सूखा आपदा क्या है? सूखा पड़ने के कारण, प्रभाव एवं बचने के उपाय, सूखा पड़ने के मुख्य कारण क्या हैं? (Drought : meaning, types of drought, reasons, effects and protection in hindi, What are the causes of drought in hindi, How can drought be prevented in hindi)
सूखा एक प्राकृतिक आपदा है। जिसमें किसी विशेष क्षेत्र में औसत से कम वर्षा होने के कारण उस क्षेत्र विशेष में पानी की कमी (water shortage) हो जाती है। सामान्य से कम वर्षा होने के कारण उस क्षेत्र में मिट्टी, नदी, जलाशय, झील आदि में जल का स्तर गिर जाता है।
इस स्थिति का नकारात्मक प्रभाव उत्पादन, पशुपालन. कृषि पर पड़ता है। साथ ही पीने के पानी की किल्लत भी बढ़ जाती है। इस अंक में हम सूखा किसे कहते हैं? यह जानते हुए इसके प्रकार, कारण व सूखे से बचने के उपायों पर चर्चा करने वाले हैं। तो चलिए जानते हैं कि सूखा का तात्पर्य क्या है?
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सूखा क्या है? (What is drought in hindi)
सूखा (Drought) ऐसी स्थिति को कहा जाता है जहां जल की भारी कमी हो जाती है। एक लंबे समय तक कम वर्षा, अत्यधिक वाष्पीकरण होने और जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग किए जाने के कारण भूतल पर जल की कमी अत्यधिक कमी हो जाती है। जिसका सीधा-सीधा असर पेयजल, कृषि, उद्योग और पारिस्थितिकीय तंत्र पर पड़ता है।
दअरसल कई हफ़्तों या सालों तक सामान्य से कम बारिश होने के कारण जलप्रवाह कम हो जाता है, साथ ही झीलों और जलाशयों का पानी भी कम हो जाता है। कुओं से भी पानी गायब हो जाता है। मौसम शुष्क बना रहता है और पानी की आपूर्ति में भारी समस्या उत्पन्न हो जाती हैं।
सूखा के प्रकार (Types of drought in hindi)
सूखे के प्रकार को हम निम्न प्रकारों के रूप में देख सकते हैं -
1. मौसम संबंधी सूखा (Meteorological drought)
यह एक ऐसी स्थिति है जिसके अंतर्गत लंबे समय तक पर्याप्त वर्षा नहीं हो पाती है। जिस कारण सामयिक और स्थानिक स्तर पर जल का संतुलन बुरी तरह बिगड़ जाता है।
2. कृषि सूखा (Agricultural drought)
इसे भूमि आर्द्रता सूखा भी कहा जाता है। मिट्टी में आर्द्रता को कमी के कारण फसलें मुरझा जाती हैं। जिन क्षेत्रों में 30% से अधिक कुल बोए गए क्षेत्र में सिंचाई होती है, उन्हें भी सूखा प्रभावित क्षेत्र नहीं माना जाता।
3. जल विज्ञान संबंधी सूखा (Hydrological drought)
यह स्थिति तब पैदा होती है जब विभिन्न जल संग्रहण, जलाशय, जलभूत और झीलों इत्यादि का स्तर वृष्टि द्वारा की जाने वाली जलापूर्ति के बाद भी नीचे गिर जाता है।
4. पारिस्थितिक सूखा (Ecological drought)
पारिस्थितिक सूखा एक ऐसी अवस्था को कहा जाता है जहां प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में जल की भारी कमी से उत्पादकता घट जाती है जिस कारण पारिस्थितिक तंत्र पूरी तरह तनाव में आ जाता है जाता है।
भारत में सूखा ग्रस्त क्षेत्र (Drought prone areas in india)
भारतीय कृषि काफ़ी हद तक मानसून पर निर्भर करती रही है। भारतीय जलवायु तंत्र में सूखा और बाढ़ महत्त्वपूर्ण तत्व हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 19 प्रतिशत भाग और जनसंख्या का 12 प्रतिशत हिस्सा हर वर्ष सूखे से प्रभावित होता है। देश का लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र सूखे से प्रभावित होता है जिससे 5 करोड़ लोग इससे प्रभावित होते हैं। यह प्रायः देखा गया है कि जब देश के कुछ भागों में बाढ़ कहर ढा रही होती है, उसी समय दूसरे भाग सूखे से जूझ रहे होते हैं।
