मृदा प्रदूषण का अर्थ, मृदा प्रदूषण की रोकथाम के उपाय, मृदा प्रदूषण पर निबंध (Mrida pradushan kya hai, Mrida pradushan ka arth, Mrida pradushan ke karan, Sources of soil pollution in hindi)
मृदा, पृथ्वी पर जीवन की नींव है। यह न केवल फ़सलों की उपज के लिए आवश्यक है, बल्कि जीवों के आश्रय, वनस्पति के विकास और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में भी अहम भूमिका निभाती है।
परंतु आधुनिकता की दौड़ में मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक और अनियंत्रित दोहन किया है, जिसके कारण मृदा प्रदूषण (mrida pradushan) एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है।
मृदा प्रदूषण क्या है (Soil Pollution in hindi)
मृदा प्रदूषण उसे कहते हैं जब मिट्टी में हानिकारक रासायनिक पदार्थ, कचरा, कीटनाशक, भारी धातुएँ या अन्य प्रदूषक मिल जाते हैं, जिससे उसकी प्राकृतिक संरचना और उर्वरता बिगड़ जाती है। इससे न केवल खेती प्रभावित होती है, बल्कि जीव-जंतुओं और मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है।
मृदा प्रदूषण से तात्पर्य है मिट्टी में ऐसे अवांछनीय रासायनिक तत्वों, कचरे या प्रदूषकों का मिल जाना, जो उसकी प्राकृतिक गुणवत्ता और उर्वरता को नुक़सान पहुँचाते हैं।
मृदा प्रदूषण के कारण | मृदा प्रदूषण के स्रोत
मृदा प्रदूषण के अनेक कारण हैं, जिनमें मानवजनित गतिविधियाँ प्रमुख हैं। मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारण (mrida pradushan ke pramukh karan) निम्न हैं -
1. रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग -
कृषि क्षेत्र में उपज बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवार नाशकों आदि का अत्यधिक उपयोग किया जाता है। ये रसायन धीरे-धीरे मिट्टी की सतह में जमा होकर उसकी संरचना को बिगाड़ देते हैं और सूक्ष्मजीवों को नुक़सान पहुँचाते हैं। इससे मिट्टी की जैविक उर्वरता बढ़ने के बजाय लगातार घटती जाती है।
2. औद्योगिक कचरे का अनुचित निपटान -
कारखानों से निकलने वाले ठोस व तरल कचरे में कई हानिकारक रसायन, भारी धातुएँ जैसे- सीसा, पारा, कैडमियम आदि होते हैं। जब इन्हें बिना उपचार के भूमि पर फेंका जाता है, तो ये सीधे मृदा को प्रदूषित करते हैं। औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ के मिट्टी में छोड़ दिए जाने से भारी मात्रा में मृदा प्रदूषण होता है।
3. प्लास्टिक एवं ठोस कचरे का भूमि में दबाव -
प्लास्टिक, रबर, धातु जैसे अपघटनीय पदार्थ जब भूमि में दबाए जाते हैं, तो ये लंबे समय तक मिट्टी में बने रहते हैं और उसमें. ज़हरीले तत्व छोड़ते हैं। इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता और सांस लेने की क्षमता कम हो जाती है।
4. घरेलू और नगर निगम के कचरे का फैलाव -
शहरी क्षेत्रों में घरेलू कचरा, मल-मूत्र, सीवर का पानी, रसोई और स्नानागार का गंदा पानी भूमि पर फैलाना या बहा देना, नगर निगम के अपशिष्ट का खुले में फेंक देना आदि, मिट्टी को बहुतायत में प्रदूषित करता है।
5. खनन गतिविधियाँ
खनिजों के दोहन हेतु की जाने वाली खनन प्रक्रिया मिट्टी की ऊपरी परत को हटाकर उसकी प्राकृतिक बनावट को नष्ट कर देती हैं। इसके अलावा खनन से निकले अपशिष्ट पदार्थों से भी मृदा विषैली बनती चली जाती है।
भारी धातुएं, जैसे कैडमियम, जिंक, निकल, आर्सेनिक आदि मृदा में मिल जाते हैं। ये धातुएं पौधों के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ जीवों के लिए भी अत्यंत हानिकारक होती हैं।
6. तेल एवं पेट्रोलियम पदार्थों का रिसाव
वाहनों या मशीनों से रिसने वाला तेल, डीजल आदि मिट्टी में मिलकर उसे प्रदूषित करता है। ऐसे रिसाव खेतों, सड़कों, रेलवे लाइनों के आसपास आमतौर पर देखने को मिलते हैं।
7. परमाणु अपशिष्ट और रेडियोधर्मी कचरा
परमाणु संयंत्रों या चिकित्सा केंद्रों से निकलने वाला रेडियोधर्मी कचरा यदि भूमि में दबाया जाए, तो वह कई वर्षों तक मिट्टी को लगातार प्रदूषित कर सकता है। अम्लीय जल वर्षा भी मृदा के मुख्य प्रदूषकों में से एक है।
8. अन्य कारण :
अस्थियां, कागज़, सड़ा-गला मांस, सड़ा हुआ भोजन, लोहा, लैड, तांबा, पारा, आदि भी मृदा को प्रदूषित करते हैं। मृदा में कूड़ा-करकट तथा अपशिष्ट पदार्थ मिलने से प्रमुखता से मृदा प्रदूषित होती है।
मृदा प्रदूषण के प्रभाव | Effects of Soil Pollution in hindi
साधारण तौर पर देखा जाए तो मृदा प्रदूषण के दुष्परिणाम सीधे या परोक्ष रूप से मानव जीवन और पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। मृदा प्रदूषण के प्रभाव (Mrida pradushan ke prabhav) निम्न हैं -
1. मिट्टी की उर्वरता में कमी :
रासायनिक तत्वों के कारण मिट्टी की जैविक गतिविधियाँ घटती हैं और वह बंजर बनने लगती है।
2. फ़सल उत्पादन में गिरावट :
