पूंजी क्या है समझाइए | पूंजी का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, (Punji ka arth, paribhasha, visheshtaen | Punji meaning in hindi
साधारण बोलचाल की भाषा में पूँजी का अर्थ 'रुपये पैसे' या 'धन-सम्पत्ति' से लिया जाता है, जिसका उपयोग किसी व्यवसाय या कारोबार में किया जा सके अथवा निवेश किया जा सके। पूँजी, मनुष्य द्वारा उत्पादित धन का वह भाग है जिसका प्रयोग अधिक धन के उत्पादन के लिए किया जाता है। अर्थात निवेश किया जा सकता है।
किन्तु अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग एक अलग अर्थ में किया जाता है। आइए हम अर्थशास्त्र के अंतर्गत पूंजी किसे कहते हैं (punji kise kahate hain?) जानेंगे।
पूंजी का अर्थ, परिभाषा (Punji ka arth paribhasha)
अर्थशास्त्र में पूंजी का अर्थ (punji ka arth), ऐसे मानव निर्मित संसाधन, जिसका उपयोग वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है।
मार्शल के अनुसार, "प्रत्येक प्रकार का धन (प्रकृति द्वारा प्रदान निःशुल्क उपहारों को छोड़कर) जिनसे आय प्राप्त होती है पूँजी कहलाती है।"
चैपमैन के अनुसार, "पूँजी वह धन है जो आय उत्पन्न करता है अथवा आय के उत्पादन करने में सहायता करता है अथवा इस उद्देश्य से प्रयोग किया जाता है।"
पूंजी के गुण (punji ke gun)
पूंजी के निम्नलिखित गुण होते हैं -(1) केवल धन ही पूँजी के अन्तर्गत शामिल किया जाता है, भूमि तथा अन्य प्राकृतिक उपहार नहीं।
(2) समस्त पूँजी धन होती है, परन्तु समस्त धन पूँजी नहीं कहलाता है। धन का केवल वह भाग जिसका
प्रयोग अधिक धन उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, उसे ही पूँजी कहा जाता है।
(3) पूँजी मनुष्यकृत होती है अर्थात् मनुष्य के श्रम अथवा त्याग द्वारा इसका निर्माण होता है।
(4) पूँजी आय प्रदान करने वाली एक साधन होती है।
(2) समस्त पूँजी धन होती है, परन्तु समस्त धन पूँजी नहीं कहलाता है। धन का केवल वह भाग जिसका
प्रयोग अधिक धन उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, उसे ही पूँजी कहा जाता है।
(3) पूँजी मनुष्यकृत होती है अर्थात् मनुष्य के श्रम अथवा त्याग द्वारा इसका निर्माण होता है।
(4) पूँजी आय प्रदान करने वाली एक साधन होती है।
स्पष्ट तौर पर कह सकते हैं कि पूंजी, धन, संपति या संसाधन है जो किसी व्यवसाय, परियोजना या किसी आर्थिक गतिविधि को चलाने और आगे बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है। जैसे कि मशीनरी, इमारतें, निवेश या व्यक्ति का ज्ञान कौशल।
पूँजी की विशेषताएँ (Characteristics of Capital)
पूँजी की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ (punji ki visheshtayen) निम्नलिखित हैं-
(1) पूँजी उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन है-
भूमि की भाँति पूँजी भी उत्पादन का निष्क्रिय साधन होती है। श्रम के प्रयोग के बिना पूँजी के द्वारा उत्पादन नहीं किया जा सकता है।
(2) पूँजी मनुष्य द्वारा निर्मित साधन है-
पूँजी प्रकृति द्वारा प्रदान नहीं की जाती है, बल्कि मनुष्य के श्रम का परिणाम होती है। पूँजी सदैव धन की बचत से प्राप्त होती है तथा बचत मनुष्य द्वारा ही की जाती है।
(3) पूँजी में उत्पादकता होती है-
श्रम का प्रयोग करके पूँजी के द्वारा बहुत अधिक उत्पादन किया जा सकता है। आधुनिक समय में श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण के कारण पूँजी का प्रयोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है, अतः पूँजी उत्पादन एक प्रकार से अनिवार्य साधन बन गया है।
(4) पूँजी में बहुत अधिक गतिशीलता होती है-
उत्पादन के अन्य साधनों की अपेक्षा पूँजी में बहुत अधिक गतिशीलता होती है। एक स्थान या व्यवसाय से पूँजी को सुगमता से तथा शीघ्रता से दूसरे स्थान तथा व्यवसाय में लाया ले जाया जा सकता है।
(5) पूँजी नाशवान है-
पूँजी का प्रयोग करने पर इसमें घिसावट होती है। यह घिसावट पूँजीगत साधन के टिकाऊपन पर निर्भर करती है। पूँजी की घिसावट के फलस्वरूप इसे समय-समय पर परिवर्तित करना पड़ता है। उत्पादन की तकनीक में परिवर्तन हो जाने पर भी पूँजी को प्रतिस्थापित करना पड़ता है।
(6) पूँजी की पूर्ति में आसानी से परिवर्तन सम्भव है-
अन्य साधनों की अपेक्षा पूँजी की पूर्ति को आसानी से घटाया बढ़ाया जा सकता है।
(7) पूँजी आय प्रदान करती है-
मनुष्य द्वारा पूँजी का संचय करने का कारण भविष्य में आय प्राप्त करना होता है। अतः पूँजी आय का एक स्रोत है।
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