यह मानसून में परिवर्तनशीलता और इसके व्यवहार में अनिश्चितता का परिणाम है। सूखे का प्रभाव भारत में बहुत व्यापक है, परंतु कुछ क्षेत्र जहाँ ये बार-बार पड़ते हैं और जहाँ उनका असर अधिक है सूखे की तीव्रता के आधार पर निम्नलिखित क्षेत्रों में बाँटा गया है।
1. अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र
राजस्थान में ज़्यादातर भाग, विशेषकर अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित है। इसमें राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिले भी शामिल हैं, जहाँ 90 मिलीलीटर से भी कम औसत वार्षिक वर्षा होती है।
2. अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र
अधिक सूखे क्षेत्र के अंतर्गत राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के ज़्यादातर भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आंध्र प्रदेश के अंदरूनी भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, झारखंड का दक्षिणी भाग और ओडिशा का आंतरिक भाग शामिल है।
3. मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र
मध्यम सूखे क्षेत्र के अंतर्गत राजस्थान के उत्तरी भाग, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, गुजरात के बचे हुए जिले, कोंकण को छोड़कर महाराष्ट्र, झारखंड, तमिलनाडु में कोयंबटूर पठार और आंतरिक कर्नाटक शामिल हैं। भारत के बचे हुए भाग बहुत कम या न के बराबर सूखे से प्रभावित हैं।
सूखे के कारण (Causes of drought)
सूखे के प्रमुख कारणों की बात करें तो मौसम के मिज़ाज में परिवर्तन के लिए प्राकृतिक और मानवीय दोनों ही कारण ज़िम्मेदार होते हैं। बल्कि सही मायने में सूखे की समस्या, मानवीय गतिविधियों के कारण ज़्यादा होती है। सूखे के लिए ज़िम्मेदार ये प्राकृतिक एवं मानवीय कारण निम्नलिखित हो सकते हैं -
1. प्राकृतिक कारण
कम वर्षा : कम वर्षा, सूखे का प्रमुख कारण है। औसत से कम वर्षा होने से भूमि, फसलें, जल स्रोत, जलवायु और जीव जंतु प्रभावित होते हैं। जिस क्षेत्र में वर्ष कम होती है वहां की मिट्टी में नमी की कमी से पौधों व फसलों में वृद्धि रुक जाती है। कुओं, जलाशयों, नदियों व झीलों के जल स्तर में भारी कमी के कारण पीने और सिंचाई के लिए पानी की भारी कमी हो जाती है। खाद्यान्न संकट के साथ-साथ सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था ही चरमरा जाती है।
जलवायु परिवर्तन : ग्लोबल वार्मिंग से मौसम के पैटर्न में बदलाव होने लगता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में विपरीत परिस्थितियों की संभावना बढ़ जाती है। अत्यधिक वाष्पीकरण के कारण यह उन विशिष्ट स्थानों को शुष्क बना देता है। जिसके फलस्वरूप मौसम चक्र में अनियमितता आ जाती है और सूखे की भयावह स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं।
अल-नीनो और ला-नीना का प्रभाव : समुद्र के तापमान में बदलाव से मानसून पर असर पड़ता है।
