरिक्त राशि का उपयोग वित्तीय कार्यों में विनियोग के रूप में उपयोग तथा दूसरी ओर व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योगों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। इस तरह देश में उत्पादन बढ़ता है और देश के के अंदर संतुलित विकास में मदद मिलती है।
(4) साख का सृजन
साख का सृजन व्यापारिक बैंकों के प्रमुख कार्यों में से एक है। जमाओं पर ऋण देकर बैंक, साख का सृजन करते हैं।चूँकि लोग बैंकों में अपनी जमाओं को रखते हैं। साथ ही ज़्यादातर भुगतान भी चेकों के द्वारा ही करते हैं। जिस कारण बैंक, साख का सृजन कर पाते हैं। इस प्रक्रिया से विनियोग को प्रोत्साहन मिलता है और उत्पादन में वृद्धि संभव हो होती है।
(5) पूँजी संचय को प्रोत्साहन
इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश में बैंकों के आने से जनता में बैंकिंग आदत को बढ़ावा मिला है। बैंकों का महत्व काफ़ी बढ़ गया है। अब लोग अपनी बचतों को बैंकों में जमा करने में रुचि लेते हैं। जिस कारण पूँजी संचय को प्रोत्साहन मिलता है। अधिक कार्य करने की आदत और बचत करने की भावना का विकास होता है। बैंकों को जनता की इन्हीं बचतों को एकत्रित कर उत्पादकीय कार्यों के लिए ऋण प्रदान करने में आसानी होती है।
(6) पूँजी का समुचित वितरण
बैंकों ने जनता के बीच पूँजी का समुचित वितरण करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दरअसल बैंक ऐसे अधिक पूँजी वाले स्थानों से पूँजी एकत्रित करके कम पूँजी वाले स्थानों यानि कि पिछड़े क्षेत्रों में भेजने का कार्य करते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो पूँजीपतियों की बचतों को पिछड़े क्षेत्रों में ऋण देकर उनका विकास करने में अपनी सहायक भूमिका निभाते हैं।
(7) मुद्रा का हस्तांतरण
आर्थिक विकास के लिए मुद्रा अथवा पूँजी का एक स्थान से दूसरे स्थान को हस्तांतरित होना आवश्यक माना जाता है। पूँजी के हस्तांतरण से ही विकास की गति का तीव्र होना संभव होता है। बैंक बड़ी ही आसानी और सुरक्षा के साथ मुद्रा के इस हस्तांतरण के लिए सुविधा प्रदान करते हैं। यह सुविधा अधिक मितव्ययी होती है।
(8) मुद्रा प्रणाली में लोच
बैंक ही एक ऐसा उपक्रम है जो उद्योग एवं व्यापार के अधिक संपर्क में होता है। बैंक को ही देश के उद्योग एवं व्यापार की मौद्रिक इकाई अथवा मुद्रा की माँग के संबंध में विस्तृत जानकारी होती है। चूँकि वर्तमान में मुद्रा का निर्गमन केंद्रीय बैंक करता है। बैंक आवश्यकतानुसार मुद्रा की पूर्ति कमी या वृद्धि करके देश की अर्थव्यवस्था में लोच उत्पन्न करते हैं तथा देश के मौद्रिक प्रबंध को लोचदार बनाते हैं।
(9) धन की सुरक्षा
बैंक अपने ग्राहकों के अतिरिक्त धन को सुरक्षित रखने के साथ-साथ उनके द्वारा धन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए सुरक्षा प्रदान करते हैं। बैंक इसके अतिरिक्त लॉकर की सुविधा भी प्रदान करता है जिसमें आप अपनी बहुमूल्य वस्तुओं को पूरी सुरक्षा के साथ रख सकते हैं।
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(10) सरकार को मदद
बैंकों द्वारा सरकार को अनेक सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। सरकारी ऋणों का निर्गमन एवं विक्रय भी इन्हीं बैंकों द्वारा ही किया जाता है। सरकारी करों व अन्य भुगतानों की प्राप्ति का कार्य भी बैंक ही करते हैं।
उम्मीद है इस अंक "बैंक का महत्व (bank ka mahatva) में आपको भारत में बैंक की भूमिका क्या है? व्यापारिक बैंक का महत्व क्या है? सरल व स्पष्ट भाषा में अवश्य समझ आया होगा। वाणिज्यिक बैंक के महत्व को आप अपने दोस्तों से ज़रूर शेयर करें। आप अपनी प्रतिक्रिया comments box में दे सकते हैं।
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