भूमि से आप क्या समझते हैं, भूमि का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, महत्व, (bhumi kise kahate hain, bhumi ka arth, paribhasha, visheshtaen, bhumi ka mahatva, bhumi ka upyog)
भूमि का आशय (bhumi ka akshay) केवल भूमि शब्द से ही नहीं, बल्कि इसमें वे सभी पदार्थ और शक्तियां शामिल की जाती हैं जिन्हें प्रकृति, मनुष्य की सहायता के लिए निःशुल्क उपलब्ध कराती है। जैसे- पानी, हवा, रोशनी, धूप आदि।
भूमि को भूदेवी, धरणी और वसुंधरा के नाम से भी जाना जाता है। भूमि, प्रकृति की निःशुल्क देन है। भूमि को नष्ट नहीं किया जा सकता, लेकिन उसका आकार या स्वरूप अवश्य बदला जा सकता है।
साधारण बोलचाल की भाषा में भूमि का अर्थ, पृथ्वी की ऊपरी सतह के अलावा पृथ्वी के ऊपर और नीचे पाए जाने वाले पदार्थ जैसे- रोशनी, हवा, नदी, नाले, खनिज पदार्थ, पेड़ पौधे आदि को भी शामिल किया जाता है।
भूमि पर कई तरह की गतिविधियां होती रहती हैं। जिस कारण समय के साथ साथ इसमें बदलाव होता रहता है। जैसे कि कृषि, आवास, मनोरंजन, वाणिज्य, उद्योग और परिवहन। भूमि पर मौजूद संसाधन, जैसे कि नदियां, झीलें और जीवमंडल भी भूमि का हिस्सा होते हैं।
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भूमि का अर्थ (Meaning of Land in hindi)
साधारण बोलचाल की भाषा में भूमि का अर्थ पृथ्वी की ऊपरी सतह से लगाया जाता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का अर्थ उससे कहीं अधिक व्यापक है। अर्थशास्त्र में भूमि का अर्थ (arthshastra me bhumi ka arth) प्राकृतिक उपहारों से लिया जाता है अर्थात इसमें ऐसी वस्तुएँ तथा शक्तियाँ सम्मिलित की जाती हैं जो मनुष्य को प्रकृति से निःशुल्क प्राप्त होती हैं। भूमि को उत्पादन का एक साधन (कारक) माना जाता है। निश्चित रूप से भूमि एक सीमित संसाधन है।
भूमि की परिभाषा (bhumi ki paribhasha)
प्रो. मार्शल के अनुसार, "भूमि का अर्थ उन सभी पदार्थों तथा शक्तियों से लिया जाता है जो प्रकृति मनुष्य की सहायता के लिए भूमि और पानी, हवा और प्रकाश तथा गर्मी के रूप में निःशुल्क प्रदान करती है।"
इस प्रकार मार्शल की परिभाषा के अनुसार भूमि के अन्तर्गत निम्नलिखित तत्व सम्मिलित किये जा सकते हैं -
(i) भूमि के धरातल पर - जंगल, पहाड़, नदियाँ, झील, समुद्र, मैदान आदि।
(ii) भूमि के धरातल के नीचे- खनिज पदार्थ, तेल, कोयला आदि।
(iii) भूमि के धरातल के ऊपर- वर्षा, वायु, सूर्य की रोशनी इत्यादि।
भूमि की विशेषताएँ (Characteristics of Land)
उत्पादन के साधन के रूप में भूमि कई प्राकृतिक एवं सामाजिक विशेषताओं से युक्त होती है। ये विशेषताएँ इसे एक महत्वपूर्ण संसाधन बनाती हैं। भूमि की प्रमुख विशेषताएँ (bhumi ki pramukh visheshtayen) निम्नलिखित हैं-
(1) भूमि प्रकृति का निःशुल्क उपहार है -
भूमि मनुष्य को प्रकृति से निःशुल्क उपहार के रूप में प्राप्त होती है। मनुष्य भूमि पर अपनी सुविधानुसार केवल सुधार कर सकता है परन्तु उसका निर्माण नहीं कर सकता है। नदी, झील, समुद्र, जल, वायु आदि वस्तुएँ मनुष्य को प्रकृति से बिना किसी मूल्य के ही प्राप्त हुई हैं।
(2) प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता -
भूमि में विभिन्न प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध होते हैं, जैसे– खनिज (कोयला, लोहा, बॉक्साइट, तांबा), जल स्रोत (झीलें, नदियाँ, भूमिगत जल) और वनस्पति और जैव विविधता के रूप में अनेक संसाधन प्रकृति द्वारा प्रदत्त हैं।
(3) भूमि की पूर्ति सीमित होती है -
पृथ्वी पर भूमि का क्षेत्रफल निश्चित है। यानि कि भूमि सीमित मात्रा में उपलब्ध है। जनसंख्या वृद्धि के कारण भूमि की मांग बढ़ती जा रही है, जबकि इसकी आपूर्ति सीमित है। उत्पादन के अन्य साधनों की भाँति भूमि की पूर्ति को घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता है।
(4) भूमि में अविनाशी शक्ति है-
भूमि एक स्थायी प्राकृतिक संसाधन है, जिसे नष्ट नहीं किया जा सकता। भूमि का लगातार प्रयोग करते रहने से उसकी उर्वरा शक्ति कुछ कम अवश्य हो सकती है, भूमि एक हालाँकि, प्राकृतिक आपदाएँ और मानवीय गतिविधियाँ इसकी गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती हैं। परन्तु भूमि से सम्बन्धित सूर्य का प्रकाश, जल, वायु इत्यादि में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है अर्थात ये अविनाशी है।
(5) भूमि में विभिन्नता होती है-
इसका अभिप्राय है कि स्थिति तथा उर्वरा शक्ति की दृष्टि से सभी स्थानों की भूमियाँ एकसमान नहीं होती हैं। एक स्थान की भूमि बहुत अधिक उपजाऊ होती है तो दूसरे स्थान की भूमि बंजर या बेकार होती है।
