ध्वनि प्रदूषण का अर्थ, ध्वनि प्रदूषण पर निबंध, ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव, ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपाय, (Noise Pollution in hindi, Source of noise pollution in hindi, side effects of noise pollution in hindi, Control of noise pollution in hindi)
ध्वनि प्रदूषण आधुनिक समय की एक गंभीर समस्या बन गई है, जो न केवल मनुष्यों बल्कि वन्यजीवों और पर्यावरण को भी प्रभावित कर रही है। यह प्रदूषण मुख्य रूप से शहरीकरण, औद्योगीकरण और तकनीकी प्रगति के कारण बढ़ा है।
सड़क यातायात, कारखानों, लाउडस्पीकरों, निर्माण कार्यों और अन्य स्रोतों से उत्पन्न अनावश्यक शोर हमारे स्वास्थ्य और मानसिक शांति को बाधित करता है। इस लेख में हम ध्वनि प्रदूषण किसे कहते हैं? इसके प्रभाव, कारण एवं रोकथाम के उपायों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
ध्वनि प्रदूषण क्या है? | Dhvani Pradushan kya hai?
जब कभी ध्वनि आवश्यकता से अधिक तेज़ होती है तब उसे ध्वनि प्रदूषण (noise pollution) कहते हैं। यह प्रदूषण जल तथा वायु प्रदूषण से एकदम भिन्न है, क्योंकि इसका दुष्प्रभाव तुरन्त होता है और स्थायी हानि हो जाती है।
ध्वनि प्रदूषण (dhvani Pradushan) तब उत्पन्न होता है जब ध्वनि का स्तर सामान्य सीमा से अधिक हो जाता है और वह कानों को असहनीय लगने लगता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 50 डेसिबल (dB) तक की ध्वनि सामान्य मानी जाती है, जबकि 85 डेसिबल से अधिक की ध्वनि मनुष्यों के लिए हानिकारक हो सकती है। ध्वनि प्रदूषण का प्रमुख कारण अनियंत्रित शोर है, जो कि व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों को बाधित करता है और उसके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
ध्वनि प्रदूषण के मुख्य स्रोत | ध्वनि प्रदूषण के कारण
ध्वनि प्रदूषण के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं -
1. यातायात का शोर – वाहनों की संख्या में वृद्धि के कारण सड़कों पर बहुत अधिक शोर होता है। कारों, ट्रकों, बसों, और मोटरसाइकिलों के हॉर्न और इंजन की आवाज़ें ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाती हैं। यहां तक कि
फ़सल काटने की मशीनों आदि से भी अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण होता है।
2. औद्योगिक शोर – उद्योगों, मशीनों, जैसे कपड़ा मिल, इस्पात कारखानों, स्वचालित वाहन बनाने वाले कारखानों, छापेखानों, आदि में लगी हुई मशीनरी अत्यधिक ध्वनि (शोर) उत्पन्न करती है। जिससे इन कारखानों में कार्यरत कर्मचारियों को अत्यधिक हानि होती है।
3. निर्माण कार्यों का शोर – शहरों में लगातार चल रहे निर्माण कार्य, जैसे सड़कें बनाना, इमारतें खड़ी करना, ड्रिलिंग और अन्य गतिविधियां अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण बढ़ाती हैं।
4. धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रमों का शोर – कई धार्मिक स्थलों, शादी समारोहों और सार्वजनिक आयोजनों में लाउडस्पीकर का अत्यधिक उपयोग किया जाता है, जिससे ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है।
5. हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों का शोर – हवाई अड्डों के आसपास रहने वाले लोगों को हवाई जहाज़ों की उड़ानों से बहुत अधिक शोर सहना पड़ता है। इसी प्रकार, रेलवे स्टेशनों और रेलगाड़ियों के संचालन से भी बहुत शोर उत्पन्न होता है। इसके अलावा बस स्टैंड के पास रहने वालों को भी अत्यधि शोर सहना पड़ता है।
6. घरेलू उपकरणों का शोर – रेडियो, टेलीविजन, मिक्सी, ग्राइंडर, वाशिंग मशीन, कूलर, पंखों, चक्की और म्यूजिक सिस्टम जैसे उपकरण भी ध्वनि प्रदूषण का कारण बन सकते हैं।
7. अन्य कारण - डायनामाइट विस्फोट, मिलिट्री या पुलिस कर्मचारियों द्वारा गोलियां चलाने के अभ्यास करते समय, हेलिकॉप्टर तथा हवाई जहाज आदि के उड़ते या उतरते समय ध्वनि प्रदूषण होता है।
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव (Harmful effects of noise pollution in hindi)
ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव केवल कानों तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि यह संपूर्ण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालता है। ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं:
1. सुनने की क्षमता में कमी – लंबे समय तक अत्यधिक शोर के संपर्क में रहने से बहरापन (श्रवण दोष) हो सकता है। दरअसल अधिक तेज़ ध्वनि से कान का परदा फट सकता है और मनुष्य बहरेपन का शिकार हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति 80-90 db या इससे अधिक की ध्वनि में 8 घण्टे लगातार रहता है तो उसमें बहरापन प्रारम्भ हो सकता है।