अल नीनो और ला नीना जलवायु पैटर्न हैं जो दुनिया के कुछ हिस्सों में सूखे का कारण बनते हैं। अल नीनो का कारण, प्रशांत महासागर में औसत से अधिक गर्म समुद्री तापमान का होना होता है, जो दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिणी अफ्रीका में सूखे का कारण बन सकता है। ला-नीना की विशेषता प्रशांत महासागर में औसत से अधिक ठंडे समुद्री तापमान की है, जो ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया में सूखे का कारण बन सकता है।
जल स्रोतों का सूखना : झीलों, नदियों, तालाबों और भूजल स्तर में पानी की उपलब्धता सीमित हो जाती है। जिससे प्राकृतिक तथा मानवीय गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जल स्रोतों के इस तरह सूख जाने से, जलवायु अत्यधिक प्रभावित होती है। मिट्टी से नमी ग़ायब हो जाती है। जिससे सूखे के आसार बढ़ जाते हैं। फलस्वरूप सम्पूर्ण जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है।
2. मानव निर्मित कारण
वृक्षों की कटाई : वनस्पतियाँ जल संतुलन बनाए रखती हैं, लेकिन वनों की कमी से जल चक्र प्रभावित होता है। पौधे और पेड़ पानी को पकड़ते हैं और वायुमंडल में छोड़ देते हैं, जिससे बादल बनते हैं और फ़िर बारिश होती है। लेकिन आज के दौर में वनों की लगातार कटाई होने से वातावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप सूखे की स्थितियां निर्मित होती हैं। जिसके दुष्परिणाम पेड़ पौधों, जीव जंतुओं और सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को झेलने पड़ते हैं।
अत्यधिक जल दोहन : नदियों, झीलों और भूजल का ज़रूरत से ज़्यादा उपयोग होना, सूखे का कारण । होता है। पानी की मांग का, आपूर्ति से अधिक होना, जिनमें गहन कृषि और जनसंख्या में वृद्धि शामिल है। साथ ही, नदियों और बांधों में, सिंचाई के लिए पानी की उच्च मांग का होना भी निचले इलाकों में सूखे का कारण बन सकती है।
अव्यवस्थित खेती और जल प्रबंधन : जल संसाधनों का अनुचित उपयोग होना भी सूखे का प्रमुख कारण कहा जा सकता है। गहन खेती, पहले वनों की कटाई में योगदान देती है, लेकिन मिट्टी की अवशोषण क्षमता को भी प्रभावित कर सकती है, जिसका परिणाम सूखे की स्थिति उत्पन्न करने के रूप में देखा जा सकता है।
औद्योगिक और शहरीकरण : शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण से प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बढ़ता है। जिससे जलचक्र प्रभावित होता है और सूखे की संभावना बढ़ती है। शहरी क्षेत्रों में पानी की अत्यधिक माँग, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, सड़कों, इमारतों के निर्माण के कारण मिट्टी द्वारा पानी का अवशोषण कम हो जाता है। जिस कारण वर्षा का पानी भूमि के अंदर जाने के बजाय बाहर बह जाता है।
औद्योगिकीकरण से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है जो जलवायु परिवर्तन का कारण बनता है। औद्योगिक कचरे तथा अपशिष्ट के कारण जल प्रदूषण होता है। शहरी क्षेत्रों में उच्च तापमान और वायु प्रदूषण के कारण मानसून का पेटर्न प्रभावित होता है। परिणामस्वरूप शहरी क्षेत्र, विशेष रूप से सूखे की स्थिति के लिए ज़िम्मेदार हुए है
सूखे का प्रभाव | सूखे के परिणाम | Effects of drought in hindi
पर्यावरण और समाज पर सूखे का सोपानी प्रभाव पड़ता है। सूखे के कारण फसलों की बर्बाद होती है जिस कारण बर्बाद अनाज की कमी हो जाती है, जिसे अकाल कहा जाता है। ठीक इसी तरह पशुओं के लिए चारे की भारी कमी हो जाती है जिसे तृण अकाल कहा जाता है। जल आपूर्ति की कमी जल अकाल कहलाती है, तीनों परिस्थितियाँ मिल जाएँ तो त्रि-अकाल कहलाती हैं जो सबसे अधिक विध्वंसक साबित होती हैं।