प्रदूषित मिट्टी में पौधों की जड़ें आवश्यक पोषक तत्व ग्रहण नहीं कर पातीं, जिससे फ़सलें कमज़ोर और कम उत्पादक होती हैं।
3. जल स्रोतों का प्रदूषण :
प्रदूषित मिट्टी से बहकर रसायन जल स्रोतों में पहुँचते हैं, जिससे भूजल व सतही जल भी प्रदूषित होता है।
4. स्वास्थ्य पर प्रभाव :
मिट्टी में उगाए गए फलों और सब्ज़ियों के माध्यम से हानिकारक रसायन मानव शरीर में प्रवेश करते हैं, जिससे कैंसर, त्वचा रोग, हार्मोनल असंतुलन जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
5. जैव विविधता में कमी :
मिट्टी में रहने वाले जीवाणु, केंचुए और अन्य सूक्ष्म जीव मृदा की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक होते हैं, लेकिन प्रदूषण से इनकी संख्या घट जाती है।
6. मृदा की लवणता में वृद्धि :
अधिक फ़सलें उगाने तथा जल का पूर्ण प्रवाह न होने से अत्यधिक बढ़ जाती है। ग्रीष्म ऋतु में, लवण प्रायः निचली स्तरों से ऊपरी सतहों में कैपिलरी क्रिया द्वारा आते हैं। इससे मृदा की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
मृदा प्रदूषण नियन्त्रण | Control of Soil Pollution in hindi
मृदा प्रदूषण के बचाव (mrida pradushan ke bachav) तभी संभव है जब हम इसके कारणों को समझकर उनके प्रति जागरूकता लाएँ और व्यवहार में बदलाव करें। नीचे दिए कुछ प्रमुख उपायों से मृदा प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सकता है -
1. जैविक कृषि को बढ़ावा देना :
उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए। रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के स्थान पर गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नीम आधारित कीटनाशक आदि का उपयोग करना चाहिए। इससे न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।
2. कचरे का उचित प्रबंधन :
औद्योगिक, घरेलू एवं ठोस कचरे का पृथक्करण (segregation) कर उसका पुनर्चक्रण (recycling) और सुरक्षित निपटान (disposal) करना आवश्यक है।
3. गैर-अपघटनीय पदार्थों का कम उपयोग :
प्लास्टिक की थैलियों, बोतलों और अन्य सामानों के उपयोग को सीमित कर, पर्यावरण अनुकूल विकल्प अपनाने चाहिए, जैसे कि कपड़े या जूट के थैले।
4. खनन गतिविधियों को नियंत्रित करना :
खनन कार्यों को पर्यावरणीय दिशा-निर्देशों के अनुसार करना चाहिए, और खनन उपरांत प्रभावित क्षेत्रों का पुनरुद्धार आवश्यक है।
5. वनरोपण और हरित क्षेत्र का विस्तार :
वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बांधकर रखती हैं और उसे कटाव व प्रदूषण से बचाती हैं। इसलिए अधिक से अधिक पौधारोपण करना चाहिए।
6. जन जागरूकता :
स्कूलों, कॉलेजों, ग्राम सभाओं और मीडिया के माध्यम से लोगों को मृदा प्रदूषण के दुष्परिणामों और बचाव के उपायों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।
7. क़ानूनी प्रावधानों का पालन :
सरकार द्वारा बनाए गए पर्यावरण संरक्षण कानूनों का कड़ाई से पालन करवाना चाहिए ताकि औद्योगिक इकाइयाँ प्रदूषण फैलाने से बचें।
8. अन्य उपाय :
• भूमि तथा जल में मल-मूत्र विसर्जन पर रोक लगानी चाहिए।
• ठोस पदार्थ; जैसे टिन, तांबा, लोहा, कांच, आदि को मृदा में नहीं दबाना चाहिए। बल्कि उन्हें गलाकर या चक्रीकरण द्वारा नवीन वस्तुएं बनानी चाहिए।
• मानव तथा जन्तुओं के मल को ईंधन गैस (जैव गैस-बायो गैस) बनाने में उपयोग करना चाहिए
की विश्व
• साफ़-सुथरे कूड़ेदान शहरों में बनाने चाहिए।
• अपशिष्ट पदार्थों को एकत्रित करने तथा उनके विसर्जन के लिए खोखले, किन्तु बन्द पाइपों का प्रयोग करना चाहिए। हो सके तो साफ़ सूत्र कूड़ेदान
• मृदा अपरदन रोकने के लिए घास तथा छोटे पौधे उगाने चाहिए। भूमि प्रबंध करना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
मृदा प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती है, जिसका समाधान तत्काल और सामूहिक प्रयासों से ही संभव है। यदि समय रहते हम सतर्क नहीं हुए, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए उपजाऊ भूमि का संकट खड़ा हो सकता है। हमें चाहिए कि हम अपने जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाकर मृदा को प्रदूषित होने से बचाएँ, जैसे जैविक खेती को अपनाना, कचरे का पुनर्नवीनीकरण करना और हरित जीवनशैली को अपनाना। मृदा का संरक्षण केवल किसानों या सरकार की। ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है।
उम्मीद है इस अंक के माध्यम से मृदा प्रदूषण का अर्थ, कारण, प्रभाव एवं नियंत्रण के उपाय को भलीभांति समझ लेने के बाद, आप भी मृदा के प्रदूषण को रोकने में यथा संभव प्रयास ज़रूर करेंगे। और साथ ही अपने आसपास मृदा प्रदूषण (mrida pradushan) के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास भी अवश्य करेंगे।
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