उत्पादन के साधन : श्रम का अर्थ, परिभाषा, प्रकार और विशेषताएं | भारत में श्रमिकों की विशेषताएं क्या हैं | Meaning and definition of labour in hindi | Types and characteristics of labour in hindi
श्रम का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Labour)
सामान्य अर्थ में श्रम का तात्पर्य मज़दूरों द्वारा किये जाने वाले शारीरिक परिश्रम से लगाया जाता है, परन्तु अर्थशास्त्र में श्रम का अर्थ विस्तृत रूप में प्रयोग होता है। अर्थशास्त्र में श्रम का अर्थ (shram ka arth) मनुष्य द्वारा किये गये उन शारीरिक एवं मानसिक कार्यों से होता है जो कि धन प्राप्ति के लिये किये जाते हैं। उदाहरणार्थ, मज़दूर द्वारा मकान बनाना, डॉक्टर का मरीज़ देखना, अध्यापक का पढ़ाना, क्लर्क का। दफ़्तर में काम करना आदि ये सभी कार्य श्रम में शामिल किए जाते हैं।
जेवन्स के अनुसार, "श्रम वह शारीरिक या मानसिक क्रिया है जो कि पूर्णतः या अंशतः किसी आर्थिक उद्देश्य हेतु की जाती है, केवल आनन्द के लिए किया गया कार्य श्रम नहीं है।"
मार्शल के अनुसार, "श्रम से हमारा आशय उस मानवीय मानसिक तथा शारीरिक प्रयास से है जो अंशतः या पूर्णतः या कार्य से प्रत्यक्ष प्राप्त होने वाले आनन्द के अतिरिक्त किसी लाभ की प्राप्ति के लिए किया जाता है।"
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि श्रम के लिए निम्न बातें होनी चाहिए-
(1) केवल मानवीय प्रयासों को श्रम के अन्तर्गत शामिल किया जाता है।
(2) श्रम के अन्तर्गत शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही प्रकार के प्रयत्न शामिल किये जाते हैं।
(3) श्रम के अन्तर्गत केवल उन्हीं प्रयत्नों को शामिल किया जाता है जो कि आर्थिक उद्देश्य हेतु किये जाते हैं न कि केवल आनन्द के लिए
(4) श्रम एक उत्पादन क्रिया है, परन्तु वह क़ानूनी होनी चाहिए।
श्रम के प्रकार (Types of Labour)
श्रम के रूप (Types of Labour in hindi) या श्रम के प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं -
(1) उत्पादक एवं अनुत्पादक श्रम -
जिस श्रम से धन के उत्पादन में सहायता मिलती है उसे उत्पादक श्रम कहते हैं। इसके विपरीत जिस श्रम द्वारा धन का उत्पादन न हो वह अनुत्पादक श्रम कहलाता है। उदाहरणार्थ, एक माली जब किसी और के बगीचे में काम करता है और उसे पारिश्रमिक मिलता है तब वह उत्पादक श्रम कहलाता है।
इसके विपरीत जब वह अपने बगीचे में काम करता है और कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता तब वह अनुत्पादक श्रम कहलाता है।
(2) कुशल एवं अकुशल श्रम -
जिस श्रम को करने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, वह कुशल श्रम कहलाता है। उदाहरणार्थ, अध्यापक, डॉक्टर, इन्जीनियर, मशीन चालक आदि 'कुशल श्रम' हैं।
इसके विपरीत जिस श्रम को करने के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण एवं ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती वह अकुशल श्रम कहलाता है। उदाहरणार्थ, कुली, चपरासी, घरेलू नौकर आदि 'अकुशल श्रम' कहे जा सकते हैं।
(3) मानसिक एवं शारीरिक श्रम -
जिस श्रम में शारीरिक परिश्रम की अपेक्षा बृद्धि का अधिक प्रयोग होता है वह मानसिक श्रम कहलाता है। उदाहरणार्थ, अध्यापक, डॉक्टर, इन्जीनियर आदि का श्रम मानसिक श्रम कहलाता है।