सूखा प्रभावित क्षेत्रों में वृहत् पैमाने पर मवेशियों और अन्य पशुओं की मौत, मानव प्रवास तथा पशु पलायन की स्थितियां निर्मित हो जाती हैं। पानी की कमी के कारण लोग दूषित जल पीने के लिए विवश हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप पेयजल संबंधी बीमारियाँ जैसे आंत्रशोथ, हैजा और हेपेटाईटिस जैसी बीमारियां फैल जाती हैं। आइए विभिन्न क्षेत्रों पर सूखे की स्थिति के परिणाम जानते हैं -
1. कृषि पर प्रभाव
सूखे के कारण, फसलों की पैदावार में भारी कमी। देखी जाती है। पानी की कमी से बंजर भूमि में वृद्धि होने लगती है। पशुपालन पर बुरा असर पड़ने लगता है। चारों ओर पानी की कमी देखी जाती है।
2. आर्थिक प्रभाव
सूखे के कारण किसानों को आर्थिक नुकसान झेलने पड़ते हैं। किसान कर्ज़ की समस्या से ग्रसित होने लगते हैं। परिणामस्वरूप, खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में वृद्धि होने लगती है। चारों ओर महंगाई की मार ज़ोरों पर होती है। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था, आर्थिक समस्या से घिर जाती है।
3. सामाजिक प्रभाव
सूखे के कारण, पीने के पानी की भारी कमी हो जाती है। जिससे पलायन की गंभीर परिस्थितियां निर्मित होती हैं। ग्रामीण इलाकों में जनसंख्या का संकट गहराने लगता है। सूखे की वजह से ग़रीबी और बेरोज़गारी में इज़ाफ़ा होने लगता है।
4. पर्यावरणीय प्रभाव
भूजल स्तर में गिरावट और जल स्रोतों के सूखने से पर्यावरण पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इससे जैव विविधता में कमी आती है। तो वहीं वन्य जीवों के निवास स्थान भी प्रभावित होते हैं।
सूखे से बचने के उपाय (Ways to avoid drought in hindi)
सूखा से बचने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए कई प्रभावी उपाय अपनाए जा सकते हैं। ये उपाय व्यक्तिगत, सामुदायिक और सरकारी तीनों ही स्तर पर किए जा सकते हैं। आइए जानते हैं कि सूखे से बचने के लिए किन किन स्तरों पर और क्या क्या उपाय किए जा सकते हैं -
1. जल प्रबंधन और संरक्षण
• वर्षा जल संचयन : बारिश के पानी को संग्रहित करके भूजल स्तर को बढ़ाना।
• जलाशयों और तालाबों का निर्माण : पानी का भंडारण करने के लिए स्थानीय जलाशय विकसित करना।
• टपक सिंचाई : कम पानी में अधिक उत्पादन के लिए ड्रिप इरिगेशन तकनीक अपनाना। संरक्षित सिंचाई के अंतर्गत ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति का उपयोग।
2. खेती के बेहतर तरीके
• सूखा-रोधी फसलें : ऐसे पौधों की खेती करना जो कम पानी में भी पनप सकें (जैसे बाजरा, मक्का)।
• फसल चक्र (Crop Rotation) : मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखने और कम पानी में उत्पादन के लिए।
• जीरो टिलेज : जुताई कम करने से नमी संरक्षित रहती है और मिट्टी का कटाव रुकता है।
3. वनों और हरित क्षेत्र का विकास
• वनों की कटाई रोकना : वनों से वर्षा आकर्षित होती है और मिट्टी में नमी बनी रहती है। जंगलों की सुरक्षा का भरसक प्रयास करना।
• अधिक वृक्षारोपण : अधिक से अधिक पेड़ लगाना,
जलवायु संतुलन बनाए रखने और भूजल स्तर सुधारने में मदद करता है।
4. सामुदायिक और सरकारी स्तर पर पहल
