उत्पादक (फर्म) का संतुलन | फर्म के संतुलन की शर्तें, मान्यताएं एवं विशेषताएं | Firm ka santulan kya hai?
साधारण शब्दों में साम्य अथवा संतुलन का अर्थ होता है 'परवर्तन की अनुपस्थिति' यानि कि ऐसी स्थिति जिसमें परिवर्तन का अभाव हो। इस अंक में हम फर्म का संतुलन क्या हैं? इसकी शर्तें एवं मान्यताएं क्या हैं? जानेंगे।
फर्म के साम्य या फर्म के संतुलन से आशय (firm ke santulan se aashay) होता है एक ऐसी अवस्था जिसमें परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति ही नहीं पायी जाती है। सामान्यतः किसी फर्म के साम्य के आधार पर फर्म के द्वारा वस्तु के मूल्य निर्धारण एवं उत्पादन की मात्रा का निर्धारण किया जाता है।
साम्य अवस्था की बात करें तो यह साम्यावस्था में उत्पादन की मात्रा में कमी या वृद्धि से फर्म का कोई संबंध नहीं होता है। यही कारण है कि इस अवस्था में फर्म को सबसे अधिक लाभ प्राप्त होता है। अर्थात वह बिंदु अथवा अवस्था, जिस पर कोई फर्म अधिकतम लाभ कमा रही हो। उसे उस उस फर्म का संतुलन बिंदु कहा जाता है। तथा उस अवस्था को उस फर्म का संतुलन (firm ka santulan) कहा जाता है।
हैन्सन के अनुसार - 'उत्पादक उस समय संतुलन में होगा जब उत्पादन में कमी या वृद्धि करना लाभदायक नहीं होगा।'
मैकोनल के अनुसार - 'अल्पकाल में एक फर्म उस समय संतुलन में होती है। जब वह उतनी मात्रा का उत्पादन करती है जिस पर वह अधिकतम लाभ प्राप्त कर सके।'
फर्म के संतुलन की विशेषताएं | firm ke santulan ki visheshtayen
फर्म के संतुलन की अवस्था की विशेषताएं निम्नलिखित हैं -
(1) वस्तु की क़ीमत या उत्पादन की मात्रा का स्थिर होना - संतुलन की स्थिति में फर्म अपनी वस्तु की क़ीमत या वस्तु के उत्पादन की मात्रा, दोनों में किसी भी प्रकार। कालू परिवर्तन नहीं करती है। अर्थात वस्तु की क़ीमत या मात्रा में स्थिरता पाई जाती है।
(2) अधिकतम लाभ प्राप्त करना - कोई भी फर्म अपने संतुलन की स्थिति में अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहती है। इसके लिए वह कोई भी जोख़िम नहीं उठाना चाहती है।
(3) उत्पादन लागत का न्यूनतम होना - फर्म के संतुलन की अवस्था में फर्म की उत्पादन लागत के न्यूनतम होने की संभावना अधिक होती है। उत्पादन लागत न्यूनतम होने से लाभ की मात्रा बढ़ जाती है।
(4) कुल लागत, कुल आगम एवं सीमांत विश्लेषण रीति का प्रयोग - फर्म की साम्यावस्था, कुल लागत व कुल आगम तथा सीमांत विश्लेषण रीति का प्रयोग करके प्राप्त की जा सकती है। फर्म की साम्य अवस्था में उत्पादित वस्तु मात्रा एवं क़ीमत निर्धारण में कोई अंतर नहीं होता है।
फर्म के संतुलन की मान्यताएं | Firm ke santulan ki manyata in hindi
फर्म के संतुलन की मान्यताएं (firm ke santulan ki manyatayen) निम्नलिखित हैं -
1) फर्म के सिद्धांत के अनुसार यह मान लिया जाता है कि उत्पादक का व्यवहार विवेकपूर्ण होता है। प्रत्येक उत्पादक अधिक से अधिक मौद्रिक लाभ अर्जित करने का प्रयत्न करते हैं।
2) उद्यमकर्ता प्रत्येक उपज को उत्पादन की एक डी हुई तकनीकी दशाओं में कम से कम लागत पर पैदा करने का प्रयत्न करता है।
3) एक फर्म द्वारा एक वस्तु उत्पादन किया जाता है।
4) प्रत्येक उत्पत्ति के साधन की क़ीमत दी हुई होती है। तथा निश्चित होती है।
फर्म के संतुलन की शर्तें | firm ke santulan ki shartein
उत्पादक के संतुलन की शर्तें (Conditions of firm's equilibrium in hindi) निम्नलिखित हैं -
1) प्रत्येक फर्म अपने मौद्रिक लाभ को अधिकतम करने प्रयासरत रहती है।
2) न्यूनतम लागत पर, उत्पत्ति के साधनों का अधिकतम उपयोग करते हुए अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जाता है।
3) फर्म के संतुलन के अन्तर्गत, उत्पादक द्वारा एक वस्तु का उत्पादन किया जाना संभव होता है।
4) प्रत्येक साधन की क़ीमत स्थिर होती है क्योंकि उत्पत्ति के प्रत्येक साधन की पूर्ति पूर्णतः लोचदार होती है।
5) ऐसा माना जाता है कि उत्पत्ति के साधनों में समान कार्यकुशलता होती है।
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