वर्तमान अर्थव्यवस्था में मुद्रा का महत्व | Importance of money in economics in hindi
आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मुद्रा के अभाव में किसी अर्थव्यवस्था का संचालन संभव ही नहीं है। बग़ैर मुद्रा के आप अपनी आवश्यकताओं एवं जरूरतों पूर्ति नहीं कर सकते हैं। मुद्रा आज के समय में विनिमय का एक प्रमुख माध्यम है। मुद्रा ने वस्तु विनिमय प्रणाली में आने वाली कठिनाइयों को आसानी से ख़त्म कर दिया है।हम यूं कह सकते हैं कि 'वर्तमान युग मुद्रा का युग है।' किसी भी देश की आर्थिक प्रगति का अनुमान उस देश की मुद्रा प्रणाली के विकास से लगाया जा सकता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो अर्थशास्त्र के सभी विभागों, जैसे- उपभोग, उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा राजस्व आदि में मुद्रा का विशेष (mudra ka vishesh mahatva) महत्व है।
अर्थशास्त्र के विभिन्न क्षेत्रों में मुद्रा का महत्व | Arthshastra ke kshetra me mudra ka mahatva
वर्तमान में हम अर्थव्यवस्था में मुद्रा के महत्व (arthvyavastha me mudra ka mahatva) को निम्न बिंदुओं के आधार पर समझ सकते हैं -
(1) उपभोग के क्षेत्र में मुद्रा का महत्व -
आर्थिक क्रिया में उपभोग का सबसे पहला स्थान होता है। मनुष्य उपभोग करने के लिए विभिन्न वस्तुओं को ख़रीदकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। उसकी ख़रीदने की क्षमता, उसकी आय पर निर्भर करती है। और उसकी आय का अनुमान मुद्रा के द्वारा ही किया जा सकता है। तरह उपभोग क्षेत्र में मुद्रा का महत्व सर्वोपरि है।
(2) उत्पादन के क्षेत्र में मुद्रा का महत्व -
आधुनिक युग में उत्पादन, कुछ महत्वपूर्ण तत्वों के संयुक्त प्रयास का मिला जुला परिणाम होता है। जैसे - भूमि, श्रम, पूंजी, संगठन एवं साहस जैसे तत्वों के समावेश से बेहतर उत्पादन किया जाना संभव होता है। और इन सभी तत्वों के मूल्य के सामूहिक योग को ही लागत कहा जाता है जिसका निर्धारण हम मुद्रा के द्वारा ही कर सकते हैं। इस प्रकार उत्पादन के लिए सभी वस्तुओं तथा सेवाओं की ख़रीदी भी मुद्रा के द्वारा ही की जाती है। अतः हम कह सकते हैं कि
उत्पादन की क्रिया भी बिना मुद्रा के संभव नहीं है।
(3) विनिमय के क्षेत्र में मुद्रा का महत्व -
सामान्य तौर पर उत्पादन करने के बाद उत्पादित वस्तुओं का विक्रय भी करना होता है। और वस्तुओं का विक्रय तभी किया जा सकता है जब उसके मूल्य का निर्धारण किया जाए, वह भी लागत मूल्य के अनुमान के साथ। मुद्रा प्रत्येक वस्तु की लागत का अनुमान और उस वस्तु की क़ीमत के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतः हम कह सकते हैं सम्पूर्ण विक्रय व्यवस्था अर्थात सम्पूर्ण विनिमय तंत्र का आधार मुद्रा है। अर्थात विनिमय क्षेत्र में मुद्रा का महत्व नकारा नहीं जा सकता।
(4) वितरण के क्षेत्र में मुद्रा का महत्व -
उत्पादन कर लेने के बाद भूमि का लगान, पूंजी का ब्याज़, श्रमिकों की मज़दूरी, संगठक का वेतन, साहसी के लाभ आदि का निर्धारण कर वितरण करना भी आवश्यक होता है। और इन सभी का अनुमान, निर्धारण एवं वितरण की प्रक्रिया भी मुद्रा के द्वारा ही संभव हो पाती है। सरल शब्दों में कहा जाए तो उत्पादन में संयुक्त रूप से शामिल सभी व्यक्तियों के पारिश्रमिक का निर्धारण कर उनमें वितरण करना, मुद्रा द्वारा ही आसानी से संभव हो पाता है।
(5) राजस्व के क्षेत्र में मुद्रा का महत्व -
आज के समय में राज्य के आर्थिक क्रियाओं में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ गया है। सरकार द्वारा उचित कर निर्धारण, व्यय तथा ऋण की नीति आदि लागू कर आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव डाला जाता है। किन्तु मुद्रा के बिना किसी भी प्रकार की सार्वजनिक व्यय एवं आय संबंधी आर्थिक क्रियाओं का संचालन करना संभव नहीं हो सकता।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि मुद्रा के बिना, आज के युग में मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। आज के समय में किसी भी उत्पादक के सामने आने वाली समस्याएं जैसे- वस्तु के कितने उत्पादन के लिए कितना व्यय होगा, कच्चा माल कितना ख़रीदना होगा, कितनी पूँजी उधार लेनी पड़ेगी, वस्तु का कितना मूल्य रखना होगा, इस उत्पादन के बाद लाभ कितना होगा, उत्पादन में सम्मिलित विभिन्न व्यक्तियों का पारिश्रमिक कितना होगा, आदि आदि।
इन सभी समस्याओं का निराकरण, मुद्रा के आविष्कार ने आसानी से कर दिया है। जो कि वस्तु विनिमय प्रणाली से असंभव था। आधुनिक युग की समस्त आर्थिक क्रियाओं में मुद्रा का महत्व (mudra ka mahatva) झुठलाया नहीं जा सकता। इसलिए मार्शल द्वारा कहा गया यह कथन पूर्णतः सत्य प्रतीत होता है कि "मुद्रा वह धुरी है, जिसके चारों ओर अर्थविज्ञान चक्कर लगाता है।"
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