2. मस्तिष्क और मानसिक तनाव – तेज़ शोर व्यक्ति के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालता है और तनाव, चिंता तथा अनिद्रा की समस्या उत्पन्न कर सकता है। ध्वनि प्रदूषण से चिड़चिड़ापन, सिर दर्द, क्रोध आदि की समस्या आमतौर पर देखी जा सकती है।
3. हृदय संबंधी रोग – अधिक ध्वनि रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) और हृदय की धड़कन को असामान्य कर सकती है, जिससे दिल का दौरा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। दरअसल एकाएक तेज़ ध्वनि का हृदय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जिससे हृदय गति दर बढ़ जाती है, मनुष्य शिथिल हो जाता है, रुधिर नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं और रुधिर दाब में परिवर्तन आ जाता है।
4. नींद में बाधा – शोरगुल भरे माहौल में रहने वाले लोगों को नींद से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है, ध्वनि प्रदूषण से नींद नहीं आती, उन्हें आराम नहीं मिलता। परिणाम ये होता है कि इससे उनकी पूरी दिनचर्या प्रभावित होती है।
5. व्यवहार में बदलाव – लगातार शोर में रहने से व्यक्ति चिड़चिड़ा, गुस्सैल और असहनशील हो सकता है। जिसका प्रभाव सीधा उसके व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है।
6. बच्चों और वृद्धजनों पर प्रभाव – बच्चों के मस्तिष्क विकास और वृद्धजनों के स्वास्थ्य पर ध्वनि प्रदूषण का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण से भावात्मक विक्षोभ (emotional distur-bance) हो जाता है और इनके हृदय, मस्तिष्क, यकृत, आदि पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
ध्वनि प्रदूषण से बचने के उपाय | ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण
ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार, समाज और व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए। ध्वनि प्रदूषण को कम करने के उपाय निम्न हो सकते हैं -
1. वाहनों के शोर को कम करना – वाहन चालकों को अनावश्यक हॉर्न बजाने से बचना चाहिए। परिवहन विभाग को ऐसे वाहनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए जो अत्यधिक शोर उत्पन्न करते हैं। मशीनों का ठीक प्रकार से रख-रखाव करना चाहिए।
2. कानूनी प्रतिबंध – सरकार को ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए सख़्त से सख़्त क़ानून बनाने चाहिए और उनके पालन को सुनिश्चित करना चाहिए। उद्योगों को ऐसे निर्देश दिए जाने चाहिए कि वे शोर न करने वाली मशीनों का निर्माण करने का प्रयास करें।
3. औद्योगिक क्षेत्रों का सही नियोजन – कारखानों और औद्योगिक इकाइयों को रिहायशी (आवासी) इलाकों से दूर स्थापित किया जाना चाहिए। फैक्ट्रियों , बड़े कारखानों आवास-गृहों से दूर लगाने से काफी हद तक जन समुदाय को होने वाली हानि से बचाया जा सकता है। कारखानों में कार्यरत कर्मचारियों को अपने कानों में रुई या फ़िर कोई तरकीब इस्तेमाल करना चाहिए जिससे ध्वनि का दुष्प्रभाव कम हो सके।
4. लाउडस्पीकर और पटाखों पर नियंत्रण – धार्मिक आयोजनों, शादी समारोहों, और अन्य उत्सवों में लाउडस्पीकर और पटाखों का नियंत्रित उपयोग किया जाना चाहिए। लाउडस्पीकर सीमित समय के लिए इस्तेमाल करने से जन सामान्य को ध्वनि प्रदूषण।से होने वाली परेशानी कम की जा सकती है।
5. हरे-भरे क्षेत्र विकसित करना – पेड़-पौधे ध्वनि प्रदूषण को कम करने में मदद करते हैं। इसलिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। इसके लिए सड़कों के किनारे वृक्ष लगाने चाहिए जिससे ध्वनि प्रदूषण कम हो सके।
6. ध्वनि अवशोषित सामग्री का उपयोग – घरों, स्कूलों और कार्यालयों में ऐसी सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए जो शोर को अवशोषित कर सके। यदि संभव हो तो ध्वनि उत्पादन करने वाली मशीनों को ध्वनिरोधी कमरों में ही लगाना चाहिए।
7. जन जागरूकता अभियान – लोगों को ध्वनि प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे इसे कम करने में अपना योगदान पूरी ईमानदारी से दे सकें।
निष्कर्ष (Conclusion)
ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है, जो हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद ख़तरनाक साबित हो सकती है। इसे नियंत्रित करने के लिए व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए। यदि हम ध्वनि प्रदूषण को समय रहते नियंत्रित नहीं कर पाए, तो इसका प्रभाव हमारी आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ेगा। हमें अपने आस-पास के वातावरण को शांतिपूर्ण बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए ताकि हम एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जी सकें। पर्यावरण, हमारे लिए कुदरत की दी हुई बेहद ख़ूबसूरत धरोहर है। इसे अच्छी तरह संभालकर रखना हमारी ज़िम्मेदारी है।
"- By Alok Khobragade"
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