सामान्य मूल्य किसे कहते हैं? इसकी विशेषताएँ बताइए | Arthashatra me normal price kya hota hai?

सामान्य मूल्य- अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएँ | सामान्य मूल्य का निर्धारण




सामान्य मूल्य किसी वस्तु का वह मूल्य है जो वस्तु की माँग पूर्ति की दीर्घकालीन स्थायी शक्तियों द्वारा तय किया जाता है। दीर्घकाल में इतना पर्याप्त समय होता है कि बाज़ार में वस्तुओं की पूर्ति को परिवर्तित करने के लिए प्लांट में वृद्धि या कमी की जा सकती है। 

इसके लिए नयी फर्मों को उद्योग में प्रवेश दिया जा सकता है तथा पुरानी अकुशल फर्मों को उद्योग के बाहर भी निकाला जा सकता है। आइये इस अंक में हम सामान्य मूल्य से क्या आशय है (samanya mulya se kya aashay hai?) आसान भाषा में समझने का प्रयास करते हैं।

आपने देखा होगा कि बड़े यानि कि दीर्घकालिक बाज़ार में कुछ वस्तुओं के मूल्य लंबे समय तक स्थायी ही रहते हैं। या उनकी क़ीमतों में नाम मात्र का परिवर्तन होता है। चूँकि दीर्घकाल में वस्तु की पूर्ति को माँग के अनुरूप किया जा सकता है। इसके लिए पूर्ति को बढ़ाकर या घटाकर माँग के अनुरूप किया जा सकता है। दीर्घकालिक प्रवृत्ति के कारण सामान्य मूल्य को स्थायी मूल्य भी कहा जाता है। यह स्थायी मूल्य की तरह कार्य करता है।

अतः हम स्पष्ट तौर पर कह सकते हैं कि 'सामान्य मूल्य, उस दीर्घकालीन मूल्य (क़ीमत) को कहा जाता है जो वस्तु की माँग व पूर्ति की स्थायी शक्तियों द्वारा निर्धारित किया जाता है।'


सामान्य मूल्य क्या है (Samanya mulya kya hai) | samanya kimat kya hai?

सामान्य मूल्य (क़ीमत) वह दीर्घकालीन मूल्य होता है जो माँग और पूर्ति के स्थायी साम्य द्वारा निर्धारित होता है। दीर्घकाल में उत्पादक के पास वस्तु की पूर्ति में परिवर्तन करने का पर्याप्त समय रहता है। वह बाज़ार में किसी वस्तु की माँग को ध्यान में रखते हुए, प्लांट की क्षमता में ज़रूरत के हिसाब से परिवर्तन कर सकता है। 

वह चाहे तो नए प्लांट लगा सकता है। उत्पादन की नयी-नयी तकनीक अपना सकता है या कच्चे माल के नये स्रोतों की खोज कर सकता है।

मार्शल के अनुसार - "सामान्य मूल्य, किसी वस्तु का वह मूल्य कहलाता है जो बाज़ार की स्थायी शक्तियों द्वारा दीर्घकाल में निर्धारित किया जाता है। इस मूल्य पर माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव होता है।"

वैसे तो सामान्य मूल्य को काल्पनिक मूल्य भी कहा जाता है। दरअसल सामान्य मूल्य (samanya mulya) यथार्थ में कभी देखने नहीं मिलता। क्योंकि आजकल माँग और पूर्ति में विघ्नकारक तत्व निरंतर कार्य कर रहे होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि जिस दीर्घकाल की हम आशा करते हैं वह कभी नहीं आता, बल्कि आगे की ओर निरंतर खिसकता रहता है। 

हालांकि सामान्य मूल्य भले ही काल्पनिक मूल्य कहलाता हो, किंतु इसकी एक वास्तविकता होती है। वह यह कि इसके इर्द गिर्द बाज़ार मूल्य चक्कर लगाता रहता है। सीधे शब्दों में कहें तो यह बाज़ार मूल्य के केंद्र बिंदु की तरह कार्य करता है।



सामान्य मूल्य का निर्धारण (Samanya Mulya ka nirdharan)

सामान्य मूल्य के निर्धारण में माँग की अपेक्षा पूर्ति अधिक प्रभावशील होती है। यह अधिक सक्रिय भूमिका निभाती है। सामान्य मूल्य (samanya mulya) स्थिर रहता है अर्थात बार-बार परिवर्तित नहीं किया जाता।

दीर्घकाल में पूर्ति में समायोजन करने हेतु नये उत्पादक भी बाज़ार में प्रवेश कर सकते हैं। या पुराने उत्पादक बाज़ार से बाहर जा सकते हैं। अतः सामान्य मूल्य के निर्धारण (samanya kimat ka nirdharan) में वस्तु की पूर्ति या उत्पादन लागत की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।

सामान्य मूल्य केवल पुनरुत्पादकीय वस्तुओं का होता है। क्योंकि पूर्ति को माँग के अनुरूप तभी किया जा सकता है जब वस्तुएं पुनरुत्पादकीय हो। यानि कि माँग को देखते हुए वस्तुओं का उत्पादन फ़िर से किया जा सकता हो।

निरुत्पादकीय वस्तुओं की पूर्ति तो बेलोच होगी। क्योंकि ऐसी वस्तुओं की पूर्ति को परिवर्तित करना असंभव है। इन वस्तुओं को पुनः उत्पादित नहीं किया जा सकता है।


सामान्य मूल्य की विशेषताएँ (Samanya Mulya ki Visheshataen)

दीर्घ समयावधि के अंतर्गत आने वाले बाज़ार में वस्तुओं के सामान्य मूल्य की विशेषताएँ (samanya kimat ki visheshtaen) निम्नलिखित होती हैं-

1) सामान्य मूल्य दीर्घकालीन मूल्य होता है।
2) सामान्य मूल्य माँग एवं पूर्ति के स्थायी संतुलन का परिणाम होता है।
3) सामान्य मूल्य स्थायी होता है। इसमे बाज़ार मूल्य की तरह परिवर्तन नहीं होते हैं।
4) सामान्य मूल्य के निर्धारण में माँग की अपेक्षा, पूर्ति का अधिक महत्व होता है।
5) सामान्य मूल्य वह केंद्र है, जिसके चारों ओर बाज़ार मूल्य घूमता रहता है।
6) सामान्य मूल्य उत्पादन लागत के बराबर होता है।
7) सामान्य मूल्य दीर्घकाल में ही संभव होता है। इसे अल्पकाल में निर्धारित नहीं किया जा सकता।
8) सामान्य मूल्य काल्पनिक होता है। क्योंकि यह व्यवहारिक जीवन में असंभव है।
9) पुनरुत्पादनीय वस्तुओं का ही सामान्य मूल्य निर्धारित होता है। क्योंकि ऐसी वस्तुओं की पूर्ति को परिवर्तित करना संभव होता है।

इस अंक में आपने सामान्य मूल्य क्या होता है (Samanya mulya kya hota hai?) | सामान्य मूल्य की प्रमुख विशेषताएँ (Characteristics of normal price in hindi) को सरल व स्पष्ट शब्दों में जाना। उम्मीद है यह लेख आपके अध्ययन में अवश्य ही सहायक साबित होगा। 

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