इसके विपरीत जिस श्रम में वृद्धि की अपेक्षा शारीरिक परिश्रम अधिक लगता है वह शारीरिक श्रम कहलाता है। उदाहरणार्थ, कुली, घरेलू नौकर आदि का कार्य 'शारीरिक श्रम' कहलाता है। वास्तव में, कोई भी श्रम पूरी तरह न तो मानसिक होता है ना हि शारीरिक। असल में कुछ श्रम में बुद्धि की अधिक आवश्यकता होती है तो कुछ में शरीर की।
श्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Labour)
श्रम की प्रमुख विशेषताएँ (shram ki visheshtayen) निम्नलिखित हैं -
(1) श्रम उत्पादन का एक सक्रिय साधन है -
श्रम उत्पादन का एक सक्रिय साधन माना जाता है क्योंकि श्रम के बिना उत्पादन कार्य सम्भव नहीं है। जबकि भूमि तथा पूँजी निष्क्रिय साधन माने जाते हैं, क्योंकि श्रम के अभाव में इनके द्वारा उत्पादन कार्य करना असंभव है।
(2) श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता -
जब कोई श्रमिक अपने श्रम को बेचता है तो उसे स्वयं उपस्थित रहना पड़ता है। इसका अर्थ यह है कि श्रमिक के द्वारा किया गया कार्य ही श्रम है।
(3) श्रम नाशवान है -
श्रम को नाशवान कहा जाता है। अर्थात इसका आशय है कि यदि श्रमिक किसी दिन कार्य नहीं करता है तो उसका उस दिन का श्रम सदैव के लिए नष्ट हो जाता है। अर्थात कोई भी श्रमिक ऐसा नहीं कर सकता है कि वह बहुत दिनों के श्रम का संचय कर ले और वक्त आने पर उसका पूरा उपयोग कर ले।
(4) श्रम की सौदा करने की शक्ति कमज़ोर होती है -
एक प्रश्न उठता है कि श्रम की सौदा करने की शक्ति कमज़ोर क्यों होती है? तो इसका कारण है श्रम का नाशवान होना। इसीलिए श्रमिकों की उनके मालिकों के साथ सौदा करने की शक्ति कमज़ोर होती है।
(5) श्रम गतिशील है -
श्रम को मनुष्यों के द्वारा किए जाने के कारण, अन्य साधनों की अपेक्षा श्रम में अधिक गतिशीलता होती है। इसका आशय है कि श्रम को एक स्थान से दूसरे स्थान पर, एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में आसानी से लाया ले जाया जा सकता है।
(6) श्रम की पूर्ति धीमी गति से परिवर्तित होती है -
श्रम की पूर्ति का माँग के साथ समायोजन बहुत धीमी गति से होता है, क्योंकि माँग बढ़ने पर श्रम की मात्रा, जनसंख्या की जन्मदर, पोषण तथा प्रशिक्षण पर निर्भर करती है जो कि धीरे-धीरे बढ़ती है।
(7) श्रमिक अपना श्रम बेचता है स्वयं को नहीं -
श्रमिक गुण या कुशलता के आधार पर सिर्फ़ अपने श्रम को बेचता है न कि स्वयं अपने को। अन्य शब्दों कहा जाए तो, श्रमिक अपने श्रम को बेचने के पश्चात् भी अपने शरीर, गुणों, कुशलता, योग्यता इत्यादि का स्वामी बना रहता है।
(8) श्रम उत्पादन का साधन ही नहीं साध्य भी है -
श्रम के द्वारा उत्पादन होता है जिसका उद्देश्य समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है तथा श्रमिक ही समाज का प्रमुख अंग होता है। इस प्रकार श्रम को उत्पादन का एक साधन तथा साध्य, दोनों कहा जा सकता है।
(9) श्रम लगातार सेवा प्रदान नहीं कर सकता -
श्रम एक मनुष्य है, इसलिए वह वस्तुओं की भाँति लम्बे समय तक लगातार सेवा नहीं दे सकता। उसको शारीरिक या मानसिक कार्य के मध्य में आराम, भोजन, मनोरंजन, सोने इत्यादि की आवश्यकता होती है।
उम्मीद है इस अंक के माध्यम से आपने श्रम की अवधारणाएं क्या हैं? जानने के साथ साथ श्रम की परिभाषा, प्रकार और विशेषताएं (shram ki pribhasha, prakar aur visheshtaen) भली भांति समझ लिया होगा।
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