(6) भूमि निष्क्रिय साधन है-
इसका अभिप्राय है कि भूमि स्वयं कुछ भी उत्पादन नहीं देती है। भूमि से उत्पादन प्राप्त करने के लिए श्रम एवं पूँजी को लगाना पड़ता है। उदाहरणार्थ, एक खाली खेत में स्वतः कुछ पैदा नहीं होता है उस पर मनुष्य को बीज आदि डालने पड़ते हैं तभी उत्पादन प्राप्त होता है।
(7) भूमि गतिहीन है-
उत्पादन के अन्य साधनों की भाँति भूमि को भौतिक रूप से एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर नहीं ले जाया जा सकता है। इसके कारण भूमि का मूल्य और उपयोग क्षेत्र विशेष पर निर्भर करता है। हाँ, इसको एक प्रयोग से दूसरे प्रयोग में अवश्य लाया जा सकता है।
(8) भूमि पर उत्पत्ति ह्रास नियम लागू-
रिकॉर्डों, मार्शल आदि का विचार था कि भूमि पर उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है। अर्थात यदि किसी भूमि के टुकड़े पर श्रम तथा पूंजी की इकाइयों में जैसे जैसे वृद्धि की जाती है, वैसे वैसे उत्पादन में वृद्धि घटती दर पर प्राप्त होती है।
(9) जल धारण क्षमता-
भूमि की मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता कृषि और जल संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण होती है। रेतीली मिट्टी कम जल धारण करती है, जबकि चिकनी मिट्टी अधिक जल धारण करती है।
(10) उत्पादन क्षमता-
भूमि की उत्पादन क्षमता उसकी मिट्टी, जलवायु, उर्वरता और प्रबंधन पर निर्भर करती है। अच्छी गुणवत्ता वाली भूमि अधिक उपजाऊ होती है और कृषि उत्पादन में सहायक होती है।
भूमि का महत्व | Importance of land in hindi
भूमि का महत्व अथवा भूमि का उपयोग (bhumi ka upyog) निम्नलिखित है -
1. कृषि के लिए आधार-
भूमि का मुख्य उपयोग कृषि में होता है। विश्व की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, और भूमि की उर्वरता खाद्य उत्पादन को प्रभावित करती है।
2. औद्योगिक विकास में योगदान-
भूमि का उपयोग उद्योगों और कारखानों के निर्माण में किया जाता है। उद्योगों के लिए भूमि की स्थिति, संसाधनों की उपलब्धता और परिवहन सुविधाएँ महत्वपूर्ण होती हैं।
3. आवास और शहरीकरण-
जनसंख्या वृद्धि के साथ भूमि का उपयोग आवासीय और शहरी विकास के लिए बढ़ता जा रहा है। बड़े शहरों में भूमि की मांग अधिक होती है, जिससे भूमि की क़ीमतें बढ़ जाती हैं।
4. जैव विविधता संरक्षण-
वन, जल स्रोत और जीव-जंतु भूमि पर निर्भर होते हैं। भूमि के संरक्षण से पर्यावरण संतुलन बनाए रखा जा सकता है।
5. आर्थिक विकास में भूमिका-
भूमि संपत्ति का एक महत्वपूर्ण भाग है और आर्थिक विकास में योगदान देती है। भूमि की ख़रीदी-बिक्री, किराया और उपयोग से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
6. बहुउद्देश्यीय उपयोग-
भूमि का उपयोग कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है जैसे- खाद्य उत्पादन के लिए कृषि में उपयोगी। कारखानों, उद्योगों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए औद्योगिक क्षेत्र में। मनुष्यों और पशुओं के रहने के लिए आवास हेतु उपयोग। इसके अलावा वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए पर्यावरण संरक्षण हेतु उपयोग की जाती है।
7. प्राकृतिक विविधता-
भूमि विभिन्न प्रकार की होती है, जैसे – पहाड़ी भूमि, मैदानी भूमि, मरुस्थलीय भूमि, दलदली भूमि। इनका उपयोग उनके भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार किया जाता है।
8. पर्यावरणीय महत्व-
भूमि पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। यह वृक्षों, जीव-जंतुओं, और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में योगदान देती है। वन क्षेत्र जलवायु नियंत्रण और जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
भूमि मानव जीवन का आधार है। भूमि एक अनमोल प्राकृतिक संसाधन है, जिसका सतत और उचित उपयोग आवश्यक है। यह प्राकृतिक संसाधनों में सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है, जो कृषि, औद्योगिक विकास, आवास, जल संरक्षण, जैव विविधता और अन्य अनेक आवश्यकताओं को पूरा करती है। मानव सभ्यता के विकास में भूमि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
भूमि का उचित उपयोग समाज की आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रगति के लिए अनिवार्य है। इसकी सीमितता को ध्यान में रखते हुए इसका संरक्षण और सही प्रबंधन महत्वपूर्ण है। भूमि के अंधाधुंध उपयोग से पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, इसलिए इसके संतुलित उपयोग पर ज़ोर दिया जाना चाहिए।
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