• जल आपूर्ति का उचित प्रबंधन : नदियों, झीलों और तालाबों के संरक्षण हेतु योजनाएं लागू करना।
• जल पुनर्चक्रण (Water Recycling) : घरों और उद्योगों में उपयोग किए गए पानी को पुनः उपयोग में लाना।
• जल संकट के प्रति जागरूकता : सूखे के समय पानी के विवेकपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना।
5. तकनीकी और विज्ञान आधारित समाधान
• पूर्वानुमान और अलर्ट सिस्टम - समय पर जानकारी देकर सूखे की तैयारी करना, जलवायु परिवर्तन से निपटना, कार्बन उत्सर्जन में कमी लाकर पर्यावरण की रक्षा।
• कृत्रिम बारिश (Cloud Seeding) : जहां तक संभव हो सके, कृत्रिम रूप से बारिश करवाने का प्रबंध करना। या ऐसे प्रयास करना जिससे बादल बारिश कर सकें।
• भूजल पुनर्भरण : रिचार्ज वेल्स और सोखते कुएं बनाकर भूजल स्तर को बढ़ाना।
6. आपदा प्रबंधन योजना
• जल भंडारण : सूखे के दौरान उपयोग के लिए पानी का भंडारण करना। वाटर हार्वेस्टिंग के जरिए वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था करना।
• समुदाय-आधारित योजना : स्थानीय लोगों की भागीदारी से सूखे की तैयारी और प्रबंधन।
• बीमा योजनाएं : किसानों के लिए सूखा-आधारित फसल बीमा योजनाएं लागू करना।
इन उपायों से सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पानी का सही उपयोग और प्रबंधन किया जा सकता है, जिससे सूखे के दुष्प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
सामाजिक और प्राकृतिक पर्यावरण पर सूखे का
प्रभाव तात्कालिक एवं दीर्घकालिक होता है। इसलिए
सूखे से निपटने के लिए तैयार की जा रही योजनाओं को उन्हें ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। सूखे की स्थिति में तात्कालिक सहायता में सुरक्षित पेयजल वितरण, दवाइयाँ, पशुओं के लिए चारे और जल की उपलब्धता तथा लोगों और पशुओं को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना शामिल है।
सूखे से निपटने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठोस योजनाओं और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता होती है। सिर्फ़ सरकार पर निर्भर न रहते हुए हम सभी को पानी बचाने के लिए अपनी ओर से प्रयास करने चाहिए।
हमें जल की बर्बादी रोकने के लिए नल खुला नहीं छोड़ना चाहिए। लीक हो रहे नलों की तुरंत मरम्मत करवा लेना चाहिए। शॉवर के बजाय बाल्टी से नहाना चाहिए। टॉयलेट में कम पानी वाले फ्लश या डुअल फ्लश सिस्टम का उपयोग करना चाहिए। बर्तन और कपड़े धोते समय नल बंद रखना चाहिए। पौधों को भी।सुबह या शाम के समय पानी देना चाहिए ताकि वाष्पीकरण कम हो। ड्रिप सिंचाई जैसी तकनीकों का उपयोग करना चाहिए।
इतना ही नहीं बल्कि जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाकर अच्छे नागरिक होने का परिचय देना चाहिए। इसके लिए अपने परिवार, मित्रों और समुदाय के लोगों से ही पानी की बचत का महत्व बताकर प्रयास करना चाहिए। ताकि वे सभी मिलकर नहरों और तालाबों की देखभाल का बिदा उठा सकें।
हर छोटा कदम महत्वपूर्ण है। अगर हर व्यक्ति और समुदाय थोड़ा प्रयास करे, तो पानी की बचत से पर्यावरण और भविष्य की पीढ़ियों को पानी की कमी।से होने वाली भयावह समस्या से बचाया जा सकता है। आइए हम आज से ही सभी मिलकर यह संकल्प लें और स्वयं अपने घर से ही पानी की बचत करने के इस प्रयास की शुरुआत करें।
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